Home / इतिहास / भारत माता के भक्त – भगत सिंह

भारत माता के भक्त – भगत सिंह

(28 सितम्बर, जयन्ती पर विशेष)

जागो तो एक बार जागो जागो तो
जागे थे भगत सिंह प्यारे
असेंबली में लग गए नारे
ठप हो गयी सरकार जागो जागो तो . . .

इस उत्साहवर्धक गीत के पश्चात् भैया प्रसंग बताने के लिए सामने आए।
‘हमारे बिगड़े दिमागों में बलिदानी विचार अच्छे है।
हमें पागल ही रहने दो, हम पागल ही अच्छे है।’

“हाँ। हमारे स्वतंत्रता सेनानी, हमारे क्रातिंकारी सर्वसाधारण लोगों की दृष्टी में ‘पागल’ ही थे! वैभवसंपन्न व्यक्तिगत जीवन जीने के लिए आवश्यक सारी सुविधाएँ होने पर भी जो उसमें संतुष्ट नहीं थे! ब्रिटिशों का खुलकर विरोध करने के परिणामों को भलीभांति समझते हुए भी उन्होंने सारी कठिनाइयाँ मोल ली। सारे सुखों को ठुकराकर, शारीरिक कष्ट और मानसिक यातनाओं का हँसते हँसते स्वीकार करने वालों को संसार क्या समझेगा? संसार के लिए तो वे पागल ही थे। ब्रिटिशों की दृष्टी में तो सम्पूर्ण रूप से उन्मत!

परन्तु इतिहास तो ऐसे ‘पागलों’ ही से रचा जाता है। जो देशबांधवों के ‘कल’ के लिए अपना ‘आज’ त्याग देते है। ऐसा ही एक बालक १९१९ में जालियनवाला बाग हत्याकांड से व्यथित हो कर बारह मिल पैदल चलकर जालियनवाला बाग पहुँच गया था। वहा पहुँचकर कुछ घंटों पूर्व भारतीय निःशस्त्र लोगों पर गोलियाँ बरसाकर ब्रिटिशों ने जो नरसंहार किया था उसका अनुभव कर रहा था। उसके मन में अनेक प्रश्न थे।

हमारे देश में बाहर से आकर ये विदेशी लोग क्यों राज करते हैं? इनके अत्याचार हम क्यों सहते हैं? अपनी मातृभूमि को स्वतंत्र करने के लिए क्या करना चाहिए? यह बालक था भगत सिंह। उनके पिता थे किशन सिंह संधू और माता का नाम था विद्यावती कौर। उनके जन्म के समय उनके क्रांतिकारी पिता और चाचा जेल से छूटे थे इसलिए दादी ने उनका नाम रखा भागोवाला अर्थात भाग्यवान। आगे चलकर उनका नाम भगत सिंह हो गया। उनका जन्म 28 सितम्बर, 1907 में पंजाब के लायलपुर के बंगा ग्राम में हुआ। उनकी पढ़ाई दयानन्द आंग्ल वैदिक हायस्कूल में हुई तत्पश्चात लाहौर के नैशनल कॉलेज में हुई। वे नवजवान भारत सभा के माध्यम से देशहित के कार्य में जुटे थे। बाद में वे चन्द्रशेखर आजाद, सुखदेव, राजगुरु जैसे अनेक देशभक्त युवकों के सम्पर्क में आए। और फिर हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन से जुड़ गए।

१९२८ में साइमन कमीशन के विरोध में देशभर अनेक प्रदर्शन हो रहे थे। स्थान-स्थान पर रैलियां निकाली जा रही थीं। साइमन कमीशन का बहिष्कार किया जा रहा था। अहिंसक प्रदर्शनकारियों पर ब्रिटिशों ने लाठीचार्ज किया। श्री लाला लाजपत राय पर भी लाठियां बरसाई गईं। इस लाठीचार्ज में लालाजी को गम्भीर चोटें आईं और उनकी मृत्यु हो गई। तब लाहौर के सुप्रिटेंडेंट थे मिस्टर स्कॉट और असिस्टंट सुप्रिटेंडेंट थे मिस्टर सैंडर्स।

ब्रिटिशों के इस नीच व्यवहार से समाज में अंग्रेज शासन को उखाड़ फेंकने की भावना प्रबल हो गई। क्रांतिकारियों ने इस राष्ट्रीय अपमान का बदला लेने का निश्चय किया। 17 दिसम्बर, 1928 को सैंडर्स को गोलियां मारकर उसे परलोक पहुंचा दिया। राजगुरु और भगत सिंह ने गोलियां दागने का काम किया। तथा चन्द्रशेखर आजाद और अन्य क्रान्तिकारी उनके सहायक थे। सैंडर्स की वहीं पर मृत्यु हो गई। क्रान्तिकारी वहां से बच निकले। सम्पूर्ण लाहौर शहर स्तब्ध रह गया। पुलिस ने सारे शहर में नाकाबन्दी कर दी। क्रान्तिकारियों की सर्वत्र तलाशी ली जाने लगी परन्तु वे उन्हें ढूंढ नहीं पाए।

