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पुरातात्विक धरोहर कपिलेश्वर मंदिर समूह बालोद

बालोद, दुर्ग नगर से दल्ली राजहरा मार्ग पर लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बालोद में दल्ली चौक से दायें तरफ लगभग 2 किलोमीटर दूरी पर उत्तरी सीमांत में पुरातत्वीय स्मारकों का एक समूह स्थित है जिसे कपिलेश्वर मंदिर समूह के नाम से जाना जाता है। इस समूह में कुल 6 प्राचीन मंदिर तथा एक कुंड है। इस मंदिर परिसर में पश्चिम के तरफ सर्व प्रथम शिवमंदिर, मध्य में दुर्गा मंदिर, एवं दक्षिणी किनारे पर राम जानकी मंदिर निर्मित हैं। सभी मंदिर पूर्व मुखी तथा एक पंक्ति में स्थापित हैं। राम जानकी मंदिर के सामने कृष्ण मंदिर तथा उसके दायें तरफ संतोषी मंदिर स्थापित है। ये दोनों मंदिर पश्चिम मुखी है। छठा प्राचीन मंदिर गणेश जी का है जो दक्षिण मुखी है जिसके गर्भगृह में चतुर्भुजी गणेश की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है। इन मंदिरों का विस्तृत विवरण निम्नानुसार हैं

दुर्गा मंदिर – यह मंदिर पूर्व मुखी है जिसमें मात्र आयताकार गर्भगृह हैं। गर्भगृह के पिछ्ली भित्ति के दोनो कोनों में सादा भित्ति स्तंभ स्थापित है। मंदिर के गर्भगृह के वितान में तीन परतों में चतुष्कोणीय धरण स्थापित है जिसके मध्य में गोलाकार कमल पुष्प का अंकन है।

द्वारशाखा :- गर्भगृह का प्रवेश द्वार सादा है जो त्रिशाख है। गर्भगृह का आकार 184X160 सेन्टीमीटर है। ऊपरी सिरदल के मध्य में चतुर्भुजी गणेश का अंकन है। यह मंदिर पीछे की तरफ झुक गया था, और इसके ढहने की आशंका थी। अत: इसे पूर्णत: मूल से उजाड़ कर पुनर्संयोजित किया गया है। गर्भगृह के उत्तरी भित्ति में दीपक एवं पूजन सामग्री रखने के लिए पत्थर का उभारदार ताख निर्मित है। मंदिर की तल योजना तीन रथों पर आधारित है।

ऊर्ध्व विन्यास- मंदिर के ऊर्ध्व विन्यास में जंघा, शिखर एवं आमलक का भाग है। आमलक के ऊपर कलश स्थापित नही है। जगती भूतल के समानांतर है। जघां की बाहय भित्तियाँ प्रतिमा रहित है। शिखर के निचले भाग में तीन तरफ लघु शिखर का अंकन है। शिखर के सम्मुख भाग में बीचोंबीच एक खिड़की युक्त शकुनासिका का भाग है। शिखर के मध्य रथ में चारों तरफ नाग का अंकन है। मंदिर के शिखर पर वर्तमान में कलश नहीं है। यह मंदिर अनुरक्षण पश्चात सुरक्षित स्थिति में है।

(2) गणेश मंदिर – यह मंदिर दुर्गा मंदिर के दायें तरफ प्रस्तर निर्मित जगती पर स्थित है। जगती के ऊपर दक्षिणाभिमुखी आयताकार मंदिर स्थापित है। मंदिर में केवल गर्भगृह शेष है। गर्भगृह का प्रवेश द्वार 76 सेन्टीमीटर चौड़ा तथा 141 सेन्टीमीटर ऊंचा है। गर्भगृह की बाहय भित्तियां सादी हैं।

द्वारशाखा :- मंदिर के गर्भगृह का प्रवेश द्वार का ऊपरी भाग एवं बायीं द्वार शाखा मूल रुप में विद्यमान है। बायीं द्वार शाखा के निचले भाग में भार वाहक के ऊपर शैव द्वारपाल निर्मित है। द्वारपाल दायें हाथ में खेटक तथा बाये हाथ में नर मुन्ड पकड़े है। द्वार शाखा त्रिशाखयुक्त तथा सादी है।

गर्भगृह की छत चौकोर तथा ऊपर की तरफ संकरी है जिसमें कुल सात खंड निर्मित हैं। इन खंडो के चारो कोनों में खुर निर्मित हैं। छत के ऊपर मध्य में आमलक है, छत के वितान में बीचों बीच वृताकार कमल का अंकन है। गणेश मंदिर एवं संतोषी मंदिर की छ्त पीड़ा देवल प्रकार का है। छ्त्तीसगढ में इस प्रकार के मंदिरों का शिखर शिव मंदिर गुरुर, शिव मंदिर देवखूंट एवं कर्णेश्वर मंदिर समूह सिहावा,शिव मंदिर जगन्नाथपुर तथा सहसपुर के मंदिरों में मिलता है।

