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अज्ञात पंचसागर शक्तिपीठ

आदि शक्ति मां के 51 शक्ति पीठ कहे गए हैं। पुराणों में माता के शक्तिपीठों का नाम दिये गये हैं उनमें से दो शक्तिपीठ अज्ञात कहें गये हैं। ‘पंचसागर शक्तिपीठ’ छत्तीसगढ़ में विद्यमान हैं। पौराणिक आख्यानों के अनुसार पंचसागर शक्तिपीठ का जो वर्णन मिलता है वैसा ही स्वरूप छत्तीसगढ़ के चन्द़हासिनी देवी मंदिर में परिलक्षित होता है।

‘पंचसागर शक्तिपीठ’ की पौराणिक व्याख्या में कहा गया है,’ “ऐसा स्थल जहां पांच जल स्रोतों का संगम हो एवं सती के निचले जबड़े जहां गिरे हो, जो शक्ति स्थल वराह के रूप में हो, उसी स्थल पर भैरव,महारुद्र के रूप में विराजे हो वह पंचसागर शक्तिपीठ है।”

पंचसागर शक्तिपीठ-

पंचसागर शक्तिपीठ छत्तीसगढ़ के जांजगीर चांपा जिले में स्थित है। श्रीमद् देवी भागवत में उल्लेखित पंचसागर शक्ति स्थल चंद्रपुर में मां चंद्रहासिनी है। यहीं पांच जल स्रोत एकाकार हुए हैं। चित्रोप्ला गंगा कही जाने वाली महानदी, दूसरी मांड नदी, तीसरा कटंगा नाला, चौथा लाल नाला, पांचवा कोतरी नाला की पांच जल धाराओं का संगम है, जो पंचसागर का निर्माण करते हैं।

चंद्रपुर में महानदी तट पर स्थित एक छोटी पहाड़ी पर माता सती के जबड़े के निचले दांत गिरे थे। इस पहाड़ी पर शक्ति वराही स्वरुप में स्थित है । स्वामी करपात्री जी ने अपने ग्रंथ में चंद्रपुर का उल्लेख करते हुए लिखा है,’ “पहाड़ी पर शक्ति वराही स्वरूप में स्थित है, जिस वराही स्वरूप के साथ मूर्ति के पीछे दांत की आकृतियां भी हैं। यहीं भैरव स्थान भी है जिन्हें महारुद्र भैरव कहा जाता है।”

किंवदंतियां-

लोक किंवदंती में कहा गया है कि देवी चंद्रसेनी सरगुजा को छोड़कर महानदी की शीतलता को देखकर चंद्रपुर में आ विराजी। बरसों बाद राजा चंद्रहास उसी स्थान से निकले, अनजाने में राजा का पैर देवी को लगा, इससे देवी की निद्रा भंग हो गई। उसी रात देवी ने राजा को स्वप्न में अपने मंदिर निर्माण का आदेश दिया। राजा चंद्रहास ने देवी के स्वरूप की स्थापना कर मंदिर बनवाया। इसी कारण देवी का नाम चंद्रहासिनी देवी पड़ा।

देवी मंदिर-

चंद्रहासिनी देवी मंदिर विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है। प्रवेश द्वार में है शिशु मंदिर, सीढ़ी चढ़ते हुए भक्तों का स्वागत करते दो भद्र साधु की प्रतिमा अभिवादन करती हुई नजर आती हैं। सीढ़ियां चढ़ते हुए दोनों और पौराणिक कथाओं को साकार करती मूर्तिमय झांकियां हैं। कैलाश पर्वत का विहंगम दृश्य, समुद्र मंथन करते देव -दानव, भागीरथी गंगा का अवतरण, “गजेंद्र उद्धार,शेष नारायण, अर्धनारीश्वर, चंड -मुंड युद्ध ,गोपिकाओं का वस्त्र हरण, दक्ष प्रजापति का यज्ञ, आदि सुंदरतम जीवंत झांकी यहां दिख पड़ती है।

इन्हीं के बीच बजरंगबली, विश्वेश्वरी देवी, समलाई देवी, पार्वती देवी, भगवान शिव आदि की आकर्षक मूर्तियां स्थापित हैं। मंदिर के गोलाकार परिक्रमा पथ में शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा,कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी तथा सिद्धिदात्री देवियों की नयनाभिराम मूर्तियां स्थापित की गई हैं।

नवग्रह का मंदिर-

देवी मंदिर के दाएं ओर नवग्रह का खुला मंदिर है। इसके मध्य में भुवन भास्कर सूर्यदेव सात श्वेत अश्वों के एक चक्ररथ पर विराजमान हैं जिनके हाथों में चक्र,शक्ति, पाश एवं वरमुद्रा प्रदर्शित हैं। सभी ग्रहों को सूर्य की परिक्रमा करते दिखाया गया है। चंद्रमा हिरण पर सवार हैं, इनकी दोनों भुजाओं में गदा एवं वरमुद्रा प्रदर्शित है। मंगल मेढ़ा पर सवार हैं ,जो अभयमुद्रा त्रिशूल,गदा तथा वरमुद्रा में सुशोभित हैं। बुध की चार भुजाएं हैं जिसमें तलवार, ढाल, गदा और वरमुद्रा सुशोभित है। बृहस्पति गज पर बैठे हैं वे अपनी चार भुजाओं में दंड, रुद्राक्ष माला, पात्र तथा वरमुद्रा में सुशोभित हैं। शुक्र अपने वाहन गर्दभ में विराजे हैं जिनके हाथों में रुद्राक्ष माला, दंड, पात्र एवं वरमुद्रा धारण किए हुए हैं। शनि की सवारी गीध्द है जो अपने चार हाथों में धनुष,बाण, त्रिशूल और वरमुद्रा में है। केतु की सवारी महिष है जो गदा लिए एवं वरमुद्रा में हैं। राहु सिंह पर सवार हैं जिनके हाथों में तलवार, ढाल, त्रिशूल तथा वरमुद्रा युक्त हैं। नवग्रह की सभी मूर्तियां उबड़- खबड़ पत्थरों के बीच स्थापित की गई हैं। नवग्रह मंदिर के ऊपर चारों धाम मंदिर बने हुए हैं। जहां पर सेतुबंध रामेश्वरम, द्वारकापुरी,जगन्नाथ पुरी, तथा बद्रीनाथ धाम के श्री विग्रह की सजीव झांकी प्रदर्शित की गई है।

नाथलदाई का मंदिर

चंद्रहासिनी देवी मंदिर से एक किलोमीटर दूर महानदी एवं मांड नदी के संगम पर एक टीले के ऊपर नाथलदाई का मंदिर है। नाथल देवी की अलौकिक महिमा सर्वविदित है।

इतिहास-

चंद्रहासिनी देवी मंदिर के सामने शिशु मंदिर के पीछे प्राचीन किले का भग्नावशेष आज भी विद्यमान हैं ।मंदिर के ट्रस्टी ने बताया कि यह किला चंद्रपुर नरेश के पूर्वज चंद्रहास सिंह ने बनवाया था। इन के नाम पर गांव का नाम चंद्रपुर और उनकी कुलदेवी का नाम चंद्रहासिनी पड़ा है। डॉ. बलदेव सहाय बताते हैं कि चंद्रपुर के राजा सुरेंद्र शंकर सिंह संबलपुर -उड़ीसा के राजपूत नरेश छत्रसाल सिंह के वंशज हैं। उस समय चंद्रपुर संबलपुर राज्य के अंतर्गत आता था। संबलपुर नरेश गर्मी के दिनों में चंद्रपुर में महानदी के किनारे आ कर रहा करते थे, बाद में उन्होंने चंद्रपुर को अलग राज्य का दर्जा देकर अपने एक पुत्र चंद्रसाय को यहां का राजा बनाया था।

पर्व- उत्सव-

देवी मंदिर में हर रोज दर्शन के लिए अपार भीड़ लगती है। शारदीय और चैत्र नवरात्रि पर यहां माता के दर्शन हेतु भक्तजन विशेष कर आते हैं। मंदिर विकास के लिए यहां एक न्यास का गठन किया गया है। ठाकुर शौरैन्द़ सिंह इस न्यास के अध्यक्ष हैं। न्यास गठित होने के बाद मंदिर का विकास हो रहा है।

पहुंच मार्ग-

चंद्रपुर रायगढ़ से सारंगढ़ मार्ग में 29 किलोमीटर दूर महानदी के पार चंद्रपुर ग्राम में स्थित है।सारंगढ़ से सड़क मार्ग पर यह 22 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यहां पर कभी भी पहुंचा जा सकता है। यह एक धार्मिक पर्यटन स्थल है जहां ठहरने की भी सुविधा है।

आलेख

श्री रविन्द्र गिन्नौरे भाटापारा, छतीसगढ़

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