दूसरे दिन सर्वत्र पोस्टर्स लगाये गए जिसमें लिखा था सैंडर्स को मारकर लालाजी की हत्या का बदला ले लिया गया। पुलिस हताश तथा अपमानित हो गई। इसके बावजूद भगत सिंह, राजगुरु या आजाद उनके हाथ नहीं लगे। इतना ही नहीं ये सारे उनकी कड़ी निगरानी से वेष बदलकर उनके आँखों के सामने से लाहौर से हावड़ा तक जा पहुंचे। भगत सिंह ने अपने केश काट लिए और दाढ़ी भी मुंडवा ली थी। अंग्रजों की तरह कपड़े पहन रखे थे और सिर पर एक फेल्ट हैट भी पहन रखी थी।

उनके साथी क्रान्तिकारी भगवती चरण वोरा की धर्मपत्नी दुर्गा भाभी, भगत सिंह के साथ उनकी पत्नी बनकर जा रही थी। साथ मंत दुर्गा भाभी का बेटा शची भी था। नौकर बने थे राजगुरु। इस घटना से अंग्रेज सरकार बौखला गई। परन्तु देशवासियों को क्रान्तिकारियों के रूप में आशा की किरण दिखने लगी। जनमानस में भारतीय स्वतंत्रता का आत्मविश्वास जाग गया। क्रान्तिकारियों के प्रति सहानुभूति जाग गई।

युवा क्रांतिकारियों के लिए समाज अनुकूल होता देखकर अंग्रेजों ने सेन्ट्रल असेम्बली में दो बिल पास करने की योजना बनाई। पब्लिक सेफ्टी बिल की आड़ वे क्रान्तिकारी गतिविधियों पर पाबंधी लगाना चाहते थे। और दूसरे बिल के रूप में औद्योगिक क्षेत्र में मजदूरों के विरोध करने के अधिकार को छिनना चाहते थे। क्रान्तिकारी इस दमन नीति के विरोध में आवाज उठाना चाहते थे।

वे जान गए थे कि अंग्रेज शासन शान्तिपूर्ण रूप से चलाए जानेवाले आंदोलनों को क्रूरतापूर्वक कुचल देती है। यह दृष्ट, दमनकारी, असंवेदनशील शासन को समझे इस तरह के सामर्थ्य के साथ वे अपनी बात बताना चाहते थे। इसलिए सेन्ट्रल असेम्बली में बम फेंकने की योजना बनाई गई ताकि इस धमाके से अंग्रेज सरकार जाग जाए और भारतीय सामर्थ्य और शक्ति को जान जाए।

८ अप्रेल १९२९ को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त असेंबली की पब्लिक गैलरी में अपने स्थान पर बैठ गए। अब दोनों बिलों की घोषणा होने ही वाली थी, तो भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त अपनी जगह पर खड़े हो गए। भगत सिंह ने उसी समय एक बम फेका। उस जोरदार धमाके के कारण लोग डर के मारे इधर-उधर भागने लगे। और फिर दूसरा बम भी फेका गया। पिस्तौल से गोलियाँ भी दागी गयी। परन्तु बम और गोलियों से जीवित हानी न हो इसका पूरा ध्यान रखा गया था। बम के धुंए से सारा वातावरण भर गया। धुंए के सहारे दोनों क्रांतिकारी बचकर निकल सकते थे। किन्तु वे वहीं पर खड़े रहे। साथ में लाये पत्रक (जिसमें बम धमाके के पीछे रही भूमिका स्पष्ट की गयी थी) वहाँ पर फैला दिए। ‘इन्कलाब जिंदाबाद’ के नारे लगाते रहे। और बाद में स्वेच्छा से बंदी बन गए।

दो वर्षों तक केस चलता रहा। अंततः भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु तीनों को फाँसी की सजा सुनाई गयी। २४ मार्च, १९३१ यह दिन फाँसी देने के लिए निश्चित कर दिया गया था। परन्तु समाज में क्रांतिकारीयों को जिस तरह से समर्थन और प्रोत्साहन मिल रहा था उससे अंग्रेज सरकार पूरी तरह से डर गयी थी। इसलिए २३ मार्च को ही तीनों क्रांतिकारियों को फाँसी दे दी गयी। मृत्यु का वरण करने के लिए जाते हुए तीनों ख़ुशी से गा रहे थे –
मेरा रंग दे बसंती चोला। माये रंग दे बसंती चोला।

शाम को ७.३० का समय था। भारत माता के तीनों सुपुत्रों ने मृत्यु का हँसते-हँसते स्वीकार किया और वे अमर हो गए। स्वतंत्रता पाने के लिए भारत माता के अनेक सुपुत्रों ने प्राणों की आहुति दी है। उसका संरक्षण और संवर्धन करना यह अब अपना दायित्व है।”

भैया ने जो बताया उसकी अंतिम पंक्ति सबके मन और मस्तिष्क में बार-बार गूंज रही थी।

आलेख

प्रियम्वदा पांडे
जीवनव्रती कार्यकर्ता,
विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी

About hukum

Check Also

वनवासी युवाओं को संगठित कर सशस्त्र संघर्ष करने वाले तेलंगा खड़िया का बलिदान

23 अप्रैल 1880 : सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी तेलंगा खड़िया का बलिदान भारत पर आक्रमण चाहे सल्तनतकाल …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *