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क्रांति दिवस 30 सितम्बर : सलिहागढ़

सन 1930 के जनक्रांति “जंगल सत्याग्रह” का केंद्र बिंदु रहा सलिहागढ़, छत्तीसगढ़-ओडिशा सीमा क्षेत्र में जोंक नदी के तट पर बसे नगर पंचायत खरियाररोड के दक्षिण-पूर्व दिशा में लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह क़स्बा अब ओडिशा के नुआपाड़ा जिला के अंतर्गत है जो पूर्व में महासमुंद तहसील का हिस्सा था।

सन 1936 के राज्य पुनर्गठन के दौरान जोंक नदी के दक्षिण भाग को रायपुर जिला के महासमुंद तहसील से अलग कर कालाहांडी जिला में शामिल किया गया था। बताया जाता है कि तोड़फोड़ का कारण सत्याग्रहियों की संगठित समूह था जो आसपास के जमींदारी में सक्रिय थे।

सन 1928 में खरियार जमींदारी के जागरूक नागरिकों ने रायपुर के डिप्टी कमिश्नर को जमींदार के विरुद्ध बेगार लेने तथा अत्यधिक लगान लेने की शिकायत किया था। जिसके कारण नागरिकों पर अत्याचार अधिक बढ़ गया और जंगल से निस्तारी के लिए अधिक टैक्स लादा गया।

किसानों से चराई के लिए दिसंबर-जनवरी माह में टैक्स लेने की परंपरा थी जिसे बदलकर अगस्त-सितम्बर माह में वसूली किया जाने लगा था। जो किसान टैक्स नहीं जमा कर रहे थे उनके मवेशी जब्त किये जा रहे थे।

आसपास के जमींदारी एवं खालसा क्षेत्रों में ब्रिटिश वन अधिनियम 1862 के विरोध में जंगल सत्याग्रह प्रारम्भ हो चूका था जिसकी अनुगूँज इस क्षेत्र में भी सुनाई देने लगी थी। किसान उसे तर्ज पर ” जंगल सत्याग्रह ” प्रारम्भ करने का निर्णय ले चुके थे किन्तु उसके पूर्व वे एक बार खरियार के जमींदार से चर्चा करना चाहते थे।

परंपरानुसार दशहरा पर्व पर खरियार जमींदार आम जनता की फरियाद सुनते और समस्याओं का समाधान करते थे इसलिए लगभग एक हजार नागरिक दशहरा के 2 दिन पूर्व 30 सितम्बर को सलिहागढ़ में एकत्र हुए थे। सभा के सभापति सलिहा के मालगुजार श्री मदन सिंह थे तथा केजुदास बाबा की सक्रिय भागीदारी थी जो महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन से जुड़े हुए थे।

सभा के दौरान अचानक पुलिस कप्तान, सर्किल इंस्पेक्टर, सार्जेंट का 35 सिपाहियों की टुकड़ी के साथ आगमन हुआ, ये अधिकारी सशस्त्र थे। इन्होने सभा स्थल को घेर लिया और सभापति से पूछताछ प्रारम्भ किया। सभा में कुछ लोग गांधी टोपी लगाए हुए थे तथा कुछ लोग तिरंगा झंडा भी रखे थे जिसे देखकर अधिकारी भड़क गए। उपस्थित सभी लोगों की तलाशी लेकर सबके सामान जब्त कर लिए गए। तत्पश्चात बेंत प्रहार किया जाने लगा।

केजुदास बाबा की पिटाई उपरांत ब्रिटिश सरकार की जय बोलने कहा गया जिसे उसने इंकार कर दिया परिणाम स्वरूप उसके दोनों हाथ बांधकर पिटाई करते हुए थाना के रास्ते ले जाया जाने लगा। रास्ते में भीड़ जमा हो चूकी थी, जिसे हटाने हवाई फायर भी किया गया। निकट के ग्राम पटपरपाली पहुँचने पर कुछ लोगों ने पुलिस दल पर हमला कर दिया और दोनों पक्षों के बीच संग्राम छिड़ गया।

