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Tag Archives: प्रो अश्विनी केशरवानी

कुशल प्रशासक, शिक्षाशास्त्री और साहित्यकार बल्देवप्रसाद मिश्र

12 सितंबर जयंती विशेष आलेख छत्तीसगढ़ का पूर्वी सीमान्त जनजातीय बाहुल्य जिला रायगढ़ केवल सांस्कृतिक ही नहीं बल्कि साहित्यिक दृष्टि से भी सम्पन्न रहा है। रियासत काल में यहां के गुणग्राही राजा चक्रधरसिंह के दीवान, सुप्रसिद्ध साहित्यकार और तुलसी दर्शन के रचनाकार डॉ. बल्देवप्रसाद मिश्र थे। उन्हीं की सलाह पर …

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छत्तीसगढ़ी का व्याकरण रचने वाले काव्योपाध्याय हीरालाल

हमारा देश जब अंग्रेजों की गुलामी में जकड़ा हुआ था और चारों ओर त्राहि त्राहि मची हुई थी तब छत्तीसगढ़ भी इससे अछूता नहीं था। यहां भी गांधी, नेहरू और सुभाषचंद्र जैसे सपूत हुए जिन्होंने यहां जन जागृति फैलायी। इनमें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और साहित्यकार थे जिन्होंने अपनी काव्यधारा प्रवाहित …

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छत्तीसगढ़ में रासलीला और श्रीकृष्ण के लोक स्वरूप

एक समय था जब नाट्य साहित्य मुख्यतः अभिनय के लिए लिखा जाता था। कालिदास, भवभूति और शुद्रक आदि अनेक नाटककारों की सारी रचनाएं अभिनय सुलभ है। नाटक की सार्थकता उसकी अभिनेयता में है अन्यथा वह साहित्य की एक विशिष्ट लेखन शैली बनकर रह जाती। नाटक वास्तव में लेखक, अभिनेता और …

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महर महर करे भोजली के राउर : भोजली तिहार

श्रावण मास में जब प्रकृति अपने हरे परिधान में चारों ओर हरियाली बिखेरने लगती है तब कृषक अपने खेतों में बीज बोने के पश्चात् गांव के चौपाल में आल्हा के गीत गाने में मग्न हो जाते हैं। इस समय अनेक लोकपर्वो का आगमन होता है और लोग उसे खुशी खुशी …

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लंका पर चढ़ाई करने के लिए श्री रामचंद्र जी ने इस दिन को चुना

श्रावण मास की पूर्णिमा जब चांद अपने पूर्ण यौवन पर होता है तब रक्षा बंधन का त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। चाहे बंगाल हो या महाराष्ट्र, मद्रास हो या राजस्थान या मध्यप्रदेश सभी जगह यह त्यौहार बड़ी धूमधाम और पवित्रता के साथ मनाया जाता है। बंगाल में तो …

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स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानी : छत्तीसगढ़

स्वतंत्रता आंदोलन में छत्तीसगढ़ भी कभी पीछे नहीं रहा है। छत्तीसगढ़ के साथ ही पूरे देश के आंदोलन में इस भूमि के सिपाही सपूत सक्रिय रूप से भाग लेते रहे लेकिन उनका समुचित मूल्यांकन आज तक नहीं हो सका है। 1856-57 में सोनाखान के वीर सपूत नारायण सिंह ने अंग्रेज …

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चित्रोत्पला गंगा की सांस्कृतिक विरासत

मानव सभ्यता का उद्भव और संस्कृति का प्रारंभिक विकास नदी के किनारे ही हुआ है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में नदियों का विशेष महत्व है। भारतीय संस्कृति में ये जीवनदायिनी मां की तरह पूजनीय हैं। यहां सदियों से स्नान के समय पांच नदियों के नामों का उच्चारण तथा जल …

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वर्षा ॠतु में छत्तीसगढ़ी लोक जीवन की उमंग

छत्तीसगढ़ का अधिकांश भूभाग मैदानी है इसलिए यहाँ के जनजीवन में वर्षा का महत्वपूर्ण स्थान है। क्योंकि यहाँ का लोक जीवन कृषि पर आधारित है। यही कारण है कि वर्षा ऋतु का जितनी बेसब्री से छत्तीसगढ़ में इंतज़ार होता है अन्यत्र कहीं नहीं होता? वर्षा की पहली फुहार से मिट्टी …

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छत्तीसगढ़ की नाट्य परंपरा

अभिनय मनुष्य की सहज प्रवृत्ति है। हर्ष, उल्लास और खुशी से झूमते, नाचते-गाते मनुष्य की सहज अभिव्यक्ति है अभिनय। छत्तीसगढ़ के लोक जीवन की झांकी गांवों के खेतों, खलिहानों, गली, चौराहों और घरों में स्पष्ट देखी जा सकती है। इस ग्रामीण अभिव्यक्ति को ‘लोक नाट्य’ कहा जाता है। छत्तीसगढ़ में …

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नदियाँ और उनका सामाजिक-सांस्कृतिक महत्व : संदर्भ छत्तीसगढ़

भारतीय संस्कृति में अन्य प्राकृतिक उपादानों की तरह नदियों का भी अपना अलग महत्व है। वेद-पुराणों में नदियों की यशोगाथा विद्यमान है। नदियाँ हमारे लिए प्राणदायिनी माता की तरह हैं। नदियों के साथ हमारे सदैव से भावनात्मक संबंध रहे हैं, औऱ हमने नत-मस्तक होकर उनके प्रति अपनी श्रद्धा व आस्था …

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