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प्राचीन तालाब संस्कृति और रायपुर के तालाब

पानी सहेजते तालाब सदियों बनते रहे हैं जो अतीत की धरोहर बनें हमारी जीवनचर्या का कभी एक अभिन्न अंग थे। तालाब बनवाना, कुआं खुदवाना एक धार्मिक कार्य था। जहां नदियां नहीं थी वहां तालाब ही सब की प्यास बुझाते थे। छत्तीसगढ़ में हजारों हजार तालाब समय समय पर बनाएं गये। राजा ही नहीं सेठ साहूकार भी तालाब बनवाने में पीछे नहीं थे। तालाब तो गांव समाज के लिए रहते थे। कल के बने तालाब आज भी महत्वहीन नहीं हुए हैं।

तालाब संस्कृति –
रायपुर कभी तालाबों का शहर था। समाज की दैनिक जीवन चर्या इन्हीं तालाबों से जुड़ी थी जो जन जीवन के लिए जरूरी थे। धार्मिक अनुष्ठान, रीति रिवाज सभी तालाबों में संपन्न होते थे। नवरात्रि पर्व में ज्योति कलश विसर्जित होते हैं। गणेश विसर्जन के लिए अलग तालाब बनाए थे। भोजली की भुजरिया में तालाब जरूरी थे।

जन्म के बाद मुंडन संस्कार और मृत्यु संस्कार तालाबों में संपन्न होते हैं। दैनिक जीवनचर्या के लिए बने रहे। हर सुबह तालाब में स्नान कर सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा निभाई जाती है फिर डुबकी लगा तल से दोनों मुट्ठी में मिट्टी उठाकर पार में रख देते थे, तालाब को साफ सुथरा रखने के लिए यह अलिखित विधान बनाया गया है और सभी उसे सर्वोपरि समझते थे।

शहरी परिवेश में तालाबों से निस्तार हटा तो तालाब को पाटकर जमीन हथिया ली गई परंतु भू-जल संवर्धन करने वाले तालाबों की ओर ध्यान नहीं दिया गया। रायपुर शहर के तालाब गायब हुए तो भूजल स्तर तेजी से गिरने लगा। गर्मी में तालाबों की सुध आई तब तक जल सहेजने वाले कई तालाबों का अस्तित्व ही खत्म हो गया।

सौ साल पहले 40 तालाब –
100 साल पहले 1891 में जब रायपुर की जनसंख्या 23,095 थी तब रायपुर में 40 तालाब विद्यमान थे। कोई सघन अमराई से घिरा था, कोई निस्तार के लिए तालाब जिसमें कमल खिलते थे। कुछ तालाबों का पानी पिया जाता था। तालाब इतने स्वच्छ थे कि उन की तलहटी में पड़ा एक सिक्का भी साफ-साफ देखा जा सकता था।

तालाब ऐसे ही नहीं बने थे। रायपुर के तालाबों के निर्माण में पानी की आवक और उनकी निकासी की समुचित व्यवस्था की गई थी। आज के रायपुर में थोड़ी तेज बरसात होते ही कई रास्ते पानी से लबालब हो जाते हैं। वर्षाजल को समेटने वाले, उन्हें प्रवाह देने वाले तालाबों को बढ़ते शहरीकरण में पाट दिया। तालाब एकाएक गायब नहीं हुए। शहर बढ़ता गया और तालाब धीरे-धीरे अतिक्रमण के चपेट में आते गए।

रायपुर का प्रसिद्ध ‘बूढ़ा तालाब’ को कलचुरी वंश के नरेश भुवनेश्वर सिंह देव ने 1660 में बनवाया था। इसके साथ किले का निर्माण करवाया था। तब बूढ़ा तालाब के तीनों ओर पक्के घाट भी बनाये गये थे। राजा ब्रह्मदेव ने बूढ़ा तालाब के निकट वृद्धेश्वर महादेव की स्थापना की। कालांतर में यह बूढ़ा तालाब के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

1893 में बाबू साधु चरण प्रसाद रायपुर आए थे जिन्होंने ‘भारत भ्रमण’ में लिखा है, “बूढ़ा तालाब का आकार एक वर्ग मील है जिसके चारों ओर रमणीय बाग है।” 1950 में पंडित शारदाचरण तिवारी ने तालाब के बीच टापू का निर्माण कराया जहां अभी विवेकानंद जी की मूर्ति स्थापित की गई है। आज यह विवेकानंद सरोवर कहलाता है।

