छत्तीसगढ़ में पुरातत्व से संबंधित कुछ ऐसी दुर्लभ चीजे हैं जो अन्य कहीं पर नहीं मिलती, इनमें से एक ग्राम किरारी से प्राप्त सातवाहनकालीन दूसरी शताब्दी का काष्ठस्तंभ लेख है। जो वर्तमान में महंत घासीदास संग्रहालय रायपुर की दीर्घा में प्रदर्शित है। दुर्लभ इसलिए है कि हमें शिलालेख, ताम्रपत्र, सिक्कों पर लेख आदि प्रचूर मात्रा में प्राप्त होते हैं पर इतना पुराना काष्ठलेख कहीं भी प्राप्त नहीं होता। अगर किसी की जानकारी में अन्य किसी स्थान पर हो तो अवश्य बताए।
यह काष्ठ लेख तत्कालीन बिलासपुर जिले के किरारी नामक ग्राम से प्राप्त हुआ था, जो चंद्रपुर से पश्चिम में सोलह किमी की दूरी पर बसा है। यह स्तंभ लेख जितना महत्वपूर्ण है, इसे प्राप्त करने की कहानी उतनी ही रोचक है। ईस्वीं सन 1931 में इस गांव का हीराबांध नामक पुराना तालाब अवृष्टि के कारण सूख गया। जिससे वहां के किसान उसकी गाद अपने खेतों में खाद के रुप में प्रयुक्त करने के लिए निकालने लगे। गाद खोदने के दौरान अचानक उन्हें यह स्तंभ प्राप्त हो गया। जिसे उन्होंने कीचड़ से निकालकर बाहर धूप में रख छोड़ा।
सैकड़ों वर्षों से तालाब में पड़े होने के कारण वह तदनुकूल बन गया था पर अप्रेल की धूप में बाहर पड़े होने के कारण वह सूखने सिकुड़ने लगा तथा उसकी लकड़ी परत बन उधड़ने लगी, जिसके कारण अक्षर भी उधड़ गए। सौभाग्य से उस गांव में निवास करने वाले पंडित श्री लक्ष्मी प्रसाद उपाध्याय ने काष्ठ पर उत्कीर्ण अक्षरों की यथादृष्ट नकल मौके पर उतार ली। वह नकल इतनी अच्छी थी कि स्वर्गीय डॉ हीरानंद शास्त्री ने उसे प्रमाणित मानकर उसके आधार पर समूचे लेख को एपिग्राफ़िया इंडिका, जिल्द अठारह (152-157) में प्रकाशित करवाया।
पंडित लक्ष्मी प्रसाद उपाध्याय द्वारा नकल किए गए कुल अक्षरों की संख्या 349 से अधिक है, जबकि अब मुश्किल से 20-22 अक्षर ही बचे हैं। जब इस काष्ठ स्तंभ की सूचना पुरातत्व को मिली तो उसके महासंचालक ने स्तंभ को पुन: पानी में डुबाकर रखने के आदेश दिए और वह तब तक तालाब के पानी में डुबा रहा जब तक उसका रासायनिक उपचार नहीं हो गया। इसके पश्चात यह नागपुर के केन्द्रीय संग्रहालय में पहुंचाया गया। वहां इसके उपरी भाग को काटकर प्रदर्शित किया गया, नीचे के भाग को एक तरफ़ डाल दिया गया, यही उपरी भाग अब संग्रहालय में प्रदर्शित है।
काष्ठ स्तंभ की ऊंचाई 13’9″ थी अर्थात लगभग 320 से मी। उपरी भाग में केवल 112 सेमी बचा है उसमें 36 सेमी ऊंचा कलश बना है तथा यह स्तंभ बीजा साल नामक काष्ठ का बना है। यह लेख युक्त स्तंभ अद्वितीय है क्योंकि लेख युक्त स्तंभ तो बहुत मिलते हैं पर काष्ठ का लेख युक्त स्तंभ कहीं नहीं मिलता।
इस प्रकार के युप स्तंभ प्राचीन में भारत वर्ष में बहुधा बनाए जाते थे किन्तु डॉ हीरानंद शास्त्री का मत है कि प्रस्तुत काष्ठ स्तंभ, युप स्तंभ नहीं बल्कि बाजपेय जैसे किसी महायज्ञ से संबंधित है या फ़िर जय स्तंभ या ध्वज स्तंभ है जैसे की आजकल भी छत्तीसगढ़ के तालाबों में देखे जाते हैं।
प्रस्तुत काष्ठ स्तंभ पर उत्कीर्ण लेख की लिपि नासिक की गुफ़ाओं में उत्कीर्ण लेखों की लिपि से साम्य रखती है। लेख में न तो किसी राजा का नामोल्लेख है और न ही संवत लिखा है। फ़िर भी लिपि के आधार पर दूसरी शताब्दी का माना जाता है इसकी भाषा प्राकृत है।
इस लेख में अनेक शासकीय अधिकारियों के नाम एवं पदनाम उल्लेखित हैं। उदाहरण के लिए वीरपालित और चिरगोहक नामक नगररक्षी (कोतवाल), वामदेव नामक सेनापति, खिपत्ति नामक प्रतिहार (दोवारिक), नागवंशीय हेअसि नामक गणक (लेखपाल), धारिक नामक गृहपति, असाधिअ नामक भाण्डागारिक (संग्रहागार का अधिकारी), हस्तयारोह, अश्वारोह, पादमलिक (पुरोहित या पण्डा), रथिक, महानसिक (रसोई का प्रबंध करने वाला) हस्तिपक, धावक (आगे-आगे दौड़ने वाला), सौगंधक, गोमाण्डलिक, यानशालायुधगारिक, पलवीथिदपालिक, लेखाहारक, कुलपुत्र और महासेनानी। इन पदनामों में से बहुतेक का उल्लेख कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी मिलता है।
इन पधाधिकारियों का एक साथ इस लेख में उल्लेख होने से अनुमान लगाया जा सकता है कि प्रस्तुत स्तंभ अवश्य ही किसी बड़े समारोह के आयोजन के अवसर पर तैयार करके खड़ा किया गया होगा एवं इस आयोजन को करने वाला कोई मामूली राजा न रहा होगा।
(स्रोत -उत्कीर्ण लेख (छत्तीसगढ़ संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग का प्रकाशन)
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Very interesting sir. Historical