छत्तीसगढ़ का धमधा ऐतिहासिक तथ्यों और खूबियों के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन सबसे अनोखा यहां का त्रिमूर्ति महामाया मंदिर है। जी हां, यह अनोखा इसलिए क्योंकि यहां तीन देवियों का संगम है, जो दूसरी जगह देखने को नहीं मिलता। यहां एक ही गर्भगृह में तीन देवियों- महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की स्थापना है। तीन देवियों के साकार रूप एकसाथ देश में बिरले स्थानों पर ही दिखाई देते हैं। जम्मू-कश्मीर के वैष्णोदेवी मंदिर में ये तीनों देवियां पिंड रूप में विद्यमान हैं, जबकि यहां साकार रूप में हैं। इसी स्थापना लगभग 425 साल पहले गोंड राजा ने की थी।
धमधा के गोंड़ पंच भैया राजा
धमधा के गोंड़ शासकों को पंच भैया राजा कहा जाता था, यह रतनपुर राज की एक जमीदारी थी, इनकी ख्याति दूर-दूर तक थी। इस वजह से छत्तीसगढ़ में रतनपुर के बाद धमधा सबसे प्रचलित नगर में से एक था। इसकी पुष्टि ब्रिटिश अधिकारी ए.ई. नेल्सन के लेख से होता है, जो दुर्ग जिला गजेटियर में 1910 में प्रकाशित किया गया था। उन्होंने लिखा है कि गोंड़ भाईयों ने धमधा को अपना निवास बनाया और यह ग्राम बसाया। यह रतनपुर राज का सबसे महत्वपूर्ण स्थान समझा जाने लगा।
धमधा की महत्ता इस बात से भी साबित होती है कि “रायपुर की दिशा बताने के लिए धमधा-रायपुर” कहा जाता था। दुर्ग गजेटियर के अनुसार रतनपुर के राजा ने पागल हाथी को बस में लाने के कारण सरदा परगना इनाम में दिया था। ये गोंड़ सरदार पंचभैया के नाम से भी प्रसिद्ध थे। कहा जाता है कि ये पांचों भाई एक-दूसरे के ऊपर चढ़कर युद्ध करते थे, जिससे अच्छे-अच्छे योद्धा पस्त हो जाते थे। उन्होंने रतनपुर राज के लिए अनेक युद्ध में अपनी भागीदारी दी।
त्रिमूर्ति महामाया मंदिर
इसी गोंड जमींदारी के दसवें राजा थे दशवंत सिंह। सन् 1589 में ही वे कम आयु में ही राजा बन गए थे। उनकी माता राजपाट में विशेष योगदान देती थीं। धमधा के आयुर्वेद में विशेषज्ञ रहे स्व. रामजी अग्रवाल की पांडुलिपि के अनुसार महारानी को रात में देवी ने स्वप्न दिया कि मैं महाकाली हूँ। किले के प्रवेश सिंहद्वार के पास भूमिगत हूं। जमीन खोदकर मेरी स्थापना करो।
जब वहां खुदाई की गई तो एक मूर्ति मिली, जो मुख से नाभि तक थी और खुदाई की गई तो उसका छोर नहीं मिला। इसके कुछ दिन बाद रानी को फिर से स्वप्न आया कि महालक्ष्मी की प्रतिमा धमधा से सात किलोमीटर दूर शिवनाथ नदी के पास है। उसे लाकर स्थापित करो तथा तीसरी मूर्ति का स्वप्न आया कि वह इमली पेड़ के नीचे है। राजा ने तीनों मूर्ति की स्थापना कराई। जिसके बाद यह त्रिमूर्ति महामाया मंदिर कहलाने लगा।
महामाया मंदिर के ठीक सामने प्राचीन सिंह द्वार है, जो धमधा के प्राचीन और वैभवशाली इतिहास से परिचित कराता है। छत्तीसगढ़ में जितने भी किले या गढ़ हैं, उनमें इस तरह का भव्य प्रवेश द्वार नहीं मिलता है। बलुआ पत्थरों से निर्मित इस प्रवेशद्वार में भगवान विष्णु के दशावतारों की प्रतिमाएं अंकित हैं। शिल्प की दृष्टि से छत्तीसगढ़ के दशावतार प्रतिमाओं में इनका महत्वपूर्ण स्थान है।