 गणेश प्रतिमा – इस मंदिर के गर्भगृह में एक 142X44X26 सेन्टीमीटर आकार की विशाल गणेश की प्रस्तर प्रतिमा स्थापित है। चर्तुर्भुजी गणेश के ऊपरी दायें हाथ में परशु है, तथा निचला दायां हाथ अभय मुद्रा में है। ऊपरी बांये हाथ में दांत तथा निचला हाथ में मोदक पात्र है। गणेश जी का उदर भाग खंडित है। इस मंदिर परिसर के अन्दर निर्मित सभी छहों मंदिर के द्वार शाखा के सिरदल पर अंकित चतुर्भुजी गणेश प्रतिमाएं तथा गणेश मंदिर में स्थापित विशाल गणेश प्रतिमा की आकृति लगभग एक समान है। केवल गणेश मंदिर के सिरदल में अंकित प्रतिमा अस्पष्ट तथा अनगढित है।

(3) राम मंदिर :- इस मंदिर के गर्भगृह में आधुनिक राम-जानकी की प्रतिमायें स्थापित हैं। इस पूर्वाभिमुखी मंदिर के भूविन्यास में गर्भगृह एवं मंडप मुख्य भाग है। मंडप चार स्तंभो पर आधारित है। गर्भगृह आयताकार है, बाहय भित्तियां सादी है जिसमें तीन रथ हैं। इस मंदिर के गर्भगृह के वितान में गोलाकार सप्त दल कमल पुष्प दो पंक्ति में निर्मित है। गर्भगृह की उत्तरी भित्ति में एक छोटा सा त्रिकोणाकार अलिंद है जो पूजन साम्रगी रखने के लिए है। जघां का निर्माण दुर्गा मंदिर के समान है। जघां का निर्माण दुर्गा मंदिर के समान है। मंदिर के प्रवेश द्वार की ऊंचाई 127 सेन्टीमीटर चौड़ाई 60 सेन्टीमीटर है। द्वार शाखा के मध्य में चतुर्भुजी गणेश का अंकन है। द्वार शाखा त्रिशाख है तथा सादी है।

मंडप – मंडप की वितान में दो पंक्ति में वृत के मध्य कमल पुष्प का अंकन है। यह अलंकरण भी गर्भगृह के वितान के समान है।

शिखर में एक आंतरिक कक्ष निर्मित है जिसके सम्मुख मध्य भाग में खिड़की निर्मित है। खिड़की के दोनों तरफ दो-दो ताराकृति और कमल पुष्प का अंकन है। इस मंदिर में सामने का भाग दुर्गा मंदिर के समान है। शिखर के ग्रीवा के ऊपर आमलक स्थापित है।

(4) कृष्ण मंदिर :- इस मंदिर के गर्भगृह में कृष्ण की आधुनिक प्रतिमा स्थापित है। यह मंदिर, राम-जानकी मंदिर के सामने निर्मित है जो पश्चमाभिमुखी है।

द्वारशाखा :- गर्भगृह की द्वार शाखा त्रिशाख है, जो सादी है। गर्भगृह का प्रवेश द्वार 63 सेन्टीमीटर चौड़ा तथा 127 सेन्टीमीटर ऊचा एवं से.मी. ऊचा एवं 36 से.मी. मोटा है| द्वार शाखा की सम्पूर्ण चौड़ाई 163 से. मी. तथा ऊचाई 185 से. मी. है| ऊपरी शाखा के मध्य में चतुर्भुजी सादी है| मंदिर त्रिरथ योजना में निर्मित है| यह मंदिर प्रस्तर निर्मित आयताकार चबूतरे पर स्थित है| जगती के ऊपर जंघा भाग दो तलों में निर्मित है। शिखर भाग के मध्य रथ के बीच में अलंकृत लघु शिखर तीन तरफ निर्मित है। शिखर के मध्य ग्रीवा पर चारों तरफ नाग का अंकन है। ग्रीवा के ऊपर आमलक स्थापित है। शिखर के सम्मुख मध्य रथ में ग्रीवा के बाहर दो सर्प एक साथ निर्मित है। इस मंदिर का दक्षिणाभिमुखी गर्भगृह छोटे आकार का है। शिखर भाग में भी एक कक्ष निर्मित है जिसके मध्य में सम्मुख भाग में एक खिड़की है।

(5) संतोषी मंदिर :- यह मंदिर, कृष्ण मंदिर के दाये तरफ स्थित है। इस परिसर का यह सबसे छोटा मंदिर है। मंदिर में गर्भगृह मात्र है जिसमें पूजित प्रतिमा स्थापित है

