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छत्तीसगढ़ के अलिखित साहित्य में रामकथा : वेबीनार रिपोर्ट

ग्लोबल इन्सायक्लोपीडिया ऑफ रामायण उत्तर प्रदेश एवं सेंटर फ़ॉर स्टडी ऑन होलिस्टिक डेवलपमेंट छत्तीसगढ़ के संयुक्त तत्वाधान में दिनाँक 5/7/2020 को शाम 7:00से 8:30 बजे के मध्य “छत्तीसगढ़ के अलिखित साहित्य में रामकथा” विषयक अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन हुआ। जिसमें उद्घाटन उद्बोधन डॉ योगेन्द्र प्रताप सिंह जी, संचालक अयोध्या शोध संस्थान अयोध्या उत्तर प्रदेश, मुख्य अतिथि श्री आर एस़ विश्वकर्मा, (आई ए एस), पूर्व मुख्य सचिव, छत्तीसगढ़ शासन, प्रमुख वक्ता डॉ बलदाऊराम साहु जी, अतिथि वक्ता डॉ निलेश नीलकंठ ओक, लेखक/कंसलटेंट/ इक्सिक्यूटिव कारपोरेट ट्रेनर (अमेरिका), चेयर पर्सन-प्रोफेसर आर एन विश्वकर्मा, पूर्व प्राध्यापक, प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग, इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ एवं कार्यक्रम संचालक श्री ललित शर्मा इंडोलॉजिस्ट एवं संयोजक ग्लोबल इन्सायक्लोपीडिया ऑफ द रामायण छत्तीसगढ़ थे।

नियत समय पर वेबीनार प्रारंभ हुआ, वेबीनार के संचालक श्री ललित शर्मा ने उद्घाटन संबोधन के लिए अयोध्या रिसर्च इंस्टीट्यूट अयोध्या के संचालक डॉक्टर योगेंद्र प्रताप सिंह जी को आमंत्रित किया। इसके पहले उन्होंने आज के मुख्य अतिथियों आर एस विश्वकर्मा जी, पूर्व प्रमुख सचिव शासन, प्रमुख वक्ता बलदाऊराम साहु जी, पूर्व सचिव पिछड़ा वर्ग आयोग छत्तीसगढ़ शासन, अतिथि वक्ता डॉक्टर निलेश नीलकंठ ओक जी लेखक और कंसुलटैंट अमेरिका से सीधे जुड़े हैं,और फिर आज के चेयर पर्सन श्री आर एन विश्वकर्मा जी, इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ का परिचय देते हुए उद्घाटन संबोधन के लिए योगेंद्र प्रताप सिंह जी को आमंत्रित किया।

डॉ योगेंद्र प्रताप सिंह जी ने कहा कि इसके पहले हम और ललित जी अभी एक वेबीनार में शामिल थे वहाँ ललित शर्मा जी ने छत्तीसगढ़ के बारे में 10 मिनट के अपने उद्बोधन में ही झंडा गाड़ दिया था। जिनके बारे में माननीय मंत्री जी ने स्वतः सराहा। मुझे विश्वास है कि सर्वश्रेष्ठ मटेरियल छत्तीसगढ़ से ही मिलेगा। ललित शर्मा जी और उनकी टीम लगे हुए हैं। आज वाचिक परंपरा पर वेबीनार है। इनसाइक्लोपीडिया बनाने का उद्देश्य लंबे समय से भारत में इस्लामिक शासन रहा है जिसके कारण हमारे सनातन साहित्य का ह्रास हुआ है। इनको एकत्र करना है। अभी यह सब वाचिक परंपरा में हैं। विदेशों में इस दिशा में काम हो रहा है। अयोध्या में 70 एकड़ में जो भव्य मंदिर बनना है वह केवल एक मंदिर ही नहीं है बल्कि इसमें सब कुछ को शामिल करना है। मेरी इच्छा है कि सबसे पहले छत्तीसगढ़ 20- 25 पेज में एक मॉडल ड्राफ्ट छत्तीसगढ़ बनाएं। जिसे मॉडल के रूप में अन्यत्र भेजा जाएगा। मित्रों यह बहुत बड़ा संकल्प है इनसाइक्लोपीडिया जिसमें हम सफल होंगे। अब ललित शर्मा जी कार्यक्रम को आगे बढ़ाएं

संयोजक एवं होस्ट ललित शर्मा ने मुख्य अतिथि श्री आर एस विश्वकर्मा को संबोधन के लिए आमंत्रित किया। विश्वकर्मा जी ने अपने संबोधन में कहा कि राम हमारी सनातन संस्कृति के रग-रग में रचा बसा है। हर परिवार में राम रचा बसा है। मेरे नाम में भी राम है। हमारी संस्कृति में केवल मानव का ही नाम नहीं रखा जाता है गाँव और जगह का नाम भी राम के नाम से रखा जाता है। जब मैं रायगढ़ कलेक्टर था। तो देखा कि सारंगढ़ के आसपास एक संप्रदाय है जिसके शरीर पर राम नाम का गोदना होता है। मैने देखा कि मेरे कार्यालय के कुछ चपरासी अवकाश में कागज पर राम नाम लिखते रहते थे। साउथ में भी राम को वहां भी आदर्श मानते हैं क्योंकि राम आदर्श ही नहीं, बल्कि भाई लक्ष्मण जैसा हो, पत्नी सीता जैसी हो, पिता दशरथ जैसे हो इत्यादि कई प्रकार के उदाहरण आदर्शों के लिए दिया जाता है। रामायण जीवन का आधार है। इसी से हम सफल हो सकते हैं। अन्यथा अर्थ प्रधान देश में सब कुछ होते हुए भी लोग सुसाइड कर लेते हैं इससे रामायण ही उन्हें रोक सकता है। बिना अयोध्या की सेना की सहायता से राम ने कैसे सेतु का निर्माण किया? अयोध्या में सबसे बड़ा राम मंदिर बन रहा है। जो सभी मंदिरों को चुनौती देगा चाहे वह साईं का मंदिर हो, चाहे तिरुपति बालाजी का मंदिर हो, चाहे अन्यत्र जगत सभी पूजित स्थलों के लिए चुनौती होगा। जहाँ सब कोई एक बार आना चाहेगा। सबका धन्यवाद विशेषकर श्री ललित शर्मा जी का जो इस सुंदर वेबिनार का आयोजन के लिए।

