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दक्षिण कोसल की रामलीला एवं उसका सामाजिक प्रभाव : वेबीनार रिपोर्ट

दक्षिण कोसल की रामलीला एवं उसका सामाजिक प्रभाव विषय पर एक दिवसीय वेब संगोष्ठी का आयोजन सेंटर फॉर स्टडी ऑन होलिस्टिक डेवलपमेंट छत्तीसगढ़ तथा ग्लोबल इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण उत्तर प्रदेश के संयुक्त तत्वाधान में दिनांक 19 जुलाई 2020 को हुआ।

वेब संगोष्ठी में स्वागत उद्बोधन अयोध्या शोध संस्थान उत्तर प्रदेश के संचालक डॉ योगेंद्र प्रताप सिंह, मुख्य अतिथि डॉ नीलकंठ तिवारी, पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री स्वतंत्र प्रभार, उत्तर प्रदेश शासन, मुख्य वक्ता श्री अशोक तिवारी भूतपूर्व संग्रहाध्यक्ष इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय भोपाल, अतिथि वक्ता मैक्सिम देमचेंको (रामचंद्र), एसोसिएट प्रोफेसर मास्को स्टेट लिंग्विस्टिक विश्वविद्यालय, मास्को रूस, अतिथि वक्ता पद्मश्री श्री अनुज शर्मा, अतिथि वक्ता इंदिरा रामप्रसाद, अध्यक्ष डॉ सच्चिदानंद जोशी, मेंबर सेक्रेटरी आईजीएनसीए दिल्ली थे। वेब संगोष्ठी में सम्मिलित अतिथियों का आभार व्यक्त सी एच एच डी के सचिव श्री विवेक सक्सेना ने किया । कार्यक्रम का संचालन श्री ललित शर्मा प्रसिद्ध इंडोलॉजिस्ट और इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण छत्तीसगढ़ इकाई के संयोजक ने किया।

वेब संगोष्ठी का शुभारंभ करते हुए श्री ललित शर्मा ने कहा कि दक्षिण कोसल वह भू-भाग है, जिसे आज छत्तीसगढ़ कहा जाता है और हम इसी दक्षिण कोसल पर आज चर्चा कर रहे हैं कहते हुए आज की वेब संगोष्ठी में उपस्थित सभी आमंत्रित वक्ताओं का परिचय। उन्होंने इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण एवं अयोध्या शोध संस्थान, उत्तर प्रदेश के निदेशक डॉ योगेन्द्र प्रताप सिंह जी को उद्बोधन देने के लिए आमंत्रित किया।

डॉ योगेंद्र प्रताप सिंह जी ने कहा कि संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश की ओर से आप सभी का स्वागत है, माननीय संस्कृति मंत्री जी का मैं ह्रदय से आभारी हूँ, उन्होंने हमारे निमंत्रण को स्वीकार कर अपना कीमती समय इस वेबिनार के लिए दिया। इसके बाद वेबिनार में प्रतिभागी बने सभी लोगों का आभार प्रकट करते हुए उन्होंने संस्कृति मंत्री जी को अब तक हुए सभी वेबिनारों के संबंध में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ और झारखंड दो आटविक राज्य हैं। छत्तीसगढ़ का एक भू-भाग उड़ीसा तो एक हिस्सा बनारस से जुड़ा है, भोजपुरी भाषा का प्रभाव यहाँ देखा जा सकता है। कलिंग युद्ध के बाद छत्तीसगढ़ और उड़ीसा आपस में सांस्कृतिक रूप से जुड़ गए। अंकोरवाट मंदिर का संबंध भी उड़ीसा के राजपरिवार से जुड़ा है। उस मंदिर के निर्माण में उड़ीसा के राज परिवारों ने अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। सिरपुर जो जिला मुख्यालय रायपुर से 80 किलोमीटर है। इसे जरूर देखना चाहिए। छत्तीसगढ़ की वाचिक परंपरा में रामायण विषय पर पूर्व में वेबिनार हो चुका है। जिसमें छत्तीसगढ़ की वाचिक परंपरा की स्मृद्धि का पता चलता है। इसके पहले जब पश्चिम बंगाल में वेबिनार का आयोजन किया गया था तो मोहम्मद के के जी भी जुड़े हुए थे। जो राम मंदिर उत्खनन में महती भूमिका में रहे। कश्मीर से बोलोन और फिर रसिया का संबंध भी रामायण से रहा है। 30 मई को मुख्यमंत्री जी ने निर्देश दिया कि इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण की रचना करनी है। जिसे केवल लाइब्रेरी में ही नहीं रखा जाएगा, बल्कि यह युगांतरकारी होगा। कल शुभ दिन रहा है राम मंदिर को लेकर। जिसमें मंत्री जी की महती भूमिका रही। यह दो चार साल के लिए नहीं सैकड़ों सालों के लिए विरासत बनेगी। अब जल्दी से जल्दी लेखन कार्य भी प्रारंभ करें, रामकाज आगे बढ़े। आप सब का धन्यवाद।