द्वारशाखा :- गर्भगृह के प्रवेश द्वार के सिरदल पर गणेश प्रतिमा का अंकन है। प्रतिमा चतुर्भुजी है। द्वार शाखा त्रिशाख है जो सादी है। इस मंदिर का प्रवेश द्वार 104 सेन्टीमीटर ऊंचा तथा 62 सेन्टीमीटर चौड़ा है। गर्भगृह की वाहय भित्ति सपाट है।

मंदिर, प्रस्तर निर्मित आयताकार जगती के ऊपर स्थापित है। मंदिर का जंघा भाग दो तलों में विभाजित है। गर्भगृह की वाहय भित्तियां सादी है। शिखर पीड़ादेवल आकृति में निर्मित है। शिखर के ऊपर प्रस्तर निर्मित मूल आमलक शिला रखा है। मंदिर की गर्भगृह के उत्तरी बाहयभित्ति में प्रणालिका है। इस मंदिर के सामने दायें तरफ भगवान शिव की आधुनिक प्रतिमा तथा प्राचीन जलहरी में सीमेंट से बना शिव लिंग स्थापित है। चबूतरे पर दो प्रस्तर निर्मित खंडित नंदी स्थापित है संतोषी मंदिर, गणेश मंदिर तथा कृष्ण मंदिर में गर्भगृह की उत्तरी भित्ति में पानी निकलने का छिद्र है जिसकी प्रणालिका बाहर तरफ निकली है परन्तु राम-जानकी मंदिर एवं दुर्गा मंदिर में प्रणालिका नहीं है।

(6) शिव मंदिर :- यह मंदिर, पूर्वाभिमुख है जिसमें मात्र गर्भगृह शेष है। यह मंदिर एक ऊँचे जगती पर निर्मित था जिसके सामने मंडप भी रहा होगा। गर्भगृह आयताकार है जिसका माप पूर्व पश्चिम में 213 सेन्टीमीटर तथा उत्तर-दक्षिण में 146 सेन्टीमीटर चौड़ा है।

प्रवेशद्वार :- गर्भगृह का प्रवेश द्वार अन्य मंदिरों की अपेक्षा अधिक अलंकृत है। प्रवेश द्वार की चौड़ाई 60 सेन्टीमीटर ऊँचाई 106 सेन्टीमीटर तथा मोटाई 29 सेन्टीमीटर है। द्वार शाखा के दायें तथा बायें भाग के निचले हिस्से पर नदी देवी गंगा तथा यमुना का अंकन है जिनके बाजू में एक-एक द्वार पाल भी निर्मित हैं। नदी देवी तथा द्वारपालों के निचले भाग में एक-एक भारवाहक अपने दोनों हाथों को ऊपर उठाये हुए प्रदर्शित है। द्वार शाखा के शेष भाग में लतावल्लरी का अंकन है, शिव मंदिर की द्वार शाखा अन्य मंदिरों की अपेक्षा अधिक अलंकृत है। सिरदल के मध्य में चर्तुभुजी गणेश तथा दोनों तरफ लता वल्लरी का अंकन है। दायीं द्वार शाखा के सबसे ऊपरी भाग में द्विभुजी हरिहर तथा उसके नीचे गणेश प्रतिमा अंकित है। बायीं द्वार शाखा के ऊपरी भाग में द्विभुजी प्रतिमा तथा उसके नीचे उपासक का अंकन है। यह मंदिर जंघा भाग तक प्रस्तर निर्मित है। तथा जंघा के ऊपर का हिस्सा परवर्ती काल में ईंट से निर्मित किया गया है जिसके ऊपर चूने का प्लास्टर किया गया है। शिखर भाग के ऊपर केवल आमलक प्रस्तर मूल रुप में विद्यमान है। यह मंदिर लगभग 16-17वीं सदी ईं में निर्मित प्रतीत होता है। गर्भगृह वृताकार सप्तदल कमल का अंकन है। गर्भगृह की बाहय भित्तियाँ सादी है, जो दो तलों में विभाजित है। इस पर किसी भी प्रकार का अलंकरण नहीं है। यह मंदिर ऊँची जगती पर निर्मित होने के कारण अन्य मंदिरों से अधिक ऊंचा है। जगती का माप पूर्व पश्चिम में 292 सेन्टीमीटर एवं उत्तर-दक्षिण में 265 सेन्टीमीटर है। शिखर में चारों तरफ पुर्ननिर्माण के समय विभिन्न जीव-जन्तुओं तथा जन्तुओ का अंकन किया गया है।

