नारायणपुर का प्राचीन मंदिर अपनी मैथुन प्रतिमाओं के लिए प्रसिद्ध है। कसडोल सिरपुर मार्ग पर ग्राम ठाकुरदिया से 8 किमी की दूरी पर नारायणपुर ग्राम में यह 11 वीं शताब्दी का मंदिर स्थित है। यह पूर्वाभिमुखी मंदिर महानदी के समीप स्थित है। इसका निर्माण बलुआ पत्थरों से हुआ है।
इस मंदिर की भित्ति में सांप एवं नेवले की लड़ाई का अंकन किया गया है, इस प्रसंग ने मुझे अपनी ओर आकर्षित किया। सांप और नेवले की कहानी महाभारत से लेकर हितोपदेश तक उपलब्ध होती है। बचपन में सांप एवं नेवले की लड़ाई खूब देखी परन्तु वर्तमान में वन्य प्राणी कानून होने के बाद सांप एवं नेवले की लड़ाई दिखाने वाले दिखाई नहीं देते।
नारायणपुर (कसडोल-छत्तीसगढ़) के मंदिर की भित्ति में सांप एवं नेवले की लड़ाई का खूबसूरत अंकन किया गया है। नेवला सांप का परम्परागत शत्रु है, कितना भी बड़ा एवं विषैला सर्प हो, अगर नेवला उसके पीछे पड़ गया तो प्राण लिए बिना छोड़ता नहीं है।
विदेशी वैसे भी भारत को सांपों एवं साधुओं का देश कहते हैं। इनके द्वारा खींचे गए स्नेक चार्मर्स के चित्र बहुधा मिलते हैं। सांपों के प्रति आकर्षण एवं भय दोनो रहता है। विदेशी मंत्र मुग्ध होकर सांपों का खेल देखते हैं।
शिल्पकार ने अपनी छेनी से मंदिर की भित्ति में इसी रोमांच का अंकन किया है।
संसार में दिखाई देने वाली छोटे छोटे को दृश्यों का शिल्पांकन कर शिल्पकार ने अपनी विवेकशीलता का परिचय दिया है। हितोपदेश में नेवले की कई कहानियाँ हैं, जिसमें एक कहानी नेवले के स्वामीभक्ति एवं परोपकार की भी है जो इस प्रकार है………
उज्जयिनी नगरी में माधव नामक ब्रा्ह्मण रहता था। उसकी ब्राह्मणी के एक बालक हुआ। वह उस बालक की रक्षा के लिये ब्राह्मण को बैठा कर नहाने के लिये गई। तब ब्राह्मण के लिए राजा का पावन श्राद्ध करने के लिए बुलावा आया। यह सुन कर ब्राह्मण ने जन्म के दरिद्री होने से सोचा कि “जो मैं शीघ्र न गया तो दूसरा कोई सुन कर श्राद्ध का आमंत्रण ग्रहण कर लेगा।
आदानस्त प्रदानस्त कर्तव्यस्य च कर्मणः।
क्षिप्रमक्रियमाणस्य कालः पिबति तद्रसम्।।
शीघ्र न किये गये लेन- देन और करने के काम का रस समय पी लेता है।
परंतु बालक का यहाँ रक्षक नहीं है, इसलिये क्या करुँ ? जो भी हो बहुत दिनों से पुत्र से भी अधिक पाले हुए इस नेवले को पुत्र की रक्षा के लिए रख कर जाता हूँ। ब्राह्मण वैसा करके चला गया। वह नेवला बालक के पास आते हुए काले साँप को देखकर, उसे मार कोप से टुकड़े- टुकड़े करके खा गया। वह नेवला ब्राह्मण को आता देख लहु से भरे हुए मुख और पैर किये शीघ्र पास आ कर उसके चरणों पर लोट गया।
फिर उस ब्राह्मण ने उसे वैसा देख कर सोचा कि इसने मेरे बालक को खा लिया है। ऐसा समझ कर नेवले को मार डाला। बाद में ब्राह्मण ने जब बालक के पास आ कर देखा तो बालक आनंद में है और सांप मरा हुआ पड़ा है तो उस उपकारी नेवले को देख कर मन में घबरा कर बड़ा दुखी हुआ।
कामः क्रोधस्तथा मोहो लोभो मानो मदस्तथा।
षड्वर्गमुत्सृजेदेनमर्जिंस्मस्त्यक्ते सुखी नृपः।।
(काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार तथा मद इन छः बातों को छोड़ देना चाहिये, और इसके त्याग से ही राजा सुखी होता है।)
यह प्राचीन मंदिर आज भी उसी शान से खड़ा है, जैसा हजार साल पहले रहा होगा। यहां के एक कमरे में कई भग्न प्रतिमाएं भी रखी हुई हैं। इसके साथ ही इस मंदिर में मिथुन प्रतिमाओं की उपस्थिति होने के कारण यह और भी आकर्षक हो गया है। वैसे इस मंदिर का अधिक प्रचार नहीं होने के कारण अधिक लोग यहां तक नहीं पहुंच पाते।
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