उसके बाद ललित शर्मा की ने कहा कि आदरणीय डॉ वाय पी सिंह जी ने वेबिनार के बारे में विस्तार से चर्चा की। उनके साथ हमारा काम इस सेतुबंध में उतना ही है, जितना की गिलहरी का काम सेतुबंध के निर्माण में रहा है। पद्मश्री अनुज शर्मा जी हमारे साथ जुड़े हुए हैं, जो छत्तीसगढ़ी और भोजपुरी फिल्मों के कलाकार हैं। हमारे साथ उत्तर प्रदेश सरकार के माननीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री डॉ श्री नीलकंठ तिवारी जी भी इस वेबिनार में जुड़े हुए हैं। आज के मुख्य अतिथि भी हैं। अब वे आप लोगों को अपना विचार प्रकट करेंगे, मैं उन्हें आमंत्रित करता हूँ।

माननीय संस्कृति मंत्री डॉ नीलकंठ तिवारी जी ने कहा कि मुझे बताया गया है कि यह 25वां वेबिनार है। आज दक्षिण कोसल में रामलीला एवं उसका सामाजिक प्रभाव विषय पर यह वेबिनार का आयोजन किया गया है। माता कौशल्या का संबंध इस क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। सीताहरण इसी क्षेत्र में हुआ है, माता शबरी का संबंध यहीं से हैं, बस्तर में दंडकारण्य है, अनेक स्थल हैं जो राम से जुड़े हुए है और छत्तीसगढ़ में स्थित हैं।

रामलीला का मंचन यहाँ होता है। चाहे वह वाल्मीकि रामायण से हो या तुलसीदास कृत रामचरितमानस से हुआ हो, परंतु इन लीलाओं के माध्यम से उस समय की संस्कृति का परिचय होता है। मनुष्य के जीवन में इच्छा दशरथ द्वारा पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराने की होती है, फिर रामचंद्र जी के जन्म पर सोहर गीत गाए जाते हैं । फिर जब श्री रामचंद्र जी जब चलने लग जाते हैं, तब उन्हें गुरुकुल भेजा दिया जाता है। एक राजा का लड़का चक्रवर्ती सम्राट का लड़का गुरुकुल में साधारण बच्चों की तरह शिक्षा प्राप्त करता था। कंदमूल खाकर जीना, कठोर जीवन साधना, गुरुकुल में सीखा। गुरुकुल और गुरु परंपरा का पता रामलीला के मंचन से होता है। यह हमारे राष्ट्रीय स्वाभिमान के साथ जुड़ा होता है। राजा अपने कलेजे के टुकड़े को कर्तव्य बोध के कारण विश्वामित्र जी के साथ भेज देते हैं, आदि रामलीला के माध्यम से शिक्षा देकर समाज के हर तबके जोड़ा जाता है।

