एन राम ने डॉक्टर्ड डॉक्यूमेंट के आधार पर फेक न्यूज़ तैयार किया। 2014 में इलेक्शन के पूर्व शेखर गुप्ता ने फेक न्यूज़ बनाकर बड़े अंग्रेजी अखबार में तत्कालीन सेना प्रमुख बीके सिंह के लिए अफवाह फैलाई कि सेना सत्ता पर कब्जा करने के लिए कूंच कर चुकी है।
फेक न्यूज़ का इतिहास आज का नहीं है बहुत पुराना है। भारत के इतिहास समाज और ग्रंथों के बारे में फेक न्यूज़ को सत्य की तरह प्रचारित प्रसारित करने का काम 1785 से शुरू हुआ जब कलकत्ता हाइकोर्ट के जस्टिस विलियम जोहन्स ने एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना की।
विलियम जोहन्स हर साल तबसे जब तक जिंदा रहा हर साल सालाना जलसा करता था जिसमे वह भारत के बारे में अपनी समझ के अनुसार और अपनी इसाइयित बिगोट्री के प्रतिबद्धता के कारण जो भी उल्टा सीधा लिखकर यूरोप के साहित्य मार्किट में छपवा कर बेचा।
वही फेक न्यूज़ एक फर्जी विज्ञान का आधार बना जिसको पाश्चात्य जगत में-फिलोलोजी, इंडोलॉजी और साइंस ऑफ लैंग्वेज के नाम से विश्विद्यालयों के पाठ्यक्रम में शामिल कर पूरे विश्व मे प्रचारित प्रसारित किया।
1857 में जब भारत ने दरिद्र ईसाई फनाटिक दस्युओं को भगाने में अर्धसफ़ल हुए तो उन्होंने भारतीयों को बांटने और अपने लिंक को यहूदियों से काटकर श्रेष्ठ संस्कृति से जोड़ने के लिए अनेक षड्यंत्र रचे और निराधार फैंटेसी कथाओं की रचना की।
1859 में मैक्समुलर नामक दरिद्र हार्डकोर जर्मन ईसाई ने ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा में एक फैंटास्टिक फैंटेसी की रचना की-आर्यन थ्योरी। इस फर्जी थ्योरी का उन्होंने बहुआयामी प्रयोग किया।
एक प्रयोग जर्मनी में किया – जिसका परिणाम यह रहा कि जर्मनी का वाईस चांसलर स्वयं को ईसाई आर्य समझने लगा। साथ मे पूरे जर्मन वासी ईसाई भी। परिणाम यह हुआ कि दूसरे विश्वयुद्ध में उन्होंने 60 लाख यहूदियों और 40 लाख जिप्सियों का बेरहमी से कत्ल कर दिया।
उसी फैंटेसी को भारत मे एक्सपोर्ट करके यह कोशिश की गयी कि 1857 की पुनरावृत्ति न हो। परिणामस्वरूप अनेक लोग उस फैंटसी से दिग्भ्रमित हो गए। उनमे बालगंगाधर तिलक से लेकर रामधारी सिंह दिनकर से लेकर डॉ भीमराव अम्बेडकर आदि आदि थे।
उस फैंटेसी की काट करने के लिए डॉ आंबेडकर ने 1946 में यह पुस्तक लिखी “हू इज द शूद्र” अर्थात शूद्र कौन थे फैंटेसी इसलिए कि इस पुस्तक की प्रस्तावना में उन्होंने ब्रामहण क्षत्रिय वैश्य को क्रमशः Priest, warrior, trader लिखा तो शूद्रों को उन्होंने Menial की संज्ञा दे दी।
जबकि कोई भी ग्रंथ शूद्र को menial नहीं बताता। इसका निष्कर्ष एक ही है-फेक न्यूज़ को एनकाउंटर में लिखी गयी दूसरी फेक न्यूज़। फेक न्यूज़ की काट फेक न्यूज़ से। इसका भारत के इतिहास और समाज से कोई सम्बन्ध नही था, न है। लेकिन माइंड मैनीपुलेशन का गेम है ये।
लेनिन भी तो कभी बड़ा नायक था। जिसकी मूर्ति उसी के देश के लोगों ने तोड़कर धूलधूसरित किया था-काल समय के क्षुद्र क्षणिक नायक। भारतीय सरकारें अपने अपने कारणों से इस फैंटसी/फेक डॉक्यूमेंट पुस्तक को सरकारी खजाने से छपवा और बेंच रही है, जो कि ब्रेकिंग इंडिया फोर्सेज की सबसे बड़ी डाक्यूमेंट्री शक्ति है।
इसी पुस्तक की विवेचना और समीक्षा डॉ. त्रिभुवन सिंह ने अपनी पुस्तक तथ्यों के आलोक में अम्बेडकर “शुद्र कौन थे” अवलोकन एवं समीक्षा पुस्तक में प्रकाशित हुई है, जो अमेजन पर उपलब्ध है।
आलेख
डॉ आनन्द मोहन सिंह
लखनऊ
लेखक
डॉ त्रिभुवन सिंह
प्रयागराज
प्रकाशक
Anamika Prakashan,
52 Tularambagh,
Allahabad-211006. Uttar Pradesh
पुस्तक मुल्य – 200