सेंटर फ़ॉर स्टडी ऑन होलिस्टिक डेवलपमेंट, रायपुर नामक संस्था एवं वेबपोर्टल दक्षिण कोसल टुडे के संयुक्त तत्वाधान में अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस 18 मई 2020 सोमवार को सिसको वेबेक्स मीटिंगस् एप के माध्यम ऑनलाईन व्याख्यान का आयोजन किया गया जिसमें मुख्य वक्ता डॉ प्रवीण कुमार मिश्र, क्षेत्रीय निदेशक भारतीय पुरातत्त्व एवं सर्वेक्षण विभाग ,भोपाल सर्किल थे। एप के माध्यम से इस व्याख्यान में छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, उड़ीसा, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश आदि प्रदेशों से भी श्रोतागण जुड़े थे।
सेंटर फ़ॉर स्टडी ऑन होलिस्टिक डेवलपमेंट रायपुर संस्था के सचिव श्री विवेक सक्सेना से ने इस व्याख्यान को होस्ट किया तथा दक्षिण कोसल टुडे के संपादक श्री ललित शर्मा ने मुख्य वक्ता स्वागत एवं परिचय कराया। इसके पश्चात डॉ प्रवीण कुमार मिश्र का “विरासत और समाज के लिए संग्रहालय की प्रासंगिकता” विषय पर व्याख्यान प्रारंभ हुआ।
डॉ प्रवीण कुमार मिश्र ने कहा कि प्रारंभ में संग्रहालय की स्थापना का उद्देश्य में वस्तुओं को एकत्र कर अपनी शान वैभव या संस्कृति को दिखाने के लिए किया गया था। परंतु 19वीं शताब्दी में यूरोप में आधुनिक संग्रहालय विज्ञान की स्थापना हुई, तबसे संग्रहालय के स्वरूप बदलता चला गया। संग्रहित वस्तुओं की सूचीबद्ध कैसे करना है, कैसे प्रदर्शित करना है इत्यादि को ध्यान में रखते हुए भारत में भी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के द्वारा एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ इंडिया बंगाल के माध्यम से बंगाल में पहले संग्रहालय की स्थापना की गई।
वहां पर प्रदर्शित सारी वस्तुओं को संग्रहित कर सूचीबद्ध किया गया। अच्छे से उसका प्रदर्शन किया गया। जिससे उसकी ख्याति बढ़ने लगी। यह साल 1814 ईस्वीं का था जब भारत में पहली बार आधुनिक संग्रहालय की स्थापना बंगाल में की गई। बाद में १८१६ में आर्थिक भूविज्ञान द्वारा बंगलौर में आर्थिक विकास पर आधारित संग्रहालय की स्थापना की गई।
जब स्वतंत्रता संग्राम की पहली लड़ाई 1857 में लड़ी गई, तब राज्य सत्ता कंपनी से हटकर ब्रिटिश क्राऊन को हस्तांतरित हुई। फिर भारतीय पुरातत्त्व एवं सर्वेक्षण विभाग की स्थापना की गई। एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल के संग्रहालय को शासन ने अपने हाथ में ले लिया। भारत में संग्रहालयों का विस्तार होने लगा। जब डॉक्टर सर जान मार्शल भारत आए तब उन्होंने लाल किले में संग्रहालय की स्थापना की। इसके बाद सर जान मार्शल ने संग्रहालय का आधुनिकीकरण उत्खनन आदि पर बहुत काम किया।
भोपाल में मानव संग्रहालय एक अलग ही प्रकार का संग्रहालय है। छत्तीसगढ़ में उस समय जब यह मध्य प्रांत का हिस्सा था सी पी एंड बरार का, उस समय महंत घासीदास संग्रहालय की स्थापना हुई। छत्तीसगढ़ में एक और अनूठा प्रयोग हुआ, पुरखौती मुक्तांगन नामक मुक्ताकाश संग्रहालय की स्थापना राज्य शासन ने की।
