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महंत घासीदास संग्रहालय, रायपुर

छत्तीसगढ़ में संग्रहालय : अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस विशेष

‘संग्रह’ न केवल मनुष्य वरन अनेक जीवों की आदिम प्रवृत्ति है। इस जैविक प्रवृत्ति का उदय कदाचित् जीवितता के लिये हुआ हो, किन्तु अन्य जीव-जन्तुओं की संचयी प्रवृत्ति जीवन की मूलभूत आवश्यकता ‘भोजन-वस्त्र-आवास’ के इर्द-गिर्द केन्द्रित रही जबकि मनुष्य के बौद्धिक विकास के साथ उसकी संचयी-वृत्ति ने अनेक महत्वपूर्ण आयामों को जन्म दिया जिनमें से एक है-संग्रहालय।

भारतीय वांग्मय में ऐसे अनेक साहित्यिक उल्लेख मिलते हैं जिनसे प्राचीन भारत में कला के संग्रह, प्रदर्शन और संरक्षण किये जाने का संकेत प्राप्त होता है। भारतीय साहित्य में उल्लेखित चित्रशाला, विथि, अलेख्य गृह और अक्षपटल आदि प्राचीन भारत में किसी न किसी रूप में संग्रहालय जैसी संस्था/गतिविधियों के अस्तित्वमान होने की जानकारी देते हैं। प्रागैतिहासिक काल के चित्रित शैलाश्रय जहाँ आदिमानव की आखेटक गतिविधियाँ, मान्यताएं, रीति-रिवाज, कल्पना, स्मृति और ज्ञान-कौशल आकारित और प्रदर्शित हैं, संग्रहालय के आदिम रूप स्वीकार किये जा सकते हैं।

वैश्विक संदर्भ में आधुनिक संग्रहालय संबंधी गतिविधियों का आरंभ 18वीं सदी ईसवी के मध्य से माना जाता है, वहीं भारतीय परिप्रेक्ष्य में सन् 1784 में कलकत्ता एशियाटिक सोसायटी के गठन के साथ, जिसके अंतर्गत कालान्तर में देश के पहले संग्रहालय ‘इण्डियन म्यूजियम’ की स्थापना 1814 में हुई। यह सब अकस्मात् नहीं हुआ। तत्कालीन अनेक राजा-रजवाडों के निजी-संग्रहों ने भारतीय संग्रहालयों के उदय और विकास की पूर्वपीठिका तैयार करने में अवष्य महती भूमिका का निर्वहन किया होगा।

इण्डियन म्यूजियम की स्थापना के लगभग छः दशक बाद छत्तीसगढ़ में प्रथम संग्रहालय की स्थापना हुई। यह संग्रहालय राजनांदगांव के राजा महन्त घासीदास जी के दान से रायपुर में सन् 1875 में बना। तत्कालीन मध्य प्रांत और बरार के इस संग्रहालय की गणना देश के 10 प्रमुख संग्रहालयों में होती है और जनसहयोग से निर्मित यह पहला भारतीय संग्रहालय है। इसकी स्थापना के आज 145 वर्ष होने जा रहे हैं। इस दौरान छत्तीसगढ़ में संग्रहालयों का क्रमबद्ध विकास हुआ। यहाँ प्रदेश के अतीत और वर्तमान की स्मृति को संरक्षित व प्रदर्शित करते हुए सामुदायिक शिक्षा और जनजागरूकता की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य कर रहे प्रमुख संग्रहालयों का परिचय प्रस्तुत है।

