बस्तर अपनी जनजातीय संस्कृति एवं प्राकृतिक सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध है । बस्तर का प्रवेश द्वार केसकाल ही बस्तर की जनजातीय कला एवं संस्कृति, धरोहर के रूप में अनेक प्राचीन भग्नावशेष, कल-कल छल-छल करते झरने एवं जलप्रपात बस्तर की प्राकृतिक एवं पुरातात्विक वैभव का आभास करा देता है। केसकाल में …
Read More »कोडाखड़का घुमर का अनछुआ सौंदर्य एवं शैलचित्र
बस्तर अपनी नैसर्गिक सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध है। केशकाल को बस्तर का प्रवेश द्वार कहा जाता है, यहीं से बस्तर की प्राकृतिक सुन्दरता अपनी झलक दिखा जाती है। बारह मोड़ों वाली घाटी, ऊँचे-ऊँचे साल के वृक्ष, टाटमारी, नलाझर, मांझिनगढ़ और कुएमारी जैसे अनेक मारी (पठार) हैं। मारी में अनेक शैलचित्र, …
Read More »माँझीनगढ़ के शैलचित्र एवं गढ़मावली देवी जातरा
भारतीय ग्राम्य एवं वन संस्कृति अद्भुत है, जहाँ विभिन्न प्रकार की मान्यताएं, देवी-देवता, प्राचीन स्थल एवं जीवनोपयोगी जानकारियाँ मिलती हैं। सरल एवं सहज जीवन के साथ प्राकृतिक वातावरण शहरी मनुष्य को सहज ही आकर्षित करता है। ऐसा ही एक स्थल छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिला मुख्यालय से 60 कि.मी.की दूरी पर …
Read More »बरहाझरिया के शैलाश्रय और उसके शैलचित्र
कोरबा जिला 20°01′ उत्तरी अक्षांश और 82°07′ पूर्वी देशांतर पर बसा है। इसका गठन 25 मई 1998 को हुआ, उसके पहले यह बिलासपुर जिले का ही एक भाग था। यहाँ का क्षेत्रफल 712000 हेक्टेयर है। जिले में चैतुरगढ़ का किला, तुमान का शिव मंदिर और पाली का शिव मंदिर भारत …
Read More »सुअरलोट के शैलचित्र : क्या सीता हरण यहीं हुआ था?
छत्तीसगढ़ राज्य अपनी पुरातात्विक सम्पदाओं के लिए गर्व कर सकता है। छत्तीसगढ़ राज्य में ऐसा कोई भी स्थल नहीं है, जहाँ पुरासम्पदा न हो। जैसे-जैसे इनकी खोज आगे बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे ही नये-नये तथ्य प्रकाश में आ रहे हैं। यहाँ सभ्यता के विकास से पूर्व की भी गाथाएँ …
Read More »बावनमारी में लिंगो पेन (देव) का जन्म स्थल लिंग दरहा
पर्वतीय उपत्यकाओं और सुरम्य वन प्रांतर में बसा सम्पूर्ण केशकाल क्षेत्र प्रकृति एवं पुरातत्व के अतुल वैभव से भरा पड़ा है । इस क्षेत्र में अनेक स्थानों पर प्राचीन मंदिरों के भग्नावशेष, पाषाणकालीन अवशेष, प्रतिमाओं एवं शैलचित्रों आदि की प्राप्ति हुई है, जो बाहरी दुनियाँ से अज्ञात है या …
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