तत्पश्चात ललित शर्मा जी ने आज के मुख्य वक्ता बलदाऊराम साहूजी जो पूर्व सचिव पिछड़ा वर्ग आयोग छत्तीसगढ़ शासन रहे हैं, को आमंत्रित किया। छत्तीसगढ़ के अलिखित साहित्य में राम विषय इस वेबीनार में अपना व्याख्यान देते हुए प्रमुख वक्ता डॉक्टर बलदाऊ राम साहू ने कहा कि छत्तीसगढ़ का अपना भौगोलिक और सांस्कृतिक धरातल है। भौगोलिक और सांस्कृतिक दृष्टि से मैं छत्तीसगढ़ को तीन भागों में विभक्त करता हूँ। 1-सरगुजा क्षेत्र अर्थात उत्तरी छत्तीसगढ़। 2-मध्य छत्तीसगढ़ जिसमें दुर्ग रायपुर बिलासपुर संभाग का क्षेत्र। 3- दक्षिण छत्तीसगढ़ अर्थात बस्तर संभाग।

इन तीनों क्षेत्रों की अपनी भौगोलिक और सांस्कृतिक विशेषताएँ हैं। इन्हें हम राज्य की सांस्कृतिक विशेषताएं भी कह सकते हैं। ‘दक्षिण कौशल’ जो छत्तीस गढ़ों को अपने में समाहित रखने के कारण “छत्तीसगढ़” बन गया। यह क्षेत्र प्राचीन काल से ही भारत को गौरवान्वित करता रहा है। “छत्तीसगढ़” तो वैदिक और पौराणिक काल से ही विभिन्न संस्कृतियों के विकास का केन्द्र रहा है। यहाँ के प्राचीन मन्दिर तथा उनके भग्नावशेष इंगित करते हैं कि यहाँ पर वैष्णव, शैव, शाक्त, बौद्ध, जैन आदि संस्कृतियों का प्रभाव रहा है।

मैं छत्तीसगढ़ की संस्कृति को इन सबसे हटकर मिश्रित संस्कृति के रूप में देखता हूँ। जिसमें द्रविड़ और आर्य संस्कृति का मिला-जुला रूप समाहित है। जनजातीय बहुल क्षेत्र होने के नाते यहाँ जनजातीय संस्कृति का व्यापक प्रभाव है। कृषि प्रधान क्षेत्र होने के कारण यहाँ की संस्कृति में कृषि के तत्व भी समाहित होते गये और अब छत्तीसगढ़ की संस्कृति को कृषि संस्कृति के रूप में देखा जाता है। यहाँ के पर्व और परंपराओं का मूल आधार कृषि है। इस परंपरा में कभी उल्लास का भाव दिखता है तो कभी आभार का भाव।

छत्तीसगढ़ की संस्कृति में गीत एवं नृत्य का बहुत महत्व है। यहाँ के लोकगीतों में विविधता है। गीतों का प्राणतत्व है राम-भाव प्रणवता। छत्तीसगढ़ के प्रमुख और लोकप्रिय लोक गीत हैं: भोजली, पंडवानी, जस गीत, भरथरी लोकगथा, बाँस गीत, गऊरा-गऊरी गीत, सुआ गीत, देवार गीत, करमा, ददरिया, डण्डा, फाग और राउत गीत। इन गीतों के अतिरिक्त संस्कार गीत जैसे सोहर, विवाह और मृत्यु गीत भी हैं । इन गाये जाने वाले गीतों में कहीं ना कहीं राम तत्व समाहित है । ये अलिखित ही हैं । इन गीतों में राम कथा पर डॉ राजन यादव ने अपना व्याख्यान दिया है, फिर भी कुछ अनछुए पक्षों पर अपनी बात कहता हूँ।

पंडवानी मूलतः महाभारत की कथा का लोक रूप है किन्तु पंडवानी गायक या गायिका गायन का प्रारंभ रामा, रामा रामा मोर रामा रामा भाई से करते हैं।

एक ददरिया देखे, ऐसे लोक ने ददरिया को प्रणय गीत माना है लेकिन ददरिया में जीवन के सभी पक्षों के साथ राम की कथा से संबंधित अनेक पद हैं।
लहा लोर गे हे राम, बइठे हे चिरइया, लहा लोर गे हे राम
राम धरे बरछी लखन धरे बान
सीता माई के खोजन म निकलगे हनुमान।
बिधि अउ बिधना के हावै बड़े काम।
बन-बन मा तो भटके लखन सिया राम।

जन्म संस्कार के समय सोहर गीत गाने की परंपरा है। छत्तीसगढ़ में तो यदि किसी परिवार में बच्चे का जन्म हुआ तो रामचरितमानस गायन का आयोजन ही कराया जाता है। और उस उत्सव को इस रूप में देखा जाता है कि राम का ही जन्म हुआ है और अलिखित साहित्य गा उठता है-
कौन घड़ी भए श्री राम, कउन घड़ी लक्ष्मण हो ललना
कउन घड़ी भरत भुवाल तीनों के घर सोहर हो।

गौरा गीत- गौरा गीत गोंड जनजातीय समाज का महत्वपूर्ण गीत है। यह गीत दीपावली पर्व के समय गाया जाता है। वास्तव में इसे शिव पार्वती के विवाह के रूप में मनाया जाता है। जनजातीय समाज की माताएँ इस पर्व जो गीत गाती हैं उसमें राम का उल्लेख आता है। और इसमें एक मानवीय संबंध भी दिखाई देता है।
एक पतरी चढ़ायेन गौरी खड़े हे बनवासी
आमाच्च आमाच्च पूजेन गौरी माझा चौरासी।
रौनिया के भौनिया रत परे पतुरिया
आगू-आगू राम चंद्र पाछू भौजइया ।