महन्त घासीदास स्मारक संग्रहालय, रायपुर-

इस संग्रहालय का संचालन रायपुर के जिला कोषालय के समीप स्थित अष्टकोणिय भवन में आरंभ हुआ जो औपनिवेशिक शैली में निर्मित है। कालान्तर में कलावशेषों की बढ़ती संख्या व स्थानाभाव के कारण यह वर्ष 1953 में कलेक्टर कार्यालय के निकट वर्तमान संग्रहालय भवन में स्थानांतरित किया गया। तीन मंजिले संग्रहालय के भू-तल में क्रमशः प्रवेश दीर्घा, पुरातत्त्व दीर्घा, प्रतिमा दीर्घा और अभिलेख दीर्घा हैं। प्रथम तल में प्राकृतिक इतिहास (वन्यजीव) दीर्घा और आयुध (अस्त्र-शस्त्र) दीर्घा तथा द्वितीय तल में मानवशास्त्रीय (जनजातीय) दीर्घा हैं। इस संग्रहालय के अद्वितीय एवं उत्कृष्ट कलावस्तुओं में किरारी से प्राप्त सातवाहन कालीन काष्ठ स्तंभ लेख, सिरपुर से प्राप्त धातु प्रतिमाएं-मंजुश्री, वज्रपाणि, अवलोकितेश्वर आदि, मौर्यकाल से लेकर मुगलकाल तक के दुर्लभ सिक्के उल्लेखनीय हैं। प्राचीन अभिलेख तथा ताम्रपत्रों की दृष्टि से भी यह विशेष रूप से समृद्ध है।

पुरखौती मुक्तांगन, रायपुर-

राज्य गठन के बाद संग्रहालयों की स्थापना और विकास को नई दिशा मिली। यहाँ की चिर-संचित पारंपरिक ज्ञान-विज्ञान-कौशल-शिल्प का प्रकृति के सान्निध्य में साक्षात्कार का अवसर सुलभ कराने के उद्देश्य से राज्य शासन द्वारा रायपुर से लगभग 20 किमी. दूर उपरवारा में सांस्कृतिक धरोहर के रूप में पुरखौती मुक्तांगन संग्रहालय विकसित करने वर्ष 2002 में आधारशिला रखी गई। यहाँ चरणबद्ध तरीके से सांस्कृतिक प्रादर्शों का निर्माण राज्य के पारंपरिक शिल्पियों द्वारा किया जा रहा है। इस छतविहीन संग्रहालय के विस्तृत प्रांगण में माड़िया पथ, बैगा चौक, देवगुड़ी, छत्तीसगढ़ी चौक, पारंपरिक जालीवत् भित्तिचित्र, स्वतंत्रता सेनानियों की मूर्तियाँ, छत्तीसगढ़ के मानचित्र में विभूतियों का प्रदर्शन, ‘आमचो-बस्तर’ प्रदर्शनी खंड के अंतर्गत बस्तर के विविध जनजातियों के आवास, युवा-गृह, ‘बस्तर दशहरा’ के मूल प्रयुक्त रथ की स्थापना सहित गतिविधियों का मृदाशिल्प में कलात्मक सृजन, पुरातात्त्विक प्रादर्श जैसे बारसूर एवं ढोलकल की गणेश प्रतिमाएं, नारायणपाल का विष्णु मंदिर, जगदलपुर राजमहल के मुख्यद्वार की प्रतिकृति, लौह प्रगलन कार्यशाला, आदिवासियों के देवताओं का विश्राम स्थल पोलंगट्टा का प्रादर्श, सरगुजा प्रखण्ड आदि दर्शनीय हैं। पुरखौती मुक्तांगन परिसर राज्य में पर्यटन के साथ-साथ सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक केन्द्र के रूप में आकार ले रहा है।

