तीन दिनों से लगातार बारिश की झड़ी के मध्य अचानक कार्यक्रम बना कि कहीं भ्रमण पर जाया जाए। तभी मुझे सरई श्रृंगार का ध्यान आया, बहुत दिनों से वहां जाने का विचार था परंतु अवसर नहीं मिल पा रहा था, आज बारिश की झड़ी ने यह अवसर हमें दे दिया।
बस फिर क्या था कुछ ही देर में हम बिलासपुर से सीपत-बलौदा मार्ग पर निकल पड़े, रास्ते भर बारिश की बूँदें हमारा साथ दे रही थी। बलौदा से कुछ ही दूरी पर ग्राम डोंगरी में “आदि शक्ति माँ सरई श्रृंगारिणी देवी धाम” स्थित है। मुख्य मार्ग पर ही एक भव्य प्रवेश द्वार दिखाई पड़ता है, इस प्रवेश द्वार से भीतर प्रवेश करने पर एक छोटा सा पक्का रास्ता नजर आता है जिसके दोनों ओर विभिन्न प्रकार के वृक्षों की प्रजातियाँ दिखाई देती है।
इस मार्ग से गुजरने पर ऐसा अनुभव होने लगता है जैसे हम कहीं सुदूर वन्य प्रांत में आ गये हों, साथ ही बारिश का मौसम इस अनुभव को और भी अद्भुत बना देता है। कुछ दूरी पर ही ‘‘भैरव बाबा’’ का एक मंदिर है, जहां प्रवेश द्वार पर दो काले श्वानों की प्रतिमा भी है, गर्भगृह में काले रंग की भैरव बाबा की एक भव्य प्रतिमा स्थापित है।
इस मंदिर के सामने कुछ प्रसाद की दुकानें बनी हुई हैं जहां से प्रसाद लेकर हम आगे बढ़े। कुछ ही दूरी पर एक खूबसूरत और भव्य द्वार नजर आता है जिसका नाम ‘परिमलानंद द्वार’ है जिसे स्व. ठाकुर परिमल सिंह तथा स्व. आनंद कुंवरदेवी की स्मृति में निर्मित किया गया है।
इस द्वार पर एक काले पत्थर पर इसका इतिहास भी लिखा हुआ है जिसके अनुसार ग्राम डोंगरी निवासी मालगुजार ठाकुर परिमल सिंह तथा आनंद कुंवरदेवी ने इस मंदिर को भव्य बनाने हेतु यहां अनेक कार्य किये तथा इनके द्वारा ही अखंड ज्योत प्रज्जवलित है जो वर्षां से आज भी जल रही है। इनके पुत्रों द्वारा अपने माता-पिता की स्मृति को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिये इस द्वार का निर्माण किया गया।
इस द्वार से भीतर जाते ही हम मंदिर परिसर में पहुँच जाते हैं। यहां ऐसा प्रतीत होता है जैसा हम किसी सघन वन के मध्य आ गए हों। यहां पर एक विशाल वट वृक्ष है जिसके नीचे एक छोटा सा मंदिर बना हुआ है। इससे आगे जाने पर मंदिर प्रांगण दिखने लगता है।
इससे पहले एक छोटा सा पुल है जिसके नीचे से वर्षा का जल कल-कल करता हुआ बह रह था। ऊपर से बारिश की झड़ी और नीचे कल-कल करता हुआ जल एक अद्भुत अनुभूति दे रहा था। इसके आगे एक बड़ा पीतल का घंटा बंधा हुआ है जिसे हमने बजाकर अपनी उपस्थिति का प्रमाण मां आदिशक्ति को दिया।
आगे बढ़ने पर हम माता के मंदिर में पहुंच गए। अभी इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया जा रहा है। वहां के पुजारी ने हमें माँ सरई श्रृंगारिणी के दर्शन कराये, माँ के दर्शन से हम रोमांचित हो उठे उनके अद्भुत रुप ने हमें मोहित कर दिया तथा हम देर तक उनके दर्शन करते रहे।
इसी परिसर में पवनपुत्र हनुमान जी, यज्ञशाला, महादेव मंदिर, शनि मंदिर, माता संतोषी मंदिर तथा माता काली का मंदिर भी स्थित है। हमने सभी मंदिरों के दर्शन कर उनका आशीर्वाद लिया। इसके पश्चात् हम मंदिर के पार्श्व में स्थित सरई के पवित्र वृक्षों का दर्शन करने आगे बढ़े।
इन वृक्षों के संबंध में एक कथा भी प्रचलित है जिसके अनुसार -‘‘पूर्व में यह क्षेत्र एक घना वन हुआ करता था, इसी वन में पास के ग्राम से एक व्यक्ति पेड़ काटने आया तथा उसने सरई के पेड़ को काट लिया तथा उसे ले जाने हेतु अपनी बैलगाड़ी में रख लिया, और जब उसने आगे बढ़ने की कोशिश की तो बैलगाड़ी वहां से आगे नहीं बढ़ी, शाम का समय हो रहा था अतः वह व्यक्ति बैलगाड़ी छोड़ कर वहां से लौट गया।
दूसरे दिन प्रातः जब वह लौटा तो आश्चर्य चकित हो गया कि जिस सरई के पेड़ को उसने काट दिया था वह पेड़ पुनः यथावत खड़ा हुआ है। उसने जाकर यह बात ग्रामवासियों को बताई, तब सभी लोग वहां पर पहुँचे और यह चमत्कार देखा तब लोगों ने यहां के सरई पेड़ में देवी का वास माना।
इसी दिन से लोग इस स्थान को “आदि शक्ति माँ सरई श्रृंगारिणी देवी धाम” के नाम से जानने लगे और सरई वृक्ष की पूजा करने लगे। यहां विराजित माँ सरई श्रृंगारिणी की प्रतिमा भी स्वंयभू मानी जाती है। दोनों नवरात्रों में यहाँ भक्तों की भीड़ उमड़ती है तथा बड़ी संख्या में मनोकामना ज्योति कलश प्रज्जवलित किये जाते हैं।
पवित्र सरई वृक्ष के दर्शन हेतु एक छोटा सा मार्ग था जिसमें वर्षा का जल लगातार बह रहा था और हम उस पर से चलते हुए जा रहे थे यह एक अलौकिक अनुभव था, काले बादलों के कारण दोपहर में भी शाम का अहसास हो रहा था, सामने सरई का विशाल वृक्ष था जिसके परिसर में माता का मंदिर और उसके दोनों ओर नाग-नागिन की विशाल तथा जीवंत प्रतिमाएं थी।
घने वन के मध्य बारिश के इस मौसम यह स्थल अद्भुत प्रतीत हो रहा था। हम बड़ी देर तक वहां के सौन्दर्य और अलौकिकता का दर्शन करते रहे। शाम का धुंधलका छाने लगा था सो हमने माँ आदि शक्ति को प्रणाम कर पुनः आने का संकल्प लेकर वहाँ से बिलासपुर हेतु रवाना हुए।
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