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आदि काव्य रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि

वाल्मीकि जयंती महान लेखक और महर्षि वाल्मीकि के जन्मदिवस की स्मृति के रूप में मनाई जाती है । महर्षि वाल्मीकि महान हिंदू महाकाव्य रामायण के लेखक होने के साथ-साथ संस्कृत साहित्य के पहले कवि भी हैं। उन्होंने रामायण नामक अद्भुत काव्य ग्रंथ की रचना की।

उनके द्वारा लिखित भगवान राम की जीवन कथा पर आधारित संस्कृत महाकाव्य ‘रामायण’ में सात कांड और 24,000 श्लोक हैं। ऐसे परम श्रद्धेय संत के सम्मान में वाल्मीकि जयंती मनाई जाती है। इस दिन को ‘प्राकट्य दिवस’ के रूप में भी जाना जाता है और भारत के उत्तरी क्षेत्रों में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है।

महर्षि वाल्मीकि का जन्मदिन राष्ट्रीय संवत वर्ष के आश्विन माह की पूर्णिमा तिथि पर पड़ता है। आश्विन माह की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है। महर्षि वाल्मीकि एवं उनके महाकाव्य रामायण का उल्लेख अग्निपुराण, गरुड़पुराण, हरिवंश पुराण (विष्णु पर्व), स्कन्द पुराण (वैष्णव खण्ड), मत्स्यपुराण, महाकवि कालिदास रचित रघुवंश, भवभूति रचित उत्तर रामचरित, वृहद् धर्म पुराण जैसे अनेक प्राचीन ग्रन्थों में मिलता है।

वृहत् धर्म पुराण में इस महाकाव्य की प्रशंसा “काव्य बीजं सनातनम्” कह कर की गई है।वाल्मीकि रामायण में दर्शन, राजनीति, नैतिकता, शासन कुशलता, खगोलशास्त्र तथा मनोविज्ञान का विशद वर्णन मिलता है । ऐसा होना यह सिद्ध करता है कि महर्षि वाल्मीकि मानव जीवन के विविध विषयों के ज्ञाता तथा प्रकाण्ड विद्वान थे।

वाल्मीकि जी ने अपने महाकाव्य “रामायण” में अनेक घटनाओं के घटने के समय सूर्य, चंद्र तथा अन्य नक्षत्र की स्थितियों का वर्णन किया है जिसे कालगणना के आधुनिक वैज्ञानिक गणकों जैसे स्टेलेयमम द्वारा सही पाया गया है। वाल्मीकि रामायण से पितृभक्ति, भ्रातृप्रेम, पातिर्व्रत्य धर्म, आज्ञापालन, प्रतिज्ञापूर्ति तथा सत्यपरायणता की शिक्षा प्राप्त होती है।

रत्नाकर से वाल्मीकि बनने की एक कथा लोक प्रचलित है। गंगा के किनारे रहकर तपस्या करने वाले ॠषियों में प्राचेतस नाम के मुनि के रत्नाकर नाम का पुत्र हुआ। एक दिन रत्नाकर खेलता-खेलता रास्ता भूल गया। सूने वन में रोने की आवाज सुनकर शिकार की खोज में निकले शिकारी ने बालक को उठाकर अपनी झोपड़ी में जाकर पत्नी को दे दिया।

प्राचेतस बहुत खोज करने के बाद भी पुत्र न ढूंढ सके। रत्नाकर जन्मदाता माता-पिता को भूलकर उन्हें ही अपना माता-पिता मानने लगा। वह बड़ा चतुर था। कुछ ही दिन में तथाकथित पिताजी के साथ शिकार करने के कारण अचूक निशानेबाज हो गया। जंगल के पशु पक्षियों के लिए वह यमराज बन गया।

पिता ने सुंदर कन्या ढूंढ कर विवाह कर दिया। बच्चे पैदा होने से परिवार बड़ा हो गया। जब परिवार का पालन करना कठिन हो गया तब वह डाकू बन गया। लूटपाट करता तथा विरोध करने वालों को मार डालता। एक दिन राह किनारे शिकार की टोह में बैठा था कि वीणा लिए नारद जी निकल पड़े। दौड़कर उसने रोका और सामान रखने को कहा।

मेरे पास केवल पुरानी वीणा है और कुछ तो नहीं है। नारद मस्त हो वीणा बजाने लगे। वीणा से भगवान की प्रार्थना सुन रत्नाकर अत्यंत प्रभावित हुआ नारद जी ने कहा चोरी करना पाप है। पशुओं को मारना भी पाप है। क्या इस पाप में परिवार भी भागीदार है? पूछो और बताओ। वह सोचने लगा कि कहीं नारद कहीं भागना चाहते हैं। भाव समझ नारद ने कहा- तुम्हें लगता है कि मैं भाग जाऊंगा तो मुझे पेड़ से बांध दो। उसने वैसा ही किया।

घर जा पहले पिताजी, फ़िर माता जी और अंत में पत्नी से एक ही प्रश्न किया कि तुम मेरे पापों में हिस्सा बांटोगे? सभी ने टका सा उत्तर दिया – हमें तुम्हारे पाप से कोई लेना देना नहीं है। हमारा पालन करना तुम्हारा कर्तव्य है। गया तो डाकूमन और लौटा तो संतमन। दौड़कर नारद को मुक्त कर पैरों में गिर गया।

पापों का प्रायश्चित पूछने पर कहा – इस पेड़ के नीचे बैठकर तब तक राम-राम जपो, जब तक मैं पुन: लौटकर नहीं आऊं। नारद जी तो चले गये। वह राम नहीं मरा मरा जपने लगा। जो राम राम उच्चरित हो गया। उल्टा नाम जपेऊ जग जाना, वाल्मीकि भये ब्रह्म समाना।

