Home / इतिहास / सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज और सरदार पटेल

सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज और सरदार पटेल

23 जनवरी नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती

दुनिया के दूसरे देशों के इतिहास में भी ऐसा हुआ है कि अंतिम चरण में सत्ता परिवर्तन और आजादी के आगमन में आमने-सामने वाला हिंसक युद्ध घटित हुआ। अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम में जॉर्ज वाशिंगटन के नेतृत्व में ब्रिटेन के खिलाफ युद्ध हुआ और उतार चढ़ाव के बाद अमेरिका स्वतंत्र हो पाया।

इटली के एकीकरण में सारी बाधाएं पार करने के लिए युद्ध करना पड़ा जिसमें प्रधानमंत्री कावूर के साथ गैरीबाल्डी ने अपनी हजार सैनिकों वाली सेना के साथ बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। इटली के एकीकरण के बाद गैरीबाल्डी ने सत्ता में हिस्सेदारी को त्याग दिया और कैप्रेरा द्वीप पर खेती करने के लिए चला गया।

रुस में क्रांति हुई। उसके उपरांत मित्र देशों ने रूस पर हमला कर दिया। मुकाबले के लिए रेड आर्मी बनाई गई जिसका नेतृत्व लियोन ट्रॉटस्की ने किया। चीन में माओ उत्से तुंग ने लांग मार्च नाम से देशांतरण किया तथा युद्ध हुआ। माऊत्से तुंग ने चियांकाई शेक तथा जापान दोनों के खिलाफ युद्ध किया और सत्ता प्राप्त की।

भारत की आजादी में इसी तरह से नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में निर्मित आजाद हिंद फौज ने भारत के एक छोटे से हिस्से को अंग्रेजों के हाथ से स्वतंत्र करने का कार्य सफलतापूर्वक किया। यह क्षेत्र था अंडमान निकोबार जिसे उन्होंने शहीद और स्वराज का नाम दिया।

द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद जब कांग्रेसी नेता जेल से छूटे तो बहुत हताश थे लेकिन बहुत जल्दी आजाद हिंद फौज की कहानी देश में फैलने लगी। उत्साह का माहौल बना। संदेह जनक विमान दुर्घटना के परिणाम स्वरूप नेताजी सुभाष चंद्र बोस राजनीतिक पटल पर किसी भी प्रकार की गतिविधि के लिए उपलब्ध नहीं थे तब भी आजाद हिंद फौज के सैनिकों को रिहा करने के लिए बड़ी-बड़ी रैलियां होने लगी।

इस उत्साहजनक माहौल में नौसैनिक विद्रोह हुए। यह पूरी तरह से निश्चित हो गया कि अंग्रेज अब किसी भी हाल में भारत में शासन नहीं कर पाएंगे। उन्हें भारत छोड़ना ही होगा। इस तरह हमें आजादी मिली।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन में वैचारिक स्तर पर आजाद हिंद फौज जैसी संस्था बनाने का विचार कब आया यह समझना बहुत मुश्किल नहीं है उनके बचपन के बारे में उन्होंने स्वयं बहुत कुछ लिखा है। शेष उनके मित्रों ने संस्मरणों में काफी प्रकाश डाला है।

अपने बाल काल में सुभाष धार्मिक जिज्ञासा से ओत प्रोत थे। विवेकानंद से प्रभावित थे पर पूरी तरह संतुष्ट नहीं थे। इस धर्म की जिज्ञासा के लिए वह बिना किसी को बताएं अपने मित्र हेमंत सरकार के साथ देश भ्रमण पर निकल पड़े थे। मठ और धर्माचार्य के विचार और व्यवहार से सुभाष असंतुष्ट हुए थे और अंततः लौटकर घर आ गए ताकि अध्ययन जारी किया जा सके।

उनके श्रेष्ठ जीवनीकार लियोनार्ड गार्डन ने लिखा है कि प्रेसीडेंसी कॉलेज में पढ़ते हुए सुभाष का कोलकाता के क्रांतिकारी ग्रुप से कोई संबंध नहीं था। परीक्षा परिणाम में उनका स्थान उत्कृष्ट श्रेणी में आता था। इसी दौरान प्रोफेसर ओटन की पिटाई वाली घटना हुई और उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया।

1 वर्ष बाद जब वह पुनः अध्ययन के लिए कोलकाता वापस आए तो प्रवेश में समय लग रहा था। इस दौरान उन्होंने 49वीं बंगाल रेजीमेंट में भर्ती होने की कोशिश की। यह ब्रिटिश सेना और सेवा के प्रति लगाव तो एकदम नहीं था। आंखों की कमजोरी के कारण उनकी भर्ती नहीं हो पाई थी। अंततः उन्हें इस स्कॉटिश चर्च कॉलेज में प्रवेश मिल गया।

दर्शनशास्त्र में उन्होंने पुनः उत्कृष्ट स्थान प्राप्त किया। इस दौरान कॉलेज छात्रों हेतु सेना की अर्ध सैनिक टुकड़ी खोली गई। सुभाष बोस ने इसमें प्रवेश लिया और फोर्ट विलियम तक हथियार लेने के लिए गए। इस दौरान उन्होंने सैन्य प्रशिक्षण लिया और 4 महीने तक कैंप में रहे।

बंदूक चलाने का अभ्यास, ड्रिल ,परेड रूट मार्च और छद्म युद्ध में शत्रुओं का उन्हें अनुभव मिला। बाद में उन्होंने लिखा था कि सन्यासियों के पैरों में बैठकर ईश्वर के प्रति ज्ञान प्राप्त करने की बजाय कंधे पर बंदूक रखकर ब्रिटिश सैन्य अधिकारी से आदेश प्राप्त करने का परिवर्तन अद्भुत था।

नव वर्ष के अवसर पर प्रोक्लेमेशन परेड तथा कोलकाता विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह के मौके पर गवर्नर ने भी इसकी तारीफ की। सुभाष की टीम ने निशानेबाजी की प्रतियोगिता में अपने ट्रेनर शिक्षक की टीम को परास्त किया था। उनके मन में था कि यह ट्रेनिंग नियमित सेवा में बदल दी जाए। इस समय तक खून में राष्ट्रवादी विचार तेज नहीं हुआ था।

इससे आगे का घटनाक्रम अधिक प्रकाश में है BA में उत्कृष्ट स्थान प्राप्त होने के बाद पिताजी ने आईसीएस की परीक्षा के लिए इंग्लैंड भेजा। 8 महीने के समय में नेताजी ने सफल उम्मीदवारों में चौथे क्रम पर अपना स्थान आरक्षित किया। नौकरी छोड़ी और लौट कर भारत आ गए।

गांधी जी से पहले मुलाकात हुई। गांधी जी की योजना से संतुष्ट नहीं हुए। गांधी जी ने कहा सी आर दास से मिलो। ऐसे भी उन्हें कोलकाता जाकर उन्हीं से मिलना था। आंदोलन में शामिल हुए। कॉलेज के प्रिंसिपल बने। गिरफ्तार हुए और फिर चुनाव के बाद कोलकाता नगर निगम में चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर मुख्य कार्यपालन अधिकारी बने।

आईसीएस करने के बाद भी वह इतनी जल्दी इस पद पर नहीं पहुंच सकते थे। तात्कालिक तौर पर यह सफल रहा। इस दौरान सुभाष चंद्र बोस ने नगर निगम के स्कूल में क्रांतिकारियों की नियुक्ति शिक्षक के रूप में शुरू की। इससे उनकी आजीविका की समस्या भी सुलझती तथा एक सम्मानजनक पहचान भी प्राप्त हो रहा था।

सरकार ने रेगुलेशन 1818 के तहत उन्हें गिरफ्तार किया कुछ दिनों तक जेल से काम करने दिया बाद में मांडले भेज दिया। गांधी जी ने इस समय उनके पक्ष में कोलकाता जाकर भाषण दिया। जेल से छूटे और देश में साइमन कमीशन का आंदोलन चलने वाला था।

नेताजी ने पूर्ण आजादी के लिए मांग रखी। जवाहरलाल उनके साथ थे। कोलकाता अधिवेशन के समय उन्होंने बंगाल वालंटियर गठित किया। इसमें भी उनके फौजी स्टाइल की झलक दिखती है। इसके बाद जवाहरलाल नेहरू कांग्रेस के अध्यक्ष घोषित किए गए।

पूर्ण स्वराज के मामले में सुभाष चंद्र बोस ने कहा था कि वह खुले सत्र में वोटिंग की मांग नहीं करेंगे लेकिन ऐन वक्त पर नेताजी पलट गए और वोटिंग की मांग कर दी। नेताजी के पक्ष में बड़ी संख्या में वोट पड़े। गांधी जी की जीत के बारे में कहा जा सकता है कि बहुत प्रभावी जीत नहीं थी।

सरदार पटेल ने कहा कि सुभाष पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। वह वादा करने के बाद भी पलट जाते हैं यह खाई बनी रही। गांधी भी इससे प्रभावित थे और जवाहरलाल नेहरू की वर्किंग कमेटी में सुभाष को जगह नहीं दी गई। श्रीनिवास अयंगर को भी नहीं दी गई। गांधी नाराज थे।

सविनय अवज्ञा आंदोलन के बाद सुभाष को अपने इलाज के लिए यूरोप जाना पड़ा। वहां उनकी मुलाकात सरदार पटेल के बड़े भाई वि जे पटेल से हुई। बड़े पटेल बीमार थे। सुभाष ने दिल से देखभाल की। जब बड़े पटेल की डेथ हुई तो उन्होंने हवाई जहाज से डेड बॉडी को इंडिया भिजवाया।

गांधी जी को पत्र लिखा । गांधी जी ने सुभाष चंद्र बोस के बारे में सरदार पटेल को लिखा कि सुभाष की पीछे की सारी गड़बड़ियां बुलाई जा सकती हैं और तुम्हें पत्र लिखना चाहिए। निश्चय ही सरदार पटेल ने पत्र लिखा होगा लेकिन वह पत्र ना तो पटेल की तरफ की फाइलों में मिलता है और ना सुभाष की तरफ से जमा की गई फाइलों में।

बड़े पटेल ने सुभाष के नाम से अपनी वसीयत कर दी थी कि उनके धन का अधिक बड़ा हिस्सा सुभाष को दे दिया जाए ताकि वह राष्ट्रवादी कार्य में उसका व्यय कर सके। सरदार पटेल इसके लिए नहीं तैयार थे। और इन दोनों के बीच मुकदमे बाजी भी चली।

सुभाष को पैसा नहीं मिला। सरदार पटेल और सुभाष के बीच में खाई बढ़ रही थी। खाई तो पहले से ही थी अब बड़ी होने लगी। सुभाष भारत आए। गिरफ्तार किए गए और उन्हें गांधी जी ने कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया 1938 के हरिपुरा सत्र के लिए ।

1938 के जुलाई महीने से सरदार पटेल और सुभाष के बीच मतभेद बढ़ते गए जिनमें से एक तो यह था कि सुभाष युगांतर और संजीवनी जैसी संस्थाओं के साथ जुड़कर हिंसक क्रांति की तैयारी कर रहे थे , दूसरी थी कि वह शराबबंदी के विरोध में हो गए थे , तीसरी थी उन्होंने योजना आयोग का गठन किया ताकि भारत में औद्योगिक विकास किया जा सके।

अगली घटना थी वह वेश बदलकर जर्मन काउंसिल से मिलने जाते थे। इसकी तस्वीर के एम मुंशी ने गांधी तक पहुंचाने का काम किया। इसके अतिरिक्त एक और बड़ी बात थी कांग्रेस ब्रिटेन के साथ केंद्रीय स्तर पर डाय आर्ची या मिली जुली सरकार बनाने की कोशिश कर रही थी । जवाहरलाल इंग्लैंड गए थे । लॉर्ड लोथियन से उनकी बात हुई थी।

सत्यमूर्ति ने कहा कि मंत्रालयों का भी निर्णय हो चुका है और सुभाष को स्वीकार करना पड़ेगा । सुभाष ने कहा कि वह इस्तीफा दे देंगे कोई भी चीज उनके खिलाफ उनके मन के खिलाफ करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। यह तनाव के कारण थे।

1939 वाले त्रिपुरी संकट के बाद वर्किंग कमेटी ने इस्तीफा दे दिया जिसमें सरदार पटेल प्रमुख थे सुभाष चंद्र बोस कोलकाता से गोपनीय तौर पर निकले और मास्को होते हुए जर्मनी तक पहुंचे इंडियन लीजन की स्थापना की। हिटलर से एक मुलाकात हुई लेकिन आजादी के लिए काम अधिक नहीं बढ़ पाया।

जापान में कैप्टन मोहन सिंह ने आजाद हिंद फौज का गठन किया था लेकिन ऐन वक्त पर जापानियों के साथ उनके मतभेद हो गए और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इस नाजुक मौके पर रासबिहारी बोस ने नेतृत्व ग्रहणाधिकार किया तथा सुभाष बोस को जर्मनी से हैरत अंगेज यात्रा पर आना पड़ा और इस तरह आजाद हिंद फौज कां बड़े पैमाने पर गठन हुआ जिसमें युद्ध बंदी भी शामिल थे और साउथ ईस्ट एशिया के लोग भी शामिल थे, सिविलियन भी शामिल थे।

आजाद हिंद फौज को परास्त होना पड़ा क्योंकि जर्मनी और इटली सरेंडर कर चुके थे। जापान पर भी एटम बम गिराया गया। हिरोशिमा और नागासाकी पर। अतः आजाद हिंद फौज का विकास रोकना पड़ा। इसके बाद वायुयान दुर्घटना के उपरांत नेताजी राजनीतिक पटल से अनुपस्थित हो गए।

नेताजी की अनुपस्थिति के बाद सरदार पटेल ने आजाद हिंद फौज का मामला अपने हाथ में लिया। कांग्रेस की तरफ से वकीलों की कमेटी बनाई गई ताकि इन कैदियों को न्यायिक सुविधा मिल सके और इन्हे बचाया जा सके।

दूसरा काम सरदार पटेल ने किया कि शरद चंद्र बोस को कांग्रेस का विधान मंडल में नेता चुना जाए ऐसा प्रस्ताव दिया। दोनों के बीच रिश्ते अच्छे होने लगे थे। पुरानी प्रतिद्वंद्विता और कटुता खत्म हो गई क्योंकि सरदार पटेल लड़ाकू ओबीसी जाति से थे तथा आजाद हिंद फौज उनके मन की चीज थी। जवाहरलाल नेहरू को भी वकीलों की टीम में शामिल किया गया।

अगला काम उन्होंने और जबरदस्त किया जिसकी जानकारी कम लोगों को है। सुभाष चंद्र बोस ने यूरोप में एमिली शेंकल से शादी कर ली थी। ब्रिटिश सोर्सेस की गोपनीय सेवा से खबर आई कि सुभाष ने यूरोप में विवाह किया था और उस विवाह से उनका 8 साल का एक बच्चा भी है।

सरदार पटेल ने नाथालाल पारीक को भेजा। नाथालाल पारेख ने कहा कि वह लड़का नहीं है लड़की है तथा दोनों का चेहरा इतना मिलता है कि किसी भी तरह की संदेह की गुंजाइश नहीं है। वह सुभाष की ही पुत्री है और यहां से एमिली शेंकल और अनीता के लिए नियमित तौर पर पैसा भेजा जाने लगा।

ऐसा आसानी से समझा जा सकता है कि अगर सुभाष चंद्र बोस 1945 के बाद भारत आ गए होते तो उनकी जोड़ी सरदार पटेल के साथ बहुत अच्छी जमती और भारत का इतिहास अलग रूप में लिखा जाता चाहे कश्मीर हो चाहे चीन हो चाहे आंतरिक औद्योगिक पुनर्निर्माण हो या और कुछ…

आलेख

प्रो. डॉ ब्रजकिशोर प्रसाद सिंह, प्रभारी प्राचार्य शासकीय महाविद्यालय, मैनपुर जिला गरियाबंद


About hukum

Check Also

मराठा साम्राज्य को विस्तार देने वाले सेनानायक बाजीराव पेशवा

28 अप्रैल 1740 सुप्रसिद्ध सेनानायक बाजीराव पेशवा का खरगौन में निधन पिछले डेढ़ हजार वर्षों …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *