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सूर्य उपासना से मानसिक एवं शारीरिक समृद्धि : सूर्य सप्तमी

सूर्य सप्तमी विशेष आलेख

आज सूर्य सप्तमी है, इसे अचला सप्तमी, भानु सप्तमी या रथ सप्तमी भी कहा जाता है। सनातन मान्यता है कि इस दिन सूर्य देव का जन्म हुआ था। सनातन धर्म में माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को यह पर्व मनाया जाता है। यह दिन विशेष रूप से भगवान सूर्य की उपासना के लिए समर्पित है। मान्यता है कि रथ सप्तमी के दिन भगवान सूर्य की उपासना करने से धन-धान्य में वृद्धि और परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार माघ माह की सप्तमी तिथि के दिन ग्रहों के राजा सूर्य देव का जन्म हुआ था। कहते हैं कि सूर्य देव की सवारी सात घोड़े हैं, इसलिए इस तिथि को रथ सप्तमी के नाम से जाना जाता है. ऐसा माना जाता है कि रथ सप्तमी का व्रत करने और भगवान सूर्य की आराधना करने से व्यक्ति को सभी कष्टों और बीमारियों से जल्द छुटकारा मिल जाता है।

इतना ही नहीं, शारीरिक रोग से भी छुटकारा मिलने के साथ ही धन-धान्य में वृद्धि होती है। इस दिन सूर्य देव को अर्घ्य देने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि रथ सप्तमी के दिन सूर्य देव ने अपने रथ पर सवार होकर संसार को प्रकाश से अवलोकित करना शुरू किया था।

जैसे ही भगवान सूर्य उत्तर की ओर अपनी यात्रा शुरू करते हैं, रथ सप्तमी वसंत ऋतु की शुरुआत और फसल कटाई के मौसम की शुरुआत होती है । देश भर के किसान साल भर भरपूर फसल और अनुकूल मौसम के लिए सूर्य मंदिरों में जाकर भगवान सूर्य का आशीर्वाद लेते हैं।

शास्त्रों में निर्देश है कि रथ सप्तमी के दिन सूर्योदय से पहले ही पवित्र नदी में स्नान करें, नदी में डुबकी लगाते समय सिर पर बेर और मदार के सात-सात पत्ते रखें, इसके बाद सात-सात बेर और मदार के पत्ते, चावल, तिल, दूर्वा, चंदन मिलाकर सप्तमी देवी का स्मरण करते हुए सूर्य देव को अर्घ्य दें। इस अनुष्ठान को करने से व्यक्ति को लंबी उम्र और सफलता की प्राप्ति होती है।

रथ सपत्मी के दिन कई महिलाएं घर में सूर्य देव के स्वागत के लिए रंगोली बनाती हैं। रथ सप्तमी के दिन आंगन में मिट्टी के बर्तन में दूध रखा जाता है और सूर्य की गर्मी से उसे उबाला जाता है। बाद में इस दूध का इस्तेमाल सूर्य देव को भोग लगाने में अर्पण किए जाने वाले चावलों में किया जाता है।

सूर्योपनिषद में कहा गया है कि जो लोग सूर्य की पूजा करते हैं वे शक्तिशाली, सक्रिय, बुद्धिमान बनते हैं और लंबी आयु प्राप्त करते हैं। 108 सूर्य नमस्कार के अभ्यास के माध्यम से, यह रथसप्तमी हमारे जीवन में नई शुरुआत, स्वास्थ्य और खुशी की ओर आपका पहला कदम बढ़ाती है ।

रथसप्तमी नई शुरुआत या पुनर्जन्म (योगी के जीवन में नया साल) का समय है, जो इसे आध्यात्मिक संकल्प (संकल्प) लेने का एक अच्छा समय बनाता है और इस अभ्यास के दौरान आप जो अग्नि (तप या आंतरिक गर्मी) पैदा करते हैं वह हमारी खुद की जागृति पैदा करती है। अंतर्निहित सौर ऊर्जा जो हमें अपने संकल्प की ओर आत्मविश्वास से आगे बढ़ने में मदद करेगी।

सूर्योपनिषद में कहा गया है कि जो लोग सूर्य की पूजा करते हैं वे शक्तिशाली, सक्रिय, बुद्धिमान बनते हैं और लंबी आयु प्राप्त करते हैं। 108 सूर्य नमस्कार के अभ्यास के माध्यम से, यह रथसप्तमी हमारे जीवन में नई शुरुआत, स्वास्थ्य और खुशी की ओर अपना पहला कदम बढ़ाती है।

यदि आपने भगवान को नहीं देखा है, तो रोज सुबह सूर्य को देखें, वह प्रत्यक्ष देवता हैं। हम सूर्य नारायण के कारण हैं। सूर्य के बिना इस धरती पर कोई भी प्राणी एक दिन भी जीवित नहीं रह पाएगा। हम सभी की ऊर्जा के स्रोत हैं और सूर्य की ऊर्जा हमारे भीतर है।

शारीरिक रुप से स्वस्थ रहने के लिए सूर्य को अर्घ्य देने के साथ सूर्य नमस्कार करने की परम्परा भी है। जिससे व्यक्ति, शारीरिक एवं मानसिक रुप से स्वस्थ रहता है। शिक्षक की सलाह से योग एवं सूर्य नमस्कार को दिनचर्या का हिस्सा बनाना चाहिए। सूर्य नमस्कार के नियमित अभ्यास से निम्नांकित लाभ होते हैं

1) विभिन्न मांसपेशी समूहों को बारी-बारी से खींचा और सिकुड़ा जाता है, जिससे मांसपेशियों में कोई खिंचाव नहीं होता है।
2) लचीलापन और सहनशक्ति में वृद्धि
3) चक्रों का जागरण।
4) गहरी सांस लेने से श्वसन तंत्र की कार्यप्रणाली में सुधार होता है।
5) रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनती है, शरीर की मांसपेशियों को मजबूतऔर लचीला बनाया जाता है।
6) आंतरिक अंगों में रक्त के प्रवाह और उसके कार्यों में सुधार करता है।
7) चयापचय और पाचन में सुधार करता है।
8) तनाव दूर करता है और दिमाग को शांत रहने में मदद करता है।
9) त्वचा में चमक
10) शरीर की मुद्राओं को ठीक करता है और आत्मविश्वास में वृद्धि करता है।

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