पर बीच में यह भाव आ गया था कि विदेशी आक्रांता भारत पर चिर स्थाई रूप से आ गये। आज यह भ्रम दूर हो रही है शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, माधवाचार्य, बुद्ध, कबीर, आदि ने आकर समाज को संगठित किया। फिर तुलसीदास जी आए और उन्होंने देखा कि विदेशी आक्रांता यहाँ आकर भारतीय संस्कृति को अत्याचार के माध्यम से नष्ट भ्रष्ट करने का प्रयास कर रहे थे। ऐसे समय में तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना की, हनुमान चालीसा की रचना की, रामलीला का मंचन करवाया। बीच-बीच में उद्घोष करते थे ,”राजा रामचंद्र की जय” इस उद्घोष से समाज उठ खड़ा हुआ। तब लोगों ने निश्चय किया कि अब इन आतंकियों को भगाना है और यही भाव अंग्रेजों से मुक्ति का भी आधार बना। छत्तीसगढ़ में रामलीला का मंचन होते रहता है। हमारे इतिहास को सही ढंग से नहीं लिखा गया है। यह काम अब सही ढंग से होने जा रहा है। आप सबको धन्यवाद जो इस राम काज में जुड़े हुए हैं।

वेबीनार के संचालक श्री ललित शर्मा ने माननीय मंत्री जी के प्रति आभार प्रकट करते हुए कहा कि दक्षिण कौशल में रामायण के पुरातात्विक प्रमाण पर अगले सप्ताह वेबीनार का आयोजन किया जाना है जिसमें प्रमुख वक्ता डॉ शिवाकांत बाजपेयी जी होंगे। जिन्होंने छत्तीसगढ़ पर अनेकों काम किए हैं। और वर्तमान में वह कर्नाटक में अधीक्षण पुराविद के पद पर कार्यरत हैं। वेबिनार के मुख्य वक्ता श्री अशोक तिवारी को अपने उद्बोधन के लिए आमंत्रित किया।

मुख्य वक्ता श्री अशोक तिवारी ने कहा कि हम लोग आज दक्षिण कोसल में रामलीला एवं उसका सामाजिक प्रभाव विषय पर सेमिनार कर रहे हैं। वास्तव में रामलीला एक भक्ति का साधन है, रूप है । छत्तीसगढ़ में मानता रखा जाता है कि अगर अमुक काम संपन्न हो जाए तो रामलीला का आयोजन करूंगा। रामलीला कब से प्रारंभ हुई यह मंत्री जी ने विस्तार से बताया है पर तुलसीदास जी के समय से रामलीला का आयोजन प्रारंभ हुआ। रामलीला उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक सभी जगह पूरे भारतवर्ष में आयोजित होती है। हिंदी भाषी जहाँ भी गए, वहाँ अपने साथ धर्म से जुड़े हुए इस शक्तिशाली पक्ष रामलीला को अपने साथ ले गए। सब से बड़ी शक्ति के रूप में रामायण, राम चरित मानस आदि का पाठ भक्ति से होता है। शक्ति अर्जन लिए होता है । 170 साल से रामलीला टोबेको में चल रही है। 32 स्थानों पर 10 दिन के लिए रामलीला का मंचन होता है।

भारत में रामलीला तेलुगू, तमिल, मणिपुरी, कुचिपुड़ी में नृत्य के माध्यम से भी होती है। चमड़े से बने हुए पुतले से भगवान राम की लीला का मंचन रावणछाया के नाम से होता है। जहाँ तक हिंदी भाषी और छत्तीसगढ़ के सभी जिलों की बात है मध्य छत्तीसगढ़ में रामलीला मंडली को बुलाकर 10 दिन रामलीला का मंचन होता है। सभी मंडली को बैलगाड़ी के माध्यम से मंच पर पहुंचाया जाता था। जिसमें रामलीला के लिए धन कहाँ से आएगा, यह चिंता नहीं रहती थी। रामलीला में प्रत्येक दिन आरती कराई जाती थी। जिसमें चढो़तरी भी चढ़ती थी । उन्हीं के माध्यम से मंडली को पर्याप्त धन मिल जाया करता था।

