हल षष्ठी पर विशेष
भारतीय धर्म और संस्कृति में बलराम एक हिंदुओं के देवता और भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई के रूप में पहचाने जाते है। जगन्नाथ परंपरा, त्रय देवताओं में से एक के रूप में वह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।उनके अन्य नामो के रूप में बलदेव,बलभद्र,बलदाऊ,बलभद्र, दाऊ, संकर्षण और हलधर और हलायुध भी मिलते है।आगे के नाम उनकी शक्ति और बल का प्रतीक है आखिरी दो उनके अस्त्र शस्त्रों व कार्यो के परिचायक हैं। हल या लांगल खेती और किसानों के साथ अपने मजबूत संघों से देवता के रूप में जो कृषि उपकरण का उपयोग करते थे आवश्यकता पड़ने पर हथियार के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है।क्योंकि वे अपने पास हमेशा हल रखते थे इसलिए उन्हें हलधर कहा जाता है।हल और मूसल बलराम के प्रमुख अस्त्र है जिन्हें वे सदा साथ रखते थे।हल से किसान खेत जोतते हैं। हल कृषि प्रधान भारत का प्रतीक भी है।
बलराम के आख्यान महाभारत, हरिवंश पर्व, भागवत पुराण और अन्य पुराणों में शेषा वतार के रूप में वर्णित है। जब जब भी विष्णु अवतार होता है साथ मे शेषनाग का अवतार भी होता है अतः जब जब विष्णु का कृष्ण के रूप में अवतार हुआ तब दो दिन पूर्व शेष जी का उनके बड़े भाई हलधर बलराम के रूप में अवतार हुआ। यह विष्णु और शेष के गहन भूमिका और अंतर्संबंध को दर्शाता है।भारतीय संस्कृति में बलराम के महत्व की प्राचीन जड़ें हैं।बलराम एक प्राचीन देवता हैं, जो भारतीय इतिहास के महाकाव्यों के रूप में प्रमुख है, जिसका प्रमाण पुरातत्व और संख्यात्मक प्रमाणों से भी मिलता है।उनकी प्राप्त प्राचीन प्रतिमाओ में प्रायः उन्हें कई-सिर वाले सर्प या नाग के रूप में या एक हल और अन्य खेत की कलाकृतियाँ जैसे कि पानी पॉट इत्यादि के साथ दिखाया गया है जो संभवतः मूलतः एक कृषि संस्कृति में उनकी उत्पत्ति का संकेत देते हैं।इस प्रकार ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण किसान-संबंधी देवता माना जाता हैं।
हिंदू परंपराओं में, बलराम एक कृषि संरक्षक देवता रहे हैं, जो कि कृषि उपकरण और समृद्धि के “ज्ञान के अग्रदूत” हैं।वह कृषकों के लिए ज्ञान का एक रचनात्मक भंडार थे।उन्होंने अपने स्वज्ञान से वृंदावन में यमुना का पानी लाने के लिए एक जल चैनल खोदा था जिससे कि शुष्क पेड़ों, खेतों और जंगलों को पुनः हरा भरा कर दिया और बृजवासियों को पुनः उत्पादन हेतु प्रेरित कर उस युग मे कृषि की नवीन तकनीकी से परिचित करवाया था और माल और पेय का उत्पादन किया था।
हिंदू ग्रंथों में बलराम लगभग हमेशा कृष्ण को रूप और आत्मा का समर्थन करते हैं। हालाँकि ऐसे अनेक अवसर आते हैं जब बलराम और कृष्ण के बीच के संवाद भिन्न दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं,फिर भी कृष्ण के ज्ञान ने उन्हें परम देवत्व की स्थापना की है।बलराम का कृष्ण के साथ लगातार प्रतीकात्मक जुड़ाव उन्हें संरक्षक और समर्थक बनाता है।वे प्रथम कृषि वैज्ञानिक थे जिन्होंने बुवाई और रोपाई हेतु न केवल हल का समुचित प्रयोग सिखाया अपितु प्राकृतिक बीजो की खोज कर नवीन मार्ग प्रशस्त किया और साथ ही कृषि औजार का देश की रक्षा हेतु दुश्मनो के संहार में हथियार के रूप में भी सफल प्रयोग कर धरतीपुत्र के असली राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण किया।
श्रीकृष्ण गोपालक-पशुपालक थे और बलराम एक श्रेष्ठ कृषक। पशुपालन के बिना कृषि अधूरी है।इसीलिए बलराम कृषकों के आराध्य देव हैं। बलराम बहुत बलशाली थे। सामान्य व्यक्ति हल उठाकर उसे हथियार के रूप में प्रयोग नहीं कर सकता लेकिन बलरामजी उसे उठा उसका हथियार के रूप में प्रयोग भी कर लेते थे।बलराम के हल के प्रयोग के संबंध में किवदंती के आधार पर दो कथाएं मिलती है।
