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पर्यटन

दक्षिण कोसल की स्थापत्य कला में नदी मातृकाओं का शिल्पांकन

दक्षिण कोसल में स्थापत्य कला का उद्भव शैलोत्खनित गुहा के रूप में सरगुजा जिले के रामगढ़ पर्वत माला में स्थित सीताबेंगरा से प्रारंभ होता है। पांचवीं-छठवीं सदी ईस्वीं से दक्षिण कोसल में स्थापत्य कला के अभिनव उदाहरण प्राप्त होने लगते हैं जिसके अन्तर्गत मल्हार तथा ताला में मंदिर वास्तु की …

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“अपकारी शक्तियों की विनाशक : विधवाओं की आराध्य महाविद्या माँ धूमावती”

माँ धूमावती सनातन धर्म में सातवीं महासिद्धि (महाविद्या) के रुप में शिरोधार्य हैं। “ऊँ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा” माँ धूमावती का बीज मंत्र है। माँ सभी अपकारी तंत्रों मंत्रों और शक्तियों की विनाशक, मानव जाति के लिए सर्वाधिक कल्याण कारी और अपराजेय बनाने वाली देवी हैं। इनके दर्शन ही …

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जनजातीय समुदाय में श्री जगन्नाथ धाम का माहात्म्य

जनजातीय समुदाय में श्री जगन्नाथ धाम का माहात्म्यजगन्नाथ मंदिर विष्णु के 8 वें अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है। पुराणों में इसे धरती का वैकुंठ कहा गया है। यह भगवान विष्णु के चार धामों में से एक है। इसे श्रीक्षेत्र, श्रीपुरुषोत्तम क्षेत्र, शाक क्षेत्र, नीलांचल, नीलगिरि और श्री जगन्नाथ पुरी भी …

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छत्तीसगढ़ अंचल का प्रमुख पर्व रथयात्रा

छत्तीसगढ़ में भगवान जगन्नाथ का प्रभाव सदियों से रहा है, यह प्रभाव इतना है कि छत्तीसगढ़ के प्रयाग एवं त्रिवेणी तीर्थ राजिम की दर्शन यात्रा बिना जगन्नाथ पुरी तीर्थ की यात्रा अधूरी मानी जाती है। मान्यतानुसार जगन्नाथ पुरी की यात्रा के पश्चात राजिम तीर्थ की यात्रा करना आवश्यक समझा जाता …

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आध्यात्म और पर्यटन का संगम गिरौदपुरी का मेला

नवगठित बलौदाबाजार भाटापारा जिलान्तर्गत बलौदाबाजार से 45 कि मी पर जोंक नदी के किनारे गिरौदपुरी स्थित है। गिरौदपुरी जाने के लिए रायपुर से सड़क मार्ग से कटगी से और गिधौरी से बरपाली होकर जाने का रास्ता है। यहाँ सतनाम पंथ के गुरु घासीदास की जन्मस्थल है और जोंक नदी के …

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लखनेश्वर दर्शन करि कंचन होत शरीर : शिवरात्रि विशेष

यात्रा संस्मरण खरौद, महानदी के किनारे बिलासपुर से 64 कि. मी., जांजगीर-चांपा जिला मुख्यालय से 55 कि. मी., कोरबा से 105 कि. मी., राजधानी रायपुर से बलौदाबाजार होकर 120 कि. मी. और रायगढ़ से सारंगढ़ होकर 108 कि. मी. और शिवरीनारायण से मात्र 02 कि. मी. की दूरी पर बसा …

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कुदरत का नजारा, धाँस की जलधारा

नदी-कछार, जंगल-पहार, खेत-खार, पशु-पक्षी यानी कि प्रकृति ने मेरे बालमन को सदैव अपनी ओर आकर्षित किया है। 40 वर्षों तक पढ़ते-पढ़ाते स्कूल में बच्चों के बीच रहा। सेवा-निवृत्ति के बाद आज भी मेरे अंतस मे बाल स्वभाव नित हिलोरें लेता है। बच्चों को देखकर मन स्मृतियों में खो जाता है। …

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छत्तीसगढ़ अंचल में साहसिक पर्यटन

27 सितम्बर विश्व पर्यटन दिवस विशेष आलेख पर्यटन की दृष्टि से देखें तो छत्तीसगढ़ बहुत समृद्ध है। यहाँ पर्यटन के वे सभी आयाम दिखाई देते हैं जो एक पर्यटक ढूंढता है। नदी-पहाड़, गुफ़ाएं, प्राकृतिक वन, वन्य पशु पक्षी, प्राचीन स्मारक एवं इतिहास, खान पान विविधताओं से भरा हुआ है। मानसून …

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बीहड़ वन में गुफ़ा निवासिनी सुंदरा दाई

सनातन संस्कृति में देवी – देवताओं की पूजा -अर्चना का इतिहास आदि काल से ही रहा है। भारत की संस्कृति विश्व में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। भारत वर्ष में अलग -अलग जगहों पर मंदिरों में विराजी आदि देवी शक्तियों की गाथाएं और जन श्रुतियाँ जनमानस के साथ आस्था और विश्वास …

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नरोधी नर्मदा जहाँ झिरिया से बुलबुलों में निकलता है जल

लोक गाँवों में बसता है। इसलिए लोक जीवन में सरसता है। निरसता उससे कोसों दूर रहती है। लोक की इस सरसता का प्रमुख कारण, प्रकृति से उसका जुड़ाव है। लोक प्रकृति की पूजा करता है। आज भी गाँवों में जल को वह चाहे नदी हो, या तालाब का, किसी झरने …

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