मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम और उनकी यशगाथा रामायण केवल भारत में नहीं अपितु पूरे संसार रची बसी है। बीस से अधिक देशों में उनकी अपनी लोकभाषा में रामायण उपलब्ध है। अनेक देशों के पुरातात्विक अनुसंधान में राम सीता जैसी छवियाँ, काष्ठ या भीति चित्र मिले हैं।
राम और रामायण की व्यापकता समझने केलिये हमें दो बातों से ऊपर ऊठना होगा। एक तो संसार के वर्तमान स्वरूप की जीवन शैली एवं साहित्य और दूसरा कुछ पश्चिमी समाज शास्त्रियों द्वारा स्थापित सामाजिक विकास का सिद्धांत।
इसका कारण यह है कि ढाई हजार वर्ष पहले जैसी दुनियाँ थी, आज वैसी नहीं है। पूरा स्वरूप बदल गया है। इन ढाई हजार वर्षों में जो भी विचार आये, मत आये या धर्म आये उनके अनुयायियों ने पूरे संसार को अपने ढंग में ढालने का प्रयास किया।
नया स्वरूप देने के लिये अतीत के चिन्हों को पूरी तरह समाप्त करने के अभियान चले और दूसरा कुछ समाज शास्त्रियों ने यह सिद्धांत स्थापित करने का प्रयास कि आज के संसार में विकास का जो भी स्वरूप है वह केवल पांच हजार वर्षों की जीवन यात्रा है।
इसलिये अतीत के जो भी प्रतीक शोध में सामने आये या कथा साहित्य उपलब्ध हुआ उसे उसका काल-खंड इसी अवधि के भीतर निर्धारित किया गया और जो नहीं कर पाये उसे विश्व का आश्चर्य कह कर विराम लगाया।
जबकि पुरातात्विक अन्वेषण कर्ताओं और भूवैज्ञानिकों के निष्कर्ष बहुत अलग हैं। मोहन जोदड़ो और हड़प्पा, मिश्र की खुदाई, समन्दर में द्वारिका की खोज, कुरुक्षेत्र की खुदाई, नर्मदा घाटी में मिले मानव सभ्यता के चिन्ह कुछ अलग कहानी कहते हैं।
यदि हमें रामजी और रामकथा की वैश्विकता समझनी है तो इससे ऊपर उठना होगा। भारतीय वाड्मय में रामजी के अवतार का जो समय माना जाता है वह नासा द्वारा रामसेतु का काल निर्धारण के आसपास बैठता है।
यदि हम इन संदर्भ में मीमांसा करेगें तो रामजी और रामायण की व्यापकता को समझ सकेगें और यह तथ्य स्वयं ही प्रमाणित हो जायेगा कि राम केवल भारत या एशिया तक सीमित नहीं हैं अपितु विश्व व्यापी है।
हजारों वर्ष पहले के यूरोप में भी रामजी झलक देखी जा सकती है। एक भी एशियाई देश ऐसा नहीं जहाँ पुरातात्विक अनुसंधान में रामजी की स्मृतियाँ, चित्र या साहित्य न मिला हो अपितु अनेक योरोपीय देशों की खुदाई में निकली पुरातात्विक सामग्री भी राम जी के कथानक से मेल खाती हैं।
पूरी दुनियाँ में तीन सौ से अधिक रामायण अथवा राम कथाएँ प्रचलित हैं। जैसे भारत के हर प्रांत या क्षेत्र की अपनी भाषा में रामकथा मिलती है। वैसे ही संसार भर के अनेक देशों के विद्वानों ने अपनी स्थानीय भाषा में रामकथाएँ तैयार कीं हैं।
कहीं कहीं नामों और घटनाक्रमों में कुछ अंतर अवश्य आता है। ऐसा अंतर तो बाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस में भी है। पर मूल कथा यथावत है। यही स्थिति दुनियाँ भर की रामकथाओं में है।
रामकथा या रामायण अद्भुत ग्रंथ है जिसपर संसार भर में सर्वाधिक मौलिक रचनाएँ मिलतीं हैं। यद्यपि संसार में सर्वाधिक बिकने वाले धार्मिक ग्रंथों में रामायण नहीं है। बाइबल, कुरान और गीता की बिक्री सर्वाधिक है।
ये ग्रंथ भी विश्व की हर भाषा में उपलब्ध भी हैं लेकिन ये तीनों अपनी मूल रचनाओं का स्थानीय भाषाओं में अनुवाद हैं। लेकिन रामायण या रामकथा ऐसा ग्रंथ है जिसे दुनियाँ भर के विद्वानों ने अपनी स्थानीय भाषा में नये सिरे से तैयार किया है।
एशियाई देशों में राम और रामायण
एक समय था जब संपूर्ण एशिया में सनातन संस्कृति का ही परचम लहराया करता था। लेकिन आज इनका स्वरूप ही नहीं राजनैतिक और भौगोलिक सीमाएँ बदल गईं हैं। धर्म और जीवन की मान्यताएँ ही नहीं प्राथमिकताएँ भी बदल गईं हैं। अधिकांश देशों की अपनी संस्कृति और धर्म में आमूल परिवर्तन हो गया है पर उनके लोक जीवन में रामजी का व्यक्तित्व और रामायण का स्थान बना हुआ है।
इन देशों में श्रीलंका, म्यांमार, नेपाल के अतिरिक्त इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, थाईलैंड, कंबोडिया, मंगोलिया, तुर्किस्तान, फिलीपींस आदि हैं। इन सभी देशों के लोक जीवन और साहित्य में रामकथा का प्रभाव है। कहीं कठपुतिलियों के माध्यम से रामकथा का मंचन होता हैं तो कहीं लोक नृत्य के माध्यम से। इन सभी देशों के विद्वानों ने अपनी भाषा और शैली में रामायण या रामकथा की रचना की है।
सुदूर कंबोडिया में रामकेर्ति और रिआमकेर रामायण, लाओस में फ्रलक-फ्रलाम, मलयेशिया में हिकायत सेरीराम, थाईलैंड में रामकियेन तो नेपाल में रामायण नाम से ही रचना हुई है। इन देशों में रामकथा के ये ग्रंथ तो सर्वाधिक प्रचलित हैं।
इनके अतिरिक्त कुछ अन्य विद्वानों ने भी रामकथा लिखी है। इंडोनेशिया में छ: से अधिक रामायण या रामकथाएँ प्रचलित हैं श्रीलंका के विद्वानों ने तो संस्कृत, पाली और सिंहली भाषा में रामकथा की रचना की है। श्रीलंका में रामायण की ये रचनाएँ 700 वर्ष ईसा पूर्व की हैं श्रीलंका में तो संस्कृत में भी रामायण की रचना हुई है। इसके रचयिता कुमार दास हैं। श्रीलंका में सर्वाधिक लोकप्रिय “जानकी हरण” संस्कृत भाषा में ही है। इसके अतिरिक्त सिंहली भाषा में “मलेराज की कथा” लोकप्रिय है। यह ग्रंथ भी रामजी के जीवन पर केन्द्रित है।
म्यांमार का प्राचीन नाम ब्रह्मदेश था वह देश कभी भारतीय जीवन और संस्कृति का अंग रहा है। उसका प्राचीनतम ग्रंथ ‘रामवत्थु’ राम कथा पर ही आधारित है। इसे बाल्मीकि रामायण को आधार मानकर स्थानीय विद्वानों ने तैयार किया है। म्यांमार में कितने ही स्थानों के नाम रामजी से संबंधित हैं।
कंबोडिया में रामकथा पर आधारित अनेक ग्रंथ रचनाएँ ही नहीं मिलतीं, वहाँ प्राचीन मंदिरों के अवशेष भी मिलते हैं। जिनमें उभरते भीतिचित्र रामकथा से मेल खाते हैं। कंबोडिया में सर्वाधिक लोकप्रिय फ्रलक-फ्रलाम, ख्वाय थोरफी, पोम्मचक ग्रंथ रामकथा पर आधारित ही हैं।
फ्रलक-फ्रलाम का हिन्दी अनुवाद “रामजातक” और पोम्मचक का हिन्दी अनुवाद “ब्रह्म चक्र” होता है। कंबोडिया की रामायण को वहां के लोग ‘रिआमकेर’ और ‘रामकेर्ति’ के नाम से भी जानते हैं।
इंडोनेशिया और मलयेशिया दोनों देश हिन्दू संस्कृति के प्रचीन देश रहे हैं लेकिन समय के साथ इन दोनों में परिवर्तन हो गया अब ये दोनों देश इस्लामिक हैं लेकिन इनके लोक जीवन में राम और रामकथा का महत्व यथावत है।
इंडोनेशिया में तो रामजी पर आधारित नाम भी मिल जाते हैं। वहाँ सैकड़ों ऐसे कुल कुटुम्ब हैं जो स्वयं को रामजी का वंशज मानते हैं। इंडोनेशिया के जावा में कावी भाषा में रचित रामकथा “रामायण काकावीन”‘ है।
जावा में रामजी का महत्व और सम्मान राष्ट्रीय स्तर पर है । एक नदी का नाम सरयू भी है। रामकथा प्रसंगों पर कठपुतलियों का नाच होता है। जावा के मंदिरों में अंकित वाल्मीकि रामायण के श्लोक भी मिल जाते हैं। सुमात्रा द्वीप के जनजीवन में भी रामायण रची बसी है।
मलेशिया 13वीं शताब्दी सनातनी देश था। रामकथा पर वहाँ “मलय रामायण” सर्वाधिक लोकप्रिय थी। 1633 में रचित इसकी पाण्डुलिपि बोडलियन पुस्तकालय में उपलब्ध है। यह मलय रामायण लगभग 100 वर्ष ईसा पूर्व की रचना है। मलयेशिया में रामकथा पर एक अन्य ग्रंथ ‘हिकायत सेरीराम’ भी है। इस बात को सरलता से समझा जा सकता है कि “सेरिराम” शब्द “श्रीराम” का ही अपभ्रंश है।
फिलिपींस में भी रामकथा पर ग्रंथ रचना हुई है पर वहाँ रामकथा को कुछ तोड़-मरोड़कर नकारात्मक प्रस्तुत किया जाता है। कथा की प्रस्तुति में भले नकारात्मकता आ गई हो पर रामकथा लोकजीवन से बाहर न हो सकी। फिलीपींस की मारवन भाषा में “मसलादिया लाबन” नाम से चर्चित इस रामकथा की खोज डॉ. जॉन आर. फ्रुकैसिस्को ने की है।
चीन के लोक जीवन में भी कभी राम आदर्श थे। चीन में ‘अनामकं जातकम्’ और ‘दशरथ कथानम्’ ने नाम से रामकथा जानी जाती है पर चीनी कथा में पात्रों के कुछ नाम अलग हैं। इनमें रामायण के कुछ पात्रों के नाम अलग हैं। चीन की मान्यता है कि राम जी का जन्म ईसा पूर्व 7323 वर्ष पहले हुआ था।
जापान में रामकथा ‘होबुत्सुशू’ नाम से जानी जाती है। जापान में रामकथा संभवतः चीन के रास्ते पहुँची होगी। इस कथा में चीन के ‘अनामकं जातकम्’ का बहुत प्रभाव है।
मंगोलिया भी कभी सनातन संस्कृति के प्रभाव वाला राष्ट्र रहा है। जो समय के साथ बौद्ध बना और अब वर्तमान स्वरूप में आया। यहाँ भी रामकथा पर आधारित चार अलग-अलग रचनाएं मिलीं हैं है। ये पांडुलिपियाँ लेलिनगार्ड में सुरक्षित हैं। इसके अतिरिक्त लकड़ी पर उकेरे गये चित्र और हनुमानजी की प्रतीक वानर पूजा की प्रतिमाएं मिली हैं।
टर्की भी ऐसा देश है जिसका पूरी तरह सांस्कृतिक और धार्मिक रूपान्तरण हो चुका है। टर्की का एक भाग खोतान के नाम से जाता है। यहाँ एक फ्रांसिसी शोध कर्ता एच डब्ल्यू बेली ने खोतानी रामायण मिली है जो पेरिस संग्रहालय में सुरक्षित है।
तिब्बत में रामकथा किंरस-पुंस पा कहा जाता है तिब्बती रामायण की छ; प्रतियाँ तुन हुआंग नामक स्थान से मिली है। तिब्बत में बौद्ध शिक्षा और साधना केन्द्र बनने से पहले वहाँ के आदर्श श्रीराम और रामकथा ही रही है।
यूरोप तथा अन्य देशों में श्रीराम और रामकथा
