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महानदी तट पर स्थित चंद्रहासिनी देवी

भारत के सम्बन्ध में विद्वानों का मानना है कि सिंधु घाटी की सभ्यता के नागरिक जिन देवताओं की पूजा-अर्चना करते थे वे आगामी वैदिक सभ्यता में पशुपति और रुद्र कहलाएं तथा वे जिस मातृका की उपासना करते थे वे वैदिक सभ्यता में देवी का आरम्भिक रुप बनी। भारतीय इतिहास गवाह है नारी शक्ति को बल दिया है। प्रकृति अपने आप में सबसे सुंदर कृति है वहीं प्रकृति में नदी -नाले, झरने पेड़-पौधे प्रकृति के गहने हैं।

महानदी किनारे और आस-पास ऐसे स्थान है जो छत्तीसगढ़ ही नहीं भारत में भी पहचान रखते हैं। महानदी किनारे चाहे वह राजिम का राजीव लोचन मंदिर हो चाहे शिवरीनारायण धाम की बात करें, चाहे चन्द्रपुर की चंद्रहासिनी देवी आदि पर्यटन के साथ -साथ सुरम्य स्थलों में गिने जाते हैं। चन्द्रपुर नगर की चंद्रहासिनी देवी माँ दुर्गा एक रुप है, जो मांड नदी, लात नदी औऱ महानदी के संगम पर स्थित है। महानदी माँ चंद्रहासिनी देवी की पांव पखारती है यह स्थल प्रकृति का सुंदर और सुरम्य स्थल है।

छत्तीसगढ़ प्रदेश के जांजगीर -चाँपा जिले के डभरा विकास खंड में स्थित है जो महानदी और मांड नदी से घिरा है। चन्द्रपुर जांजगीर मुख्यालय से 120 किलोमीटर रायपुर से 221 किलोमीटर और डभरा से 22 किलोमीटर तथा रायगढ जिला से 32 किलोमीटर और सारंगढ से 22 किलोमीटर दूरी पर बसाहट है। चंद्रहासिनी मंदिर से कुछ दूरी पर माता नाथलदाई का मंदिर है जो रायगढ जिले की सीमा अंतर्गत आता है। चन्द्रपुर की चंद्रहासिनी देवी मंदिर रायगढ जिला पहुंच मार्ग में है जो आवागमन का मुख्य मार्ग है और चन्द्रपुर पुल मुख्य शहर को जोड़ता है। यहां बारहों माह लोगों का आना -जाना लगा रहता है।

चन्द्रहासिनी देवी मंदिर पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान रखता है, वहीं कुंवार नवरात्रि और चैत नवरात्रि पर विशेष पूजा -अर्चना के साथ मनोकामना ज्योतिकलश की स्थापना होती है। कुंवार माह में मेला भरता है और मंदिर दर्शन के लिए दूर-दराज के लोग यहां पहुंचकर माँ चंद्रहासिनी देवी के दर्शन का लाभ लेते हैं।

देवी का मंदिर महानदी किनारे स्थित है, यह टीला नुमा स्थान है, महानदी में बाढ़ आने के बाद भी मंदिर प्रभावित नहीं होता है। वहीं नगर की निचली बस्तियों में बाढ़ के आने से जल भराव हो जाता है। माता की कीर्ति चारों दिशाओं में फैली हुई है। यह मंदिर महानदी के किनारे होने के कारण लोगों को लुभाता है। लोग यहां नवरात्रि पर तो विशेष पूजा -अर्चना के लिए आते ही है, वहीं अन्य समय में भी यहां आकर आनन्द लेते हैं। लोक मान्यता के आधार पर मनोकामना की पूर्ति के लिए नवरात्रि पर मनोकामना ज्योति कलश जलाते हैं वहीं श्रद्धालु मंदिर में बदना में बकरे, मुर्गी की बलि भी देते हैं।

मंदिर का इतिहास

यहाँ प्रचलित किंवदंति के अनुसार माता चंद्रसेनी देवी सरगुजा की भूमि को छोड़कर उदयपुर और रायगढ़ से होते हुए चंद्रपुर में महानदी के तट पर आ गई। महानदी की पवित्र शीतल धारा से प्रभावित होकर माता यहां पर विश्राम करने लगी। वर्षों व्यतीत हो जाने पर भी उनकी नींद नहीं खुली। तो एक बार संबलपुर के राजा की सवारी यहां से गुजरती है, तभी अनजाने में चंद्रसेनी देवी को उनका पैर लग जाता है और माता की नींद खुल जाती है।

फिर स्वप्न में देवी उन्हें यहां मंदिर निर्माण और मूर्ति स्थापना का निर्देश देती हैं। संबलपुर के राजा चंद्रहास द्वारा मंदिर निर्माण और देवी स्थापना का उल्लेख मिलता है। देवी की आकृति चंद्रहास अर्थात चन्द्रमा के सामान मुख होने के कारण उन्हें ‘‘चंद्रहासिनी देवी’’ भी कहा जाने लगा। राजपरिवार ने मंदिर की व्यवस्था का भार यहां के एक जमींदार को सौंप दिया। उस जमींदार ने माता को अपनी कुलदेवी स्वीकार करके पूजा अर्चना की। इसके बाद से माता चंद्रहासिनी की आराधना जारी है।

अन्य मूर्तियाँ

मंदिर परिसर में अर्द्धनारीश्वर, महाबलशाली पवन पुत्र, कृष्ण लीला, चीरहरण, महिषासुर वध, चारों धाम, नवग्रह की मूर्तियां, सर्वधर्म सभा, शेषनाग शय्या तथा अन्य देवी-देवताओं की भव्य मूर्तियां जीवन्त लगती हैं। इसके अलावा मंदिर परिसर में ही स्थित चलित झांकी महाभारत काल का सजीव चित्रण है, जिसे देखकर महाभारत के चरित्र और कथा की विस्तार से जानकारी भी मिलती है।

दूसरी ओर भूमि के अंदर बनी सुरंग रहस्यमयी लगती है और इसका भ्रमण करने पर रोमांच महसूस होता है। वहीं माता चंद्रसेनी की चंद्रमा आकार प्रतिमा के एक दर्शन मात्र से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। चंद्रहासिनी माता का मुख मंडल चांदी से चमकता है, ये नजारा देश भर के अन्य मंदिरों में दुर्लभ है। चंद्रहासिनी देवी मंदिर का रख -रखाव स्थानीय श्री गोपाल महाप्रभु एवं श्री चंद्रहासिनी देवी मंदिर सार्वजनिक न्यास के द्वारा किया जाता है।

आलेख

लक्ष्मी नारायण लहरे, साहिल युवा साहित्यकार पत्रकार
(सह -सम्पादक -छत्तीसगढ़ महिमा हिंदी मासिक पत्रिका रायपुर ) पता – कोसीर ,सारंगढ छत्तीसगढ़

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