Home / इतिहास / आँसुओं और रक्त की धारा के बीच भारत विभाजन की त्रासदी

आँसुओं और रक्त की धारा के बीच भारत विभाजन की त्रासदी

14 अगस्त : भारत विभाजन विभिषिका स्मृति दिवस

संसार में भारत अकेला ऐसा देश है जिसका इतिहास यदि सर्वोच्च गौरव से भरा है तो सर्वाधिक दर्द से भी। यह गौरव है पूरे संसार को शब्द, गणना और ज्ञान विज्ञान से अवगत कराने का और दर्द है निरंतर आक्रमणों और अपनी धरती के हुये विभाजन का।

बीते ढाई हजार वर्षों में 24 और 1873 से 1947 के बीच केवल सत्तर सालों में सात विभाजन हुये। अंतिम विभाजन करोड़ों लोगों के बेघर होने और लाखों निर्दोष नागरिकों की निर्मम हत्या के साथ हुआ।

आज स्वतंत्र भारत का जो स्वरूप और सीमा हम देख रहे हैं उसका भूगोल अतीत के गौरव का दस प्रतिशत भी नहीं है। वैदिक संस्कृति से आलोकित इस भूभाग का नाम कभी जंबूद्वीप था। जिसका स्मरण आज भी पूजन संकल्प में होता है “जंबूद्वीपे भरत खंडे आर्यावर्ते..” पर यह अब केवल इतिहास की पुस्तकों तक ही सिमिट गया।

समय के साथ भारत कभी आर्यावर्त है तो कभी भारतवर्ष भी रहा। हिमालय इसके मध्य में था। जिसके शीर्ष का नाम गौरीशंकर था। अंग्रेजों ने उसका नाम एवरेस्ट कर दिया। नेपाल, भूटान, श्रीलंका, मालदीव, म्यांमार तिब्बत, पाकिस्तान और बंगलादेश ही नहीं कम्बोडिया, ईराक, ईरान और इंडोनेशिया भी कभी भारत का अंग रहें हैं। तब कम्बोडिया का नाम कम्बोज और इंडोनेशिया का नाम दीपान्तर था।

संसार के लगभग सभी देशों में प्राचीन भारतीय संस्कृति और परंपरा के प्रमाण मिलते हैं। उनकी लोकभाषा में संस्कृत के शब्द भी सरलता से मिल जाते हैं। इसके दो कारण हैं। एक तो वह भूभाग जो भारतवर्ष का अंग रहा और दूसरा देशाटन से संस्कृति पहुँची।

भारत की विशालता को समझने के लिये वह एक मंत्र ही पर्याप्त है जो आज भी पूजन के संकल्प में दोहराया जाता है- “जम्बू द्वीपे भारतखंडे आर्याव्रत देशांतर्गते…. अर्थात जम्बू द्वीप के अन्तर्गत भरतखंड और भरत खंड के अंतर्गत आर्यावर्त..

यदि हम वैदिक कालीन जम्बू द्वीप को देखें तो यह चारों ओर खारे समुद्र जल से घिरा हुआ है। इसे हम आज का ऐशिया महाद्वीप कह सकते हैं। इसके अंतर्गत भारतवर्ष। वैदिक काल भारतवर्ष कुल चार साम्राज्य में विभाजित था। पहला आनर्त, साम्राज्य नर्मदा से नीचे समुद्र पर्यंत। श्रीलंका आदि इसी के अंतर्गत थे।

दूसरा ब्रह्मवर्त, यह नर्मदा से गंगा के बीच का भाग, तीसरा आर्यावर्त, यह गंगा से हिमालय पर्यंत, और चौथा पर्सवर्त। पर्सवर्त साम्राज्य ही आगे चलकर पारस साम्राज्य के नाम से जाना गया। सिकन्दर के भारत पर आक्रमण के समय इसका नाम पारस साम्राज्य ही था और वहाँ आर्य वैदिक संस्कृति जीवन्त थी। आजकल यह क्षेत्र ईराक आदि के नाम से जाना जाता है।