छत्तीसगढ़ विज्ञान केन्द्र, रायपुर-

रायपुर के सड्डू स्थित विज्ञान केन्द्र (विज्ञान संग्रहालय) में चार विभाग- 1.प्राकृतिक संसाधन, 2.जल, 3.तारामण्डल और 4.भौतिक विज्ञान हैं। भूतल में छत्तीसगढ़ के प्राकृतिक संसाधनों को प्रादर्श और विडियो क्लिप के माध्यम से दिखाया गया है जिसमें कृत्रिम वन परिदृश्य, ध्वनि एवं कलरव करते पशु-पक्षी, कुटुमसर गुफा, राजकीय पशु और पक्षी, राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में पाये जाने वाले शैल (चट्टान) और उगाये जाने वाले चावल प्रदर्शित हैं। दूसरे खंड में जल के उपयोग, जलजनित बीमारियों की जानकारी एवं वर्षा जल संरक्षण के परिकल्पित दृश्य देखे जा सकते हैं। तीसरे खंड में भौतिक विज्ञान के आश्चर्यजनक तथ्यों- तारामण्डल, आकाश और ब्रह्माण्ड संबंधी रोचक जानकारियाँ संग्रहीत एवं प्रादर्शों के माध्यम से प्रदर्शित हैं। चौथे खंड में मापन यंत्रों और उनके उपयोग की जानकारी का संकलन है। साथ ही विद्यार्थियों को रोमांचित करने वाले 3-डी विडियो क्लिप दिखाये जाते हैं।

कृषि विश्वविद्यालय संग्रहालय, रायपुर-

जोरा स्थित इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में ‘कृषि संग्रहालय’ की स्थापना वर्ष 2016 में हुई। यहाँ कृषि संबंधी अद्यतन सूचनायें प्रदान की जाती हैं। यह अपनी तरह का पहला अत्याधुनिक कृषि संग्रहालय है, जो कृषि-तकनीक, कृषि संबंधी समस्याओं और उनके समाधान एवं कृषक जीवन शैली संबंधी सूचनाएं दर्शकों को उपलब्ध कराता है। यहाँ खेती के आधुनिक तकनीकों को बोधगम्य शैली में प्रदर्शित किया गया है साथ ही नवीन तकनीक से अनेक विषयों जैसे जलवायु, मृदा के गुण और वर्षा की भिन्नता संबंधी अद्यतन जानकारी से परिचित कराया जाता है।

जिला पुरातत्त्व संग्रहालयः

सन 1976 में जिला पुरातत्त्व संघ तथा स्थानीय प्रशासन द्वारा अंचल के सांस्कृतिक, शैक्षणिक विकास को आधारभूत आवश्यकता मानते हुए जिला पुरातत्त्व संग्रहालयों की स्थापना आरंभ हुई। वर्तमान में राज्य में दो जिला पुरातत्त्व संग्रहालय संचालित हैं।

बिलासपुर– वर्ष 1983 में जनसामान्य के अवलोकनार्थ आरंभ किया गया जिला पुरातत्त्व संग्रहालय, बिलासपुर नगर के टाउन हाल के समीप है। इस संग्रहालय में जिले के ताला, रतनपुर, गनियारी, पंडरिया, मदनपुर, सेतगंगा, सीपत आदि स्थानों से एकत्र की गई मुख्यतः पांचवीं सदी ईसवी से तेरहवीं सदी ईसवी तक की कलात्मक प्राचीन प्रतिमाएं, कुछ महत्वपूर्ण और दुर्लभ शिलालेख-ताम्रपत्र तथा प्राचीन सिक्कों का महत्वपूर्ण संग्रह है।

जगदलपुर– जिला पुरातत्त्व संग्रहालय, जगदलपुर 1988 में प्रारंभ हुआ। परलकोट बाड़ा से स्थानांतरित होकर यह वर्तमान में सिरहासार चौक के पास नवनिर्मित भवन में संचालित है। इस संग्रहालय में वैष्णव, शैव एवं शाक्त धर्म से संबंधित प्राचीन मूर्तियाँ प्रदर्शित हैं। यहाँ बस्तर के नलवंष, छिंदकनागवंश, काकतीय वंश से संबंधित पुरावशेष और प्रतिमाएं प्रदर्शित हैं। साथ ही छोटे डोंगर, केशरपाल, कांकेर से प्राप्त शिलालेख एवं स्वर्ण सिक्के भी संग्रहित हैं।

