Home / इतिहास / लखनपुर में लाख पोखरा : तालाबों की नगरी

लखनपुर में लाख पोखरा : तालाबों की नगरी

आदि मानव के बसेरे हमको नदी-नालों के किनारे ही प्राप्त होते हैं, जिन्हें नदी घाटी सभ्यता का नाम दिया गया है। नदी नालों के समीप बसेरा होने का एकमात्र कारण जल की उपलब्धता है, किसी भी प्राणी के प्राणों के संचालन के लिए जल अत्यावश्यक तत्व है। सभ्यता के विकास में जब मानव को ज्ञात हुआ कि मैदानी क्षेत्र में धरती को खोदने से भी जल प्राप्त किया जा सकता है तब मानव जल के समीप बसेरा न कर मनचाहे स्थानों पर बसने लगा और निस्तार के लिए कुंए, बावड़ी, पुष्करी, तालाब एवं बांध का निर्माण करने लगा।

हमारे प्राचीन शास्त्रों में जल को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया और जल की व्यवस्था कराना पुण्य का कार्य माना गया है। हड़प्पा काल से वर्तमान तक जनकल्याणार्थ जल के संसाधन विकसित करने की सुदीर्घ परम्परा चली आ रही है। नारद पुराण कहता है- एकाहं तु स्थितं पृथिव्यां राजसन्तम। कुलानि तारयेत् तस्य सप्त-सप्त पराण्यपि।।65।। अर्थात्-जिसकी खुदवाई हुई पृथ्वी में केवल एक दिन भी जल स्थित रहता है, वह जल उसके सात कुलों को तार देता है।

देवी मंदिर तालाब

शास्त्रों में नृपों के लिए स्पष्ट निर्देश देकर जल प्रदुषित एवं जल साधन नष्ट करने वाले के लिए दंड का विधान किया गया है। लिखित स्मृति कहती है- पूर्णे कूप वापीनां वृक्षच्छेदन पातने। विक्रीणीत गजं चाश्वं गोवधं तस्य निर्द्दिशेत्।। अर्थात्- जो मनुष्य कुआँ या बावड़ी को पाट देता है, वृक्षों को काट कर गिरा देता है तथा हाथी या घोड़े को बेचता है, उसे ‘गौ के हत्यारे’ के समान मानकर दण्डित करना चाहिए। ‘तडाग देवतागार भेदकान् घातयेन्नृपः।।‘ ‘अग्नि पुराण’ में राजाओं के लिए स्पष्ट निर्देश है कि यदि कोई व्यक्ति जलाशय या देवमंदिर को नष्ट करता है तो राजा उसे ‘मृत्युदण्ड’ से दण्डित करे।

सरगुजा के लखनपुर में भी हमें तालाबों की ऐसी ही परम्परा दिखाई देती है। यहाँ ऐसे लोग भी रहे जो जल की महत्त्ता को जानककर लोक कल्याणार्थ एवं प्रकृति की सुन्दरता को अक्षुण्ण रखने की सोच रखते हुए अविस्मरणीय एतिहासिक काम कर गये जो कि अपने आप में एक मिशाल है। लखनपुर में बहुत सारे प्राचीन तालाब हैं, इनमें मुख्य रूप से बोहिता तालाब, मगर तालाब, निर्मोही, तालाब, रामसागर तालाब, देवी सागर तालाब, देव तालाब, दशहरा तालाब, दलदली तालाब, पखना तालाब, खरिखा तालाब, बाजार तालाब, बस स्टेंड जोडातालाब, टटेगा डबरी, भूईया पारा जोडा तालाब, बिजली आफिस के समीप केसरुआ तालाब, बैगाई डबरी, चमबोथी तालाब, सिंगार तालाब, आदि प्रमुख है।

लोक गीतों में लखनपुर के तालाबों का जिक्र होता है, स्थानीय यादव ( अहीर) जातियों के लोक गीत बिरहा में तालाबों का उल्लेख मिलता है –
“नया बाजार लगा बोहला में।
रंका का राजा देखा
रानी पड़ गयेन श्रीनगर में।
भकमा गांव जबर देखा।
लखनपुर में लाख पोखरा।
रामगढ़ जस गढ़ देखा
चोरकी थाना पाल चांदनी।
मैनपाट जस बन देखा।
कोरबा में कौलेसर नाथ।
महादेव के प्रकट देखा।
रजीया बिगाड़ के भैय्या मर गये जुगेसर
जतीया किया कमपेयनाथ।।

बोहिता तालाब लखनपुर

बताया जाता है कि तालाबों की कुल संख्या 360 थी, परन्तु कालांतर में बहुतायत तालाबों को खेतों में बदल दिया गया। तालाबों को खोदवाये जाने के कालखंड का कोई लिखित एतिहासिक प्रमाण तो नहीं मिलता अपितु कुछ पुराने लोगों की जनश्रुति किवन्दतियो में सुना जाता है कि बहुत समय पहले प्राचीन काल में राजा लाखन द्वारा इन तालाबों का उत्खनन कराया गया था। उन्हीं के नाम पर नगरी का नाम लखनपुर पड़ा।

जन श्रुतियों में यह भी है कि राजा लाखन के कोई उतराधिकारी संतान नहीं थी। किसी सिद्ध पुरुष के परामर्श और बताये मुताबिक राजा लाखन सिंह ने संतान प्राप्ति के इच्छा को लेकर तालाबों को खोदवाया था। किस्सों में यह भी बताया जाता है कि राजा लाखन सिंह पूरे साल भर प्रत्येक दिन सिर्फ एक एक तालाब का पानी इस्तेमाल किया करते थे इस लालसा में कि सन्तान उत्पति का फल प्राप्त होगा, ऐसा हुआ नहीं । लखनपुर में लम्बा समय बिताने के बाद अपने मूल स्थान बनारस या पटना बिहार (अस्पष्ट स्थान) की ओर लौट गए। तालाब सरोवर स्वामी विहिन होकर रह गए हैं।

कालखंड बदला कुछ नये सामंतों ने लखनपुर रियासत की बागडोर संभाली, सभी तालाब उनके आधीन रहे। बाद इसके लखनपुर राज परिवार का उदय प्रथम राजा अमर सिंह देव के वंशज के रूप में हुआ वंशावली के मुताबिक लाल बहादुर विशेश्वर सिंह देव, लाल बहादुर माहेश्वरी सिंह देव, लाल बहादुर राम प्रसाद सिंह देव, लाल बहादुर हर प्रसाद सिंह देव, लाल बहादुर अवधेद्र प्रसाद सिंह देव, तक तथा इसके बाद की पीढियों का उल्लेख लखनपुर राजपरिवार की वंशावली में मिलता है।

बोहिता तालाब लखनपुर

पूर्व के राजाओं जमींदारों के शासन काल का अन्तिम स्टेट मर्जर होने तक लखनपुर के सभी प्राचीन तालाब स्थानीय जमींदारों के अधिनस्थ रहे। रामसागर तालाब एवं देवीसागर तालाब का उत्खनन राममंदिर (ठाकुर बाड़ी) देवी मंदिर निर्माण के बाद लखनपुर जमींदारी काल में सम्वत १९६४ के आसपास कराया गया यह मंदिरों के शिलालेख से ज्ञात होता है।

राजतंत्र खत्म होने के बाद भी प्राचीन तालाबों में बोहिता तालाब, मगर तालाब, निर्मोही तालाब, दलदली तालाब, पुराना थाना तालाब, सहित अन्य छोटे तालाबों को सेटलमेंट के आधार पर जमींदार परिवार की खुद की मिल्कियत में रखा गया जो आज भी विद्यमान है। स्व: लाल बहादुर अमरेश प्रसाद सिंह देव (विधायक 1964) कें ज्येष्ठ पुत्र लाल बहादुर अजीत प्रसाद सिंह देव के स्वामित्व में कुछ गिने चुने बड़े प्राचीन तालाब आज भी यथावत मौजूद है।

इस तरह देखा जाए तो सरगुजा जिले में सबसे अधिक तालाब लखनपुर में ही विद्यामान हैं, लाल अजीत सिंहदेव कहते हैं कि पहले उड़ीसा से लोग तालाब खोदने यहाँ तक आते थे तथा उनको काम देने के उद्देश्य से जमींदार तालाबों का उत्खनन करवाते थे, जो कि जल के उत्तम स्रोत होते थे। उन्हे उत्खनन के बदले में अनाज दिया जाता था। कभी सरकार राहत कार्य में तालाब उत्खनन या गहरीकरण करवाती थी, अब यह परम्परा खत्म हो गई।

निर्मोही तालाब लखनपुर

राजस्व दस्तावेज के मुताबिक आज भी क्षेत्र में 201 तालाबों का उल्लेख मिलता है जो शासन प्रशासन के आधीन है। लखनपुर में सबसे अधिक तालाब होने के कारण इसे तालाबों की नगरी भी कहा जाता है। तालाबों के दास्तान सुनाने वाले लोग भले आज इस जहान में नहीं है परन्तु कभी कभार उनका जिक्र किसी मजमा आम में निश्चित तौर पर होता है। सूखा अकाल से बचने पानी की उपलब्धता के मकसद से उपरोक्त सभी प्राचीन तालाबों का उत्खनन कराया गया। लखनपुर में विद्यमान तालाबों एवं पोखरों की बहुतायतता के कारण लखनपुर मे लाख पोखरा की कहावत सटीक बैठती है।

आलेख

श्री मुन्ना पाण्डे, वरिष्ठ पत्रकार लखनपुर, सरगुजा

About hukum

Check Also

झालावंश की सात पीढ़ियों ने राष्ट्र के लिये प्राण न्यौछावर किये

17 मार्च 1527 : खानवा के युद्ध में अज्जा झाला का बलिदान पिछले डेढ़ हजार …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *