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पर्यटन

बुद्ध प्रतिमाओं की मुद्राएं

भारत में एक दौर ऐसा आया कि भगवान बुद्ध की प्रतिमाएं बहुतायत में निर्मित होने लगी। स्थानक बुद्ध से लेकर ध्यानस्थ बुद्ध की प्रतिमाएं स्थापित होने लगी। ज्ञात हो कि भारतीय शिल्पकला में हिन्दू एवं बौद्ध प्रतिमाओं में प्रमुखता से आसन एवं हस्त मुद्राएं अंकित की जाती है। हमें प्राचीन …

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भगवान राजीव लोचन एवं भक्तिन राजिम माता : विशेष आलेख

राजिम दक्षिण कोसल का सबसे बड़ा सनातन तीर्थस्थल के रूप में चिन्हित रहा है क्योंकि यह नगर तीन नदियों उत्पलेश्वर (चित्रोत्पला) (सिहावा से राजिम तक महानदी) प्रेतोद्धारिणी (पैरी) एवं सुन्दराभूति (सोंधुर) के तट पर बसा है। प्रेतोद्धारिणी की महत्ता महाभारत काल से पितृकर्म के लिए प्रतिष्ठित, चिन्हित रही है जिसका …

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जानिए कहाँ शबरी ने भगवान राम को बेर खिलाए थे

जिसका मन सुंदर हो, उसे सारी दुनिया सुंदर नजर आती है। मन से सभी तरह के भेद मिट जाते है। ईश्वर की बनाई सारी रचना खूबसूरत जान पड़ती है। ऐसे ही भगवान राम हैं, उनके दर्शनों के लिए व्याकुलता से प्रतीक्षा करती शबरी से राम जी की भेंट का वर्णन …

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प्राचीन नगर मल्हार का पुरातत्व

प्राचीन नगर मल्हार छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में अक्षांक्ष 21 90 उत्तर तथा देशांतर 82 20 पूर्व में 32 किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। बिलासपुर से रायगढ़ जाने वाली सड़क पर 18 किमी दूर मस्तूरी है। वहां से मल्हार, 14 कि. मी. दूर है। देऊर मंदिर प्राचीन …

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कलचुरी नरेश कर्णदेव जिन्हें इंडियन नेपोलियन कहा गया

अमरकंटक मेकलसुता रेवा का उद्गम स्थल है, यह पुण्य स्थली प्राचीन काल से ही ॠषि मुनियों की साधना स्थली रही है। वैदिक काल में महर्षि अगस्त्य के नेतृत्व में ‘यदु कबीला’ इस क्षेत्र में आकर बसा. वैदिक ग्रंथों के अनुसार विश्वामित्र के 50 शापित पुत्र भी यहाँ आकर बसे। उसके …

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कलचुरीकालीन छत्तीसगढ़ का एक गढ़ : मोंहदीगढ़

विद्वानों का मत है कि मध्यकाल में कलचुरीकालीन छत्तीसगढ़ों को लेकर छत्तीसगढ़ का नामकरण हुआ। ये गढ़ कलचुरी शासन काल में प्रशासन की महत्वपूर्ण इकाई थे। कालांतर में कलचुरी दो शाखाओं में विभक्त हुए, शिवनाथ नदी के उत्तर में रतनपुर शाखा एवं दक्षिण में रायपुर शाखा का निर्माण हुआ। मोंहदीगढ़ …

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बस्तर के सितरम गाँव का मंदिर जहाँ नाग हैं विरासत के पहरेदार

बात सितरम गाँव की है जिसके निकट एक पहाड़ी टीले पर बस्तर की एक चर्चित प्राचीन परलकोट जमींदारी का किला अवस्थित था। यह स्थान वीर गेन्दसिंह की शहादत स्थली के रूप में भी जाना जाता है चूंकि यहीं एक इमली के पेड़ पर लटका कर आंग्ल-मराठा शासन (1819 से 1842 …

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बावनमारी में लिंगो पेन (देव) का जन्म स्थल लिंग दरहा

         पर्वतीय उपत्यकाओं और सुरम्य वन प्रांतर में बसा सम्पूर्ण केशकाल क्षेत्र प्रकृति एवं पुरातत्व के अतुल वैभव से भरा पड़ा है । इस क्षेत्र में अनेक स्थानों पर प्राचीन मंदिरों के भग्नावशेष, पाषाणकालीन अवशेष, प्रतिमाओं एवं शैलचित्रों आदि की प्राप्ति हुई है, जो बाहरी दुनियाँ से अज्ञात है या …

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जानिए ऐसे राजा के विषय में जिसकी शौर्य गाथाओं के साथ प्रेम कहानी सदियों से लोक में प्रचलित है

प्राचीन कथालोक में कई गाथाएं हैं, जो दादी-नानी की कथाओं का विषय रहा करती थी। अंचल में हमें करिया धुरवा, सिंघा धुरवा, कचना घुरुवा आदि कई कथाएं सुनाई देती हैं। ये तत्कालीन दक्षिण कोसल में छोटे राजा हुए हैं, जिनके पराक्रम की कहानियाँ जनमानस में आज भी प्रचलित हैं। यह …

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नारायणपुर का प्राचीन शिवालय

नारायणपुर का प्राचीन मंदिर अपनी मैथुन प्रतिमाओं के लिए प्रसिद्ध है। कसडोल सिरपुर मार्ग पर ग्राम ठाकुरदिया से 8 किमी की दूरी पर नारायणपुर ग्राम में यह 11 वीं शताब्दी का मंदिर स्थित है। यह पूर्वाभिमुखी मंदिर महानदी के समीप स्थित है। इसका निर्माण बलुआ पत्थरों से हुआ है। शिवालय …

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