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पद्म श्री विष्णु श्रीधर वाकणकर मल्हार, छत्तीसगढ़ में

पद्मश्री विष्णु श्रीधर वाकणकर की मल्हार (छत्तीसगढ़) यात्रा : एक संस्मरण

बात तब की है जब छत्तीसगढ़ अविभाजित मध्यप्रदेश का हिस्सा था। उज्जैन में एक 1987 में शोध संगोष्ठी का आयोजन हुआ था। मेरे पिताजी स्वर्गीय श्री गुलाब सिंह ठाकुर जी और राष्ट्रपति पुरस्कृत शिक्षक स्वर्गीय श्री रघुनंदन प्रसाद पांडेय जी शिविर में भाग लेने और शोधपत्र वाचन करने उज्जैन गए थे। उज्जैन में आयोजित शोध संगोष्ठी में अनेक मूर्धन्य विद्वान आए हुए थे। पर पिताजी ने दो ही विद्वानों की जिक्र विशेष रूप से किया था। पहले थे पद्श्री डाक्टर विष्णु श्रीधर वाकणकर जी और दूसरे थे राष्ट्रकवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ जी।

शोध-संगोष्ठी के लिए पिताजी ने अपने शोधपत्र के लिए ‘अपीलक’ और ‘प्रसन्नमात्र’ की सिक्कों पर अपना आलेख तैयार किया था। उस समय ज्ञात सिक्कों में ‘अपीलक’ का एकमात्र सिक्का स्वर्गीय श्री लोचन प्रसाद पांडेय जी को महानदी की रेत में प्राप्त हुआ था। और जो दूसरी सिक्का मिला वह मल्हार में मेरे पिताजी स्वर्गीय श्री गुलाब सिंह ठाकुर जी को प्राप्त हुआ था और दूसरा सिक्का जो तांबे से बना एकमात्र सिक्का था वह ‘प्रसन्नमात्र’ जी का था।

जब पिताजी ने अपने शोधपत्र का वाचन किया। तब उसे देखने के लिए श्री वाकणकर जी और स्वर्गीय श्री शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ जी लालायित थे। उन दोनों ने इस तरह के सिक्के होने के बात एक सिरे से नकार दिया था पर जब ‘अपीलक’ का सिक्का तब ‘प्रसन्नमात्र’ के सिक्के के होने की बात भी दोनों ने मानकर उसे दिखाने के लिए कहा।

तब पिताजी ने शर्त रखी कि आप दोनों को मल्हार आना पड़ेगा। और तब वहीं आप लोगों को ‘प्रसन्नमात्र’ के सिक्के के अलावा और भी बहुत कुछ दिखाएंगे। इस बात के लिए स्वर्गीय श्री पांडेय जी ने भी हामी भरी और तब दोनों ही विद्वान मल्हार आने को तैयार हो गए। दुर्भाग्य से ‘सुमन’ जी का समय निर्धारित नहीं हो पा रहा था । इधर पत्राचार कर उन दोनों का अभिनंदन मल्हार में करने की तिथि निर्धारित की गई। पर विभिन्न कारणों से राष्ट्रकवि ‘सुमन’ जी मल्हार नहीं आ पाए।

पद्म श्री डॉ विष्णु श्रीधर वाकणकर मल्हार छत्तीसगढ़ में

नवंबर 1987 में पुराविद पद्मश्री डॉ विष्णु श्रीधर वाकणकर जी मल्हार आए। आप उज्जैन से रेल यात्रा कर पहले बिलासपुर पहुँचे। वहाँ से संतोष भवन के मालिक श्री नारायण आहूजा जी के निजी वाहन से मल्हार आने का कार्यक्रम बना। बिलासपुर से मल्हार की यात्रा में आपके साथ स्वर्गीय श्री श्यामलाल चतुर्वेदी जी, अधिवक्ता श्री साधुलाल गुप्ता जी और आपके एक और अभिन्न मित्र श्री नंदकिशोर शुक्ला जी थे, सभी एंबेसडर कार से मल्हार पहुँचे।

मल्हार पहुँचकर सर्वप्रथम आप देऊर मंदिर गए। वहाँ की मूर्तियों की भव्यता से आप बहुत प्रभावित हुए। देऊर मंदिर के खुले प्रांगण में स्थित भीम और कीचक प्रतिमाओं को देखकर भीम को आपन बलराम की मूर्ति होने की संभावना व्यक्त की तो कीचक की प्रतिमा को आपने अर्धनारीश्वर की प्रतिमा घोषित कर उनके दोनों कानों के आभूषणों के अंतर और दोनों भौहों के मध्य तीसरे नेत्र को प्रमाण बताया।

वहीं प्रांगण में रखी प्रतिमाओं की विलक्षणता से भी प्रभावित हुए बिना रह नहीं सके। फिर आप टीन के शेड में रखी मूर्तियों का भी निरीक्षण अध्ययन करते रहे और उनके बारे में जानकारी देते रहे। पिताजी श्री ठाकुर गुलाब सिंह जी मूर्तियों के बारे में बताते गए। इस दौरान ज्ञान का आदान-प्रदान होता रहा। उस वार्तालाप से सर्वाधिक लाभ मुझे प्राप्त हुआ। मैं पिताजी के साथ अक्सर जाते रहता था। वे मुझे पुरातत्त्व की बारीकियाँ समझाते रहते थे। बात तो यहाँ पुरातत्त्व विज्ञान के उद्भट विद्वान से सीधे ज्ञान प्राप्त करने की थी।

वहाँ काफ़ी समय बीतने के बाद सभी पातालेश्वर मंदिर पहुँचे । पिताजी तो उन्हीं के साथ कार में बैठ गए और मैं साइकिल से थोड़ी देर में पातालेश्वर मंदिर पहुँच गया। वहाँ वे उस मंदिर को देखने लगे जिसका उत्खनन जमींदारी काल में मेरे परदादा स्वर्गीय ठाकुर श्री उत्तम सिंह ने सन् 1913 ईस्वी में करवाया था। हनुमान चबूतरा के उत्खनन के दौरान चबूतरे पे उग आए सेम्हल के विशाल वृक्ष को कटवा रहे थे।

वहाँ स्थित हनुमान जी ने पहले ही स्वप्न में आकर बता दिया था कि उत्खनन के मुखिया को भक्षण करूँगा और स्वप्न की बात सत्य भी हुई । दूसरी तरफ गिरने वाला विशाल सेम्हल का पेड़ घूमकर परदादा के छाती पर गिर गया। और वही उनका देहांत हो गया। पर तब तक पातालेश्वर मंदिर की सौगात मल्हार वालों को मिल गई थी। तभी से उस जगह हर महाशिवरात्रि से 15 दिवसीय मेले का आयोजन भी होता है।

इन बातों को बताते हुए मंदिर की बारीकियों से भी पिता जी सभी अतिथियों को अवगत कराते रहे। सभी मंत्रमुग्ध होकर पातालेश्वर मंदिर की कलात्मकता को देखते रहे। मंदिर को देखने के बाद सभी परिसर में बने टीन के सेड में रखी मूर्तियों का बारीकियों से अवलोकन करते रहे । वे सभी मूर्तियों की विलक्षणता से प्रभावित थे । उन लोगों को पिताजी बताते रहे ।


पद्म श्री डॉ विष्णु श्रीधर वाकणकर मल्हार छत्तीसगढ़ में

वाकणकर जी ने विष्णु जी की प्रतिमा को भारत की सबसे प्राचीनतम विष्णु जी की प्रतिमा होने की बात कही। उसी के सामने रखी प्रतिमा को जिसे हम स्कंदमाता के नाम से जानते थे। जिसका नामकरण स्वर्गीय श्री रघुनंदन प्रसाद पांडेय जी ने अपनी पुस्तक मल्हार दर्शन में किया था को उन्होंने अंबा की प्रतिमा होने की बात कहीं। वे सैकड़ों की संख्या में रखी प्रतिमाओं का बारीकी के साथ अध्ययन करते रहे। वहीं पीपल पेड़ के पास से ही मल्हार के मृदा भित्ति दुर्ग को देखने के बाद सभी डिडिनेश्वरी मंदिर जाकर दर्शन किये।

तत्पश्चात् सभी शासकीय प्राथमिक शाला मल्हार पहुँचे। जहाँ उनके लिए सम्मान समारोह का आयोजन किया गया था। उनकी गाड़ी के पहुँचने से पहले ही स्कूली बच्चे दो कतारों में खड़े हो गए थे। गाड़ी से उतरते ही उनका तिलक लगाकर फिर आरती उतार कर स्वागत किया गया। स्कूल के मध्य हाल में टेबल कुर्सियों से मंच बनाया गया था। मंच पर पहुँचते तक बच्चे दोनों तरफ से फूल बरसाते रहे और करतल ध्वनि के साथ अतिथियों का स्वागत करते रहे।

मुख्य मंच पर श्री वाकणकर जी के साथ श्री नंदकिशोर शुक्ला जी विराजमान हुए एवं उनके दाहिने तरफ स्वर्गीय श्री श्यामलाल चतुर्वेदी जी बैठे थे। अन्य कुर्सियों में श्री नारायण आहूजा जी, अधिवक्ता श्री साधुलाल गुप्ता जी, श्री रघुनंदन साव जी, स्वर्गीय छेदीलाल पांडेय जी, स्वर्गीय श्री गुलाब सिंह ठाकुर जी, श्री शंकर प्रसाद चौबे जी, स्व०श्री रघुनंदन प्रसाद पांडेय जी, श्री राम प्रताप सिंह ‘विमल’ जी, श्रीओम प्रकाश पांडेय जी एवं शिक्षकवृंद बैठे थे।

श्री वाकणकर जी का सम्मान तिलक लगाकर मल्हार के मालगुजार बड़े राजा श्री रघुनंदन प्रसाद साव जी ने किया तथा साल और श्रीफल भेंट कर उन्हें सम्मानित किया । तत्पश्चात् अन्य आगंतुक अतिथियों का माल्यार्पण और पुष्पगुच्छ से स्वागत किया गया । मंच का संचालन अंचल के प्रसिद्ध कवि और शिक्षक श्री राम प्रताप सिंह ‘विमल’ जी कर रहे थे। उन्होंने सम्मान पत्र का वाचन कर उन्हें वाकणकर जी को भेंट किया।

जिस समय सम्मान पत्र का वाचन किया जा रहा था उस समय मंच पर बैठे- बैठे ही वाकणकर जी ने स्वर्गीय पंडित छेदीलाल पांडेय जी की चित्र बनाकर उन्हें भेंट किया। यह उनका कला के प्रति प्रेम को प्रदर्शित करता है । उनकी इस प्रतिभा से मैं बहुत प्रभावित हुआ और मैंने स्वतः ही चित्रकला सीखना प्रारंभ किया। आज जो भी कला के प्रति मुझमें रुची है, उसके पीछे यही वह पल है। वाकणकर जी ही मेरे प्रेरणा स्रोत भी बने और शैल चित्रों की खोज में उन्हीं का आशीर्वाद भी फलित हुआ है।


पद्म श्री डॉ विष्णु श्रीधर वाकणकर मल्हार छत्तीसगढ़ में

अतिथियों ने अलग -अलग भाषण दिया। अंत में वाकणकर जी ने सभा को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि- मल्हार में अध्ययन के लिए बहुत कुछ है। यहाँ आकर मुझे प्रसन्नता हो रही है। मैंने मल्हार के बारे में जितना सुना था, उससे बढ़कर ही पाया। इस स्थल को एक दिन में देखना संभव नहीं है। मैं नन्दमहल परघनिया बाबा और जैतपुर के चैत्य विहार को भी देखना चाहता था पर समयाभाव के कारण नहीं देख पाया।

इसका मुझे बहुत दुख हो रहा है। मेरे पास अभी समय कम है। शीघ्र ही समय निकालकर दो-चार दिनों के लिए मल्हार आऊँगा। तब मल्हार के मृदाभित्ति दुर्ग, जैतपुर के चैत्यविहार, नन्द महल इत्यादि स्थानों को देखूँगा । आप लोगों के द्वारा किए गये मेरे इस अभिनंदन से मैं बहुत अभिभूत हूँ। मैं खासकर पांडेय जी और ठाकुर गुलाब सिंह जी का विशेष आभारी हूँ। जिन्होंने आग्रह कर मुझे मल्हार आमंत्रित किया।

अब मैं अपनी इच्छा से अपना पर्याप्त समय निकालकर दोबारा मल्हार अवश्य ही आऊँगा। अभी वापस लौटना भी है उज्जैन। समय कम है। आप लोगों ने जो इतना प्यार और सम्मान दिया उसका मैं आभारी हूँ। जल्द ही आप सबसे पुनः भेंट होगी। अभी के लिए बस इतना ही । जय मां भारती। आप सबका एक बार पुनःधन्यवाद। मंच के एक तरफ श्री संजीव पांडेय जी और दूसरी तरफ मैं भी खड़े रहकर मंच की व्यवस्था सम्हाल रहा था ।

सम्मान समारोह के बाद वाकणकर जी अतिथियों के साथ स्वर्गीय ठाकुर गुलाब सिंह जी के निजी संग्रहालय को देखने उनके घर गए। जहाँ भोजन की व्यवस्था थी। उनके विशेष आग्रह पर चीला और सील में पिसी हुई टमाटर की चटनी तथा लहसुन मिर्ची की चटनी बनाई गई थी। यह उनना आंचलिक संस्कृति के प्रति प्रेम को प्रदर्शित करता है और सादगी और सहजता को भी।

भोजन के बाद पिताजी ने उन्हें ‘अपीलक’ तथा ‘प्रशन्नमात्र’ का तांबे से निर्मित सिक्के दिखाए। फिर मल्हार से प्राप्त मृदभांडों, मूर्तियाँ, शिल्प, मनके, सील, सीलिंग, तामपत्र आदि पूरावशेषों का अवलोकन कराया। फिर वहाँ से वे पांडेय जी के घर जाकर उनके संग्रह को देखते हुए जलपान किए। वहाँ उन्होंने खासकर ताम्रपत्रों का सेट और व्याघ्रराज के शिलालेख का अवलोकन किया ।

शाम होने वाली थी, उन्हें लौटना था। अतः सभी अतिथि शीघ्रता से पांडेय जी के घर से बाहर निकल कर स्कूल के पास पहुँचे। अतिथियों के विदाई के अवसर पर बड़े पिताजी स्वर्गीय श्रीलालजी सिंह ठाकुर ने मल्हार की एक प्राचीन मूर्ति अतिथियों को भेंट किया। फिर वे सभी विदाई लेते हुए कार से बिलासपुर और फिर उज्जैन लौट गए मल्हार की स्मृतियों को अपने मन और हृदय में संजोए। हम लोग उनके पुनः लौटने की प्रतीक्षा करते रहे।

आलेख

हरिसिंह क्षत्री
मार्गदर्शक – जिला पुरातत्व संग्रहालय
कोरबा, छत्तीसगढ़
मो. नं.-9407920525, 9827189845

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