बाद में विश्व में जर्मनी और फ्रांस में उग्र राष्ट्रवाद के ऊपर संग्रहालय बनने लगे और संग्रहालय के माध्यम से वहां के लोगों को शिक्षा दी जाने लगी राष्ट्रप्रेम की, राष्ट्रभक्ति की। यह भी एक अनोखा प्रयोग था। संग्रहालय की स्थापना, उसका विस्तार, उस क्षेत्र की संस्कृति और वैभव इतिहास इत्यादि को प्रदर्शित कर सीधे अतीत से वर्तमान को जोड़कर भविष्य के लिए धरोहर के रूप में स्थापित करने की परंपरा है।
संग्रहालय का विस्तार विश्वविद्यालयों, राज्यों के अलग-अलग जिला प्रशासन के माध्यम से होना प्रारंभ हुआ। अब तो सैनिकों का अलग, रेलवे का, अपने-अपने विभागों का संग्रहालय बनाकर उसके माध्यम से विभागीय प्रशिक्षण केन्द्र के रूप में भी संग्रहालय बनने लग गया है।
संग्रहालय का विस्तार कैसे किया जाना चाहिए? संग्रहालय से लोगों को कैसे जोड़ना चाहिए? इस पर भी उन्होंने चर्चा की। संग्रहालय में रोटेशन प्रणाली होनी चाहिए। प्रदर्शित जो चीजें हैं उनको परिवर्तन करते रहना चाहिए। नए-नए चीजों को लाकर के प्रदर्शित करना चाहिए। तब संग्रहालय की महत्ता बढ़ती जाती है। समय-समय पर विभिन्न विषयों पर कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाना चाहिए। लोगों को संग्रहालय से जोड़ करके शिक्षा देने का प्रयास किया जाना चाहिए।
उन्होंने मल्हार संग्रहालय में भगवान विष्णु की दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व की विष्णु प्रतिमा की चर्चा की। जो भारत के सबसे प्राचीनतम विष्णु प्रतिमा है। ताला के रूद्रशिव चर्चा भी की। उसके बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि यहां जिस प्रतिमा को हम रूद्र शिव के नाम से जानते हैं, उस पर शिव जी का आदिवासी संस्कृति का प्रभाव होना बताया। छत्तीसगढ़ में यहाँ की कला में, यहाँ की संस्कृति और आदिवासी कला की प्रभाव स्पष्ट पड़ा है। उन्होंने रूद्रशिव को आदिवासी देवता के रूप में स्वीकार कर लिया जाना चाहिए, ऐसा उन्होंने एक प्रश्न के उत्तर में कहा।
इस युग में जब कोरोनावायरस का प्रकोप चल रहा है, तो संग्रहाध्यक्ष और संग्राहक की भूमिका बढ़ जाती है उनकी सोच व्यापक होना चाहिए। संग्राहक के मन में हमेशा संग्रहालय के लिए नई-नई चीजों को संग्रहित कर प्रदर्शित करते रहने की भी इच्छा होनी चाहिए। उन्हें जहां अतीत के चीजों को संग्रहित करना चाहिए वहीं भविष्य के लिए भी ध्यान में रखकर चीजों को एकत्र कर संग्रहालय में प्रदर्शित करना चाहिए।
इस प्रकार उन्होंने संग्रहालय के बारे में सभी विषयों पर खुलकर चर्चा की तथा प्रतिभागियों के प्रश्नों का विस्तृत उत्तर देकर उनकी जिज्ञासाएं शांत कर उन्हें संतुष्ट भी किया। इसमें एक प्रश्न इंदौर की कविता जी के माध्यम से आया कि संग्रहालय के विषय को ध्यान रखकर पाठ्यक्रम भी स्कूली बच्चों के लिए होना चाहिए। जिससे बच्चों को लाभ होगा। इसपर उन्होंने ने कहा कि हालांकि यह शासन स्तर की बात है, निर्णय उनका है, पर जब भी उचित मंच मिलेगा वहाँ इस बात को ध्यान में रखकर चर्चा अवश्य ही होगी।
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