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नल-दमयंती आख्यान : एक अध्ययन

पौराणिक ग्रन्थों, साहित्यों में नल और दमयन्ती के प्रेमकथा व संघर्षगाथा का अद्भुत चित्रण किया गया है। नल निषध देश का प्रतापी राजा था, उसकी ख्याति शौर्य से देवताओं को ईर्ष्या होती थी। वे जन नायक के रूप में प्रस्तुत हुए। उन्ही दिनों विदर्भ देश के राजा भीम की पुत्री दमयन्ती ने नल की प्रशंसा से प्रभावित हुई। हंसों की जोड़ी की सहायता से नल दमयन्ती की वार्तालाप की ऐसी कड़ी बनी कि दोनों ने एक दूसरे से मिले देखे बगैर प्रेम गाथा की रचना की, जिसका हर्ष रचित, नैषधीय चरित में भावपूर्ण चित्रण प्रस्तुत किया गया है।

नल दमयन्ती के प्रेमाख्यानों में दमयन्ती के सौंदर्य का वर्णन इस प्रकार हुआ कि देवता भी दमयन्ती के प्रेम के वशीभूत हो गए। प्रश्न यह उठता है कि दमयन्ती के सौंदर्य का वर्णन 8 वीं सदी से आज तक अर्थात 1200 वर्षो बाद भी भारतीय जनमानस में गहरा पैठा हुआ है। यह भी सम्भव था कि नलकालिन राजकुमारियों में और भी सुन्दरियां रही हो और बाद में भी हुई हो, वर्तमान में अनेक विश्व सुन्दरियों से हम परिचित हैं, फिर भी दमयन्ती का सौंदर्य सर्वश्रेष्ठ है। ऐसे कौन से कारक थे जो अनार्य नल को देव पुरुषों से तुलना कर पुराणों एवम संस्कृत साहित्यों के श्लोकों में याद किया जाता है।

नल-दमयन्ती के सौंदर्य का वर्णन हर्ष रचित नैषधीय चरित्र  में मिलता है किन्तु पुराणों में नल के  संघर्षमय दिनों को रेखाँकित करते हुए व्यापक सन्देश दिया गया है जिसमें महाभारत के नलोपख्यांन का वर्णन भी सम्मिलित है। दमयन्ती के सौंदर्य में मुख्य भूमिका हंस के जोड़े की है, जो नल और दमयन्ती के बीच की महत्त्वपूर्ण कड़ी है। वह नल दमयन्ती के संवादों को संकेतों, भावनाओं को श्लेषात्मक पूर्ण ढंग से प्रस्तुत करता है।

दोनों की रसभरी प्रेम कथा, प्रेमालाप वार्ता राजमहल से आम जनमानस तक इतनी शीघ्रता से पहुची कि समकालिन राजा एवम देवता भी दमयन्ती के रूप की झलक के लिए लालायित थे। नल दमयन्ती को देखे बिना ही उसके नख शिख सौन्दर्य मात्र का वर्णन ही नहीं किया अपितु दमयन्ती के उच्च चरित्र के पहलुओं का भी बोध कराया। नल, दमयन्ती के नख से शिख तक का वर्णन विभिन्न उपमाओं के साथ किया गया है तो दूसरी ओर दमयन्ती, नल के सौंदर्य का वर्णन उसके दिव्य पुरुषार्थ के स्वरूपों में करती है और दोनो एक दूसरे को पूरक के रूप में प्रस्तुत करते हैं।

इस प्रेमकथा में नल, दमयन्ती एक दूसरे के सम्मुख नहीं रहते हुए, दोनों एक दूसरे के अंतरंग प्रेम से ओत प्रोत थे। जिसकी चर्चा इतनी अधिक थी कि देवताओं एवं राजाओं में दमयन्ती को प्राप्त करने की होड़ तथा नल को हतोत्साहित करने में देवताओं ने अपनी भूमिका निभाई जो स्वयंवर के समय देखने को मिली। जिसमे देवों की अनेक युक्ति के बावजूद वे दमयन्ती की दूरदर्शिता एवं परीक्षण के आगे टिक न सके और देवताओं की एक न चली।