निसंदेह आज भाषा और भूषा दोनों दृष्टि से यूरोप का जीवन भारत से बिल्कुल अलग दिखता है पर यह परिवर्तन केवल दो हजार वर्षों का है। इससे पहले अंतर नहीं था। नामों में अंतर तो है पर पारलौकिक मान्यताओं की केन्द्रीय अवधारणा लगभग एक समान थी।
प्राचीन यूनान के शोध में एक तथ्य यह भी सामने आया है कि वैदिक आर्यों ने रोम की नींव डाली थी। वे दो सौ नावों से ईरान के रास्ते वहाँ गये थे। इस अनुसंधान की पुष्टि रोम के प्राचीन नगरों, गावों के नाम और वहाँ के लोक साहित्य से मिलता है। वैदिक आर्यों के आदर्श श्रीराम हैं।
रोम और यूरोपीय सभ्यता में रामजी की झलक इस नाम “रोम” से भी स्पष्ट है। कहा जाता है कि रोम रोम में समाये हैं राम। स्थान परिवर्तन और समय के साथ “राम” शब्द के उच्चारण में अंतर आ आया और “रोम” हो गया। इसके अतिरिक्त लोकगाथाओं में मान्यता है कि प्राचीन रोम की स्थापना दो भाइयों रोमुलस और रेमस ने देवताओं की सहायता से की थी। इन दोनों भाइयों के नामों में राम शब्द साफ झलक रहा है।
एक अन्य तथ्य ब्रिटेन के “आयरलैंड” से झलकता है। आयर शब्द “आर्य” से बना होगा। इसीलिए यूनान के प्रचीन साहित्य में रामकथा का गहरा प्रभाव है।इसका उदाहरण “इलियड” महाकाव्य है। इसमें नायक अकिलीज है और नायिका हेलन है। रामायण भी काव्यात्मक है और नायक श्रीराम और माता सीता हैं।
महाकाव्य इलियड में ट्रॉय के राजा प्रियम के पुत्र पेरिस ने स्पार्टा के राजा मेनेलॉस की पत्नी हेलेन का उसके पति की अनुपस्थिति में अपहरण कर लिया। जैसे रामकथा में लंका के राजा रावण ने श्रीराम जी की अनुपस्थिति में माता सीता का अपहरण किया था।
रामजी ने भ्राता लक्ष्मण के साथ वानर सेना एकत्र करके लंका के विरुद्ध युद्ध किया और माता सीता वापस आईं। ठीक इसी प्रकार इलियड में मेनेलॉस ने अपने भाई आगामेम्नन के साथ सेना एकत्र करके युद्ध आरंभ किया। विजय मिली और हेलन वापस आई।
यही नहीं इस युद्ध में ट्रॉय नगर का दहन भी हो जाता है जैसे रामकथा में लंका दहन होता है। अंतर केवल इतना है रामायण में लंका दहन युद्ध से पहले होता है पर इलियट में युद्ध के समापन पर लेकिन हेलन के लौटने के पहले।
इसके अतिरिक्त प्राचीन यूनान की खुदाई में कुछ भित्तिचित्र मिले हैं वे ठीक वैसे ही हैं जैसे श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण वनवास यात्रा पर निकले थे। इसका विवरण सुप्रसिद्ध लेखक पुरुषोत्तम नागेश ओक की पुस्तक “वैदिक विश्व का इतिहास” में है।
रामायण और रामकथा का विश्व व्यापी प्रभाव इसी एक बात से प्रमाणित है कि विश्व का पहला महाकाव्य बाल्मीकि रामायण है। इससे सभी शोधकर्ताओं ने स्वीकार किया। इसके बाद संसार में महाकाव्य के माध्यम से भी कथा रचना का प्रचलन आरंभ हुआ और प्राचीन सभी काव्य रचना का कथानक रामकथा से मेल खाता है।
प्राचीन मिश्र की कथाओं में भी श्रीराम व्यापे हुये है । प्राचीन मिश्र में रोमसे साम्राज्य का विवरण मिलता है । यह शब्द या “रामसे” से बना अथवा “राम सहाय” से । लेकिन रामजी और रामायण की व्यापकता स्वविवेक से ही समझी जा सकती है । इस पर स्वतंत्र और स्वाभिमान परक शोध की आवश्यकता है ।
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