भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जो सशस्त्र क्राँतिकारी सामने आये और उनके जीवन का बलिदान हुआ। इनके साथ ऐसे क्राँतिकारी भी असंख्य हैं जिन्होंने क्राँतिकारियों को शस्त्र और अन्य साधन उपलब्ध कराये। इनमें एक प्रमुख नाम प्रेमकृष्ण खन्ना हैं। जिन्होंने न केवल चंद्रशेखर आजाद को माउजर पिस्टल उपलब्ध कराई अपितु काकोरी में उपयोग करने केलिये बम एवं अन्य सामग्री भी उपलब्ध कराई।
कहने के लिये उनका व्यवसाय था। शाहजहाँपुर क्षेत्र में रेल्वे की ठेकेदारी भी करते थे किंतु भारत की सबसे प्रमुख क्राँतिकारी संस्था हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सदस्य थे। खन्ना जी ही इस संस्था को साधन उपलब्ध कराने तथा सूचनाओं के आदान प्रदान में सहयोग करते थे।
क्राँतिकारियों ने जब रेल्वे से जा रहे सरकारी धन को काकोरी में लूटने की योजना बनाई तो इसके लिये माउजर पिस्तौल, उसके कारतूस तथा अन्य सामग्री उपलब्ध कराने का दायित्व खन्ना जी को सौंपा। खन्ना जी ने अपने नाम से लिये गये शस्त्र-लाइसेन्स पर पिस्तौल और कारतूस खरीदे और क्राँतिकारियों को सौंपे। खन्ना जी सुप्रसिद्ध क्रान्तिकारी राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ के व्यक्तिगत मित्र थे। प्रेमकृष्ण खन्ना इन्हीं के माध्यम से क्रान्तिकारी आंदोलन से जुड़े थे।
सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी प्रेमकृष्ण खन्ना का जन्म 2 फरवरी 1894 में पंजाब के लाहौर नगर में हुआ था। यह क्षेत्र अब पाकिस्तान में है। लाहौर में उनके पितामह डॉ॰ हरिनारायण जी खन्ना अपने समय के सुप्रसिद्ध सिविल सर्जन थे। जबकि पिता रामकृष्ण खन्ना ब्रिटिश इण्डियन रेलवे मॅ चीफ डिवीजनल इंजीनियर थे।
उनका मुख्यालय उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर में था। तब उत्तर प्रदेश का नाम संयुक्त प्राँत हुआ करता था। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें रायबहादुर की उपाधि भी प्रदान की थी। इस प्रकार प्रेमकृष्ण खन्ना की पारिवारिक पृष्ठभूमि सशक्त और संपन्न थी। जब प्रेमकृष्ण जी का जन्म हुआ तब परिवार लाहौर में ही था।
तब पंजाब के पश्चिमी प्राँत में रेलवे के विस्तार का काम चल रहा था। इसके प्रभारी रामकृष्ण जी ही थे। प्रेमकृष्ण जी का जन्म यहीं हुआ। बाद में पिता की पदस्थापना शाहजहाँपुर हुई तो परिवार यहाँ आ गया। इस प्रकार प्रेमकृष्ण जी शिक्षा संयुक्त प्राँत के विभिन्न नगरों में हुई और पढ़ाई के दौरान ही उनका संपर्क राम प्रसाद बिस्मिल से हुआ और इनके माध्यम से चन्द्रशेखर आजाद के संपर्क में आये और क्राँतिकारी गतिविधियों में भाग लेने लगे। इसका प्रभाव पढ़ाई पर पड़ा।
पढ़ाई में पिछड़ते देख पिता ने अपने प्रभाव का उपयोग करके एक कंस्ट्रक्शन कंपनी बना कर इन्हें रेल्वे के निर्माण कामों की ठेकेदारी के काम में लगा दिया। पिता के प्रभाव से इनका काम चल निकला। प्रभावशाली होने के कारण शस्त्र लाइसेंस आसानी से मिल जाते थे। इसलिये इन्होंने अपने नाम से माउजर पिस्टल का लाइसेंस लिया और कारतूस लेकर राम प्रसाद बिस्मिल को दे दिये। विस्मिल जी के माध्यम से यह पिस्टल चंद्रशेखर आजाद तक पहुँची।
