सनातन संस्कृति में देवी – देवताओं की पूजा -अर्चना का इतिहास आदि काल से ही रहा है। भारत की संस्कृति विश्व में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। भारत वर्ष में अलग -अलग जगहों पर मंदिरों में विराजी आदि देवी शक्तियों की गाथाएं और जन श्रुतियाँ जनमानस के साथ आस्था और विश्वास से जुड़ी है।
महासमुंद जिले के लम्बर मुख्यालय से महज 03 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में ग्राम पोटापारा के बीहड़ जंगल मे विराजी आदि शक्ति माता सुंदरा दाई का स्थान है जिसकी पूजा -अर्चना कर लोग अपने आप को धन्य मानते हैं तथा दर्शन करने लोग दूर -दूर से आते हैं।
बाबा श्याम लाल, सुंदरा दाई के मंदिर की प्राचीनता के विषय में कहते हैं कि “मैं बाल्य काल से ही सुंदरा दाई के ऊपर विश्वास और श्रद्धा होने के कारण इस स्थान पर आता जाता रहा हूँ। 17 वर्ष से अब मैं इसी जंगल में अपना जीवन ब्यतीत कर रहा हूँ।”
उन्होंने आगे ये भी बताया कि “आज जिस जगह पर मन्दिर है वहां कभी एक स्तम्भाकार विग्रह था जिसे हमारे पूर्वज सुंदरा दाई के रुप में पूजते थे। आज लोगों की विश्वास से यहां अब मन्दिर बन गया है।”
मन्दिर से 1 किलो मीटर की दूरी पर बीहड़ जंगल के बीच गुफा है। लोग पहले उस गुफा में नहीं जा पाते थे अब जनमानस के सहयोग से गुफा जाने के लिए 500 से अधिक पैड़ियां बन गई है और लोग गुफा में सुंदरा दाई के दर्शन के लिए गुफा में जाते हैं।
सुंदरा दाई का जब से मन्दिर बना है तब से यहां एक कलश हमेशा बारो माह जलता है। यहाँ दूर दूर से भक्त पहुंचते है और अपनी मांग पूरी कर अपने को धन्य मानते हैं। यहां पर नवरात्रि पर अब आस्था के ज्योति कलश जलाए जाते हैं। माता की पूजा -अर्चना होती है। बलि प्रथा नहीं है। ऐसा मानना है कि जो भी सुंदरा दाई के पास आते हैं उनकी मांगे पूरी होती है।
सुंदरा दाई का स्थान बीहड़ वन में है, जहाँ जाने के लिए कच्ची सड़क है। बरसात के दिनों में परेशानियों का सामना करना पड़ता है। बीहड़ वन में गुफा के पास एक कुंड है। लोग गुफा में जाते हैं और पूजा अर्चना कर उस तालाब में नहाते हैं। ऐसा मानना है कि कुंड में स्नान करने से कष्ट दूर हो जाते हैं।
सुंदरा दाई की पूजा -अर्चना में पिछले 17 वर्ष से बाबा श्याम लाल अपनी सांसारिक -पारिवारिक गृहस्थ से लगभग अब दूर हो गए हैं और अपना पूरा समय मन्दिर और पहाड़ों के बीच गुजार रहे है यही उनकी दैनिक जीवन मे शामिल है.
पोटापारा गाँव के समीप लोहरीडिपा के रहने वाले बाबा श्याम लाल, माता के पुजारी है। न्होंने माता की सेवा में अपना जीवन न्यौछावर कर दिए हैं यही नही उनके घर में भी सुंदरा दाई की कलश जलता है उनके परिवार के लोग पूजा अर्चना करते है।
सुंदरा दाई के मंदिर बनने के पहले उस गुफा तक पहुंना बहुत मुश्किल था बीहड़ जंगल से गुजर कर जाना पड़ता था पर अब यहां जाना बहुत आसान हो गया है। सीढ़ियों से चलकर वहां तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। गुफ़ा में विग्रह की पूजा बैगा लोग करते हैं।
किंवदन्ति है कि एक बैगा यहां गर्भ गृह में पूजा अर्चना करने गया था और वह पूजा अर्चना कर माता को भोग लगाकर वापस गुफा से निकल गया था। भूलवश बैगा का चाकू गुफ़ा में छूट गया तो उसे लेने फिर गुफ़ा में गये।
गुफ़ा निवासी देवी जब भोग लगे प्रसाद का सात बंटवारा करती तो वह आठ भाग हो जाता था तब देवी ने कहा कि “जो भी जीव यहाँ है, सामने आए।” तब बैगा वहां उपस्थित हुआ और तब बैगा को गुफ़ा में बंद कर दिया गया।
उसके चाकू को देवी ने फेंक दिया और वह सात जगह गुफा के अंदर टकराकर गिरा जिस सात जगह चाकू गिरा था उन जगहों पर आज भी पानी भरा है रहता है और गुफा के अंदर दूरी छोर से जाने की रास्ता है। गुफा के अंदर कुंड है। जहाँ लोग पहुंचकर स्नान करते हैं। यहां पुन्नी पर मेला भरता है।
आलेख