बल्कि दमयन्ती ने देवताओं को नकारते हुए नल के गले मे वरमाला डाल दी। साहित्य ऐसी विधा है जो अंतर गुण, अंतर आत्मा में झांक सकता है। दमयन्ती के आगाध प्रेम, चारित्रिक गुण, अन्तरचक्षु, प्रेम निष्ठा, कठिन प्रतीक्षा जैसे गुणों ने दमयन्ती को महान नारियो की श्रेणी में खड़ा कर दिया। दूसरी ओर दमयन्ती की लालसा में आए प्रतिभागी राजा एवं देवता कुंठित, अपमानित महसूस करने लगे औऱ प्रतिशोध के लिए दुष्चक्र का जाल बुनते गए। जिसके चलते नल का सौतेला भाई पुष्कर नल को जुए में हराकर एक ही वस्त्र से राज्य त्याग के लिए विवश करता है।

नल-दमयन्ती के प्रेम के पश्चात दूसरे खण्ड में दुःख, दरुण्य से भरी कथा का वर्णन है जिसे लोक सहित्य पुराणों ( वायु, मत्स्य, ब्रह्म, अग्नि आदि, महाभारत नलोपख्यांन) में स्थान मिला  है। जिसमे नल के आगाध प्रेम का पता चलता है। कथानुसार दमयन्ती नल के जुए में हारने का समाचार पा कर अपने पुत्री इन्द्रसेना एवम पुत्र इन्द्रसेन को ननिहाल सकुशल भिजवाने का प्रबंध करती है, ततपश्चात एक वस्त्र में राजा नल के साथ राज्य त्याग करती है राज्य त्याग के समय नल-दमयंती के पास कुछ विकल्प हो सकते थे-

1 . ऐसे रास्तों का चयन करना, जहां उन्हें कोई पहचान न सके।

2. ऐसे मार्ग जो शीघ्रता से दूसरे देश मे प्रवेश कर सके।

3. रास्ते के चयन में नदियों की प्रमुख भूमिका थी जिसके तट पर जल एवं भोजन की उपलब्धता के साथ दुर्गम वन क्षेत्र का होना।

4. ऐसे सरल मार्ग जहां से दमयन्ती अपने पिता के घर पहुच सके।

जुए में हारा नल देश त्याग पर अपनी प्रजा से कैसे आंख मिला पाता। पुरुषार्थी प्रतापी शासक ने युद्ध किये बिना राष्ट्र को जुए की बाजी में लगाकर भीषण अपमानजनक स्थिति का सामना किया होगा। सौन्दर्य की प्रतिमूर्ति दमयन्ती जिसकी झलक पाने देवता लालायित थे, के साथ छिप कर निकलना भी चुनौती रही होगी।

राजा नल के लिए अपनी राजधानी पोंडगढ़ (पुष्करी) ओड़िसा से मलकानगिरी पर्वत श्रृंखला की घाटियों को पार करते वर्तमान गौरागढ़ सोनाबेड़ा जोंक नदी की घाटी राज त्याग के हेतु सर्वथा उपयुक्त थी। घाटियों में जोंक नदी में स्थित दहरे में स्नान करते समय नल के वस्त्र को स्वर्णपँखीं पक्षी उड़ा ले जाता है और नल वस्त्र विहीन हो जाता है। क्षुधा से व्याकुल नल दहरे से मछली पकड़ कर भूनता है किंतु उदरस्थ करने से पहले भुनी मछली दहरे में कूद जाती है तब से कहावत प्रचलित “राजा नल को विपत परिस त भूंजे मछरी दहरा म गिरिस” लोक में प्रचलित है।

नल, दमयन्ती घोर विपत्ति काल की परीक्षा में टूट जाते हैं। वही से चार कोस की  दूरी पर एक चौराहा मिलता है, नल, दमयन्ती को बताता है कि यह मार्ग विदर्भ को जाने वाला है इससे पिता के घर जा सकती है, इस मार्ग से बहुत से लोग आते जाते हैं। दमयन्ती समझ जाती है और दुःख में वह साथ रहने की बात करती है, नल दमयन्ती को घोर निद्रा में छोड़ कर चला जाता है तथा दमयन्ती अपने बुरे दिन दासी बन कर गुजारती है।

नल कर्कोटक नाग के डसने से कृष्ण व कुरूप हो कर अयोध्या के राजा ऋतुपर्ण के यहाँ सारथी बन कर रहता है। कर्कोटक का डसना ही नल के लिए शुभ था कलिकाल का प्रभाव कम हुआ जो नल के जीवन को सहज बनाने में सहायक होता है। नल को राज्य खोने से अधिक पीड़ा अपने अर्जित पुरुषार्थ खोने की अधिक थी। जिसके कारण नल अयोध्या के राजा ऋतुपर्ण के यहाँ सारथी के रूप में रह कर ऋतुपर्ण को अश्व विद्या सिखाया और ऋतुपर्ण से अक्ष विद्या सीखी।

दमयन्ती के पिता का गुप्तचरी द्वारा नल का पता लगा कर दुबारा स्वयंवर रचना इस कथा के प्रेम भाव की कठिन परीक्षा व संयम को इंगित करता है। अंत मे नल दमयन्ती का स्वयंवर में पुनः मिलन उनके आगाध प्रेम निष्ठा को प्रदर्शित करता है।

प्रेमकथा के प्रथम खण्ड में दमयन्ती के सौंदर्य वर्णन एवम नल के सौंदर्य के साथ पुरुषार्थ का वर्णन रीति कालीन साहित्यों निषध चरित्रम में विस्तृत रुप से वर्णित है। वहीं दूसरे खण्ड में नल दमयन्ती के दुःख भरे दिन का मार्मिक वर्णन महाभारत, पुराणों में आख्यानों के माध्यम से घटनाक्रम, देवश्राप, अतिप्रेम, राजतन्त्र व परिणामों के साथ कष्टो की विविधता, व्यापकता, सहनशीलता, मर्यादा सीमा में धैर्यता का वर्णन प्रेरक व उद्देश्य परक परिणामों के लिए व्याख्यान का हिस्सा बनाया गया है।

प्रेम प्रसंगों की बुनियाद इतनी मजबूत है कि प्रेम अन्तरात्मा के अद्भुत संगम की परिकल्पना है। सच्चा प्रेम बाधाओं में भी अडिग व वफादार होता है, पुरुषार्थ एवम सतित्व को परिभाषित करना इतना सहज नही होता। इन्हीं सब कारणों से नल अनार्य होते हुए भी देवतुल्य माने जाते हैं। पुराणों व धर्म ग्रन्थों में नल प्रसंग को उदाहरण सहित बताया गया, श्लोंको के रूप में भारतीय जनमानस के मध्य स्मरण किया जाता है। नल दमयन्ती का आदर्श चरित्र एवं प्रेम सदैव प्रेरणा के स्रोत बना रहेगा।

संदर्भ ग्रंथ

1-पदम् पुराण – वेदव्यास गीतापेस गोरखपुर

2-हरिवंश पुराण – वेदव्यास गीताप्रेस गोरखपुर

3-लिंग पुराण – खेमराज स्टीम प्रेस मुम्बई

4-मत्स्य पुराण – पं. कालिचरण चौखम्पा सुरमति प्रकाशन 2015

5-पाणिनि अष्टाध्यायी में निषध

6-हर्ष चरित्रम – वाणमाही श्री मोहन देववंत

7-नैमिष चरित्रम

8-सरिता सागर – खेमराज स्टीम प्रेस 1965

9-शतपथब्राह्मण – स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती (गुलेरी प्रकाशन 2017)

10-लघू काव्य, महाकाव्य – विक्रम मह विरचित धारा दत् शास्त्री प्रकाशन

11-चम्पू काव्य, गद्य नल चम्पु – दमयंती कथा डा. परमेष्वरीदीन पाण्डेय चौखम्बा सुरमती 

                                           प्रकाशन वाराणशी

आलेख

विजय कुमार शर्मा (शोधार्थी) कलिंगा विश्वविद्यालय कोटनी, रायपुर (छ ग)

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