प्रवेश द्वार के दाईं ओर कच्छप, वराह, नरसिंह, वामन और बाईं ओर परशुराम, राम-बलराम, बुद्ध और कल्कि अवतार का सुंदर अंकन मिलता है। इस तरह की दशावतार प्रतिमाएं लक्ष्मण मंदिर सिरपुर, राजीव लोचन मंदिर राजिम, बंकेश्वर मंदिर तुम्माण (कोरबा), रामचंद्र मंदिर राजिम में भी हैं, जो अलग-अलग कालखंड का प्रतिनिधित्व करती हैं।
यह मंदिर धार्मिक आस्था का केंद्र है। लोग यहां संतान प्राप्ति के लिए मन्नत मांगने आते हैं। गोंड राजाओं ने यहां बड़ी संख्या में तालाब खुदवाये। छह कोरी छह आगर तरिया के नाम से धमधा प्रसिद्ध है। यह तालाब नगर की सुरक्षा के लिए खुदवाए गए थे, जिसमें खतरनाक मगरमच्छ होते थे।
एक दिवसीय पर्यटन की दृष्टि से धमधा एक आदर्श पर्यटन केंद्र है। यहां कई प्राचीन मंदिर, तालाब एवं ऐतिहासिक इमारतें हैं। यहां 80 के दशक से मनोकामना ज्योति कलश की स्थापना की जा रही है। यहां ज्योति-जंवारा की विसर्जन शोभायात्रा दर्शनीय रहती है। लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण इस बार इसे स्थगित कर दिया गया है। यहां अन्य दर्शनीय स्थल भी हैं।
बूढ़ादेव
महामाया मंदिर के ठीक पीछे गोंडवाना समाज का बूढ़ादेव मंदिर निर्मित है। इसके सामने पत्थरों से बने 12 स्तंभों का एक मंडप भी है। गोंडवाना महासभा ने किला परिसर में दो नए भवन भी बनाए हैं, जिससे किला में जाने का रास्ता संकरा हो गया है।
राजा किला और महामाया मंदिर परिसर की सुरक्षा हेतु इनके चारों ओर गहरी खाई का निर्माण किया गया था, जो आज बूढा तालाब के नाम से जाना जाता है। 12 एकड़ से अधिक क्षेत्र में फैला यह तालाब अक्सर जल से लबालब भरा रहता है। हवा के थपेड़ों से इनमें बनने वाली लहरें लोगों को आनंदित कर देती हैं।
प्राचीन शिव मंदिर व चतुर्भुजी मंदिर
चौखड़िया तालाब के तट पर दो प्राचीन मंदिर हैं। इनमें से एक मंदिर का शिखर खंडित है। शिव मंदिर में शिललिंग और चतुर्भुजी मंदिर में विष्णु की मूर्ति स्थापित है। ये दोनों प्राचीन स्मारक छत्तीसगढ़ शासन के पुरातत्व विभाग व्दारा संरक्षित हैं। इन दोनों मंदिरों को नगर पंचायत ने पेंट से पुताई करवा दी थी, जिसे पुरातत्व विभाग ने रासायनिक संरक्षण (केमिकल ट्रीटमेंट) कर मंदिरों को उनके मूल स्वरूप में संरक्षित किया है।
धमधा नगर के मध्य में चौखड़िया नाम का एक कुंड है, जो बहुत प्राचीन है। इसके बीच में एक स्तंभ है, जिसके ऊपर चार सर्पफण का अंकन है जो आपस में कलात्मक ढंग से गुंथे हुए हैं। इनके सिर पर मणि एवं कलश की आकृति बनी है। इस स्तंभ में पहले एक ताम्रपत्र भी जड़ा हुआ था, जिसे शरारती तत्वों ने उखाड़ दिया।
ताम्रपत्र के किनारे के टुकड़े स्तंभ में आज भी नजर आते हैं। इस तरह के कृत्यों से न केवल धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचती है, बल्कि पुरातात्विक साक्ष्य भी खत्म हो जाते हैं। इसी तरह दानी तालाब में एक स्तंभ है, जिसमें एक ताम्रपत्र लगा है, जो सुरक्षित है। इन ताम्रपत्रों से तालाबों के निर्माण व जीर्णोद्धार संबंधी महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
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