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पौराणिक आस्था का मेला शिवरीनारायण

आदिकाल से छत्तीसगढ अंचल धार्मिक एवं सांस्कृतिक केन्द्र रहा है। यहां अनेक राजवंशों के साथ विविध आयामी संस्कृतियां पल्लवित व पुष्पित हुई हैं। यह पावन भूमि रामायणकालीन घटनाओं से भी जुड़ी हुई है। यही कारण है कि छत्तीसगढ में शैव, वैष्णव, जैन एवं बौध्द धर्मों का समन्वय रहा है।

वैष्णव धर्म के नगर के रुप में शिवरीनारायाण का नाम प्रमुख रुप से सामने आता है। बिलासपुर से 64 किलोमीटर दूर मैकल पर्वत श्रृंखला की तलहटी में बसे इस नगर में कलचुरिकालीन स्थापत्य कला के सर्वाधिक मंदिर हैं। शिवरीनारायण को नारायण या पुरषोत्तम क्षेत्र भी कहा जाता है। यहां के सभी मंदिर पूर्ण रुप से भगवान विष्णु को समर्पित हैं, जिनकी भव्यता देखते ही बनती है।

महानदी, शिवनाथ व जोंक नदी के संगम पर बसे इस नगर का एक अलग ही महत्व व इतिहास रहा है। इस नगर का नाम शिवरीनारायण क्यों पड़ा, इस विषय में कुछ किंवदतियां हैं, जिनके अनुसार यह स्थान रामायण कालीन रामभक्त शबरी की तपोभूमि था। यहां शबरी ने राम को जूठे बेर खिलाये थे। अत: शबरी के नाम पर यह शबरीनारायण हो गया। यहां शबरी का ईंटों से बना एक प्राचीन मंदिर भी है। इसके अलावा भी बहुत से प्रमाण हैं, जो इस तथ्य को पूर्ण रुप से साबित करते हैं।

नर नारायण मंदिर

यह मंदिर लगभग दो हजार पांच सौ साल पुराना है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस मंदिर का निर्माण राजा शबर ने करवाया था। इस मंदिर की खासियत यहां की स्थापत्यकला व मूर्तिकला है। यहां पर बहुत बारीक-बारीक चित्रों का सुंदर अलंकरण किया गया है। संपूर्ण मंदिर को कलियों व फूलों से सजाया गया है। यह मंदिर गुंबदाकार रुप में है।, जो कुछ-कुछ श्रीयंत्र सा प्रतीत होता है। मंदिर के प्रवेशद्वार के बांई ओर भगवान लक्ष्मीनारायण की अति प्राचीन मूर्ति है। इस मूर्ति के चारों ओर भगवान विष्णु के सभी अवतारों का बारी-बारी से अत्यन्त सूक्ष्म व सुन्दर चित्रांकन किया गया है। थोड़ा आगे बढने पर मुख्य मंदिर के प्रवेश द्वार पर दंड व चवर लिए भगवान विष्णु के परिकर शंखपुरुष और चक्रपुरुष खड़े हैं।

नर नारायण मंदिर

शंखपुरुष के ठीक ऊपर गंधर्व व किन्नरों का सूक्ष्म चित्रांकन है। चक्रपुरुष के ऊपर बालि व सुग्रीव का सुंदर अलंकरण किया गया है। पूरे प्रवेश द्वार में गंगा, यमुना, सरस्वती, नाग, नागिन, कछुआ, मगर आदि का अत्यन्त दर्शनीय चित्रांकन किया गया है। यहां पर भगवान विष्णु के द्वारपाल जय-विजय का भी उल्लेख किया गया है और उनके साथ में त्रिवेणी अर्थात गंगा, यमुना, सरस्वती की मूर्तियां हैं। प्रवेश द्वार के ठीक ऊपर भगवान गणेश की दुर्लभ प्रतिमा है। इसके ऊपर भगवान विष्णु के सभी अवतारों का मनोहारी चित्रण किया गया है। मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने पर भगवान नारायण की विलक्षण मूर्ति के दर्शन होते हैं। यह मूर्ति खुदाई के दौरान प्राप्त हुई थी। इस मूर्ति के बगल में लक्ष्मण की मूर्ति स्थापित है। भगवान नारायण की मूर्ति बलुआ पत्थर की बनी हुई है।

केशव नारायण मंदिर

बारहवीं शताब्दी का यह मंदिर नर नारायण मंदिर के ठीक सामने है। इस मंदिर में भगवान विष्णु की अत्यंत प्राचीन भव्य प्रतिमा है। इस मूर्ति के चारों ओर भगवान विष्णु के सभी अवतारों का सुंदर अंकन है। सामान्यत: मंदिरों के प्रवेश द्वार पर गणेश की प्रतिमा होती है, पर इस मंदिर के प्रवेश द्वार पर भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा है। इस मंदिर में दो स्तंभ हैं। एक स्तंभ में सुन्दर चित्रकारी की गई है, जबकि दूसरे स्तंभ को खाली छोड़ दिया गया है। प्राचीन मान्यता के अनुसार भगवान नारायण के पैर के पास जिस स्त्री का चित्रांकन किया गया है, वही शबरी है।

