मानव सभ्यता का उद्भव और संस्कृति का प्रारंभिक विकास नदी के किनारे ही हुआ है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में नदियों का विशेष महत्व है। भारतीय संस्कृति में ये जीवनदायिनी मां की तरह पूजनीय हैं। यहां सदियों से स्नान के समय पांच नदियों के नामों का उच्चारण तथा जल …
Read More »चित्रोत्पला गंगा की सांस्कृतिक विरासत
मानव सभ्यता का उद्भव और संस्कृति का प्रारंभिक विकास नदी के किनारे ही हुआ है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में नदियों का विशेष महत्व है। भारतीय संस्कृति में ये जीवनदायिनी मां की तरह पूजनीय हैं। यहां सदियों से स्नान के समय पांच नदियों के नामों का उच्चारण तथा जल …
Read More »लोक संस्कृति का जीवन सरिताएं
पर्यावरण दिवस विशेष आलेख भारतीय संस्कृति में नदियों का बड़ा सम्मान जनक स्थान है। नदियों को माँ कहकर इनकी पूजा की जाती है। ये हमारा पोषण अपने अमृत समान जल से करती हैं। अन्य सभ्यताओं में देखें तो उनमें नदियों का केवल लौकिक महत्व है। लेकिन भारत में लौकिक जीवन …
Read More »नदियाँ और उनका सामाजिक-सांस्कृतिक महत्व : संदर्भ छत्तीसगढ़
भारतीय संस्कृति में अन्य प्राकृतिक उपादानों की तरह नदियों का भी अपना अलग महत्व है। वेद-पुराणों में नदियों की यशोगाथा विद्यमान है। नदियाँ हमारे लिए प्राणदायिनी माता की तरह हैं। नदियों के साथ हमारे सदैव से भावनात्मक संबंध रहे हैं, औऱ हमने नत-मस्तक होकर उनके प्रति अपनी श्रद्धा व आस्था …
Read More »अज्ञात पंचसागर शक्तिपीठ
आदि शक्ति मां के 51 शक्ति पीठ कहे गए हैं। पुराणों में माता के शक्तिपीठों का नाम दिये गये हैं उनमें से दो शक्तिपीठ अज्ञात कहें गये हैं। ‘पंचसागर शक्तिपीठ’ छत्तीसगढ़ में विद्यमान हैं। पौराणिक आख्यानों के अनुसार पंचसागर शक्तिपीठ का जो वर्णन मिलता है वैसा ही स्वरूप छत्तीसगढ़ के …
Read More »कुल उद्धारिणी चित्रोत्पला गंगा महानदी
महानद्यामुपस्पृश्य तर्पयेत पितृदेवता:।अक्षयान प्राप्नुयाल्वोकान कुलं चेव समुध्दरेत्॥ (महाभारत, वनपर्व, तीर्थ यात्रा पर्व, अ-84)अर्थात महानदी में स्नान करके जो देवताओं और पितरों का तर्पण करता है, वह अक्षय लोकों को प्राप्त होता है, और अपने कुल का भी उध्दार करता है। महानदी का कोसल के लिए वही महत्व है जो भारत …
Read More »वल्लभाचार्य की जन्मभूमि चम्पारण एवं चम्पेश्वर महादेव
पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक महाप्रभु वल्लभाचार्य की जन्मभूमि छत्तीसगढ के रायपुर जिले के अभनपुर ब्लॉक के ग्राम चांपाझर में स्थित है। देश-विदेश से बहुतायत में तीर्थ यात्री दर्शनार्थ आते है पुण्य लाभ प्राप्त करने। कहते हैं कि कभी इस क्षेत्र में चम्पावन होने के कारण इसका नाम चांपाझर पड़ा। कालांतर में …
Read More »राजिम मेला : ऐतिहासिक महत्व एवं संदर्भ
ग्रामीण भारत के सामाजिक जीवन में मेला-मड़ई, संत-समागम का विशेष स्थान रहा है। स्वतंत्रता के पूर्व जब कृषि और ग्रामीण विकास नहीं हुआ था तब किसान वर्षा ऋतु में कृषि कार्य प्रारम्भ कर बसंत ऋतु के पूर्व समाप्त कर लेते थे। इस दोनों ऋतुओं के बीच के 4 माह में …
Read More »भगवान राजीव लोचन एवं भक्तिन राजिम माता : विशेष आलेख
राजिम दक्षिण कोसल का सबसे बड़ा सनातन तीर्थस्थल के रूप में चिन्हित रहा है क्योंकि यह नगर तीन नदियों उत्पलेश्वर (चित्रोत्पला) (सिहावा से राजिम तक महानदी) प्रेतोद्धारिणी (पैरी) एवं सुन्दराभूति (सोंधुर) के तट पर बसा है। प्रेतोद्धारिणी की महत्ता महाभारत काल से पितृकर्म के लिए प्रतिष्ठित, चिन्हित रही है जिसका …
Read More »सभ्यता एवं लोक संस्कृति संवाहक चित्रोत्पला गंगा महानदी
नदियाँ हमारी धरती को प्रकृति की सबसे बड़ी सौगात हैं। जरा सोचिए! एक नदी के कितने नाम हो सकते हैं? छत्तीसगढ़ और ओड़िशा की जीवन रेखा 885 किलोमीटर की महानदी के भी कई नाम हैं। इसकी महिमा अपरम्पार है। इसके किनारों पर इसका उद्गम वह नहीं है, जिसे आम तौर …
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