होली का पर्व रंगों का पर्व है जोकि पौराणिक कथा पर आधारित है । छत्तीसगढ़ में होली के पर्व पर दो तरह के गीत गाये जाते हैं 1-फाग गीत 2-डंडा गीत। इन दोनों में राम कथा से संबंधित अनेक गीत हैं। एक फाग गीत-
गनपति ल मनाव, प्रथम चरन गनपति ला
काकर पूत गनपति, काकर हाबे राम।
काकर पूत भई लछिमन, काकर हनुमान।
गउरी पूत गनपति, कौशिलया के राम
सुमित्रा के भयो लछिमन, अंजनी के हनुमान।
प्रथम चरन गणपति ला

विवाह गीत- विवाह में जितने भी नेंगे होते है लगभग सभी में किसी ना किसी रूप में राम आ ही जाते हैं। एक उदाहरण हल्दी तेल चढ़ाने का जो नेंग है उसमें देखें-
रामा ओ लखन के दाई तेल चढ़त हे, दाई तेल चढ़त हे,
पेरि देबे तेलिया काँचा तिलयन के तेल।

नाचा छत्तीसगढ़ का लोक नाट्य है- नाचा गीत में जहाँ मनोरंजन है वहीं दर्शन और अध्यात्म भी है। नाचा गीतों में भी राम तत्व दिखते हैं-
रामे ला होवत हे वनवासे हो, रोवत हावै अवध पुरी।
मुनि भेस मा राम चलत हे, संगे चलत हे सीता माई
अउर पाछू मा चलत हे लछिमन भाई हो, रोवत हावै अवध पुरी।

का साग राँधे समलिया, का साग राँधे समलिया
का साग राँधे समलिया, हीरा मन का साग राँधे समलिया
रमकेलिया में राजा राम बिराजे
सेमी में सीता मैया।

घर निकलत तोर ददा ह मरगे, जीते जियत तोर भाई।
संग चलत तोर बाई बिछुड़गे, जम्मो ल बिगाड़े तोर दाई।

दीपावली के पर्व के समय यादव समाज दीप उत्सव अपनी तरह से मनाते हैं । वे दीपावली के दिन पारंपरिक वेष-भूषा में नाचते हैं और दोहों के माध्यम से अपनी भावनाएं अभिव्यक्त करते हैं। छत्तीसगढ़ में पारंपरिक गीतों के साथ राऊत दोहों भी राम से संबंधित भाव विद्यमान है। कुछ राऊत दोहे उदाहरणार्थ देखते हैं –
काकर हो तुम दिया पतोइया, काकर हो भौजइया।
काकर हो तुम प्रेम सुन्दरिया, कौन हर ले जइया।
राजा दशरथ के दिया पतोइया, लक्ष्मण के भौजइया।
श्री राम चन्द्र के प्रेम सुन्दरिया, रावण हर ले जइया।।

नदिया तीर के टेड़गी रूख, कोई कटहल कोई आम।
ओकर बीच म दुठन देवता, कोई लक्ष्मण कोई राम।।

परशुराम के बाते सुनकर, जनक बहुत घबराए।
तुलसीदास भजे भगवान, हरसि ध्यान लगाए।।

हाना में राम:- गीतों के अतिरिक्त छत्तीसगढ़ में और भी अलिखित साहित्य हैं जिसमें राम तत्व समाया हुआ है-जैसे हाना यानी कहावतें, लोकोक्तियों में ‘राम’ नाम का उल्लेख होना पाया जाता हैं,
रात भर रामायेन पढ़िस, बिहिनिया पूछिस – सीता-राम कोन आय ? त, भाई-बहिनी
(- यानी व्यर्थ में मेहनत करना।)

राम रमायेन, तिहाँ कुकुर कटायेन।
(अच्छे कार्यों में बाधा पहुँचाना)

राम राम के बेरा हलाकान करै।
(अच्छे जरूरी काम के समय परेशान करना या शोर मचाना। )

रामौ अउ माया, एक संग नइ मिलै।

(राम और माया एक साथ नहीं मिलता यानी अच्छे कार्यों के लिए त्याग करना पड़ता है। )

ना रामो के न माया के।
( यानी किसी काम का न होना।)

-लेगही राम, तेला राखही कोन। राखही राम तेला लेगही कोन।
-( यानी राम ही मारेगा और राम ही रक्षा करेगा।)

रामनाम साँचा, बिलइ पिला बाँचा।

जनौला में राम:- पहेलियाँ, जनौला, बूझौवल, बिस्कुटक, बिस्कुटनी, पहेलिकाएँ, साहित्य, लोक-साहित्य की अनमोल धरोहर है। ये सब मनोरंजक व ज्ञानवर्धक होते हैं । छत्तीसगढ़ के अलिखित साहित्य में जनौला का भी महत्वपूर्ण स्थान है। वहीं इसमें भी ‘राम’ के जन्म से लेकर रावण दहन, तक अनेक पक्ष ‘रामायण’ की घटनाओं पर आधारित है। जैसे:-
राम-राम घटिमा जपय, घेंच ह जपय कबीर।
आधा रात नींद परय, लहू सटासट तीर।
(उत्तर-ढेकना = खटमल)

राम गे हे नांगर म, सीता पोवय रोटी।
बिन डारा पाना के दतवन लानबे, तभे खाहू रोटी।।
(उत्तर-अमरबेल)

देख ले आँखी सुन रे कान
डइकी डउका के बाइस कान
(उत्तर – रावण और मंदोदरी)