चंद्रचूड़ महादेव

नर नारायण मंदिर के बाजू में शिवजी का एक अत्यन्त प्राचीन मन्दिर है, जिसे चंद्रचूड़ महादेव का मंदिर कहा जाता है। चेदि संवत 919 का बना यह मंदिर नारायण के इस क्षेत्र में अपवाद के रुप में लिया जा सकता है। इस मंदिर में आदिकालीन शिलालेख भी प्राप्त हुए हैं। 

जगन्नाथ मंदिर

सन 1927 में बना यह मंदिर नरनारायण मंदिर से कुछ कदम की दूरी पर है। मंदिर की रचना कुछ-कुछ पुरी के जगन्नाथ मंदिर के सदृश जान पड़ती है। इस मंदिर के समीप ही एक वट वृक्ष है, जिसे ‘कृष्णवट’ या ‘माखन कटोरी’ नाम से संबोधित किया जाता है। इस पेड़ की खासियत यह है कि इसका हर पत्ता दोने के आकार का होता है। यह वृक्ष अपने आप में अनोखा व इकलौता है माघपूर्णिमा को हर साल यहां एक भव्य मेला लगता है, जिसमें शामिल होने लोग दूर-दूर से आते है। यह मेला लगभग 15 दिनों तक चलता है। प्राचीन मान्यता के अनुसार माघपूर्णिमा में हर साल भगवान जगन्नाथ यहां आते हैं। महाशिवरात्रि को मेले का अंत होता हैं। उस दिन यहां के लोगों का उत्साह देखते ही बनता है।

त्रिवेणी संगम

त्रिवेणी संगम

शिवरीनारायण में तीन नदियों महानदी, शिवनाथ व जोंक नदी का त्रिवेणी संगम है। संगम का जल अत्यंत स्वच्छ रहता है और यहां आने वाले सैलानी इसका पूर्ण आनंद उठा सकते हैं।

खरौद का शिवमंदिर

शिवरीनारायण से 3 कि.मी. दूर खरौद शिव मंदिर व शैवमठ के कारण शिवाकांक्षी कहलाता है। यहां शिव के विराट स्वरुप की पूजा दूल्हादेव के रुप में की जाती है। शिव के साथ शक्ति एवं कंकालिन देवी की पूजा ग्राम देवी के रुप में की जाती है। नगर के प्रवेश द्वारों पर तालाब एवं उनके किनारे भव्य मंदिर स्थित है। इसमें भगवान लक्ष्मणेश्वर मंदिर, पूर्व में शीतला माता का मंदिर, उत्तर में रामसागर का देवघरा तालाब और हनुमान की कीर्तिपताका, दक्षिण में शबरी देवी का कलात्मक मंदिर है तथा मध्य में इन्दलदेव का मंदिर पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है। इन मंदिरों में सबसे महत्वपूर्ण प्राचीन मंदिर है लक्ष्मणेश्वर महादेव का मंदिर।

लक्ष्मणेश्वर महादेव

सिरपुर के चंद्रवंशी राजाओं द्वारा बनवाये गये इस मंदिर में एक खण्डित शिलालेख में इन्द्रबल तथा ईशानदेव नामक दो शासकों का उल्लेख है। यहां ई. सन 1192 के एक शिलालेख में कलिंगराज से रत्नदेव तृतीय तक हैहयों की पूर्ण वंशावली का विवरण है। 1300 साल पुराने 8वीं शताब्दी के इस मंदिर के गर्भगृह में एक अदभुत व अनोखा शिवलिंग है, इसमें सवा लाख छिद्र है। इस संबंध में प्राचीन मान्यता है कि लक्ष्मण लंका दहन के पश्चात जब वापस अयोध्या लौट रहे थे तब वे कुष्ठ रोग से पीड़ित हो गये और यहीं गिरे। उन्होंने सवा लाख शिवलिंग बनाकर भगवान शंकर का आहवान किया, तब शंकर भगवान ने उन्हें ठीक कर दिया। यहां हर वर्ष फरवरी माह में मेला लगता है और महाशिवरात्रि में बड़ा मेला लगता है। यह भी कहा जाता है कि शिवलिंग के सवा लाख छिद्र में सवा लाख चावल के दाने चढाने से हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है।

आवास व्यवस्था बिलासपुर (64 कि.मी.) में छत्तीसगढ भवन, सर्किट हाउस, तथा उच्च कोटि के निजी होटल्स उपलब्ध है।

वायु मार्ग : रायपुर (154 कि.मी.) निकटतम हवाई अड्डा है जो मुंबई, दिल्ली, नागपुर, भुवनेश्वर, कोलकाता, रांची, विशाखापट्नम एवं चैन्नई से जुड़ा हुआ है।

रेल मार्ग : हावड़ा-मुंबई मुख्य रेल मार्ग पर बिलासपुर (64 कि.मी.) समीपस्थ रेल्वे जंक्शन है।

सड़क मार्ग : बिलासपुर से निजी वाहन द्वारा सड़क मार्ग से यात्रा की जा सकती है।

दक्षिण कोसल डेस्क

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