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पुरातत्व

रींवा उत्खनन से प्रकाशित मृतिका स्तूप

दक्षिण कोसल/छत्तीसगढ़ प्रदेश के पूर्व में झारखण्ड और उड़ीसा, उत्तर में उत्तरप्रदेश, पश्चिम में महाराष्ट्र एवं मध्यप्रदेश और दक्षिण में आन्ध्रप्रदेश तथा तेलंगाना की सीमाएं हैं। रींवा ( 21*21’ उत्तरी अक्षाश एवं 81*83’ पूर्वी देशांश ) के मध्य छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले से 25 कि. मी. दूरी पर पूर्वी दिशा …

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माँझीनगढ़ के शैलचित्र एवं गढ़मावली देवी जातरा

भारतीय ग्राम्य एवं वन संस्कृति अद्भुत है, जहाँ विभिन्न प्रकार की मान्यताएं, देवी-देवता, प्राचीन स्थल एवं जीवनोपयोगी जानकारियाँ मिलती हैं। सरल एवं सहज जीवन के साथ प्राकृतिक वातावरण शहरी मनुष्य को सहज ही आकर्षित करता है। ऐसा ही एक स्थल छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिला मुख्यालय से 60 कि.मी.की दूरी पर …

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जहां प्रकृति स्वयं करती है शिव का जलाभिषेक

छत्तीसगढ़ के हृदय स्थल जांजगीर-चांपा जिले के अति पावन धरा तुर्रीधाम शिवभक्तों के लिए अत्यंत ही पूजनीय है। सावन मास में हजारों की संख्या में शिव भक्त अपनी मनोकामना लेकर तुर्रीधाम पहुंचते है। स्थानीय दृष्टिकोण से यहाँ उपस्थित शिवलिंग, प्रमुख ज्योतिर्लिंगों के समान ही वंदनीय है। यह शिवालय सक्ति-चांपा मार्ग …

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हिन्दू पंथों के समन्वय का प्रतीक संघाट प्रतिमाएँ

प्राचीन काल से भारतवासी धर्मानुसार आचरण करते हैं, धर्म के अनुसार चलना, धर्म के अनुसार जीवन में व्यवहार करना। इस प्राचीन हिन्दू धर्म में प्रमुख ग्रंथ चतुर्वेद हैं। कालांतर में हिन्दू धर्म में कई सम्प्रदाय हुए जिनमें वेद और पुराणों से उत्पन्न 5 तरह के संप्रदाय माने जा सकते हैं:- …

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केशकाल के प्राचीन शिवालय : सावन विशेष

छत्तीसगढ़ अंचल में सरगुजा से लेकर बस्तर प्राचीन शिवलिंग पाये जाते हैं। यह वही दण्डकारण्य का क्षेत्र है जो भगवान राम की लीला स्थली रही है तथा बस्तर में उत्तर से लेकर दक्षिण तक प्राचीन शिवालयों के भग्नावशेष पाए जाते हैं। श्रावण मास में बस्तर की हरियाली देखते ही बनती …

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दक्षिण कोसल की स्थापत्य कला में नृत्य एवं वाद्यों का शिल्पांकन

ऐसा कौन अभागा है, जिसे गायन, वादन, नृत्य दर्शन एवं संगीत श्रवण न रुचता होगा। प्रकृति में चहूं ओर संगीत भरा पड़ा है, कहीं शुन्यता नहीं है। इसी संगीत से मनुष्य ने भी स्वयं को जोड़ा एवं विभिन्न ध्वनियों के लिए वाद्य निर्मित किए एवं स्वयं को उसकी लय-ताल में …

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इतिहास का साक्षी ईष्टिका निर्मित सिद्धेश्वर महादेव मंदिर

छत्तीसगढ़ में ईष्टिका निर्मित तीन मंदिर हैं, जिसमें पहला सिरपुर का लक्ष्मण मंदिर दूसरा सिरपुर का राम मंदिर और तीसरा पलारी का सिद्धेवर महादेव मंदिर है। रायपुर राजधानी से बलौदा बाजार मार्ग पर यह मंदिर लगभग 70 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है। भारत में ईष्टिका निर्मित मंदिर बहुत …

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प्राचीन मंदिरों की स्थापत्य कला में स्त्री मनो विनोद का शिल्पांकन

प्राचीनकाल के मंदिरों की भित्ति में जड़ित प्रतिमाओं से तत्कालीन सामाजिक गतिविधियाँ एवं कार्य ज्ञात होते हैं। शिल्पकारों ने इन्हें प्रमुखता से उकेरा है। इन प्रतिमाओं से तत्कालीन समाज में स्त्रियों के कार्य, दिनचर्या एवं मनोरंजन के साधनों का भी पता चलता है। जिस तरह तेरहवीं शताब्दी के कोणार्क के …

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दक्षिण कोसल की स्थापत्य कला में नदी मातृकाओं का शिल्पांकन

दक्षिण कोसल में स्थापत्य कला का उद्भव शैलोत्खनित गुहा के रूप में सरगुजा जिले के रामगढ़ पर्वत माला में स्थित सीताबेंगरा से प्रारंभ होता है। पांचवीं-छठवीं सदी ईस्वीं से दक्षिण कोसल में स्थापत्य कला के अभिनव उदाहरण प्राप्त होने लगते हैं जिसके अन्तर्गत मल्हार तथा ताला में मंदिर वास्तु की …

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बाबा बच्छराज कुंवर एवं जोबा पहाड़ की पुरा सम्पदा

सरगुजा सम्भाग मुख्यालय से लगभग 80 कि0मी0 दूर बलरामपुर नये जिले के अन्तर्गत चलगली मार्ग में वाड्रफनगर विकास खण्ड के अलका ग्राम पंचायत के आश्रित ग्राम मानपुर में ग्रामीणों की अटूट श्रद्धा के आराध्य देव ‘‘बाबा बच्छराजकुवंर‘‘ विराजमान हैं। मानपुर से 5 कि0मी0 दूर ‘‘जोबा पहाड़‘‘ अपना सीना ताने खड़ा …

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