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जानि सरद रितु खंजन आए

ईश्वर की बनाई सृष्टि भी अजब-गजब है, ईश्वर का बनाया प्रज्ञावान प्राणी मानव आज तक इसे बूझ नहीं पाया है। इस सृष्टि में सुक्ष्म से सुक्ष्म जीवों से लेकर विशालकाय प्राणी तक पाये जाते हैं, जिनमें जलचर, नभचर, थलचर एवं उभयचर हैं। नभचर प्राणियों में पक्षियों का अद्भुत संसार है और ये मानव के साथ संलग्न रहते हैं याने मानव के सदा सहचर हैं।

इन पक्षियों में एक खंजन भी है। इस पक्षी को देखते ही अमृतलाल नागर की उपन्यास खंजन नयन याद आती है। जाड़े के दिनों का प्रारंभ होते ही यह पक्षी दिखाई देने लगता है। तुलसी दास जी किष्किंधा कांड में प्रकृति का वर्णन करते हुए इस पक्षी को नहीं भूलते और कहते हैं कि “रस रस सूख सरित सर पानी, ममता त्याग करहिं जिमि ग्यानी॥ जानि सरद रितु खंजन आए, पाइ समय जिमि सुकृत सुहाए॥”

खंजन पक्षी

हमारे पुरखों ने इसे नाम दिया खंजन क्योंकि शरद ॠतु प्रारंभ होते ही यह किसी सुनहली भोर को आकाश से अवतरित हुए होंगे एवं आकाश से अवतरित तब हुए होंगे जब इन्होंने आकाश में जन्म लिया होगा। आकाश में जन्म लेने के कारण इनका नाम धरा गया खंजन।

खंजन मंजु तिरीछे नयननि। निजपति कहेउ तिन्हहिं सियँ सयननि।। ग्रामीण स्त्रियाँ उनके साथ के दोनो पुरुषों के विषय में पूछती है तो वे भी खंजन नयन का जिक्र करते हुए बड़ा संकोचकर मृग के नयनों वाली सुंदर सीता कोयल जैसी प्रिय वाणी में कहती हैं – जो सहज स्वभाव के सुंदर और गोरे हें वे मेरे छोटे देवर लक्षमण हैं। फिर संकोच के कारण बड़े जतन से अपने मुंह को आंचल से छुपाकर अपने पति की ओर भंवे तिरछी करके इशारा करते हुए खंजन पक्षी की आंखों जैसे सुंदर नेत्रों को तिरछा करके कहा – ‘‘और यह मेरे पति हैं’।’

अरण्यकांड में सीता हरण के पश्चात् राम जब आश्रम लौटकर आते हैं और सीता को वहां नहीं पाते हैं तो सीता के विरह में पागल के समान पेड़-पौधों तक से सीता का पता पूछने लगते हैं और कहते हैं “खंजन सुक कपोत मृग मीना। मधुप निकर कोकिला प्रबीना।।” खंजन पक्षी, शुक कपोत, कमल, आदि सभी सीता के चले जाने से बड़े प्रसन्न हैं क्योंकि सीता उनसे भी अधिक सुंदर हैं और सीता के सामने उनकी सुंदरता तुच्छ है। खंजन पक्षी के नयनों की सुंदरता एवं चंचल चपल होने के कारण इसे साहित्य में स्थान दिया गया है।

तुलसी दास जी ने रामचरित के माध्यम से इसे अमर कर दिया। हिंदी में इसे धोबन भी कहा जाता है। पंजाब में इसे बालकटारा, बांग्ला में खंजन, आसाम में बालीमाटी और तिपोसी और मलयालम में वेल्ला वलकुलुक्की कहते हैं। शकुन अपशकुन विचार शास्त्र में खंजन पक्षी को स्थान दिया गया है, इसे प्रात: सूर्योदय के समय देखना अत्यंत शुभ एवं लाभकारी बताया गया है एवं सूर्यास्त के समय अशुभ।

 

आलेख एवं छायाचित्र

ललित शर्मा
इंडोलॉजिस्ट

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