स्त्री एवं पुरुष दोनों प्राचीन काल से ही सौंदर्य के प्रति सजग रहे हैं। स्त्री सौंदर्य अभिवृद्धि के लिए सोलह शृंगार की मान्यता संस्कृत साहित्य से लेकर वर्तमान तक चली आ रही है। कवियों ने अपनी कविताओं में नायिका के सोलह शृंगार का प्रमुखता से वर्णन किया है तो शिल्पकार …
Read More »प्राचीन नगर चम्पापुर एवं चम्पई माता
छत्तीसगढ़ नाम से ही ध्वनित होता है कि यह गढ़ों का प्रदेश है। छत्तीसगढ़ में बहुत सारे गढ़ हैं जो विभिन्न जमीदारों एवं शासकों के अधीन रहे हैं, जिनका प्रमाण हमें अभी तक मिलता है। इन गढ़ों में तत्कालीन शासकों द्वारा पूजित उनकी कुलदेवी की जानकारी भी मिलती है। ऐसा …
Read More »भरतपुर, जिला कोरिया की पुरासंपदा
छत्तीसगढ के उत्तर पश्चिम सीमांत भाग में स्थित कोरिया जिले का भरतपुर तहसील प्राकृतिक सौदंर्य, पुरातत्वीय धरोहर एवं जनजातीय/सांस्कृतिक विविधताओं से परिपूर्ण भू-भाग है। जन मानस में यह भू-भाग राम के वनगमन मार्ग तथा महाभारत कालीन दंतकथाओं से जुड़ा हुआ है। नवीन सर्वेक्षण से इस क्षेत्र से प्रागैतिहासिक काल के …
Read More »चैतुरगढ़ की महामाया माई
कलचुरी राजवंश की माता महिषासुरमर्दिनी चैतुरगढ़ में आज महामाया देवी के नाम से पूजनीय है। परंपरागत परिधान से मंदिर में माता अपने परंपरागत परिधान से सुसज्जित हैं, जो 12 भुजी हैं, जो सदैव वस्त्रों से ढके रहते हैं। पूर्वाभिमुख विराजी माता को सूरज की पहली किरण उनके चरण पखारने को …
Read More »शक्ति तीर्थ डोंगरगढ़ की बमलाई माता
राजनांदगांव से 36 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित डोंगरगढ नगरी धार्मिक विश्वास एवं श्रध्दा का प्रतीक है। डोंगरगढ की पहाड़ी पर स्थित शक्तिरुपा माँ बम्लेश्वरी देवी का विख्यात मंदिर सभी श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। यहां मां बम्लेश्वरी देवी के दो विख्यात मंदिर है। डोंगरगढ की पहाड़ी पर 1600 …
Read More »रहस्यमयी साधना स्थली को समेटे हुए देवरानी जेठानी मंदिर
शैव और शक्ति साधना का प्राचीनतम मंदिर है देवरानी जेठानी, जहां शैव तंत्र और शाक्त साधना का रहस्यमय स्वरूप एकाकार दिखता है। शिव की दस महाविद्या देवियों में से तारा देवी और धूमावती देवी इन मंदिरों में प्रतिष्ठापित रही हैं। मंदिर अपने आप में अदभुत, अनूठी मूर्तियों के साथ रहस्यमय …
Read More »प्रतिमा शिल्प में अंकित स्त्री मनोविनोद
प्राचीनकाल के मंदिरों की भित्ति में जड़ित प्रतिमाओं से तत्कालीन सामाजिक गतिविधियाँ एवं कार्य ज्ञात होते हैं। शिल्पकारों ने इन्हें प्रमुखता से उकेरा है। इन प्रतिमाओं से तत्कालीन समाज में स्त्रियों के कार्य, दिनचर्या एवं मनोरंजन के साधनों का भी पता चलता है। कंदुक क्रीड़ा कर मनोविनोद करती त्रिभंगी मुद्रा …
Read More »वल्लभाचार्य की जन्मभूमि चम्पारण एवं चम्पेश्वर महादेव
पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक महाप्रभु वल्लभाचार्य की जन्मभूमि छत्तीसगढ के रायपुर जिले के अभनपुर ब्लॉक के ग्राम चांपाझर में स्थित है। देश-विदेश से बहुतायत में तीर्थ यात्री दर्शनार्थ आते है पुण्य लाभ प्राप्त करने। कहते हैं कि कभी इस क्षेत्र में चम्पावन होने के कारण इसका नाम चांपाझर पड़ा। कालांतर में …
Read More »शिव मंदिर देवखूंट का पुरातात्विक विश्लेषण
ग्राम देवखूंट 20॰ 19’ उत्तरी अक्षांस तथा 81॰ 87’ पूर्वी देशांतर पर, धमतरी-सिहावा मार्ग पर ग्राम बिरगुड़ी के आगे टेमनीपारा नामक बाजार मोहल्ले से बायें तरफ लगभग 10 किलोमीटर दूरी पर जंगली तथा कच्चे रास्ते में दुधावा बाँध के ऊपर, बाँध की तलहटी में स्थित है जो वर्तमान में धमतरी …
Read More »पौराणिक आस्था का मेला शिवरीनारायण
आदिकाल से छत्तीसगढ अंचल धार्मिक एवं सांस्कृतिक केन्द्र रहा है। यहां अनेक राजवंशों के साथ विविध आयामी संस्कृतियां पल्लवित व पुष्पित हुई हैं। यह पावन भूमि रामायणकालीन घटनाओं से भी जुड़ी हुई है। यही कारण है कि छत्तीसगढ में शैव, वैष्णव, जैन एवं बौध्द धर्मों का समन्वय रहा है। वैष्णव …
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