अलिखित साहित्य में लोक कथा और लोक गाथा का भी महत्व पूर्ण स्थान है। छत्तीसगढ़ में अनेक लोक गाथा प्रचलित हैं -ढोला मारू, लोरिक चंदा, भरथरी , चंदैनी, नागेसर कैना, कुँवर अछरिया, असिमन रानी, दसमत कैना, कुँवर रसालू और सरवन गाथा। सरवन गाथा बहुत प्रचलित नहीं है किन्तु श्री राकेश तिवारी ने इसे ढूंढ कर निकाला है-
बेटा सरवन गा, तुमा के पानी पीया लेतेस,
अरे, तुमा के पानी पीया लेतेस,
अँधरी,अँधरा के एक ठन बेटा, सरवन जेकर नाम
माता-पिता ल तीरथ-बरत करा देतेस, घुमा के चारो धाम।

लोक कथाओं में राम कथा से संबंधित बहुतायत सामग्री नहीं मिली है। मध्य छत्तीसगढ़ में एक बहुत प्रचलित लोक है। शिव-पार्वती और सियार की। कथा इस प्रकार है-

जंगल में सियार और हाथी में मित्रता थी। एक दिन हाथी ओर सियार कहीं जा रहे थे, सियार को प्यास लगी। सियार ने कहा, बाई मुझे प्यास लगी है। और जंगल में कहीं पानी नही दिख रहा है। हाथी ने कहा कोई बात नहीं मेरे पेट में पानी है, मैं मुह खोलता हूँ, तुम अंदर जाओ, और पानी पी कर निकल आना। हाँ, ऊपर मत देखना। सियार हाथी के पेट में जा कर पानी पीया। फिर उसने सोचा हाथी ऊपर देखने के लिए मना किया है , देखूँ तो क्या है। ऊपर देखा तो लाल-लाल हाथी का कलेजा था, सियार जब कलेजा देखा तो वह ललचा गया। उसने हाथी का कलेजा खा लिया। हाथी मर गया। अब सियार निकल नहीं पाया और चिल्लाने लगा। उधर से शिव और पार्वती आ रहे थे। सियार को चिल्लाते सुनकर भगवान शंकर ने कहा, तू कौन है। सियार ने कहा , तू कौन है पहले बात। भगवान शिव ने कहा मैं महादेव हूँ, सियार ने कहा, मैं महादेव का बड़ा भाई सहादेव हूँ । भगवान शिव ने गुस्से में कहा, ठीक ठीक बता। सियार ने कहा, तू ठीक ठीक बता, भगवान शिव ने कहा, हाँ मैं महादेव हूँ । सियार ने कहा यदि महादेव है तो पानी बरसा तो मै जानूँ। भगवान शिव ने पानी बरसा दिया। पानी के बरसाने से हाथी का पेट फुल गया। सियार हाथी के मल द्वार की ओर निकल कर भागने लगा। भगवान शिव भी उसके पीछे पीछे भागने लगे। सियार एक तालाब में जा घूँसा। भगवान शिव ने उसके पीछे का पैर पकड़ लिए । तब सियार ने कहा , महादेव ये तुम क्या पकड़े हो। तब शिव जी ने कहा तुम्हारे पैर को पकड़ा हूँ । तब सियार ने हँसते हुए कहा, देखो पीपल की जड़ पकड़े हो और कहते हो मेरा पैर पकड़े हो। यह सुनते ही शिव जी ने उसका पैर छोड़ कर पीपल की जड़ को पकड़ लिया। जैसे ही उसका पैर छूटा सियार वहाँ से भाग निकला ।

लोक साहित्य के अलावा राम का प्रभाव लोक जीवन में भी दिखाई देता है । जैसे –

गिनती में- यहाँ गिनती-राम से प्रारंभ होती है। जब किसान धान नापता है तब धान नापने के समय वह एक न कहकर ‘राम’ कहता है। इसी प्रकार जब धान बोनी करता है और प्रथम बार धान मुट्ठी में लेकर सींचता है तो वह राम से प्रारंभ करता है। राम साँस-साँस में बसे हैं। व्यक्ति जब जमुहाई लेता है तब उसके मुख से अनायास राम ही निकलता है। वह कसमें भी राम की ही खाता है। किसी को किसी चीज का विश्वास दिलाना होता है तब कहा जाता है यह तो राम बान है। यदि कोई शिकवा-शिकायत करता है तब व्यक्ति कह उठता है कि मैं तो राम नहीं बोला हूँ भैया। राम का प्रभाव इतना अधिक है व्यक्ति के नाम में राम और बहुत से गाँवों का नामकरण भी राम के नाम से संबंधित है।

छत्तीसगढ़ में भाँचा के पैर छूने की परंपरा है। इसका अभिप्राय यह है कि छत्तीसगढ़ कोसल प्रदेश है। कौशल्या यहाँ की, बहन तो राम भांजे हुए । अतः हर किसी के भांजा राम ही हुआ। छत्तीसगढ़ में मानस गान की वृहद परंपरा है। लगभग प्रत्येक गाँव में मानस गान प्रतियोगिता या अखंड रामायण का आयोजन किया जाता है। और उत्सव पूर्वक किया जाता है ।

गोदना -छत्तीसगढ़ में महिलाएं अपनी देह पर गोदना गुदवाती रही है । इसे मायके के चिन्ह के रूप देखा जा रहा है। पुरुष वर्ग भी अपने हाथ में राम, हनुमान, या देवी देवताओं के नाम व कोई फूल आदि बनवा लेता था। गोदना की अनेक आकृतियां होतीं हैं। गोदना के माध्यम से भावों की अभिव्यक्ति भी रही है। कोई प्रेमी अपने प्रेमिका का नाम या प्रेमिका अपने प्रेमी का नाम मित्र, सखी सहेली का नाम लिखा लेते हैं। इसमें जातीय परंपरा भी देखा जा सकता है। गोदना गोदते समय गीत गाने की परंपरा रही है।
गोदना गोदवा ले रीठा ले ले ओ आए हे देवारिन तोर गाँव मा।
रामे लिखा लखन लिखा ले, लिखा सीता मइया।
अवधपुरी मा जनमे हावै जम्मो चारो भइया।
ऐसे ही एक देवार गीत में सीता चौक लिखा ले का भी उल्लेख आया है।