इस भगदड़ के बीच एक सिपाही ने केजुदास की चोंटी खींचकर उखाड़ दिया जिससे वह वहीँ बेहोश हो गए। सलिहा गाँव में घर-घर तलाशी होने लगी और पुलिसिया लूट प्रारम्भ हो गई, नागरिकों को मारा-पीटा गया।

सलिहागढ़ क्रांतिकारियों के वंशजों का सम्मान

कुल 29 सत्याग्रहियों को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया। सभी कैदी सत्याग्रही बाद में गाँधी-इरविन समझौता में रिहा हुए थे। इस घटना के बाद खरियार जमींदारी के लगभग 200 गांवों में पुलिस का अत्याचार हुआ लोगों को बेंतों से पीटा गया, जुर्माना वसूला गया।

सेंट्रल प्रोविंस कांग्रेस कमिटी ने घटना की जांच के लिए 4 सदस्यीय समिति गठित किया जिसके अध्यक्ष स्व ठाकुर प्यारेलाल सिंह एवं सदस्य सर्व श्री यति यतनलाल, पं भगवती प्रसाद मिश्र एवं मौलाना रउफ सदस्य थे। इस जांच समिति से तमोरा सत्याग्रह एवं कौड़िया सत्याग्रह के दौरान हुए पुलिसिया अत्याचार की जांच भी किया था।

जांच समिति 19 अप्रेल 1931 से 23 मई 1931 के बीच 15 प्रमुख गांवों में कैंप कर पीड़ितों का बयान दर्ज कर विस्तृत प्रतिवेदन तैयार किया था। जब जांच दल खरियार क्षेत्र का दौरा कर रहा था तब रायपुर सेंट्रल जेल 29 सत्याग्रही बंदी थे

कुछ वर्ष पूर्व तनावट नुआपाड़ा के कलेक्टर की पहल पर ओडिशा सरकार ने सलिहागढ़ में सत्याग्रहियों के सम्मान में भव्य स्मारक का निर्माण किया है जिसमें 29 में 20 सत्याग्रहियों के नाम अंकित हैं जिन्हें छानबीन में पहचान कर लिया गया था शेष 9 सत्याग्रहियों की पहचान नहीं हो सकी।

सलिहागढ़ के क्रांतिकारियों की स्मृति में कार्यक्रम

सत्याग्रहियों की सूची जिनके नाम स्मारक में अंकित हैं –
1- केजू दास चुहरी 2 – लीला वती चुहरी
3 – रामलाल देवांगन पड़कोड़ 4 – रामा साहू सलिहा
5 – केन्दु कुर्मी चनाबेड़ा 6 – लक्ष्मण दास गोड़फुला
7 – गांड़ाराय पगारपानी 8 – सखाराम साहू पलसागुड़ा
9 – राजाराम सहरा चनाबेड़ा 10 – भुजबल साहू परसखोल
11 – दुकालू गोंड़ परसखोल 12 – बीरबल साहू सलिहा
13 – हलधर गांड़ा सलिहा 14 – महाजन घासी सलिहा
15- गणेश पूरी सलिहा 16 – बैसाखू गांड़ा सलिहा
17 – बजारु साहू झालबहाल 18 – कोटघरिन कुर्मी चनाबेड़ा
19 – कार्तिक सहरा सलिहा 20 – जयमति सहरा सलिहा

विगत 2015 से इसी स्मारक स्थल में क्षेत्रीय संगठन द्वारा ” क्रांति दिवस ” का आयोजन किया जाता है जिसमें क्षेत्र के सांसद-विधायक सहित जनप्रतिनिधि एवं सत्याग्रहियों के वंशज शामिल होते हैं | इन पंक्तियों के लेखक को 2016 में आयोजित समारोह में भाग लेने का सुअवसर मिला था।

सन्दर्भ – ठाकुर प्यारेलाल सिंह समिति के प्रतिवेदन पर आधारित श्री आशीष सिंह जी का आलेख।

आलेख

डॉ.घनाराम साहू, रायपुर छत्तीसगढ़ी संस्कृति एवं इतिहास के अध्येता

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