मनुष्य में सौन्दर्य बोध होना एक स्वभाविक गुण है। वह जब भी किसी शृंगारित सुन्दर एवं कलात्मक चीज को देखता है, तो वह उसकी तरफ आकर्षित होता है और तारीफ किये बिना नहीं रहता। हर समय मनुश्य अपने को दूसरे से सुन्दर और श्रेष्ठ दिखाने का प्रयास करता है। व्यक्ति …
Read More »बस्तर के जनजातीय समाज में नारी का स्थान एवं योगदान
आज जब समाज, साहित्य, सिनेमा में सर्वत्र नारी विमर्श जारी है, उनकी अस्मिता, उनके अधिकार और संरक्षण के लिये मनन-चिन्तन किया जा रहा है। ऐसे समय में बस्तर का सबसे बड़ा वनवासी समाज शान्त है। जैसे यह विषय उसका है ही नहीं, जैसे उसे इससे कुछ लेना-देना ही नहीं है, …
Read More »बस्तर की सामूहिक पूजा पद्धति ककसाड़
छत्तीसगढ़ प्रदेश के बस्तर संभाग में जीवन-यापन करने वाली जनजाति देव संस्कृति के पोषक है। वह अपने लोक देवी देवताओं के प्रति अपार श्रद्धा रखता है। उसकी यह भावना उसके कार्य-व्यवहार से परिलक्षित होती है। जनजाति समाज के तीज-त्यौहार देव कार्य सब अपने देवताओं को प्रसन्न करने और प्रकृति के …
Read More »बस्तर के जनजातीय समाज में पितृ पूजन
बस्तर संभाग में जनजाति बाहुल्य गांव में और मिश्रित जनजाति के गांव में दो धाराएं स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। एक धारा देव संस्कृति को मानने वाली होती है और दूसरी धारा देव संस्कृति के साथ वैदिक संस्कृति को भी अपने कार्य व्यवहार में समाहित कर लेती है। …
Read More »बस्तर के जनजातीय समाज में बड़ों का सम्मान
बस्तर के जनजातीय समाज में भी अपने बुजुर्गों का सम्मान करने की परम्परा विद्यमान है, यह आदिम संस्कृति का आधारभूत सिद्धान्त है कि गाँव या समाज में सभी बड़ों का उचित तरीके से सम्मान किया जाये, जनजातीय समाज समय-समय पर अपने कार्य व्यवहार से इसे प्रदर्शित भी करता है। घर …
Read More »बस्तर की प्राचीन सामाजिक परम्परा : पारद
बस्तर की हल्बी बोली का शब्द है “पारद”। इसका शाब्दिक अर्थ होता है। गोण्डी बोली में इसे “वेट्टा” कहते है। को हिन्दी, हल्बी, गोण्डी में खेल कहकर प्रयुक्त किया जाता है। इसे हिन्दी में खेलना, हल्बी में पारद खेलतो तथा गोण्डी में “कोटुम वली दायना” कहते है। जिसका अर्थ पारद …
Read More »जनजातीय संस्कृति में पगड़ी का महत्व : बस्तर
भारतीय संस्कृति में पगड़ी का काफी महत्व है। प्राचिनकाल में राजा-महाराजा और आम जनता पगड़ी पहना करती थी। पगड़ी पहनने का प्रचलन उस काल से लेकर आज तक बना हुआ है। पगड़ी को सम्मान का प्रतीक माना जाता है। सिर पर बान्धने वाले परिधान को पगड़ी, साफा, पाग, कपालिका शिरस्त्राण, …
Read More »छोटे डोंगर परगना की आराध्या देवी बनमावली
छत्तीसगढ़ के दक्षिण में स्थित बस्तर सम्भाग सात जिले में विभक्त है। इसका एक जिला नारायणपुर है, जिला मुख्यालय से ओरछा (अबुझमाड़) मार्ग के पैंसठ किमी पर ग्राम धनोरा स्थित है। यहाँ से पूर्व दिशा में लगभग दस किमी पर ग्राम मडमनार है। यह गाँव केसुरमेटा पहाड़ी की तराई में …
Read More »बस्तर की जनजातियों में संस्कार
बस्तर सम्भाग में आदिवासियों की विभिन्न प्रकार की प्रजातियाँ निवास करती हैं जिनमें मुरिया, माड़िया, अबूझमाड़िया, दंडामी माड़िया, परजा, धुरवा इसी तरह गदबा, मुंडा, हल्बा और भतरा आदि प्रमुख जनजातियाँ प्रमुख हैं। इन जनजातियों की बोली-भाषा, रहन-सहन आदि में काफी समानता है। इन्हें केवल अध्ययन की दृष्टि से अलग किया …
Read More »जानिए बस्तर के आदिवासी समाज में क्या और क्यों होता है खटला फ़िराना
धर्म भीरू मानव एक ऐसे समाज का निर्माण करता है, जहाँ अच्छे और बुरे कर्म के साथ स्वर्ग-नर्क की अवधारणा है। अच्छे कर्म के लिये अच्छा फल चाहे उसे देर से प्राप्त होता हो। किन्तु बुरे कर्म का बुरा फल उसे तत्काल प्राप्त हो जाता है, यही उसके समाज की …
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