यह जो चर्चा हुई है वह मध्य छत्तीसगढ़ से संबंधित है। बस्तर अर्थात दक्षिण छत्तीसगढ़ के लोक जीवन और जन साहित्य में राम का प्रभाव दिखता है। इसके लिए बस्तर के आदिवासियों को दो भागों में विभक्त करना होगा । पहला मूल आदिवासी यानि द्रविड़ और दूसरा द्रविड़ और आर्य संस्कृति का मिश्रित समूह। पहला समूह मारिया( गोंड , मारिया, मुरिया, अबूझमडिया, दंडामी मड़िया और धुरवा) दूसरा वर्ग जो अन्य प्रांतों में अर्थात ओडिशा और आंध्रप्रदेश से आये हैं । जैसे गदबा, परजा, दोरला आदि। बस्तर अंचल के लोक गीतों को देखें तो किसी ना किसी रूप में राम को उपस्थिति मिलती है। मौखिक साहित्य के अन्तर्गत हम पहले लोक गीतों की ओर दृष्टि पात करेंगे।

1- लोक गीतों में राम – सभी क्षेत्रों में खेल गीतों की परंपरा रही है । वे लोक गीत है जिनमें हमें किसी-न-किसी रूप में राम की उपस्थिति मिलती है, वे ये है‘
बस्तर के हल्बी भतरी परिवेश का खेल गीत देखते हैं ।
चोखा चित्रा गाँजा बाड़ी में करें
दागा दिले धरे काय रे मामा
सदा रे रामो मामा ना सदा रे भेटो
डोली छतरो मामा डांडी उबारो।

बस्तर के हल्बी-भतरी परिवेश, बल्कि प्रमुखतः भतरी परिवेश में खेलगीत गाने की परम्परा रही है। रात में भोजनोपरान्त किशोर-किशोरी और युवक-युवती गाँव से बाहर किसी निर्धारित स्थल में एकत्र हो कर गीत-संगीत से अपना मनोरंजन करते हैं। ये गीत प्रायः श्रृंगारिक होते हैं। दोनों पक्षों के द्वारा गीत गाते हुए नृत्य भी किया जाता है। इन्हीं गीतों का खेल गीत कहा जाता है। प्रस्तुत गीतांश का अर्थ है, ‘‘चोखा चितरा मुर्गा बाड़ी में चारा चरता रहता है और डांटने पर घर में घुस जाता है। हे मामा! हम-तुम जीवित रह गये तो राम-राम कहते रहेंगे और मर गये तो अगले जन्मों में भी भेंट होती रहेगी।

खेलगीत
गाड़ा के गुड़ंदा मिरी के कासो काय रामो गला बनवासो
हाय रंगे रसी तमर कोले बसी जिबार आय टेकसी बसी काय रसो रोय।

प्रस्तुत गीत का अर्थ है, ‘‘गाड़ी के लिये गुडुंदा और मिर्च के लिए कास। राम गये वनवास। हे रंग-रंगीले साजन! टैक्सी में तुम्हारी गोद में बैठ कर जाने की तमन्ना है।

इस गीत में नायिका को प्रकारान्तर से कहते हुए देखा जा सकता है कि हम भी तुम्हारे साथ जायेंगी। कारण, राम के साथ सीता भी वनवास गयी थीं।

लोक महाकाव्यों में राम: बस्तर अंचल में चार लोक महाकाव्य वाचिक परम्परा के सहारे संचरित होते आ रहे हैं। ये चार लोक महाकाव्य हैं लछमी जगार, तीजा जगार, आठे या अस्टमी जगार और बाली जगार। इनमें से पहले तीन जगार हल्बी भाषा में तथा चौथा भतरी भाषा में गाया जाता रहा है। इन दिनों आठे जगार का गायन कुछ कम होने लगा है, जबकि बाली जगार तो पूरी तरह लुप्त हो गया। यह अब बस्तर की पूर्वी सीमा से लगे ओड़िशा के नवरंगपुर जिले के कुछ हिस्से में ही गाया जाता है। इन लोक महाकाव्यों में राम, सीता, लखन, बजरंगबली आदि का उल्लेख मिलता है, किन्तु केवल वन्दना आदि के तौर पर ही इसके साथ ही ‘लछमी जगार’ के ही एक भिन्न संस्करण के अध्याय 07 से 12 में आयी कथाओं में इनकी उपस्थित देखी जा सकती है।

  1. लक्ष्मी जगार: सबसे पहले कोण्डागांव, सरगीपाल पारा की जगार गायिका यानि गुरूमायँ सुकदई कोराम द्वारा गाये गये ‘लछमी जगार’ को देखें। इस जगार के पहले खण्ड (मुर खंड/आरम्भिक खण्ड) के पहले अध्याय: सुमरनी (वन्दना) की कुछ पंक्तियाँ जिनमें हमें राम और सीता की उपस्थिति मिलती है, इस तरह है:
    अध्याय 1 सुमरनी

हरी-हरी बले रामे-रामे, हरि हरि राम-राम
हरी-हरी बले रामे-रामे, हरि हरि राम-राम
जय-जय सिता के राम आया, जय-जय सीता के राम माता
जय मायँ कालिका मायँ, जय माँ कालिका माता
जय मायँ जागा रानी आया, जय माता जागा रानी माता
जय मायँ दन्तेसरी, जय माँ दन्तेसरी
जय मायँ माता- मावली आय जय माँ मातामावली माता
जय मायँ माता मावली, जय माँ माता मावली माता
जय मायँ भगवान लोग आय,जय हो माँ भगवान माता

