मानव सभ्यता का उद्भव और संस्कृति का प्रारंभिक विकास नदी के किनारे ही हुआ है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में नदियों का विशेष महत्व है। भारतीय संस्कृति में ये जीवनदायिनी मां की तरह पूजनीय हैं। यहां सदियों से स्नान के समय पांच नदियों के नामों का उच्चारण तथा जल …
Read More »दक्षिण कोसल की स्थापत्य कला में नदी मातृकाओं का शिल्पांकन
दक्षिण कोसल में स्थापत्य कला का उद्भव शैलोत्खनित गुहा के रूप में सरगुजा जिले के रामगढ़ पर्वत माला में स्थित सीताबेंगरा से प्रारंभ होता है। पांचवीं-छठवीं सदी ईस्वीं से दक्षिण कोसल में स्थापत्य कला के अभिनव उदाहरण प्राप्त होने लगते हैं जिसके अन्तर्गत मल्हार तथा ताला में मंदिर वास्तु की …
Read More »अकबर की सेना के छक्के छुड़ाने वाली वीरांगना : रानी दुर्गावती
रानी दुर्गावती पुण्यतिथि विशेष इतिहास में भारत भूमि पर अनेक वीरांगनाओं ने जन्म लिया तथा अपने कार्यों से इतिहास में अमर हो गई, जिन्हें हम आज भी याद करते हैं। ऐसी ही एक वीरांगना रानी दुर्गावती हैं जिन्होंने अपने राज्य की रक्षा के लिए मुगलों से युद्ध कर वीरगति को …
Read More »राम की दक्षिणापथ यात्रा में दक्षिण कोसल
आर्य संस्कृति के दक्षिण में प्रसार के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम राम की भूमिका सर्वोपरि है। ऋग्वेद में विंध्याचल के आगे क्षेत्रों का कोई उल्लेख नहीं मिलता विंध्य पर्वत से ही उत्तर व दक्षिण भारत को विभाजित किया गया है। राम ने अपने चौदह वर्ष के वनवासी जीवन में दक्षिण क्षेत्र …
Read More »कला एवं संगीत को समर्पित एशिया महाद्वीप का एकमात्र विश्वविद्यालय
रायपुर से 140 कि.मी. एवं डोंगरगढ से 40 कि.मी. की दूरी पर स्थित खैरागढ, इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय के लिए प्रसिध्द है। स्वाधीनता से पूर्व खैरागढ एक रियासत थी। खैरागढ रियासत की राजकुमारी इंदिरा की स्मृति में स्थापित खैरागढ का इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय, एशिया महाद्वीप का इकलौता …
Read More »दक्षिण कोसल का वन वैभव : उदंती अभयारण्य
उदंती अभयारण्य वर्ष 1984 में 237.5 वर्ग किमी के क्षेत्रफ़ल में स्थापित किया गया है। छत्तीसगढ़ उड़ीसा से लगे रायपुर-देवभोग मार्ग पर स्थित है। समुद्र सतह से इसकी ऊंचाई 320 से 370 मी है। अभयारण्य का तापमान न्यूनतम 7 सेंटीग्रेड से अधिकतम 40 सेंटीग्रेड रहता है। पश्चिम से पूर्व की …
Read More »दक्षिण कोसल के वैष्णव पंथ का प्रमुख नगर शिवरीनारायण
आदिकाल से छत्तीसगढ़ अंचल धार्मिक एवं सांस्कृतिक केन्द्र रहा है। यहाँ अनेक राजवंशों के साथ विविध आयामी संस्कृतियाँ पल्लवित एवं पुष्पित हुई। यह पावन भूमि रामायणकालीन घटनाओं से जुड़ी हुई है। यही कारण है कि छत्तीसगढ़ में शैव, वैष्णव, जैन, बौद्ध एवं शाक्त पंथों का समन्वय रहा है। वैष्णव पंथ …
Read More »दक्षिण कोसल के प्रागैतिहासिक काल के शैलचित्र
प्रागैतिहासिक काल के मानव संस्कृति का अध्ययन एक रोचक विषय है। छत्तीसगढ़ अंचल में प्रागैतिहासिक काल के शैलचित्रों की विस्तृत श्रृंखला ज्ञात है। पुरातत्व की एक विधा चित्रित शैलाश्रयों का अध्ययन है। चित्रित शैलाश्रयों के चित्रों के अध्ययन से विगत युग की मानव संस्कृति, उस काल के पर्यावरण एवं प्रकृति …
Read More »माता कौशल्या के जीवन पर पहला उपन्यास : कोशल नंदिनी
प्राचीन महाकाव्यों के प्रसिद्ध पात्रों पर उपन्यास लेखन किसी भी साहित्यकार के लिए एक चुनौतीपूर्ण और जोख़िम भरा कार्य होता है। चुनौतीपूर्ण इसलिए कि लेखक को उन पात्रों से जुड़े पौराणिक प्रसंगों और तथ्यों का बहुत गहराई से अध्ययन करना पड़ता है। इतना ही नहीं, बल्कि उसे उन पात्रों की …
Read More »हिन्दू पंथों के समन्वय का प्रतीक संघाट प्रतिमाएँ
प्राचीन काल से भारतवासी धर्मानुसार आचरण करते हैं, धर्म के अनुसार चलना, धर्म के अनुसार जीवन में व्यवहार करना। इस प्राचीन हिन्दू धर्म में प्रमुख ग्रंथ चतुर्वेद हैं। कालांतर में हिन्दू धर्म में कई सम्प्रदाय हुए जिनमें वेद और पुराणों से उत्पन्न 5 तरह के संप्रदाय माने जा सकते हैं:- …
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