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द स्वरस्वती इपोक : पुस्तक चर्चा

भारतीय सभ्यता निर्माण में जिन कुछ प्रत्ययों का स्थाई महत्व रहा है, उन पर विमर्श की परम्परा विदेशी अनुसंधानकर्ताओं के लेखन में भी दिखाई देती है। इतिहास, संस्कृति, परम्परा और सभ्यता के प्रश्नों को लेकर अब तक जो वैचारिक व दार्शनिक चिंतन होता रहा है उससे कुछ सार्थक स्थापनाएं मुहैया होने के साथ कुछ ऐसी दृष्टियाँ भी हासिल हुई हैं, जिनकी लीक पर भारतीय विमर्श को उड़ान मिली है।

इसी समय एक वह धारा भी प्रमुखता से नजर आती है। जिसके पश्चिम केन्द्रित शोध ने बहुत से मूलभूत प्रश्नों को हमारी पारम्परिक अवधारणा को नजर अंदाज करते हुए कुछ ऐसा सिरजा जिसके चलते बहुतेरे संदर्भ अधूरे व्याख्यायित हुए और कई बार मतवैभिन्न के कारण विवाद भी पैदा हुआ। इसी धारा में भारत की पौराणिक प्रतीक नदी सरस्वती पर आधारित विमर्श भी शामिल है।

नरेन्द्र थिल्लैस्थानम की प्रकाशित कृति द स्वरस्वती इपोक : अ फ़ैक्चुअल इन्क्वारी इन टू इंडियन प्री हिस्ट्री में सरस्वती नदी की उत्पत्ति, उपस्थिति, अवधारणा, ऐतिहासिकता विभिन्न मतों के विश्लेषण को मुख्य विषय बनाया गया है। यह किताब जिस गहन शोध और प्राथमिकता के दावे के साथ लिखी गई है।

इसमें इस बात की भी पर्याप्त गुंजाईश मौजूद है कि हम भारतीय दृष्टि से पौराणिक और मिथकीय अध्ययनों को आधार बनाकर लिखी गई इस कृति में अन्यान्य विद्वानों के हस्तक्षेप को इस विशेष दृष्टिकोण से देखने की हिमायती है। यह भी संभव है कि बहुत समय से चले आ रहे सरस्वती विमर्श में यह शोध कुछ सेंध लगाये या समानांतर रुप से कोई अलग ही प्रतिश्रुति रचे, जिसमें बहुत सारे अधिकारी विद्वान सहमत न हों।

फ़िर भी इस नये विमर्श का स्वागत किया जाना चाहिए कि हमारे यहाँ भी पर्याप्त ऐसी सामग्री और अन्वेषण के सुत्र मौजूद हैं, जिनसे कोई शोधकर्ता अपने शोध को उससे बिलकुल अभिनव आयाम प्रदान करे। द स्वरस्वती इपोक इस अवधारणा को पुष्ट करती है।

यह किताब छ: भागों में विभक्त है जिसमें कालक्रम अनुसार भारत के व्यापक संदर्भ में मनुष्य के विकास सभ्यता निर्माण भारत उपमहाद्वीप के उदय, हमारे वंशानुक्रम की अवधारणा के साथ वैदिक काल का आंकलन किया गया है। सरस्वती नदी के संबंध में बहुतेरे निबंध इस आशय से निबद्ध है कि यह नदी क्या वास्तव में मिथकीय थी या वास्तविक? सरस्वती सिंधू क्षेत्र का भूभाग कितना और कैसा था? सिंधू सभ्यता में वैदिक प्रभाव की क्या उपादेयता थी?

“ब्रह्मावर्त, जिसके वैदिक का घर कहा जाता है, उसकी क्या अवधारणा है? भारत के संदर्भ में सिंधू नदी का विस्तार, उसकी कालजयिता और प्रामाणिकता किस तरह रेखांकित होती है? ऐसे मूलभूत सवालों के खोजपरक जवाबों के साथ थिल्लैस्थानम् उन पुराने शोधों प्रश्नांकित करते हैं, जिनके माध्यम से आज तक जैविक अनुवांशिकी, नृतत्व शास्त्र, भूविज्ञान और स्थापत्य आदि के बहुतेरे समीकरण पूरी तरह हल नहीं किये जा सकते।

उदाहरण के तौर पर वे जर्मन विद्वान मैक्समूलर के ॠग्वेद के अध्ययन एवं अनुवादों को टटोलते हैं, जिनके अनुसार वैदिक काल तथा वेदों के लिखे जाने का कालक्रम मैक्समूलर के दिये गये समय चक्र से भी हजारों वर्ष पूर्व का है। इसे वे तथ्यों, प्रमाणों, निरुक्तों और वैदिक सुक्तियों के हवाले से प्रकाश में लाते हैं।

सरस्वती के संदर्भ में उनकी व्याख्या अनुपम है। ॠग्वेद में जिसे “सिंधू माता” या भारत की माँ कहा गया है, वह दरअसल सरस्वती नदी है। जो नदियों की देवियों में सर्वोत्तम है, वाक्सुक्त “अहं राष्ट्री संगमनी वसूनाम” के हवाले से भी वे सरस्वती द्वारा एक देश की अवधारणा को स्थापित करते हैं। सरस्वती के सूखने और विलुप्त होने के पीछे अनेक कारणों में से एक बड़ा तर्क वे यमुना एवं सतलज जैसी नदियों के स्थान परिवर्तन को भी देते हैं।

इस नदी के हवाले से ज्ञान और बुद्धि की देवी सरस्वती की परिभाषा भी करते हैं, जिसमें यह तर्क भी समाया हुआ है कि भारतीय उपमहाद्वीप की सभ्यता जिस विचारवान आधारशिला पर खड़ी रही वह सरस्वती नदी सभ्यता का आशीष है। लोक विश्वास में इसी कारण सरस्वती को शिक्षा और ज्ञान के रुपक के रुप में सदियों के पूजा जा रहा है।

किताब में छोटे-छोटे शीर्षक खंड “क्या आप जानते हैं? के अंतर्गत ढेरों तथ्यों को लिखा गया है। जैसे “वेद अपौरुषेय है, जिनका लिखने वाला कोई मनुष्य नहीं है, इस पर टिप्पणी बेहद सुंदर और तथ्यपरक है, उसी तरह असूर वैदिक आर्यों में से थे, जिन्होंने बाद में अपने रास्ते अलग किये। अफ़गानिस्तान और इरान के सीमावर्ती इलाकों में बस गये। वैदिक सभ्यता के बिसरा दिये गये साम्राज्य महीष्मती की भी विस्तृत चर्चा शामिल है।

इतना ही नहीं, यह किताब बड़े करीने से गंगा, यमुना, कावेरी, वितस्ता (झेलम), नर्मदा और सिंधू नदियों की चर्चा भी करती है। बौधायन सूत्र, मत्स्य पुराण, मनुस्मृति, ॠग्वेद, श्रीमद भागवत गीता, वाल्मीकि रामायण, योग सूत्र और अन्यान्य ग्रंथों के संदर्भों में यह किताब ऐसे रोचक पाठ में तब्दील होती है, जिसे पढ़कर सरस्वती नदी के संदर्भ में मौजूद स्थापनाओं और भ्रांतियों को बौद्धिकता से समझने में मदद मिलती है। किताब में बिखरे मानचित्र, स्थापत्य छवियाँ और छायाचित्र विषय का फ़लक बड़ा बनाते हैं।

पुस्तक : द सरस्वती एकोप : अ फ़ैक्चुअल इनक्वारी इन टू इंडियाज प्री हिस्ट्री
लेखक : नरेन्द्र थिल्लैस्थानम
प्रकाशन : गरुड़ प्रकाशन गुरुग्राम
मुल्य : 549 रुपये

यतीन्द्र मित्र,
अयोध्या उत्तर प्रदेश

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