स्वाधीनता के लिये संघर्ष जितना महत्वपूर्ण है उतना ही महत्वपूर्ण है समाज में स्वत्व जागरण का अभियान। यदि स्वत्ववोध नहीं होगा तो स्वतंत्रता की चेतना कैसे जाग्रत होगी। अपने लेखन से स्वत्व चेतना का यही अभियान चलाया आचार्य चतुरसेन शास्त्री ने। उन्होने अपना सार्वजनिक जीवन स्वतंत्रता संग्राम से आरंभ किया …
Read More »रानी हंसादेवे सहित नौ सौ क्षत्राणियों का जौहर
27 सितम्बर 1310 सिवाणा में पहला जौहर मध्यकाल में हुये भीषण विध्वंस और नरसंहार के बीच रोंगटे खड़े कर देने वाली ऐसी अगणित वीरगाथाएँ हैं जिनमें अपने स्वत्व और स्वाभिमान की रक्षा केलिये क्षत्रियों ने केशरिया बाना धारण कर बलिदान दिया और क्षत्राणियों ने अपनी सखी सहेलियों सहित अग्नि में …
Read More »रानी रंगा देवी एवं इतिहास का सबसे बड़ा जौहर
9 जुलाई 1301 से 11 जुलाई 1301 को रणथंबोर में जौहर सवाई माधोपुर से लगभग छह मील दूर रणथम्भौर दुर्ग अरावली पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा विकट दुर्ग है। रणथम्भौर का वास्तविक नाम रन्त:पुर है, अर्थात ‘रण की घाटी में स्थित नगर’। इस दुर्ग का निर्माण राजा सज्जन वीर सिंह नागिल …
Read More »सिसोदिया वंश मार्तण्ड महाराणा प्रताप
संस्कृति और इतिहास में राजस्थान नाम का उल्लेख प्राचीन काल में नहीं मिलता। वर्तमान राजस्थान के क्षेत्र में प्राचीन काल से अनेक राजनैतिक इकाइयों का उल्लेख मिलता है, जिनमें मत्स्य (जयपुर का उत्तरी भाग) सपादलक्ष (जयपुर का दक्षिणी भाग) कुरुक्षेत्र (अलवर का दक्षिणी भाग) शूरसेन (भरतपुर, धौलपुर तथा करौली) शिव …
Read More »मध्ययुगीन भारतीय भक्ति परम्परा की सिरमौर मीरा बाई
मध्ययुगीन भक्ति परम्परा की सिरमौर मीरा बाई उस युग की एकमात्र महिला भक्त संत है जिन्होंने सगुण भक्ति के कृष्णोपासक के रूप में हिंदी साहित्य में अपनी अमिट छाप ही नही छोड़ी वरन उस युग के समाज पर प्रश्न उठाकर समाज की दिशा व दशा निर्धारित करने का बीड़ा भी …
Read More »जनजातीय संस्कृति में पगड़ी का महत्व : बस्तर
भारतीय संस्कृति में पगड़ी का काफी महत्व है। प्राचिनकाल में राजा-महाराजा और आम जनता पगड़ी पहना करती थी। पगड़ी पहनने का प्रचलन उस काल से लेकर आज तक बना हुआ है। पगड़ी को सम्मान का प्रतीक माना जाता है। सिर पर बान्धने वाले परिधान को पगड़ी, साफा, पाग, कपालिका शिरस्त्राण, …
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