  1. डौडामाली
    सुरू-सुरू चाटी ओकारिला माटी, पदम घुमरा गोटी
    डंड गेली हाँडा कसट गेली रे, सोना के छिंवले माटी
    सोना के छिंवले माटी रे डांडामाली, रामोचन्द्रो फुलोबाड़ी
    रामोचन्द्रों फुलो बाड़ी रे डांडामाली,
    इनसपिटर काजे लिखनी काड़ी हांडा पटवाड़ी काजे बिड़ी।

(नन्ही-नन्ही चींटियों ने खोदी है माटी निकाली हैं गोटी। करती परिश्रम कष्ट तब होता है, छूते ही सोना भी होता जब माटी। तो जब माटी, हे डांडामाली! रामचन्द्र की फुलवारी रामचन्द्र की फलवारी रे डांडामाली, इन्सपेक्टर के लिए कागज-कलम, पटवारी के लिए बीड़ी।
4.रामगीत
राम-लेखन है अब तो
राम-लक्ष्मण अब वनवास जा रहे हैं
सती सीता के संग वनवास (जा रहे हैं)
राम लक्ष्मण अब वनवास जा रहे हैं
निकल कर अब वे पंचवटी (की ओर जा रहे हैं)
सीता सीता माता देखो वनवास (जा रही है)
वे पंचवटी की ओर जा रहे हैं
तीन जन अब जा रहे हैं
सीता माता अब जा रही हैं
‘हे राजा रघुपति ! आप सुनिये’ कहती है
आपके साथ मैं आऊँगी राजा’ कहती है।

  1. धनकुल चाखना गीत: धनकुल गायन के समय बीच-बची में एकरसता को तोड़ने और रस परिवर्तन के लिए मुख्य कथा से अलग हट कर कुछ गीत गाये जाते हैं।, जिन्हें चाखना गीत’ कहा जाता है। ये चाखना गीत दो प्रकार के होते है। पहला हेता है ‘देव चाखना’ और दूसरा ‘सादा चाखना’। ‘देव चाखना’ में देवी-देवताओं से संबंधित गीत होते हैं, जिन पर देवी-देवता रीझ जाते हैं और नृत्य करने लगते हैं जबकि ‘सादा चाखना’ इससे भिन्न होते है और पूरी तरह मनोरंजक। यही इसी तरह का ‘देव चाखना’ गीत प्रस्तुत है, जिसमें हनुमान द्वारा लंका को चलाने का प्रसंग वर्णित है:
    भोजनोपरान्त किशोर-किशोरी और युवक-युवती गाँव से बाहर किसी निर्धारित स्थल में एकत्र हो कर गीत-संगीत से अपना मनोरंजन करते हैं। ये गीत प्रायः श्रृंगारिक होते हैं। दोनों पक्षों के द्वारा गीत गाते हुए नृत्य भी किया जाता है। इन्हीं गीतों का खेल गीत कहा जाता है। प्रस्तुत गीतांश का अर्थ है, ‘‘चोखा चितरा मुर्गा बाड़ी में चारा चरता रहता है और डांटने पर घर में घुस जाता है। हे मामा! हम-तुम जीवित रह गये तो राम-राम कहते रहेंगे और मर गये तो अगले जन्मों में भी भेंट होती रहेगी। हे मामा! हमारे सिर पर डोली और छत्र की डांडियाँ खड़ी रहें।

हल्बी लोक कथा ‘बिरी बावन’: सरगीपाल पारा, कोण्डागांव निवासी जगार गायिका सुकदई कोराम द्वारा कही गयी इस लोक कथा ‘बिरी बावन’ में केवल एक स्थान पर ‘राम’ शब्द अभिवादन के तौर पर प्रयोग में आया है। देखें वह अंश:

तब छहों भाइयों ने देखा और आपस में बातें करने लगे, ‘‘देखो तो! ये लोग कैसी हुई जा रही हैं? ये लोग बाबू के लिये जायेंगी जी।’’ बिरी बावन कहने लगे अपनी माँ से, ‘‘माँ! मैं थोड़ी देर के लिए माहापरसाद के पास जा रहा हूँ।’’ ऐसा कहकर अपने महाप्रसाद के घर गया। वहाँ से सीता-राम कह कर भेंट की और थोड़ी देर बैठा।

सूरज राजा
राजा ने सुना किन्तु पलट कर भी नहीं देखा। रानी उसे पुकार-पुकार कर थक गयी। घर में कुछ भी नहीं बचा। तब रानी विचार करने लगा, यहाँ मैं क्या खा कर रहूँगी? बाबा के घर जाऊँगी, ऐसा सोच कर पिता के घर आयी। अभी वह आधे रास्ते में ही थी। देखती है, पिता का घर भी आग से जलने लगा था। हे राम भगवान ! वह सोचने लगी, बाबा के घर भी आयी। यहाँ भी आग लगी हुई है। कहाँ जाऊँगी, सोचने लगी। एक पेड़ की छाँव में खड़ी थी और फूट-फूट कर रो रही थी। फिर पिता के घर गयी। वे लोग जैसे पहले थे वैसे ही फिर से गरीब-दुखी हो गये। कुछ भी नहीं था। खाने को अन्न नहीं पहनने को कपड़े नहीं। एक दिन लड़की अपने पिता से कहने लगी, ‘‘खाने को अन्न नहीं है, बाबा। क्या खा कर जीयेंगे? तुम मुझे बेचने ले चलो, बाबा। किसी ने खरीदा तो पैसे ला कर तुम लोग अपना जीवन बिताओगे।’’

श्री रामचरित और इसके पात्र के नाम के आधार पर कुछ गाँवों का नाम है। यह महज संयोग है या कि कुछ और यह तो नहीं कहा जा सकता, किन्तु कुछ लोग इस अंचल के कतिपय स्थानों के नाम के साथ श्रीरामचरित के कुछ पात्रों को जोड़कर देखते हैं। ऐसे उदाहरण निम्न हैं:

