हाय विधाता इस जगती में,
तुमने अधम बनाये क्यों?
नरभक्षी दुष्टों के अंतस,
कुत्सित काम जगाये क्यों ?
उन अंधों के तो नजरों में,
केवल भोग्या नारी है।
उन मूर्खों को कौन बताये,
बेटी सबसे न्यारी है।।
नारी के ही किसी उदर से,
जन्म उन्होंने पाया है ।
और कलंकित कर नारी को,
माँ का दूध लजाया है।।
बलात्कार करने वालों की,
बहनें भी तो होती होंगी।
नीच भ्रात के कर्म देखकर,
वे भी तो रोती होंगी।।
कैसा बना समाज घिनौना,
कौन बनाने वाले हैं ?
बेटी की आँखों में आँसू,
और हृदय में छाले हैं।।
अमराई में कोयल बैठी,
डरती तान सुनाने में।
घबराती है प्यारी मैना,
घर से बाहर जाने में।।
घात लगाये घोर शिकारी,
गली गली से ताक रहे।
भोंक रहे कुत्ते गलियों में ,
चुप रहने को कौन कहे।।
आज बेटियाँ सिसक रही हैं,
दुष्टों के व्यवहारों से ।
और खोखले बनावटी सब,
राजनीति के नारों से ।
हे भगवन!अब आग लगाकर,
बेटी मारी जाती है।
गली-गली घड़ियाली आँसू,
खूब बहायी जाती है।।
रणचंडी बन युद्ध करेंगी,
दोष नहीं कोई देना।
महिषासुर को मार गिराने,
दौड़ेगी नारी सेना।।
रक्तबीज का खून पियेगीं,
थर-थर सब थर्रायेगें ।
शुंभ निशुंभ बिदारेगीं वो,
रोक नहीं तब पायेगें ।।
तभी सुरक्षित रह पायेगी,
जग जननी की मर्यादा।
बलात्कारियों को झट मारो,
साँस मिले मत अब ज्यादा ।।
सप्ताह का कवि