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भगवा ध्वज लहराए : सप्ताह की कविता

भगवा ध्वज लहराए, भगवा ध्वज फहराए।
सप्त सिंधु की लहर-लहर में, नव ऊर्जा भर जाए।

घर-घर के आंगन में गूँजे,
उत्सव की किलकारें।
द्वार-द्वार में फूल बिछे हों,
नाचें झूम बहारें।

हर्षित मन का कोना कोना, मंद मंद मुस्काए।
भगवा ध्वज लहराए, भगवा ध्वज फहराए।

अंबर-धरती, दसों दिशा में,
वेद मंत्र का गुंजन हो।
अमर पुत्र उस सन्यासी का,
भाव भरा पद वंदन हो।

भारतवर्ष हमारा फिर से, गुरु का दर्जा पाए।
भगवा ध्वज लहराएं, भगवा ध्वज फहराए।

जन सेवा ही प्रभु की सेवा,
हो संकल्प हमारा।
बहे धार शुचि समरसता की,
उर में छोड़ किनारा।

दीन-दुखी जन की सेवा का, अवसर फिर-फिर आए।
भगवा ध्वज लहराए, भगवा ध्वज फहराए।

गीतकार

चोवा राम वर्मा ‘बादल’
हथबंद, छत्तीसगढ़

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