कारली: वर्तमान दन्तेवाड़ा जिले के जिला मुख्यालय दन्तेवाड़ा और गीतम के बीच कारली नामक स्थान है। कुछ लोग इस स्थान को गृद्धराज जटायु के साथ जोड़ कर देखते हैं। बस्तर अंचल की लोकभाषा ‘हल्बी’ में ‘करलई’ का अर्थ होता है ‘रूआँसा होना/व्याकुल होना’। कतिपय लोगों का कहना है कि इसी जगह पर गृद्धराज जटायु ‘करलई (व्याकुल)’ हुए थे। इसी वजह से इस स्थान का नाम ‘करलई’ हुआ जो कालान्तर में बिगड़ कर ‘कारली’ हो गया।

हारम: यह गीदम गांव के एक मोहल्ले का नाम है। इस स्थान को भी गृद्धराज जटायु से ही जोड़ कर देखा जाता है। कहा जाता है कि गृद्धराज जटायु ने मृत्यु से पूर्व अन्तिम बार ‘हे राम!’ या ‘हा राम!’ कह कर पुकारा था। यही ‘हे राम!’ या कह क ‘हा राम!’ आगे चलकर ‘हारम’ हो गया।

गीदम: ऊपर वणित कस्बे गीदम के विषय में कहा जाता है कि यह स्थान गृद्धराज जटायु की नगरी था। यही कारण है कि इस स्थान का नाम ‘गृद्धम’ हो गया जो कालान्तर में बिगड़ कर ‘गीदम’ नाम से जाना जाने लगा।

ताड़ोकी: बस्तर सम्भाग के नारायणपुर जिले के गाँव ताड़ोकी का सम्बन्ध ‘ताड़का’ से जोड़ा जाता है।

राकस हाड़ा- नारायणपुर जिले में ही नारायणपुर जिला मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर पश्चिम दिशा में स्थित एक पहाड़ी को ‘राकस डोंगरी (राक्षस पहाड़ी)’ और पत्थरों/चट्टानों को ‘राकस हाड़ा (राक्षसों की हड्डी)’ कहा जात है। इस ‘राकस हाड़ा’ के विषय में बताया जाता है कि इससे जली हुई हड्डी की दुर्गन्ध आती है। इसे श्रीराम द्वारा राक्षसों के संहार के साथ जोड़ कर देखा जाता है। और कहा जाता है कि उनके द्वारा मारे गये राक्षसों की हड्डियाँ पत्थरों/चट्टानों के रूप में वरिवर्तित हो गयी।

सीतापाल: इसी के कुछ आगे सीतापाल नामक गाँव है। कहा जाता है कि इस गाँव में भगवान श्रीराम ने सीता जी व लक्ष्मण के साथ वर्षा के चार मास व्यतीत किये थे और इसके बाद वे यहाँ से बारसूर चले गये। बारसूर वर्तमान दन्तेवाड़ा जिले में स्थित है और माना जाता है कि पौराणिक काल में यह बाणासुर की नगरी रहा है।

चीतालंका: अबुझमाड़ स्थित गांव चीतालंका को सीतालंका का बिगड़ा रूप माना जाता है और इसे भी रामायण कालीन लंका नगरी से जोड़ कर देखा जाता है, जहाँ रावण ने सीता को बन्धक बना रखा था।

लंका पल्ली: अबुझमाड़ में ही स्थित गांव लंका पल्ली के विषय में कहा जाता है कि यह वही लंका है, जिसका राजा रावण था। बताया जाता है कि इस गांव में अभी भी रावण की प्रतिमा स्थापित है और उसकी पूजा वर्ष में एक बार की जाती है।

लंका: अबुझमाड़ में ही स्थित गांव लंका को ही कुछ लोग रामायण कालीन लंका कहते हैं।

सबरी: दक्षिण बस्तर की प्रमुख नदी सबरी के विषय में कहा जाता है कि रामायण कालीन शबरी के ही नाम पर इस नदी का नामकरण हुआ है।

रामारम: दक्षिण बस्तर के एक स्थान रामारम (रामारम) को भी राम के साथ जोड़ कर देखा जाता है। कहा जाता है कि वनगमन के समय राम इस जगह से होकर गये थे।

सीता कुण्ड: बस्तर का प्रवेश द्वार कहे जाने वाले चारामा गांव के पास पहाड़ी पर सीता जी के स्नान-कुण्ड होने की बात कही जाती है। कहा जाता है कि वनवान-काल का कुछ समय राम-सीता-लक्ष्मण ने यहाँ बिताया था।

इसके बाद होस्ट ललित शर्मा जी ने विशेष अतिथि वक्ता अमेरिका से शामिल हुए डॉक्टर निलेश नीलकंठ ओक जी को अपने उद्बोधन के लिए आमंत्रित किया।