उसे बैठे अनेक वर्ष बीत गये, दीमक ने उसे पूरी तरह ढक लिया। एक नारद मुनि आये और मिट्टी हटाकर कान में राम-राम बोले तक समाधि भंग हुए तब नारद को पाया। प्रणाम करने पर कहा – रत्नाकर तुम महर्षि हो गये हो। अब तुम्हारा नाम वाल्मीकि होगा। संत संतति संसृति कर अंता। संत के संग के मनुष्य आवागमन से छूट जाता है। शिकारी से संत बन गया।

वाल्मीकि ने गंगा किनारे अपना आश्रम बना लिया। ॠषि भारद्वाज इन्हीं के शिष्य थे। वनवास के समय भगवान राम, सीता एवं लक्ष्मण इनके आश्रम पर आये थे। फ़िर मुनि के कहने से चित्रकूट पर निवास किया। नारद जी एक समय आश्रम पर पधारे तब वाल्मीकि ने पूछा- पृथ्वी पर सर्वगुण सम्पन्न कौन है?

तब नारद जी ने उस समय तक घटी राम के जीवन की सारी घटनाएं बता दी। नित्य भांति भारद्वाज के साथ गंगा स्नान के लिए निकले तब मिलने वाली तमसा नदी को देखकर कहा – आज मैं यहीं स्नान करुंगा। तभी आकाश में उड़ने वाले कौंच पक्षी में से नर को बहेलिया ने तीर से जमीन पर मार गिराया। मादा कौंच दुख कातर हो चिल्लाने लगी।

तभी एक नौजवान बहेलिये को आता देख वाणी श्राप के रुप में निकली – “मा निषाद प्रतिष्ठां, त्वगम: शाश्वती समा:। यत् कौंच मिथुनादेकं, वधी काम मोहितम्।। (हे बहेलिए! तुम्हें नित्य निरंतर कभी शांती न मिले क्योंकि तुमने प्रेम में डूबे हुए इस जोड़े में से एक की बिना अपराध हत्या कर डाली है।)

तभी ब्रह्मा जी ने कहा – मेरी प्रेरणा से ही तुम्हारी वाणी निकली है। तुम श्लोक रुप में नारद द्वारा बताए राम चरित्र को लिखो। आप जो कुछ लिखोगे सब सत्य होगा। तब महर्षि वाल्मीकि को अब तक की घटी सारी घटनाएं दिखाई देने लगी। उन्होंने होने वाली घटनाओं को संस्कृत में लिखकर अपने आश्रम में जन्मे और बड़े हुए सीता पुत्र लवकुश को पढ़ाकर कंठस्थ करा दिया।

अश्वमेघ यज्ञ के समय राम ने वाल्मीकि के साथ गये बालकों के मुख से कथा सुन, वाल्मीकि के मुख से बालकों के जन्म को जान महर्षि से सीता को बुलाने का आग्रह किया। भरी सभा में सीता से सत्य की परीक्षा देने को कहा। तब वाल्मीकि ने विरोध किया। नारियों श्रेष्ठ सीता की परीक्षा मत लीजिए। तभी आश्चर्यजनक घटना घटी। धरती फ़ट गई, भूदेवी सिंहासन पर बैठी है। चार नाग उसे धारण किए हैं। सीता को गोद में बिठाकर वह समा गई।

विष्णुधर्मपुराण के अनुसार वाल्मीकि भगवान का ही एक रूप है। वाल्मीकि का जन्म त्रेता युग में ब्रह्मा के अवतार के रूप में हुआ था जिन्होंने रामायण की रचना की थी। वह राम को विष्णु के रूप में मानते थे। जो लोग अपने ज्ञान और बुद्धि को बढ़ाना चाहते हैं, उन्हें महर्षि वाल्मीकि को प्रार्थना अर्पित करनी चाहिए।

गुरुकुल परम्परा में महर्षि वाल्मीकि को कुलपति कहा गया है। कुलपति उस आश्रम प्रमुख को कहा जाता था जिनके आश्रम में शिष्यों के आवास, भोजन, वस्त्र, शिक्षा आदि का प्रबंध होता था। वाल्मीकि का आश्रम गंगा नदी के निकट बहने वाली तमसा नदी के किनारे पर स्थित था। ऐसे आदि कवि, आदि काव्य को संस्कृत में लिखने वाले थे महर्षि वाल्मीकि जग प्रसिद्ध हुए। उन्होंने रामायण नामक अद्भुत आर्ष ग्रंथ का प्रकाश कर संसार को अनुपम काव्य दिया।

संदर्भ सूची

1-एकत्मता के स्वर : लेखक – धीर सिंह पवैया, ग्वालियर
2-ऑब्रे मेनेन (1954) “परिचय”, रामायण, चार्ल्स स्क्रिनर & संस : न्यूयॉर्क
3-बिजय सोनकर शास्त्री(2014) हिन्दू बाल्मीकि जाती, प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली
4-प्रियाबाला शाह (2009) विष्णुधर्मपुराण, परिमल, नई दिल्ली
5-पुष्कर भटनागर (2004) भगवान राम, रूपा, नई दिल्ली के युग को डेट कर रहे हैं
6-सरोज बाला (2019) ‘रामायण की कहानी, विज्ञान की जुबानी’ प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली
7-विश्वनाथ एस नरवणे (1998) ऋषि, देवियां और देवता: भारतीय पौराणिक कथाओं में भ्रमण
8-वाल्मीकि रामायण, गीता प्रेस,गोरखपुर

आलेख

ललित शर्मा इण्डोलॉजिस्ट रायपुर, छत्तीसगढ़

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