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गंगा दशहरा स्नान पर्व एवं दान महत्व

गंगा-दशहरा पुण्य-सलिला गंगा का हिमालय से उत्पत्ति का दिवस है। जेष्ठ शुक्ल दशमी को यह पर्व मनाया जाता है। इस दिन गंगा स्नान से दस प्रकार के पापों का विनाश होता है इसलिए इस दिन को गंगा दशहरा नाम दिया गया। इसी दिन मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था।

भागीरथ अपने पूर्वजों की आत्मा का उद्धार करने के लिए गंगा को पृथ्वी पर लेकर आए थे। इसी कारण गंगा को भागीरथी भी कहा जाता है। हिंदू धर्म में गंगा को मां का दर्जा दिया गया है।

हमारी संस्कृति व सभ्यता का विकास इसी के तट पर हुआ है, हमारे पूर्व ऋषि महर्षियों ने इसी के पावन तट पर समाधिस्थ हो वेदों का साक्षात्कार किया। दर्शनशास्त्र के अज्ञात को खोला और उपनिषदों की निर्गुण आयोग की अभिव्यंजना की।

गंगा जल को सालों तक रखने पर भी कोई विकृति नहीं होती है आदि ना होने वाली गंगाजल की वह विशेषताएं भी हैं जो आपको दुनिया की किसी अन्य नदी से जल नहीं मिलने वाली हैं। देशी-विदेशी अनेक चिकित्सक भी गंगाजल के महत्व को स्वीकार करते हुए इसे आंतरिक ग्रहण के दिव्य औषधि मानते हैं।

गंगावतरण भारत की प्रमुख ऐतिहासिक घटनाओं में से एक है। गंगा की महिमा का वर्णन वेदों से लेकर वर्तमान तक के साहित्य में भरा है। भविष्य पुराण कहता है कि, जो मनुष्य इस दशहरा के दिन गंगा के पानी में खड़ा होकर दस बार इस स्तोत्र को पढ़ता है चाहे वो दरिद्र हो, चाहे असमर्थ हो वह भी प्रयत्नपूर्वक गंगा की पूजा कर उस फल को पाता है।

धार्मिक दृष्टि से गंगा के महत्व का वर्णन महाभारत, पुराणों और संस्कृत काव्य से लेकर ‘मानस’, ‘गंगावतरण’ जैसे हिंदी काव्य से होता हुआ आधुनिकतम युग की काव्य कृतियों में वर्णित है। कहा भी गया है-
दृष्ट्वा तु हरते पापं, स्पृष्टवा तु त्रिदिवं नयेत्।
प्रतड़ग्नापि या गंगा मोक्षदा त्ववगाहिता।।

महर्षि वेदव्यास ने महाभारत के अनुशासन पर्व में गंगा का महत्व दर्शाते हुए लिखा है ‘दर्शन’ से, जलपान तथा नाम कीर्तन से सैकड़ों तथा हजार पापियों को गंगा पवित्र कर देती है। इतना ही नहीं ‘गंगाजलं पानं नृणाम’  कहकर इस को सबसे तृप्तिकारक माना है। तुलसी ने ‘गंगा सकल मुद मंगल मूला, कब कुख करनि हरनि सब सूला’ कहकर गंगा का गुणगान किया है। पौराणिक उद्धरणों के अभाव में गंगा में महत्व का प्रसंग अछूता रह जाएगा।

यह माना जाता है इस दिन गंगा में स्नान, अन्न-वस्त्रादि का दान, जप-तप-उपासना और उपवास किया जाय तो 10 प्रकार के पाप (3 प्रकार के कायिक, चार प्रकार के वाचिक और तीन प्रकार के मानसिक) से मुक्ति मिलती हैं। गंगा दशहरा भारत के प्रमुख घाटों जैसे वाराणसी, इलाहाबाद, गढ़-मुक्तेश्वर, प्रयाग, हरिद्वार और ऋषिकेश में मनाया जाता है। जहाँ गंगा नहीं पहुंची, वहां स्थानीय नदियों को ही गंगा रुप मानकर स्नान करने की परम्परा है।

इस दिन प्रत्येक समुदाय गंगा में और यदि गंगा तक जाना संभव नहीं है तो निकटस्थ किसी भी नदी या सरोवर में स्नान करके पुण्य भागी बनता है। स्नान तो घरों में किया जाता है और विशेष रूप से गर्मी की ऋतु में लोग कई बार स्नान करते हैं।

लेकिन स्वास्थ्य विज्ञान के अनुसार यदाकदा नदी स्नान मनुष्य के लिए स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक है गंगा के जल  पर्वतों से कई प्रकार के वनस्पतियां, धातु तत्व और कई गुण वाले बालू कणिकाओं को अपने साथ वह नदी आती है जिसमें स्नान करने से शरीर की कई व्याधियों विनाश हो जाता है।

गंगा भारतीयों के लिए महज एक नदी नहीं, मां समान है। हमारे ऋषियों ने नदियों-तीर्थों को देवत्व दर्जा इस लिए प्रदान किया कि-उनकी हर तरह से सुरक्षा-संरक्षण की हमारी नैतिक जिम्मेदारी तय की जा सके। ये पवित्र स्थल हमारे सभ्यता-संस्कृति के उद्भव-विकास का प्रेरणा श्रोत बने।

गंगा दशहरा के दिन स्नान-दान का विशेष महत्व है। मान्यताओं के अनुसार, गंगा दशहरा के दिन गंगा नदी में स्नान करने से जीवन में आ रही समस्याएं दूर हो जाती हैं। इस विशेष दिन 10 चीजों के दान को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जा रहा है। बता दें कि गंगा दशहरा के दिन- जल, अन्न, वस्त्र, फल, पूजन, श्रृंगार, घी, नमक, शक्कर और स्वर्ण का दान करना बहुत ही शुभ और फलदाई माना जाता है।

गंगा दशहरा हिन्दू धर्म का एक शीतलता प्रदान करने वाला पवित्र पर्व है। जो भारत वर्ष के सभी लोगों को गंगा के महान पुण्य कर्मों के द्वारा शीतलता प्रदान करने की प्रेरणा देता है। गंगाजी भारत की शुद्धता का सर्वश्रेष्ठ केंद्रबिंदु हैं, उनकी महिमा अवर्णनीय है।’ हम सभी को इस पवित्र त्योहार के दिन गंगा की पवित्रता और शुद्धता को बनाये रखने के लिए प्रदूषण से बचाने के लिए संकल्प लेना चाहिए।

आलेख

डॉ अलका यादव,
प्राध्यापक, बिलासपुर छत्तीसगढ़

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