मानव संग्रहालय, जगदलपुर– यह जगदलपुर के धरमपुरा स्थित भारतीय मानवशास्त्रीय सर्वेक्षण कार्यालय में 1972 से संचालित है। यह बस्तर क्षेत्र के विभिन्न जनजातियों की संस्कृति, परम्परा और जीवनशैली की सम्पूर्ण झांकी प्रस्तुत करता है। यह इस क्षेत्र की जनजातीय संस्कृति की प्रामाणिक जानकारी का एक महत्वपूर्ण केन्द्र भी है। यहाँ विभिन्न आदिवासी समुदायों के वस्त्राभूषण, वाद्य-यन्त्र, चित्रकारी, काष्ठशिल्प, औजार और हथियार, मुखौटे, कलाकृतियाँ और मूर्तियाँ संग्रहित व प्रदर्शित की गई हैं।

विश्वविद्यालय संग्रहालय, खैरागढ़– इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ के भारतीय कला का इतिहास एवं संस्कृति विभाग अंतर्गत रविन्द्र बहादुर संग्रहालय संचालित है, जहाँ शैव, वैष्णव, शाक्त, बौद्ध एवं जैन मूर्तियों के साथ ही लोक जीवन से जुड़े कला अवशेषों का भी संग्रह है। कलचुरियों एवं फणिनागवंषियों द्वारा शासित क्षेत्र होने के कारण संग्रहीत पुरावशेषों में सर्वाधिक इसी काल के हैं। यहाँ बीस-भुजी चामुण्डा, वरेश्वर शिव, तपस्यारत गौरी, नैऋति, अक्षोभ्य बुद्ध, तारादेवी, पद्मपाणी-लोकेश्वर और आदिनाथ तथा महावीर आदि इस संग्रहालय की कतिपय उल्लेखनीय प्रतिमाएं हैं।

विश्वविद्यालय मानव संग्रहालय, रायपुर– पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर के मानवविज्ञान अध्ययनशाला अंतर्गत एक मानवशास्त्रीय संग्रहालय संचालित है। यह संग्रहालय मानव विज्ञान लैब, सीरोलॉजी लैब, मानव जीनोमिक्स लैब, पुरातत्त्व लैब, म्यूजियोलॉजी लैब आदि अत्याधुनिक प्रयोगशालाओं से लैस है जिसका उपयोग शिक्षण, प्रशिक्षण और अनुसंधान कार्य में किया जाता है।

जिला पुरातत्त्वीय संघ द्वारा संचालित संग्रहालय

राजनांदगांव- जिला पुरातत्त्वीय संघ अंतर्गत 1987-88 से जिला कार्यालय भवन के एक कक्ष में प्रारंभ हुआ संग्रहालय वर्तमान में कलेक्टर कार्यालय परिसर में ही 2008 से नवीन भवन में स्थानांतरित होकर संचालित है। इसमें पांच वीथिकाएं-प्रवेश वीथिका, मूर्ति वीथिका, पुरातत्त्व वीथिका, अस्त्र-शस्त्र वीथिका और आदिवासी-लोककला वीथिका हैं। यहाँ शिव मंदिर गण्डई की प्रतिकृति, जिले के पुरातत्त्वीय और पर्यटन स्थलों, रियासतकालीन राजाओं के चित्र, प्रस्तर और धातु प्रतिमाओं सहित अनेक प्रतिमाओं की प्रतिकृतियों का अवलोकन किया जा सकता है। पुरातत्त्व वीथिका में प्राचीन सिक्के, मुद्राएं, प्रस्तर उपकरण, जीवाश्म और जिले के खनिज संपदा के प्रादर्श भी प्रदर्शित किये गये हैं। राजनांदगांव रियासत के अस्त्र-शस्त्र चौथी वीथिका में संग्रहीत हैं। आदिवासी-लोककला वीथिका में जनजातीय आभूषण, वेशभूषा, शिकार के उपकरण, देवी-देवताओं और वाद्य यंत्रों को प्रदर्शित किया गया है।

रायगढ़- पं. लोचन प्रसाद पाण्डेय स्मृति जिला पुरातत्त्वीय संघ संग्रहालय वर्ष 1996 से रेल्वे स्टेशन के निकट कचहरी नाम से ज्ञात दोमंजिला भवन में संचालित है। इसमें रायगढ़ के पुजारीपाली, हथगढ़ा, नेतनागर और बंधनपुर आदि पुरास्थलों की प्रस्तर प्रतिमाएं संग्रहित/प्रदर्शित हैं। साथ ही इस क्षेत्र के शैलचित्रों की प्रतिलिपि, रियासतयुगीन भवनों के छायाचित्र, उड़िया लिपि के ताड़पत्र, रायगढ़ घराने की कला और संगीत परंपरा की जानकारी, विभूतियों के चित्र आदि भी संरक्षित हैं। यहाँ स्वचालित आडियो गाइड की भी व्यवस्था है।

कोरबा- जिला मुख्यालय में ओपन थियेटर, घंटाघर चौक पर स्थित इस संग्रहालय में जिले की ऐतिहासिक और पुरातत्त्वीय विरासत संग्रहित है। यहाँ छुरीकला, लाफागढ़, तुमान, कनकी, रजकम्मा, अमरेली, देवरी, आमाटिकरा तथा बीरतराई आदि महत्वपूर्ण पुरास्थलों की मूर्तियों, पुरावस्तुओं तथा रियासत काल के स्मृति चिह्नों को सहेजा गया है। इसमें एक छायाचित्र दीर्घा का भी समावेश है जिसमें जिले के महत्वपूर्ण स्मारकों के छायाचित्र प्रदर्शित हैं।

अंबिकापुर- नगर के सरगवां में स्थित संग्रहालय सन 2013 से संचालित है। इसके परिसर में लक्ष्मण मंदिर सिरपुर, पाली और कोरबा के शिवमंदिर, ताला की रूद्रशिव प्रतिमा की प्रतिकृति और स्थानीय मृदाशिल्प की कलाकृतियाँ प्रदर्शित की गई हैं। सरगुजा के जनजातीय लोक संस्कृति का परिचय कराने रजवार, पण्डो और कोरवा जनजाति के आवास संकुल के प्रादर्श निर्मित हैं। सरगुजा संभाग के नक्शे में मुख्य ऐतिहासिक, पुरातत्त्वीय और पर्यटन स्थलों के प्रादर्श 3डी मैपिंग के जरिये प्रदर्शित किये गए हैं। बेलसर, डीपाडीह और महेशपुर की प्रस्तर प्रतिमाएं और अभिलेख भी यहाँ संग्रहीत हैं।

स्थल संग्रहालय (मूर्तिशाला)-कतिपय संरक्षित स्मारकों और उत्खनित स्थलों पर संग्रहालय निर्मित कर वहाँ की कलाकृतियों को सुरक्षित प्रदर्शित किया गया है, जो इस प्रकार हैं –

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, रायपुर मण्डल के अधीन-

सिरपुर- महासमुंद जिले में महानदी के तट पर स्थित सिरपुर स्थल संग्रहालय सुप्रसिद्ध लक्ष्मण मंदिर के परिसर में है। यहाँ दो बड़े कक्षों में उत्खनन पूर्व से ज्ञात और उत्खनन से प्राप्त कुछ प्रतिमाएं और स्थापत्य खण्डों संग्रहित व प्रदर्शित हैं। इस संग्रह में जैन तीर्थंकर, बुद्ध और बोधिसत्व सहित बौद्ध देवियों तथा ब्राह्मण धर्म से संबंधित शैव, वैष्णव, सौर, शाक्त और गाणपत्य प्रतिमाएं एवं मुखलिंग उल्लेखनीय हैं। उक्त दोनों कक्षों के मध्य एक अन्य नवनिर्मित कक्ष में विश्वदाय स्थलों और सिरपुर के उत्खनित स्थलों के छायाचित्र प्रदर्शित किये गए हैं।