निसंदेह आर्यावर्त ज्ञान विज्ञान और अनुसंधान का केन्द्र था पर समूचा भारत आर्यावर्त नहीं था। विभिन्न जीवन शैलियाँ अपने अपने ढंग से विकास कर रहीं थीं। लेकिन आर्य कोई नस्ल नहीं थी एक जीवन शैली थी इसलिए ऋग्वेद में विश्व को आर्य (कृण्वंतोविश्वार्यम्) बनाने का संकल्प है।

ऋग्वेद (10/75) में आर्य निवास में प्रवाहित होने वाली जिन नदियों का वर्णन मिलता है, उनमें कुभा (काबुल नदी), क्रुगु (कुर्रम), गोमती, सिंधु, परुष्णी (रावी), शुतुद्री (सतलज), वितस्ता (झेलम), सरस्वती, यमुना तथा गंगा के नाम हैं। यह क्षेत्र गंगा से हिमालय पर्यन्त ही ठहरता है।

इंडोनेशिया में तेरहवीं शताब्दी तक वैदिक आर्य और बौद्ध धर्म था। इंडोनेशिया में पुराने राजवंशों के जो नाम मिलते हैं उनमें श्रीविजय, शैलेन्द्र, माताराम जैसे नाम मिलते हैं। सुमात्रा में नौवीं शताब्दी तक वैदिक आर्य परंपरा रही है। यही स्थिति वियतनाम और कंबोडिया की है। इन देशों में पुराने राजवंशों के नाम सनातनी परंपरा के रहे हैं। लेकिन यह सब पिछले ढाई हजार वर्षों में भारत से दूर हुये।

यदि हम बहुत पुरानी बात न करें केवल 1876 के बाद की बात करें तो 1876 से 1947 के बीच के कुल इकहत्तर वर्षों में भारत के कुल सात विभाजन हुये और भारत का दो तिहाई हिस्सा पराया हो गया। अफगानिस्तान, श्रीलंका, म्यामार आदि सब इसी अवधि में भारत से अलग हुये।

इसकी भूमिका 1857 की क्रान्ति से बन गई थी। अंग्रेजों के शासन का सिद्धांत “बाँटों और राज करो” था। इसलिए उन्होंने विशाल भारतीय साम्राज्य को बांटना आरंभ किया और चारों ओर बफर स्टेट बनाना आरंभ किया।

1876 में अफगानिस्तान को भारत से अलग किया, 1906 में भूटान को, 1935 में श्रीलंका को, 1937 में वर्मा यनि म्यांमार और 1947 पाकिस्तान के रूप में भारत की धरती पर एक नये देश का उदय हुआ। जो 1971 में विखंडित होकर पाकिस्तान के भीतर से बंगलादेश का उदय हुआ।

1857 की क्रांति भले असफल हो गई थी पर इसके बाद अंग्रेजों ने अपनी सत्ता को सशक्त और स्थाई बनाने के अनेक उपाय किये। पुलिस आदि की व्यवस्था करके न केवल जाति धर्म और भाषा के नाम से विभाजन आरंभ किया अपितु देशात्मक सत्ता के रूप में विभाजन आरंभ किया। ताकि यदि किसी एक क्षेत्र में कमजोर होते हों तो दूसरे क्षेत्र की सेना से नियंत्रित कर सकें। इसीलिये उन्होंने भारत के विभाजन की शुरुआत की।

1876 में भारत का कुल क्षेत्रफल 83 लाख वर्ग किलोमीटर था। जो धीरे-धीरे घटकर अब केवल 33 लाख वर्ग किलोमीटर रह गया। यानि यदि पुराने इतिहास की बात न करें केवल 1874 से 1947 के बीच की बात करें तो इसी अवधि में भारत की पचास लाख वर्ग किलोमीटर धरती पराई हो गयी।

भारत का अंतिम विभाजन 14 अगस्त 1947 को हुआ। इसलिये भारत में 14 अगस्त अखंड भारत दिवस के रूप में मनाया जाता है इसके पश्चात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की घोषणा एवं राजपत्र में प्रकाशन के बाद विभाजन विभिषिका स्मृति दिवस के रुप में भी मनाया जाने लगा है क्योंकि विभाजन का दंश विस्मृत करने लायक नहीं है।