पहली कथा के अनुसार एक बार कौरव और बलराम के बीच किसी प्रकार का कोई खेल हुआ। इस खेल में बलरामजी जीत गए थे लेकिन कौरव यह जीत मानने को ही तैयार नही थे। ऐसे में क्रोधित होकर बलरामजी ने अपने हल से हस्तिनापुर की संपूर्ण भूमि को खींचकर गंगा में डुबोने का प्रयास किया। तभी आकाशवाणी हुई की बलराम ही विजेता है। सभी ने सुना और इसे माना। इससे संतुष्ट होकर बलरामजी ने अपना हल रख दिया। तभी से वे हलधर के रूप में प्रसिद्ध हुए।
दूसरी कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी जाम्बवती का पुत्र साम्ब का दिल दुर्योधन और भानुमती की पुत्री लक्ष्मणा पर आ गया था और वे दोनों प्रेम करने लगे थे। दुर्योधन अपनी पुत्री का विवाह श्रीकृष्ण के पुत्र से नहीं करना चाहता था। अतः एक दिन साम्ब ने लक्ष्मणा से गंधर्व विवाह कर लिया और लक्ष्मणा को अपने रथ में बैठाकर द्वारिका ले जाने लगा। जब यह बात कौरवों को पता चली तो कौरव अपनी पूरी सेना लेकर साम्ब से युद्ध करने आ पहुंचे। कौरवों ने साम्ब को बंदी बना लिया। इसके बाद जब श्रीकृष्ण और बलराम को पता चला, तब बलराम हस्तिनापुर पहुंच गए। बलराम ने कौरवों से निवेदन पूर्वक कहा कि साम्ब को मुक्तकर उसे लक्ष्मणा के साथ विदा कर दें, लेकिन कौरवों ने बलराम की बात नहीं मानी। तब बलराम ने अपना रौद्र रूप धारण किया और वे अपने हल से ही हस्तिनापुर की संपूर्ण धरती को खींचकर गंगा में डुबोने लगे। यह देखकर कौरव भयभीत हो गए। संपूर्ण हस्तिनापुर में हाहाकार मच गया। सभी ने बलराम से क्षमा मांगी और तब साम्ब को लक्ष्मणा के साथ विदा कर दिया। बाद में द्वारिका में साम्ब और लक्ष्मणा का वैदिक रीति से विवाह संपन्न हुआ। इस प्रकार हलधर ने हल का प्रयोग न केवल कृषि कार्यो के लिए अपितु अस्त्र के रूप में करके यह प्रमाणित कर दिया कि कृषक शक्ति में भी किसी से कमतर नही होते।
एक किसान परिवार में जन्म लेने के बाद कृष्ण भगवान ने पशुपालन और बलराम जी ने कृषि को उन्नत करने पर काम किया था। बलराम जी को हम भारतवासी सृष्टि के पहले नहर व बीज वैज्ञानिक कह सकते है क्योंकि प्राकृतिक रूप से उपजे फसलों का बीज उत्पादन कर नहर से सिंचाई द्वारा व्यवस्थित खेती का अविष्कार भारत मे सर्वप्रथम उन्होंने किया था। इसलिए भाद्रपद कृष्ण पक्ष की षष्ठी को बलरामजी का जन्मोत्सव हल षष्ठी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन माताएं संतान की लंबी उम्र की कामना को लेकर हल षष्ठी का व्रत रखती हैं। देश के पूर्वी भाग उत्तर प्रदेश, बिहार आदि में इसे ‘ललई छठ’ और मध्य भारत में ‘हरछट’, छत्तीसगढ़ में कमरछठ/खमरछठ कहा जाता है।
हल को कृषि प्रधान भारत का प्राण तत्व माना गया है और कृषि से ही मानव जाति का कल्याण है। इसलिए इस दिन बिना हल चले धरती का अन्न व शाक भाजी खाने का विशेष महत्व है। इस दिन गाय का दूध व दही का सेवन वर्जित माना गया है। इस दिन व्रत करने का विधान भी है।इस दिन महिलाएं ऐसे खेत में पैर नहीं रखतीं, जहां फसल पैदा होनी हो और ना ही पारणा करते समय अनाज व दूध-दही खाती है। इस दिन हल पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन गाय के दूध व दही का सेवन करना वर्जित माना गया है।इस दिन हल जुता हुआ अन्न तथा फल खाने का विशेष माहात्म्य है। (पसहर) पसही के चावल या महुए का लाटा बनाकर सांझ को पारणा करने की मान्यता है। इस प्रकार भारत के हलधर बलराम की हलषष्ठी कृषि प्रधान भारत की गौरवशाली परम्पराओ के प्रति आस्था और श्रध्दा का प्रतीक है।
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