संग्रहालय – पचराही जिला कवर्धा

मल्हार- बिलासपुर जिले में स्थित प्राचीन नगर मल्हार स्मारकों, प्रतिमाओं के साथ ही पुरावशेषों की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है। यहाँ उत्खनन कार्य भी सम्पन्न हुये हैं। यहाँ की कलाकृतियाँ केन्द्र संरक्षित स्मारक पातालेश्वर मंदिर परिसर में स्थल संग्रहालय में प्रदर्षित हैं। इस संग्रह की उल्लेखनीय प्रतिमा बुढ़ीखार से प्राप्त ईसा पूर्व 2री सदी की अभिलिखित विष्णु प्रतिमा है, जो देश में विष्णु की ज्ञात प्राचीनतम प्रतिमाओं में से एक है।

तुमान- कोरबा जिले में स्थित तुमान छत्तीसगढ़ के कलचुरि शासकों की प्रारंभिक राजधानी रही। यहाँ कलचुरि कालीन मंदिरों के भग्नावशेष हैं। केन्द्र संरक्षित स्मारक महादेव मंदिर परिसर में निर्मित स्थल संग्रहालय में 11-12 वीं सदी ईसवी की कलचुरिकालीन प्रतिमाएं प्रदर्षित हैं।
बारसूर- दंतेवाड़ा जिले में बारसूर स्थित केन्द्र संरक्षित स्मारक चंद्रादित्य मंदिर परिसर के स्थल संग्रहालय में 12वीं सदी ईसवी की छिंदकनागकालीन शैव एवं शाक्त प्रतिमाएं एवं स्थापत्य खण्ड संग्रहित हैं।

देवबलोदा- दुर्ग जिले में भिलाई के निकट देवबलोदा के महादेव मंदिर परिसर स्थित स्थल संग्रहालय में 14वीं सदी ईस्वी के फणिनागयुगीन कलावशेष संरक्षित किये गये हैं जिनमें योद्धा प्रतिमाएं और सती स्तंभ उल्लेखनीय हैं।

नारायणपुर- बलौदाबाजार जिले में स्थित नारायणपुर के महादेव मंदिर परिसर में 9वीं और 14वीं सदी ईसवी की स्थानीय कलाकृतियाँ संग्रहित हैं, जिसमें विशालकाय हनुमान की प्रतिमा विशेष उल्लेखनीय है।

पाली- कोरबा जिले में स्थित पाली के महादेव मंदिर परिसर के स्थल संग्रहालय में 9वीं-10वीं सदी ईसवी की कलाकृतियाँ, स्थापत्य खंड और प्रतिमाएं संग्रहित हैं।

रतनपुर- बिलासपुर जिले में स्थित यह समृद्ध नगर लम्बे समय तक कलचुरि शासकों की राजधानी रहा। यहाँ के कण्ठी देवल मंदिर परिसर के स्थल संग्रहालय में 10वीं सदी ईसवी से लेकर परवर्ती कलचुरिकाल के पुरावशेष, प्रस्तर प्रतिमाएं, स्थापत्य खण्ड, तोप आदि संग्रहित हैं।

संचालनालय संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग छत्तीसगढ़ के अधीन

भोरमदेव- कबीरधाम जिले के भोरमदेव शिव मंदिर परिसर में निर्मित स्थल संग्रहालय में समीपस्थ ग्राम चौरा और छपरी से संकलित 12वीं सदी ईसवी के फणिनागयुगीन कलाकृतियों को संग्रहित किया गया है। इनमें शैव, वैष्णव तथा शाक्त प्रतिमाओं के साथ योद्धा तथा अभिलिखित सती प्रस्तर दर्शनीय हैं।

ताला- बिलासपुर जिले में मनियारी नदी के तट पर स्थित ताला के देवरानी-जेठानी मंदिर परिसर में यहाँ से उपलब्ध कलात्मक अवशेषों को स्थल संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है। इन अवशेषों में सूर्य, नदी देवियाँ और उपासक पुरूष की प्रतिमाओं के साथ रोचक अलंकरणयुक्त स्थापत्य खण्ड उल्लेखनीय हैं।