भारत का विभाजन देश के लिए किसी विभीषिका से कम नहीं थी। इसका दर्द आज भी देश को झेलना पड़ रहा है। ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन ने पाकिस्तान को 1947 में भारत के विभाजन के बाद एक मुस्लिम देश के रूप में मान्यता दी थी। लाखों लोग विस्थापित हुए थे और बड़े पैमाने पर दंगे भड़कने के चलते कई लाख लोगों की जान चली गई थी। विश्व में ऐसा भयानक विभाजन और कहीं नहीं हुआ।

इससे पहले ब्रिटिश हुकूमत से आजादी के लिए भी लाखों भारतीयों ने कुर्बानियां दी थीं। 14 अगस्त 1947 की आधी रात भारत की आजादी के साथ देश का भी विभाजन हुआ और पाकिस्तान अस्तित्व में आया। विभाजन से पहले पाकिस्तान का कहीं नामो-निशान नहीं था। अंग्रेज जा तो रहे थे, लेकिन उनकी साजिश का फलाफल था कि भारत को बांटकर एक अन्य देश खड़ा किया गया।

विभाजन की घटना को याद किया जाए तो 14 अगस्त 1947 का दिन भारत के लिए इतिहास का एक गहरा जख्म है, यह रात कभी भूली नहीं जा सकती। बंटवारे का जख्म तो आज तक ताजा है और भरा नहीं है। यह वो तारीख है, जब देश का बंटवारा हुआ और पाकिस्तान एक अलग देश बना। बंटवारे की शर्त पर ही भारत को अंग्रेजों से आजादी मिली।

भारत-पाक विभाजन ने भारतीय उप महाद्वीप के दो टुकड़े कर दिए। दोनों तरफ पाकिस्तान (पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान) और बीच में भारत। इस बंटवारे से बंगाल भी प्रभावित हुआ। पश्चिम बंगाल वाला हिस्सा भारत का रह गया और बाकी पूर्वी पाकिस्तान। पूर्वी पाकिस्तान को भारत ने 1971 में बांग्लादेश के रूप में स्वतंत्र राष्ट्र बनाया।

देश का बंटवारा हुआ लेकिन शांतिपूर्ण तरीके से नहीं। इस ऐतिहासिक तारीख ने कई खूनी मंजर देखे। भारत का विभाजन खूनी घटनाक्रम का एक दस्तावेज बन गया जिसे हमेशा उलटना-पलटना पड़ता है। दोनों देशों के बीच बंटवारे की लकीर खिंचते ही रातों-रात अपने ही देश में लाखों लोग बेगाने और बेघर हो गए। धर्म-मजहब के आधार पर न चाहते हुए भी लाखों लोग इस पार से उस पार जाने को मजबूर हुए।

भारत में करोड़ों लोग हैं जो यह मानते हैं कि पूजा पद्धति बदलने से न तो पूर्वज बदलते हैं और न राजनैतिक परिस्थितियां बदलने से राष्ट्र भाव बदलना चाहिए। इसलिये यह समूह आज भी पाकिस्तान, बंगलादेश, नेपाल, म्यामार, श्रीलंका, तिब्बत आदि प्रति अपनत्व का भाव रखता है।

भारत में ऐसे अनेक सामाजिक संगठन और करोड़ो लोग हैं जो यह आशा करते हैं कि भारत कभी न कभी अखंड अवश्य होगा। समय समय प्रसार माध्यमों में अखंड भारत की ध्वनि सुनाई देती है। इस दिवस को याद करने के पीछे यही मंशा है कि समाज को भारत राष्ट्र के वैभव का स्मरण रहे और उसकी संकल्पना ही शक्ति बनकर भारत राष्ट्र को अखंडता की ओर अग्रसर कर सके।

आलेख

श्री रमेश शर्मा,
भोपाल मध्य प्रदेश

About nohukum123

Check Also

स्वर्ण मंदिर की नींव रखने वाले गुरु श्री अर्जुन देव

सिखों के पांचवें गुरु श्री अर्जुन देव साहिब का जन्म वैशाख वदी 7, संवत 1620 …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *