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गद्दारी ही उनकी चौखट

इतनी नफ़रत और कड़वाहट तौबा-तौबा
क्यों जीवन से इतनी खटपट तौबा-तौबा

दूजे को गाली देना ही दिनचर्या है
हरकत कुछ बंदों की अटपट तौबा-तौबा

जिस थाली में खाना उसमें छेद करेंगे
कुछ बंदे होते हैं संकट तौबा-तौबा

किसी भी खूँटे से बंधना हमसे न होगा
भैया तुम ही पालो झंझट तौबा-तौबा

कुछ को अपना देश नहीं, विद्वेष पियारा
गद्दारी ही उनकी चौखट तौबा-तौबा

सप्ताह के कवि

श्री गिरीश पंकज
वरिष्ठ साहित्यकार एवं कवि रायपुर, छत्तीसगढ़

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