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पुरातत्व

पुरातात्विक धरोहर कपिलेश्वर मंदिर समूह बालोद

बालोद, दुर्ग नगर से दल्ली राजहरा मार्ग पर लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बालोद में दल्ली चौक से दायें तरफ लगभग 2 किलोमीटर दूरी पर उत्तरी सीमांत में पुरातत्वीय स्मारकों का एक समूह स्थित है जिसे कपिलेश्वर मंदिर समूह के नाम से जाना जाता है। इस समूह …

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आदिमानवों की शरणस्थली हितापुंगार घुमर

बस्तर अपनी जनजातीय संस्कृति एवं प्राकृतिक सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध है । बस्तर का प्रवेश द्वार केसकाल ही बस्तर की जनजातीय कला एवं संस्कृति, धरोहर के रूप में अनेक प्राचीन भग्नावशेष, कल-कल छल-छल करते झरने एवं जलप्रपात बस्तर की प्राकृतिक एवं पुरातात्विक वैभव का आभास करा देता है। केसकाल में …

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कला परंपरा की अद्भुत धरोहर : ताला

देवरानी-जेठानी मंदिर ताला हमारे देश के गिने-चुने पुरातत्वीय धरोहरों में से एक है जो भारतीय कला परंपरा के गौरवशाली स्वर्णिम अध्याय में दुर्लभ और विलक्षण कलाकृतिकयों के लिए विख्यात है। छत्तीसगढ़ के महत्वपूर्ण पुरातत्वीय स्थलों में ताला का नाम विगत शताब्दी के आठवें दशक से जुड़ा है तभी से यह …

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गुरु घासीदास की जन्मस्थली गिरौदपुरी

छत्तीसगढ़ को संत महात्माओं की जन्म स्थली कहा जाता है। यहाँ की शस्य श्यामला पावन भूमि में अनेकों संत महात्माओं का जन्म हुआ। उनमें 18 वीं शताब्दी के महान संत सतनाम सम्प्रदाय के प्रणेता, सामाजिक क्रांति के अग्रदूत गुरु घासीदास का जन्म माघ पूर्णिमा 18 दिसम्बर 1756 को महानदी के …

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दक्षिण कोसल के वैष्णव पंथ का प्रमुख नगर शिवरीनारायण

आदिकाल से छत्तीसगढ़ अंचल धार्मिक एवं सांस्कृतिक केन्द्र रहा है। यहाँ अनेक राजवंशों के साथ विविध आयामी संस्कृतियाँ पल्लवित एवं पुष्पित हुई। यह पावन भूमि रामायणकालीन घटनाओं से जुड़ी हुई है। यही कारण है कि छत्तीसगढ़ में शैव, वैष्णव, जैन, बौद्ध एवं शाक्त पंथों का समन्वय रहा है। वैष्णव पंथ …

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हाथी किला एवं रतनपुर के प्राचीन स्थल

बिलासपुर-कोरबा मुख्यमार्ग पर 25 किमी की दूरी पर प्राचीन नगर रतनपुर स्थित है। पौराणिक ग्रंथ महाभारत, जैमिनी पुराण आदि में इसे राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। त्रिपुरी के कलचुरियों ने रतनपुर को अपनी राजधानी बनाकर दीर्घकाल तक शासन किया। इसे चतुर्युगी नगरी भी कहा जाता है, जिसका तात्पर्य है …

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दक्षिण कोसल के प्रागैतिहासिक काल के शैलचित्र

प्रागैतिहासिक काल के मानव संस्कृति का अध्ययन एक रोचक विषय है। छत्तीसगढ़ अंचल में प्रागैतिहासिक काल के शैलचित्रों की विस्तृत श्रृंखला ज्ञात है। पुरातत्व की एक विधा चित्रित शैलाश्रयों का अध्ययन है। चित्रित शैलाश्रयों के चित्रों के अध्ययन से विगत युग की मानव संस्कृति, उस काल के पर्यावरण एवं प्रकृति …

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फणिनागवंशियों के नगर पचराही का पुरातात्विक वैभव

पचराही, छत्तीसगढ के कबीरधाम जिला मुख्यलय से लगभग 45 कि॰ मी॰ दूर हांप नदी के किनारे मैकल पर्वत श्रृंखला की तलहटी में बसा एक छोटा सा गांव है। प्राचीन नाम पंचराहों का अपभंश पचराही से समझा जा सकता है। क्योंकि यहां से पांच राहे निकलती है। जिनमे रतनपुर, मंडला, सहसपुर, …

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संतान सुख देने वाली देवी रमईपाट

हमारा छत्तीसगढ़, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की ननिहाल, जो अतीत में दक्षिण कोसल के नाम से जाना जाता था। यहां भगवान श्रीराम से जुड़ी अनेक घटनाएं घटित हुई है। यह पुण्य धरा भगवान श्रीराम से जुड़ी अनेक घटनाओं का साक्षी रही है। कदम कदम पर बिखरी लोकगाथाओं में रामायण से …

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लोक आस्था का केन्द्र : तपेश्वरी माता

दक्षिण बस्तर दन्तेवाड़ा जिले का ग्राम समलूर यद्यपि दूरस्थ वनांचल में बसा है, किन्तु लगभग एक हजार वर्ष पुराना भव्य शिव मंदिर के कारण इस गाँव की पहचान पुरातात्विक स्थल के रुप में हो चुकी है। शिव मंदिर को केन्द्र संरक्षित धरोहर घोषित किया गया है, तत्सम्बंधी सूचना पटल मंदिर …

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