महेशपुर- सरगुजा जिले में प्रसिद्ध प्राचीनतम नाट्यशाला रामगढ़ के निकट स्थित महेषपुर के कुरिया झोरकी स्मारक समूह परिसर में निर्मित स्थल संग्रहालय में 8वीं से 10वीं सदी ईसवी के शैव, वैष्णव और शाक्त प्रतिमाएं संग्रहित हैं। यहाँ कृष्ण की बाललीला संबंधी शिल्पांकन, विष्णु, सूर्य, उमा महेश्वर, नृसिंह, वराह, वामन आदि की कलात्मक प्रतिमाएं, द्वारशाखा, स्तंभखण्ड आदि उल्लेखनीय हैं।

पचराही- कबीरधाम जिले के उत्खनन स्थल पचराही स्थित संग्रहालय में फणिनागवंशी काल की उत्खनन से ज्ञात प्रतिमाओं और पुरावस्तुओं को संग्रहित व प्रदर्शित किया गया है। उत्खनन से प्राप्त प्रस्तर उपकरण, प्रतिमा, शिलालेख, सिक्के, मनके, टेराकोटा और लोहे की वस्तुओं के साथ ही वास्तुखण्ड और मृद्भाण्ड आदि को चार अलग-अलग वीथिकाओं में प्रदर्शित किया गया है।

विश्व के सभी मानव समाजों, चाहे वे किसी भी पृष्ठभूमि के हों, उनको अपने सामाजिक मूल्यों का सार्थक अनुभव कराना ही, संग्रहालय नामक संस्था का मूल उद्देश्य है और अपने इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये संग्रहालय तरह-तरह के जतन करते हैं। इन्हीं में से एक है- अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस का आयोजन। यह आयोजन 1977 में प्रारंभ हुआ और प्रतिवर्ष की भांति आज 18 मई को पुनः यह अवसर उपस्थित हुआ है।

किन्तु इस बार यह आयोजन विगत चार दशकों के आयोजन से कुछ अलग और कई मायनों में खास है। विभिन्न सभ्यताओं और संस्कृतियों में काल सापेक्ष परिवर्तन की साक्षी के एक विश्वसनीय प्रतिनिधि के रूप में संग्रहालयों के लिये वर्तमान समय में आधुनिक समाज को उनके राजनैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक सरोकारों से प्रत्यक्ष रूप से जोड़े रखना एक चुनौतिपूर्ण कार्य है क्योंकि कोविड-19 जनित परिस्थितियों के व्यापक प्रभाव से यह आयोजन अछूता नहीं है।

आज दुनिया भर के तमाम संग्रहालय लॉकडाउन के कारण दर्शकों के लिये बंद हैं ताकि महामारी के प्रसार को रोका जा सके। ऐसे में संग्रहालय जैसी संस्थायें भी आधुनिक तकनीक के सहारे अपने मूल उद्देश्य की ओर सतत अग्रसर रहने और केन्द्रिय भावना को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए सतत प्रतिबद्ध हैं और इंटरनेट/इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों का उपयोग करते हुए ऑनलाईन विजिट (संग्रहालय/विथिका दर्शन), संगोष्ठी (वेबीनार), व्याख्यान, प्रतियोगितायें आदि आयोजित कर अपने दायित्व का समुचित निर्वहन कर रही हैं।

संदर्भः
संग्रहालय विज्ञान का परिचय, लेखक-राहुल कुमार सिंह, प्रकाशक-छत्तीसगढ़ राज्य हिन्दी ग्रंथ अकादमी, 2017
म्यूजियम्स ऑफ इण्डिया, लेखक-महुआ चक्रबर्ती, प्रकाषक-नेशनल बुक ट्रस्ट इण्डिया, 2016

आलेख

श्री प्रभात कुमार सिंह, एवं डॉ शम्भू नाथ याद

रायपुर, छत्तीसगढ़

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