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जटियाई माता : छत्तीसगढ़ नवरात्रि विशेष

छत्तीसगढ़ अंचल में अनेक ग्राम्य देवी-देवताओं की उपासना की जाती है, इसके साथ ही यहाँ शाक्त उपासना की सुदृढ़ परम्परा दिखाई देती है। मातृशक्ति के उपासक धान की कोठी छत्तीसगढ़ का एक छोटा सा विकास खंड मुख्यालय है छुरा, जो गरियाबंद जिले में अवस्थित है। छुरा से लगभग 9 किमी की दूरी पर स्थित है जटियातोरा ग्राम। इसी गांव के समीपस्थ है जटियाई पहाड़ी, जिसमें माता जटियाई विराजमान है।

धरातल से लगभग-लगभग 400 फीट ऊंची पहाड़ी पर माता का मंदिर स्थित है। ऊपर पहाड़ी तक जाने के लिए किसी भी प्रकार की पैड़ी आदि का निर्माण नहीं हुआ है। कुछ दूरी तक मुरूम का रास्ता है, लेकिन ज्यादा रास्ता पथरीला है। पहाड़ी पर चढ़ाई आसान नहीं है। चट्टानों के बीच टेढ़े-मेढ़े रास्ते से होकर पहाड़ी की खड़ी चढ़ाई चढ़नी पडती है।

जैसे-जैसे हम ऊपर जाते हैं सांस फूलने लगती है। किसी को सांस संबंधी कोई परेशानी हो तो पहाड़ी पर चढ़ने का प्रयास बिल्कुल ना करे। महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों के लिए पहाड़ी की चढ़ाई वर्तमान में सुगम नहीं है। दूसरी खास बात ये है कि शारदीय नवरात्र पर्व के अलावा वर्ष के अन्य महीनों में पहाड़ी निर्जन होती है, साथ ही हिंसक जंगली जानवरों का भय भी रहता है तो उस समय भी आना उचित नहीं होगा।

जटियाई माता का स्थान

माता का स्थान विशाल चट्टान के नीचे है। यहाँ मंदिर आकार में छोटा है, जहां माता की सुंदर मुखाकृति वाली मूर्ति स्थापित है। खास बात ये है कि माता की यहां श्वेत पूजा होती है। किसी भी प्रकार की पशु बलि आदि यहां पूर्णतः निषिद्ध है। माता की पूजा श्वेत पुष्प से होती है और माता को श्वेत सिंगार सामग्री चढ़ाई जाती है।

बताया जाता है कि माता यहां साध्वी (तपस्विनी) स्वरूप में विद्यमान है। हालांकि माता के जटियाई नामकरण के पीछे किसी प्रकार की कोई किंवदंती नहीं है। सामान्यतः साधुगण जटाजूट धारी होते हैं संभवतः इसके कारण ही जटियाई (जटा वाली) नाम प्रचलित हुआ हो।

पहाड़ी पर पहुंचने का मार्ग

माता आदिकाल से इस पहाड़ी पर विराजमान है ऐसा क्षेत्र में मान्यता प्रचलित है। इसके संबंध में एक कहानी का उल्लेख सेंदबाहरा निवासी गोपीराम ठाकुर करते हैं कि माता के साक्षात्कार की बहुत सी कहानियां बुजुर्ग बताते रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि माता भिन्न भिन्न रूप में पहाड़ी के आस-पास भटकने वाले लोगों का मार्गदर्शन करती थी और भोजन आदि की व्यवस्था भी करती थी।

जटियाई ग्राम विशुद्ध रूप से जनजाति ग्राम है। जहां पर गोंड जनजाति के लोग निवास करते हैं। किसी समय गोंड़ हरिराम नेताम माता का भक्त जटियातोरा गांव में रहा करता था। वह खेती किसानी के काम से अपना गुजर बसर करता था। माता जटियाई पर उस किसान हरिराम की अगाध आस्था थी और पहाड़ी के नीचे ही उसका खेत था।

पहाड़ी पर स्थापित हनुमान जी

प्रतिदिन वह अपने कृषि कार्य से खेत जाता था, परंतु उसकी पत्नी को उसके लिए भोजन लाने में विलंब हो जाया करता था। माता भला अपने भक्त को भूखा कैसे रखती। तब माता जटियाई उसके लिए एक ग्रामीण महिला का वेष बनाकर उसको भोजन करा देती। तत्पश्चात उसकी पत्नी भोजन लेकर जाती तो वह पेट भरा है कहकर भोजन करने से इंकार कर देता।

इस बात से उसकी पत्नी के मन में शंका उत्पन्न हुई और वह सत्यता जानने के लिए एक खेत के मेड़ की ओट में छुपकर देखने लगी। दोपहर का वक्त हुआ और खाना खाने का समय हुआ तो एक ग्रामीण स्त्री हरिराम के लिए बटकी (एक प्रकार का गहराई वाला पात्र, बासी खाने के लिए प्रयोग होता है) में बासी लेकर आई और उसको भोजन कराया।

चित्रकला – काली माई

जब हरिराम की पत्नी ने ये सब देखा तो उसके क्रोध का पारावार न रहा। ग्रामीण महिला वेषधारी माता से उसने झूमा झटकी करना शुरू कर दिया। इस दौरान माता के हाथ में जो बटकी थी उसने उसे दूर तक फैंकते हुए कहा कि तुमने मुझ पर शंका किया है, इसलिए अब मैं यहां पहाड़ी से नीचे नहीं आउंगी, पहाड़ी पर ही रहूंगी। कहकर अंतर्ध्यान हो गई।

दोनों पति-पत्नी माता से क्षमा याचना करने लगे और माता सौम्य रूप में पहाड़ी पर विराजमान हो गई। माता के पुजारी आज भी गोंड जनजाति के लोग ही हैं। जिस स्थान पर माता ने बटकी फैंकी थी, वो स्थान आज भी बटकी बाहरा के नाम से जाना जाता है।

पहाड़ी पर चट्टानों का सौंदर्य

पहाड़ी पर माता मंदिर के सामने ही ज्योतिकक्ष का निर्माण किया गया है। हनुमानजी जी की सीमेंट से निर्मित मूर्ति भी पहाड़ी पर खुले में स्थापित है। उसी प्रकार माता काली और शिवजी के स्वरूप का चित्रण भी पहाड़ी पर किया गया है। पूर्णतः नैसर्गिक वातावरण है,जो मन को भाव विभोर कर देता है।

आसपास के 27 गांव मिलाकर जटियाई सेवा समिति का गठन किया गया है, जिनके मार्गदर्शन में प्रतिवर्ष शारदीय नवरात्र का आयोजन हर्षोल्लास से किया जाता है। सन् 2000 से यहां पर मनोकामना ज्योति प्रज्ज्वलित की जा रही है। इसके पहले सिर्फ जात्रा का कार्यक्रम होता था। माता सेवा के गीत में है –

सेत सेत तोर ककनी बनुरिया
सेते पटा तुम्हारे हो मां
सेत हवय तोर गर के सुतिया
गज मोतियन के हारे…

आलेख

रीझे यादव टेंगनाबासा(छुरा) जिला, गरियाबंद

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