उन्होंने कहा कि जैसे साहूजी ने बताया है कि यहाँ अलिखित रामायण में बहुत कुछ है। हमारी ज्ञान संपदा अलिखित साहित्य में भरे पड़े उपनिषदों में भी इनका उल्लेख है। अरण्यकांड का अमेरिका से संबंध है। मुझे यहाँ रहते हुए 30 वर्ष हो गए। आप लोग कहेंगे कि रामायण का अमेरिका से क्या संबंध है? संबंध है। अमेरिका में रहते हुए बहुत कुछ जाना। यहां फ्रीडम है, विचार स्वातंत्रय है। विश्वकर्मा जी ने संयम के बारे में बताया। रामायण का अमेरिका का क्या संबंध है? रामायण का वाल्मीकि रामायण में 100 से ज्यादा ज्योतिष संबंध है। यहाँ 14000 साल पहले रामायण का युग निकलता है। जब यह पता चला तो इस संबंध में राम से हो जाता है ।वह भारत से। अमेरिका रहे थे। तब पता चला कि अमेरिका में 13000 साल पहले मानव रहने का पता चल जाता है। जबकि दक्षिण अमेरिका में 30000 साल पहले मानव होने का पता चलता है। फिर उन्होंने इतिहास के बारे में बताया फिर कहा कि सुग्रीव से जब राम का भेंट होता है तो वानर राज सुग्रीव सीता की खोज के लिए निर्देश देता है। तब वह पूर्व दिशा में कहाँ तक जाना है इसका उल्लेख करता है। तब इंडोनेशिया थाईलैंड से प्रारंभ होकर क्षीरसागर प्रारंभ होती है। उत्तर अमेरिका में एक जगह है जो लगभग 14000 साल पुराना है। सुग्रीव इस संबंध में विस्तार से कहते हैं। त्रिशूल के समान एक स्ट्रक्चर है जो सोने का सामान चमकता है। सुग्रीव सब का वर्णन करता है। गूगल से खोजने पर इन्हें जाना जा सकता है। जिसका वर्णन वाल्मीकि रामायण में है। कथा के अनुसार से यहाँ पर उन्होंने बैट, खून चूसने वाले उल्टा लटकने वाले चमगादड़ के बारे में कहा गया जो दुनिया में केवल एक ही जगह मिलता है वह दक्षिण अमेरिका के चिली और ब्राजील के आसपास का क्षेत्र है, इसे वैंपायर बैट के नाम से जाना जाता है। 14000 साल पहले समुद्र का स्तर 100 मीटर नीचे था। उस समय यहाँ दो रास्तों से अमेरिका जाया जा सकता था। एक तो जावा, सुमात्रा ,इंडोनेशिया होते हुए और दूसरा अलास्का होते हुए। चीली में 30000 साल पहले तक मानव इतिहास का पता चलता है। जो वर्तमान में अलिखित है वह वाल्मीकि रामायण में लिखित रूप में है। समय का ख्याल रखना है। आगे भी विस्तार से कभी चर्चा होगी। अभी ललित जी के पास पुनः जाता हूँ। अब आगे ललित जी बताएंगे ।

होस्ट ललित शर्मा जी ने कार्यक्रम के चेयरपर्सन (अध्यक्ष) प्रो आर एन विश्वकर्मा जी को संबोधन के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने निलांबुज श्यामल कोमलांगम -श्लोक से अपना उद्बोधन प्रारंभ किया। कहा कि आज का विषय बड़ा ही रोचक है। निश्चित रूप से ऐसे विषय पर मुख्य वक्ता श्री साहूजी ने उदाहरण सहित तो दूसरे अतिथि वक्ता श्री ओक जी ने शास्त्रों और भौगोलिक स्थितियों को लेकर जो वाचन किया वह अद्वितीय है। यह किसी व्यक्ति के द्वारा न होकर समूह यह समाज के द्वारा कही गई बातें हैं। यह अलिखित साहित्य है। यह पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती रहती है। यही वाचिक परंपरा अलिखित साहित्य कहलाता है। छत्तीसगढ़ में राम व राम कथा केवल छत्तीसगढ़ की ही नहीं संपूर्ण भारत की आत्मा है, और हमारे जीवन का आधार भी है। छत्तीसगढ़ जिसे दक्षिण कोसल कहा जाता है यहाँ राम की चार पीढ़ियों का नाता है। राम के नाना राजा भानुमंत, माता कौशल्या, राम और उनके पुत्र लव -कुश का इस क्षेत्र से गहरा नाता है। इस भूभाग के बारे में राम को अच्छे से जानकारी थी। राक्षसों का अंत राम ही कर सकता था, यह बात विश्वामित्र जी जानते थे। इसीलिए राक्षसों के संहार के लिए राम को अपने साथ लाए। खरौद, शिवरीनारायण, रामगढ़, सीता बेंगरा, पंचवटी आदि यही हैं। छत्तीसगढ़़ से राम का गहरा संबंध है। कथा, मुहावरों, लोक गाथाओं आदि का संबंध कहीं न कहीं राम से ही जुड़ा है। जैसे साहूजी ने पंडवानी के बारे में बात की। पंडवानी हालांकि महाभारत से संबंधित है पर इनकी शुरुआत रामा रामा हो रामा से होती है। राम हमारे हर्ष में, विषाद में, आमोद-प्रमोद आदि का हिस्सा है। यहाँ रामकथा रची बसी है यहां खेतों में हल चलाता हुआ किसान हो, चाहे प्रेम की धुन गाता हुआ ददरिया हो। इन लोक साहित्य में छत्तीसगढ़ के वाचिक साहित्य में राम रचे बसे हैं। छत्तीसगढ़ में बोली जाने वाली छत्तीसगढ़ी में 60% शब्द अवधि और मागधि शब्दों से मिलते है। जब कोई बोली का साहित्य बन जाता है तो वह भाषा बन जाती है। छत्तीसगढ़ का एक लोकप्रिय साहित्य बनने जा रहा है। साहु जी का धन्यवाद जिन्होंने अच्छे से अलिखित लोक साहित्य को प्रस्तुत किया। जय छत्तीसगढ़ जय भारत। फिर उन्होंने ललित जी को आभार प्रदर्शन के लिए कहा ।

ललित जी ने सब का आभार करते हुए कहा कि इस बार वेबीनार को यूट्यूब और फेसबुक पर भी लाइव किया गया है। इसका उद्देश्य वेबीनार को संरक्षित करना है यह बड़ा कार्य है। सब मिलकर करेंगे अगले रविवार को भी सरगुजा की जनजातियों में रामायण का प्रभाव विषयक वेबीनार का आयोजन है, जिसके मुख्य वक्ता श्री पुनित राय जी रहेंगे। मैं उपस्थित सभी अतिथियों, वक्ताओं, विद्वानों, शोधार्थियों का हार्दिक आभार प्रकट करता हूँ।

वेबीनार रिपोर्ट

हरिसिंह क्षत्री मार्गदर्शक – जिला पुरातत्व संग्रहालय कोरबा, छत्तीसगढ़ मो. नं.-9407920525, 9827189845

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