मैनपुरी प्रकरण से पूर्व ही विस्मिल जी ने 1917 में एक “शाहजहाँपुर सेवा समिति” का गठन किया था। इसके संचालन का दायित्व खन्ना जी को दिया। वे बिस्मिल जी के व्यक्तित्व इतने प्रभावित थे कि उनके समर्पित अनुयायी बन गये। उन्होंने अन्य नौजवानों को भी इस संस्था से जोड़ा।
खन्ना जी 1918 में पहली बार कांग्रेस अधिवेशन में सम्मिलित हुये। यह सम्मेलन दिल्ली में आयोजित था। खन्ना जी शाहजहाँपुर सेवा समिति के युवकों की एक टोली भी अपने साथ दिल्ली ले गये थे।
इस शाहजहाँपुर सेवा समिति ने संसार के विभिन्न स्वतंत्रता आंदोलन के आधार कुछ साहित्य तैयार किया था जिसमें दो पुस्तिकाएँ तो अंग्रेजों से मुक्ति के लिये अमेरिका के स्वतंत्रता आंदोलन पर आधारित थीं। यह पुस्तिका बिस्मिल जी ने तैयार की थी और इसके प्रकाशन और वितरण का दायित्व प्रेमकृष्ण खन्ना को दिया गया था।
1916 में अंग्रेज सरकार ने इस पुस्तक को प्रतिबंधित कर दिया था। पर यह समिति गुप्त रूप से इन पुस्तिकाओं का वितरण किया करती थी। शाहजहाँपुर सेवा समिति के सदस्य इन पुस्तिकाओं को लेकर दिल्ली अधिवेशन में गये थे। जहाँ वरिष्ठ जनों को भेंट भी कीं और आवाज लगाकर पंडाल में बेची भी। पुलिस को इसकी भनक लगी, पुलिस पहुँची। पर पुलिस के पहुँचने से पहले ही बड़ी चतुराई से शेष बची प्रतियाँ हटा लीं गईं। इस प्रकार यहाँ तो खन्ना जी बच गये किन्तु काकोरी काँड में न बच सके।
यद्यपि प्रेमकृष्ण खन्ना मौके पर नहीं थे पर काकोरी काँड में माउजर पिस्तौल और कारतूस जब्त हुये । उनकी जांच की गई। तो वह पिस्तौल प्रेमकृष्ण खन्ना के नाम होना पाई गई।
मुखबिर की सूचना पर इन्स्पेक्टर हार्टन ने कानपुर के शस्त्र विक्रेता मेसर्स विश्वास एण्ड कम्पनी के रजिस्टर की जाँच की। रजिस्टर से पता चला कि 14 फ़रवरी 1924 से 5 जनवरी 1925 के बीच प्रेमकृष्ण खन्ना ने 150 कारतूस खरीदे। वे गिरफ्तार कर लिये गये। उन्हे पाँच वर्ष के कठोर कारावास की सजा मिली। जबकि मुकदमें की कार्रवाई दो वर्ष चली। इस प्रकार खन्ना जी कुल सात वर्ष जेल में रहे। जेल से बाहर आकर आजन्म अविवाहित रहकर राष्ट्र और समाज की सेवा का व्रत लिया।
खन्ना जी जब जेल से छूटे तब तक क्राँतिकारी आँदोलन लगभग सिमट गया था। वे गाँधी जी से मिले और गाँधी जी के आग्रह पर कांग्रेस से जुड़ गये। इसके बाद अहिसंक आँदोलन में सक्रिय हुये। वे दूसरी बार 1942 के भारत छोड़ो आँदोलन में गिरफ्तार हुये।
स्वतंत्रता के बाद उन्होंने समाज सेवा के अनेक प्रकल्प आरंभ किये। दो लोकसभा सदस्य बने। सतत समाज सेवा में सक्रिय प्रेमकृष्ण जी का स्वास्थ्य बिगड़ा और शाहजहाँपुर के जिला अस्पताल में भर्ती किये गये।
3 अगस्त 1993 को जब उन्होंने जिला अस्पताल में अपनी देह त्यागी तब जीवन का शतक पूर्ण करने में मात्र 6 माह ही शेष थे। इस प्रकार एक जीवट व्यक्ति जिन्होंने क्राँतिकारी आँदोलन से जीवन आरंभ किया और अहिसंक आँदोलन से होकर अपना पूरा जीवन समाज सेवा को समर्पित कर दिया।
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