1685 में मेरू सिंह उर्फ उम्मेद सिंह देव रायपुर की गद्दी पर बैठे जिन्होंने एक तालाब खुदवाया जिसे ‘राजा तालाब’ कहा जाता है। इनके पुत्र बलवीर सिंह ने राजा तालाब में पक्के घाट बनवाएं। इसी दौरान विशाल ‘राजबंधा तालाब’ बनाया गया जो अब पूरी तरह से पाटा जा चुका है और अब राजबंधा मैदान के नाम से जाना जाता है।

सन् 1700 के दौरान महंत कृपाल गिरी ने ‘कंकाली तालाब’ का निर्माण कराया जिसके बीचों-बीच कंकाली मंदिर बनाया। तालाब के चारों ओर पक्के घाट बनाकर पार में बगीचा बनवाया। कंकाली तालाब से एक भूमिगत सुरंग बनवाई गई जिससे तालाब के पानी निकासी होती थी और जलमग्न मंदिर खुल जाता था। साल में एक बार कंकाली मंदिर में देवी दर्शन होता था।

कलचुरी वंश रायपुर के अंतिम शासक अमरदेव 1705 से 1741 तक रहे। राजा के दो दीवान कोका प्रसाद राय और मलसाय दीवान थे। कोका प्रसाद ने एक तालाब खुदवाया। यह ‘कोको तालाब’ अब खोखो तालाब के नाम से जाना जाता है। खोखो तालाब के तीन और पत्थरों की सीढ़ियां व दीवारें बनी थीं इस तालाब में गणेश की मूर्तियां विसर्जित की जाती थी। दीवान मालसाय ने भी एक तालाब खुदवाया जो ‘मलसाय तालाब’ कहलाता है।

‘आमा तालाब’ और ‘सरजू बांधा तालाब’ जगन्नाथ साव ने बनवाया इनकी चार पीढ़ियों ने अनेक तालाब रायपुर में खुदवाय और उनका सौंदर्यीकरण भी किया। शोभाराम साव ने एक और तालाब बनाया जिसे ‘नवा तरिया’ कहा जाता है। ‘अग्रवाल जाति का इतिहास’ के लेखक डॉ.चंद्र कुमार अग्रवाल की कविता रायपुर के तालाबों की विशेषता को कुछ इस तरह बताती है।

नवा तरिया नाम के,
वाको दीन कोड़ाय।
तलैया के काम को,
हाथी थाह ना पाए।।
आमा तरिया नाम के,
शोभाराम कोड़ाय।
रायपुर अस बस्ती में,
सागर के सुख पाय।
तीन तरफ पक्का बंधे, दक्षिण में गऊघाट।
कोनन में शिव मंदिर,
पारन में अमराई।।
दाऊ तरिया नाम के,
दाऊ दीन्ह कोड़ाय।
एक तरफ पार को,
पर्वत से निहराए ।।
निरमल जल तालाब को, पारन में अमराई ।
पक्की बंधी है पाचरी,
नाइन में सुख पाई।।

शहर बढ़ा, तालाब पटे-
21वीं सदी के दौर में शहर में 52 तालाब थे जिनमें से अब कई तालाब अस्तित्व में नहीं हैं। रायपुर के तालाब निर्माण की सुनियोजित व्यवस्था थी जिसमें बरसात का पानी तालाबों को भरता हुआ खेतों की प्यास बुझाता था। नगर नियोजन में इसका ध्यान नहीं रखा गया जिसके कारण अब बरसात के दौरान शहर के कई रिहायशी इलाकों में पानी भर जाता है।

रायपुर के तालाब और उनके जल प्रवाह प्रणाली पर एक नजर डालें। रायपुर ‘जेल तालाब’ का ओवरफ्लो पानी राजबंधा तालाब में आता था। राजबंधा से छलका पानी ‘लेंडी तालाब’ में जाता था। लेडी इरविन की याद में बना यह तालाब पाटा जा चुका है जहां अब शास्त्री बाजार बन गया है। इस तरह बरसात का पानी जब तलैया से होता हुआ बूढ़ा तालाब की ओर प्रवाहित होता था।

कंकाली तालाब का पानी भी भूमिगत सुरंग से निकलकर दूसरे तालाब में जाकर बूढ़ा तालाब की ओर प्रवाहित होता था। बूढ़ा तालाब का पानी महाराज बंद तालाब में जाता था। यहां से पानी खेतों की ओर जाता था।

21वीं सदी में तालाब पटे-
2005 में ताल तलैया का शहर रायपुर के निवेश क्षेत्र में 130 तालाब 340 हेक्टेयर में फैले थे। बढ़ते शहर के गिरते भूजल स्तर के चलते पारिस्थितिकी संतुलन की समस्या बढ़ती चली गई। भविष्य को देखते हुए तालाबों की सुरक्षा के लिए उनके आसपास की बस्तियों को हटाए जाने, तालाबों का गहरीकरण करने के साथ उनका विस्तार करने पर विचार किया गया। तालाबों में निस्तार की सुविधा बढ़ाने की योजना बनाई गई। योजनाएं तो बनी मगर धरातल पर कभी नहीं उतरी और तालाब धीरे-धीरे अतिक्रमण की चपेट में आते एक एक करके गायब होते रहे।

रायपुर का बूढ़ा तालाब जो कभी एक वर्ग मील में फैला था वर्तमान में सिमटकर 32-33 एकड़ का रह गया है। विवेकानंद रायपुर आए थे उन्हीं की याद में इस तालाब का नामकरण विवेकानंद सरोवर किया गया है। बूढ़ा तालाब की जमीन को हथियाने के लिए कई राजनैतिक पैंतरे अपना कर योजनाएं बनती गई और हर बार बूढ़ा तालाब से जमीन हथिया ली गई।

‘राजबंधा तालाब’ में प्रेस कांप्लेक्स और दवा बाजार बन गये हैं जिसे आज रजबंधा मैदान के नाम से जाना जाता है। हर बरसात में यहां पानी भर जाता है। शंकर नगर तालाब अब उद्यान बन गया है। ‘जेल तालाब’ नक्शे से गायब हो गया है। ‘कुकरी तालाब’ पाटा जा चुका है। ‘मच्छी तालाब’ अतिक्रमण की भेंट चढ़ अब आधा भी नहीं रह गया है।

हांडी पारा का ‘नया तालाब’ अतिक्रमण में गुम हो गया। ‘जोरा तालाब’ का अब नाम रह गया है! ‘भैया तरिया’ अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुका है यह थोड़ा बहुत बचा है। ‘राजातालाब’ धीरे-धीरे विलुप्त हो रहा है! ‘लेडी इरविन’ के नाम पर बनाया गया ‘लेंडी तालाब’ शास्त्री बाजार में तब्दील हो गया है। फाफाडीह का मालगुजारी तालाब पूरी तरह खत्म हो गया है।

‘नरसैया तालाब’ स्टेडियम की भेंट चढ़ चुका है! पुरैना के ‘लच्छी तालाब’ में मकान तन गए हैं। खमतराई का ‘पनखत्ती तालाब’, ‘लक्ष्मी डबरी,’ ‘मुनहो तालाब’, नरसैया तालाब’ पाट दिये गये। इन तालाबों में बस्ती बस गई है। ‘कुकरी तालाब’ को आवासीय उपयोग हेतु पाट दिया गया है।

लाखे नगर का ‘तुरकी तालाब’ गायब हो गया। ‘कटोरा तालाब’ के पार में अतिक्रमण हो गया है जो धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है। जोरा पारा तालाब चारों ओर से मकानों से घिर गया है। रामसागर पारा का ‘रमसगरी तालाब’ का नामोनिशान नहीं रहा।

तालाबों पर राजनीति-
रायपुर के बचे खुचे तालाब इस तरह घिर गए हैं कि उन में पानी की आवक और निकासी की राह नहीं होने के कारण तालाब का पानी सड़ने लगा है। तालाबों में बदस्तूर कचरा फेंका जा रहा है। तालाब सफाई के नाम चलते भ्रष्टाचार के कारण तालाब बदबू मारने लगे हैं।

जैसे जैसे शहर बढ़ता गया तालाब अतिक्रमण का शिकार बनते चले गए और तालाब गायब होते गये। तालाबों की जमीन हड़पने के लिए राजनीति की योजना बनाते रहे और तालाब पाटे जाते रहे। तालाब के नाम पर राजनीतिक पुरस्कार भी लेते रहे। पहले के लोग अपना ‘परलोक’ सुधारने के लिए तालाब खुदवाते थे, आज के लोग अपने भौतिक लोक में बढ़ोतरी करने के लिए तालाबों पर राजनीति कर रहे हैं।

लोग कागज़ों में तालाब सहेज कर पुरस्कृत हो रहें हैं। रायपुर शहर का पानी उतर रहा है। गर्मी में लोगों को पानी मिलता रहे, प्यास बुझती रहे जिसके लिए तालाबों का उद्धार करने वाली ऐसी कोई योजना नहीं है। जल संरक्षण और पारिस्थितिकी संतुलन को बनाए रखने वाले तालाबों की चिंता गिने-चुने लोगों को है लेकिन तथाकथित पुरस्कार पाने वालों के नक्कारखाने में इनकी तूती चाह कर भी कुछ बयां नहीं कर सकती।

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One comment

  1. गिरीश पंकज

    बहुत सुंदर लेख।