मैं चित्रोत्पला सा सरल तरल, हूँ तन मन को सिंचित करता।
मैं श्रृंगी पावन, अशेष चिन्ह, आगे बढ़ता ,,,,, राघव गढ़ता।
मैं कोसल का सौम्य पथिक, जिन कौशल्या ने राम जना।
उस चरित कौसला का आशीष, जिसने जग में श्रीराम गढ़ा।।
माथे पर चंदन ,रघुनंदन, राजीव लोचन, अद्वैत रक्ष।
ये चार भाई मात्र नहीं, ये धर्म अर्थ और काम मोक्ष।
तुम ज्ञान दिए, जग में राघव, अपना जीवन हर पल साधव।
पुत्रेष्ठि यज्ञ के, श्रृंगी कथा, नही कोई कठिन ना कोई व्यथा।
बस राम नाम जग तारक है, बस राम कृपा, जग साधक है।
कौसला कोख के नायक राम, ये अवध वीथियों के सम्मान।
गर श्रृंगी न बनते यज्ञ पुरुष, कैसे जगता जग में पौरुष।
कैसे मिलते शबरी को राम, कैसे पाते केवट अभिराम।
कैसे मिलता किष्किंधा राज, कैसे बचता अहिल्या मान।
कैसे बनते लंकेश नए, कैसे होते सबके हनुमान।
ये सब श्रृंगी का हैआशीष, कौशल्या के है आन बान।
इसलिए कहाये जगदीश्वर, इस लिए बने करुणा निधान।
मैं चित्रोत्पला सा सरल तरल, हूँ तन मन को सिंचित करता।
मैं श्रृंगी पावन ,अशेष चिन्ह, आगे बढ़ता ,,,,, राघव गढ़ता।
सप्ताह के कवि