जनजातीय कबीलों के अपने सांस्कृतिक रीति रिवाज होते हैं, जो उनके कबीले में पीढ़ी दर पीढ़ी चले आते हैं तथा ये कबीले परम्परागत रुप से अपनी संस्कृति से बंधे होते हैं। दक्षिण कोसल में बहुत सारी जनजातियाँ निवास करती हैं, उनमें से एक बैगा जनजाति है। बैगा जनजाति का विस्तार छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले से लेकर मध्यप्रदेश के मंडला, बालाघाट एवं डिंडौरी जिले तक फ़ैला हुआ है।
वैसे तो सभी जातियों-जनजातियों की अपनी मृतक संस्कार परम्पराएँ पर बैगाओं की मृतक संस्कार परम्परा में एक विशेष कार्य होता है जिसका जिक्र किया जाना आवश्यक है। यदि बैगाओं में परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाती है तो वे पुराने मकान को तोड़कर, स्थान परिवर्तन कर नये स्थान पर नया मकान बनाते हैं। ज्ञात हो कि बैगा परिवार एकल रहना अधिक पसंद करता है, ये दूर दूर पर बसते हैं।
इस परम्परा के पीछे रहस्य का उद्घाटन करते हुए इतवारी मछिया बैगा बताते हैं कि जिस घर के सदस्य की मृत्यु हो जाती है तो वह भूत बनकर उस घर के जीवित सदस्यों को तंग करता है, परेशान करता है। इसके साथ ही जिस स्थान पर उस सदस्य की मृत्यु होती है, वहां रहने वालों को उसकी याद आती है।
इतवारी मछिया कहते हैं जिस घर में सदस्य की मृत्यु होती है, वहाँ पड़ोसी लोग कुछ दिन उसके साथ रहते हैं, जब तक अन्य मृतक संस्कार संपन्न न हों जाएं। इसलिए मृतक स्थल को वे मुर्दावली भी कहते हैं। मृतक संस्कार के पश्चात ये अपना घर छोड़ देते हैं।
फ़िर घर बनाने के लिए उपयुक्त स्थान की तलाश की जाती है, मनमाफ़िक स्थान मिलने पर पुराने घर को तोड़कर नये घर का निर्माण किया जात है। इसी तरह की नया घर बनाने की कोरवा जनजातीय के लोगों की भी परम्परा है।
नया घर बनाने के लिए स्थान चयन पुराने घर से एक-दो किलोमीटर की दूरी पर किया जाता है। अगर स्थान उपलब्ध नहीं है पुराने घर के पास ही नया घर बनाया जाता है। नया घर बनाने से पहले स्थान पर शुभ-अशुभ का विचार किया जाता है।
बैगा शुद्ध सिंह बताते हैं कि नये स्थान पर परिवार का मुखिया साबूत चावल से भरा एक बड़ा दोना, महुआ की शराब लेकर मंत्र उच्चारण करता है। उस स्थान पर दारु का छींटा दिया जाता है तथा निश्चित स्थान पर चावल का दोना रख दिया जाता है।
तीन दिनों के पश्चात उस स्थान पर पुन: जाते हैं और दोने में रखे हुए चावल का परीक्षण किया जाता है, अगर दोने के चावल टूट जाते हैं तो उस स्थान पर घर नहीं बनाया जाता तथा पुन: किसी अन्य स्थान पर परीक्षण किया जाता है। चावल के दाने का टूटना अनिष्ट की आशंका होती है इसलिए जिस स्थान परीक्षण पर चावल के दाने खंडित नहीं होते वहां घर का निर्माण किया जाता है।
मृतक के अंतिम संस्कार के समय उसकी कोई भी वस्तु स्मृति के रुप में नहीं रखी, उसकी फ़ोटो, कपड़ा या अन्य वस्तुएं दाह संस्कार के समय मृत देह के साथ ही जला दी जाती हैं क्योंकि मृतक की वस्तुएं देखने पर उसकी याद न आए।
घर की स्त्रियों की शुद्धि के लिए उन पर एक लोटा गर्म जल डाला जाता है, जिससे मृतक परिवार की स्त्रियाँ शुद्ध हो सकें। वर्तमान आधुनिक एवं भौतिक संक्रमण के दौर में बैगा वनवासी अपनी परम्परा अक्षुण्ण रखे हुए हैं।
आलेख एवं फ़ोटो
गोपी सोनी
कुई-कुकदूर
जिला – कवर्धा, छत्तीसगढ़