मंदिर के शिखर में आमलक में तथा प्लास्टर निर्मित कलश स्थापित है | शिखर के चारो कोनो में स्थापित में से एक दक्षिण – पश्चिम कोने की योगी प्रतिमा मूलतः प्रदर्शित है| उत्तर-पश्चिम तथा दक्षिण – पूर्व कोने की योगी प्रतिमाए खंडित हैं | शिखर के ऊपरी भाग में चारो दिशाओ के मध्य रथ में एक –एक नाग का अंकन है| मंदिर के सम्मुख शिखर भाग में एक लघु कक्ष निर्मित है जिसके ऊपर शकुनासिका निर्मित रहा है | इस मंदिर के शिखर भाग के रथो पर नाग, गज, वृक्ष, अश्वारोही, मानव आकृति, लतावल्लरी, पक्षी, योध्दा, गजरोही आदि आकृतियाँ भी दर्शनीय है| इस मंदिर के सामने प्राचीन कुंड निर्मित है| जिसमें चतुर्दिक सिढियाँ निर्मित हैं।

स्थल पर प्रदर्शित प्रतिमाएं – शिव मंदिर के दाये तरफ 8 प्रस्तर प्रतिमाएं स्थापित हैं जो क्रमश: चतुर्भुजी गणेश, गणेश, खण्डित उमा-महेश्वर, पंचपाण्डव, खण्डित योध्दा, हनुमान, सती स्तंभ तथा सती प्रतिमा है। इनके अलावा बायें तरफ एक विशाल गणेश की प्रतिमा स्थापित है तथा बावड़ी में दो योध्दा प्रतिमाएं प्रदर्शित हैं।

बायां बड़ा गणेश – चतुर्भुजी गणेश के दोनों दायें हाथ तथा बांया ऊपरी हाथ खण्डित हैं। निचले बायें हाथ में मोदक पात्र है। गले में हार तथा यज्ञोपवीत पहने हैं जो क्षरित है। सुण्ड खण्डित है। प्रतिमा का माप 170X100X40 सेन्टीमीटर है। काल 16-17 वीं सदी ई है।

दायां छोटा गणेश – यह प्रतिमा भी चतुर्भुजी है। दायें ऊपरी हाथ में परशु तथा अक्षमाल युक्त निचला हाथ अभय मुद्रा में है। बायें ऊपरी हाथ में कमलकलिका तथा निचले हाथ में मोदक पात्र धारण किए है। माथे में चौड़ा हार बंधा है। सुण्ड का मध्य भाग खण्डित हैं। दोनों हाथों तथा पैरों में कड़ा एवं गले में यज्ञोपवीत धारण किये हैं। गणेश का थुलथुल उदर बायें के ऊपर अवस्थित है। प्रतिमा का माप 130X85X25 सेन्टीमीटर तथा काल 16-17वीं सदी ई है। इस मंदिर परिसर में दो अन्य गणेश की विशाल प्रतिमायें, सती स्तंभ, हनुमान, पंचपाण्डव तथा कुंती, द्रौपदी युक्त शिला पटट एवं उमामहेश्वर प्रतिमाएं आदि दर्शनीय हैं। बालोद नगर के पश्चिमी किनारे पर एक प्राचीन विशाल तालाब निर्मित है जिसकी उत्तरी मेड़ पर एक ऊंची प्रस्तर निर्मित भित्ति स्थित है जो किसी किले की दीवार मालूम पड़ती है। इस दीवार के पूर्वी और पश्चिमी दिशा में दोनों तरफ लगभग 1 फर्लांग की दूरी पर भग्नावशेष विद्यमान हैं। जो मराठा कालीन निर्मित प्रतीत होते हैं। यहीं पर तालाब की मेड़ में एक खुले संग्रहालय की स्थापना जिला पुरातत्व संघ, दुर्ग तथा नगरपालिका बालोद के द्वारा वर्ष 1990-91 में की गई, जिसके अंतर्गत लगभग 90 प्राचीन प्रतिमायें प्रदर्शित की गई हैं। कपिलेश्वर मंदिर समूह के सभी स्मारक मूलत: शैव मंदिर रहे हैं। इन मंदिरों का निर्माण स्थानीय नागवंशी शासकों के राजत्व काल में 14-15 वीं शताब्दी ई मे करवाया गया होगा। छ्त्तीसगढ में परवर्ती काल के स्थापत्य कला के उदाहरणों में से कपिलेश्वर मंदिर समूह महत्वपूर्ण है। राज्य संरक्षित यह स्मारक स्थल स्थानीय सांस्कृतिक आस्था का केन्द्र है।

आलेख

डॉ. कामता प्रसाद वर्मा,
उप संचालक (से नि) संचालनालय संस्कृति एवं पुरातत्व रायपुर (छ0ग0)

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