शंख लिपि प्राचीन लिपि है, माना जाता है कि इसका उद्भव ब्राह्मी लिपि के साथ ही हुआ, यह भारत के कई प्राचीन स्थलों में दिखाई देती है। इसके वर्णों की आकृति शंख जैसे होने के कारण इसे शंख लिपि कहा गया। इसके साथ ही विडम्बना यह है कि इसे पढ़ा नहीं जा सका। हालांकि की कुछ लोग इसे पढ़ने का दावा करते हैं पर उन्हें विद्वानों की मान्यता नहीं मिली। इसलिए यह लिपि भाषा आज तक अबूझ ही मानी जाती है।

छत्तीसगढ़ प्रदेश में भी हमें शंख लिपि मिलती है। यहाँ एक प्राचीन एवं पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण आदिम मानवों का निवास स्थल सीता लेखनी के नाम से जाना जाता है। यह स्थल सरगुजा के जिला मुख्यालय अम्बिकापुर से लगभग 125 किलोमीटर की दूरी पर सूरजपुर जिले में वन परिक्षेत्र बभना कुदूरगढ़ के अंतर्गत है। यहाँ शंख लिपि के लेख के साथ प्राचीन शैल चित्र भी प्राप्त होते हैं।
नामकरण एवं किंवदन्ति
सीता लेखनी के विषय में ग्रामीण मान्यता और किंवदन्ति है कि वनवास काल में भगवान राम और लक्ष्मण ने सीता सहित इस वन परिक्षेत्र में इस पर्वत के समीप निवास किया था। दिनचर्या के पालन में स्थानीय वनवासी उनकी सहायता करते थे। एक दिन वनवासी स्त्रियों को सीता जी ने गेरु से कुछ लिखते देखा तो उनसे पूछ लिया कि वे क्या कर रही है?

वनवासी स्त्रियों ने बताया कि वे लिख रही हैं और सीता जी को लिखना नहीं आता था इसलिए उनको अप्रिय लगा। यह बात उन्होने लक्ष्मण से कही। तब लक्ष्मण ने सीता जी को इन्ही पहाड़ियों पर लिखना सिखाया। इस पहाड़ी पर चारों तरफ़ से गेरु से बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा हुआ है। इसलिए इसका नाम सीता लेखनी पड़ा।
पुरातात्विक महत्व
मानव मुखाकृति सीता लेखनी पहाड़ी पर लेखन शंख लिपि में है। यहाँ शैलचित्रों में मछली, शुकर, हिरण एवं अन्य ज्यामितिय आकृतियाँ भी दिखाई देती हैं। इससे ज्ञात होता है कि इस स्थान पर आदिमानवों का निवास भी रहा है। इसके कारण यह स्थल पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। संसार की प्राचीन लिपियों में से एक शंख लिपि भी है।

इस लिपि में भारत के अतिरिक्त जावा और बोर्नियो में प्राप्त बहुत से शिलालेख प्राप्त हुए हैं। इस लिपि के वर्ण ‘शंख’ से मिलते-जुलते कलात्मक होने के कारण इस लिपि का नामकरण शंख लिपि हुआ। दुर्भाग्य है कि इस लिपि को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। अगर यह लिपि पढ़ी जा सकती तो महत्वपूर्ण प्राचीन जानकारियों से हम अवगत हो सकते हैं।
कैसे जाएं? –
सीता लेखनी पहाड़ी अम्बिकापुर से लगभग 125 किलोमीटर की दूरी पर सुरजपुर जिले के बभना कुदूरगढ़ वन परिक्षेत्र में ग्राम महुली के पास स्थित है। यहा जाने के लिए अम्बिकापुर से भैयाथान एवं ओड़गी विकासखंड से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम महुली के समीप जाना होता है।

यह स्थान वनाच्छादित एवं सुरम्य है। राजधानी मुख्यालय रायपुर से इस स्थान की दूरी लगभग 475 किलोमीटर होगी। इस स्थान पर अम्बिकापुर से स्वयं के साधन एवं टैक्सी द्वारा जाया जा सकता है। सुबह शाम बिहारपुर के लिए बस सुविधा उपलब्ध है।
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