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गीत – गौ माता की छवि निराली

गौ माता की छवि निराली, महिमा अपरंपार
माँ कहलाती है, देती है माँ के जैसा प्यार

गाय प्रतिष्ठा है भारत की, क़ीमत है अनमोल
मन आल्हादित हो जाता है, सुनकर इसके बोल
कर देती है भवसागर से, सबका बेड़ा पार

रुकने न पाए विकास कभी, घटे नहीं सम्मान
विश्वगुरु बनने के लिए नित, रखना होगा ध्यान
घर की पहली रोटी पर है, गौ माँ का अधिकार

गोबर हो या मूत्र गाय का, होता है उपयोग
कीट प्रभावित हो नहीं पाते, रहे दूर हर रोग
मृत्युलोक में गौ माता है, ईश्वर का अवतार

गौ वध करने वाला मानव नहीं, है वह दानव
जीत मिली इसकी रक्षा से, हुआ नहीं पराभव
गौ हत्या से बड़ा नहीं है, कोई अत्याचार

पाप से मुक्ति पाता है जग, करके गौ का दान
होता है इसकी पूजा से, जीवन का उत्थान
गाय रहेगी तभी रहेगा, सुखमय ये संसार

पीड़ा देने वालों से भी, रखती नहीं दुराव
देती है संदेश हमेशा, फैलाने सद्भाव
अमृत जैसे दूध से मिलता है पौष्टिक आहार

गौ माँ के भीतर दिखता है, अडिग,अमिट विश्वास
भारतीय संस्कृति की झलक धर्म और इतिहास
इसकी सेवा से होता है, हर सपना साकार

गीतकार

डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’
क्वार्टर नं.एएस-14, पॉवरसिटी,
जमनीपाली, कोरबा (छ.ग.)
पिनकोड – 485450
मो.नं. 9424141875

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