रामलीला को रोचक बनाने के लिए बीच-बीच में हास्य कलाकार को जोकर के रूप में शामिल कर लिया जाता था। समय-समय पर इसमें प्रयोग भी किया जाता रहा है। ठाकुर प्यारेलाल सिंह जी ने रावण को अंग्रेज सरकार के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयोग किया। तो ठाकुर छेदीलाल सिंह जी अकलतरा वाले ने सर्च लाइट चला कर अकलतरा में रामलीला के मंचन के बारे में आसपास के गाँव के लोगों को सूचना दी जाती थी। जिसे सुनकर पता चल जाता था कि अकलतरा में अब रामलीला होने जा रहा है।

आज के अतिथि वक्ता अनुज शर्मा जी साथ हैं। उनके क्षेत्र भाटापारा में रामलीला का मंचन सौ वर्षों से किया जाता है जहाँ रामलीला की प्रारंभ राजस्थानी व्यापारी लोगों ने किया, रायगढ़ के पुसौर ग्राम में 114 वर्ष से रामलीला का मंचन किया जा रहा है। पुसौर के लोग एक बार उड़ीसा गए थे। वहाँ उन्हें रामलीला देखने का अवसर प्राप्त हुआ। उस समय उनके पास लेखन के लिए कोई साधन नहीं थे। तब उन्होंने रामलीला को देखकर, ताड़ पत्र में लिखकर, राम जन्म तिथि रामनवमी से प्रारंभ होकर 27 दिन तक राम उत्सव मनाने की परंपरा प्रारंभ की। उस क्षेत्र के आसपास के क्षेत्र में भी रामलीला होती है। पर वह 7 दिन चलती है।

1913 से उड़ीसा में वहाँ के राजा ने 18 दिवसीय रामलीला का मंचन कराया। उस समय में महानदी को सरयू और गंगा का रूप दे दिया जाता था। पूरा गाँव अयोध्या और जनकपुर का रूप धारण कर लेता था, आसपास के गाँव से 10 लोग रावण का रूप लेकर आते थे। राजवाड़े हिंदू राजाओं के थे। जिनके सानिध्य में रामलीला का मंचन किया जाता था। छोटे-छोटे गाँव में रामलीला के पश्चात राम-लक्ष्मण बने कलाकार के द्वारा रावण वध करने की परंपरा रही है। कुछ जगह पंजाब के व्यापारी छत्तीसगढ़ आकर रामलीला का प्रारंभ कराए।

बस्तर में 75 दिवसीय दशहरा उत्सव मनाया जाता है । नवरात्र के समय शक्ति की आराधना की जाती है और वह शक्ति आराधना रामलीला में भी होती है। छत्तीसगढ़ में कई जगह रावण की पक्की मूर्ति बनाई जाती है। इसे रावणभाठा कहा जाता है। पर छत्तीसगढ़ में अब इस परंपरा की ह्रास हो रहा है पर कुछ लोग आगे भी आ रहे हैं। छोटे-छोटे गाँव में, कवर्धा जिले में अब रामलीला का मंचन होता है। भगवान राम का ननिहाल छत्तीसगढ़ को माना जाता है। छत्तीसगढ़ में राम को भांजा माना जाता है। इसलिए यहाँ भाँजे को प्रणाम किया जाता है क्योंकि सभी भांजे में राम का ही रूप देखते हैं। नवधा रामायण का मंचन होता है। यहां प्रतिस्पर्धाएँ भी होती हैं। गाँव गाँव में राम संकीर्तन का आयोजन किया जाता है। छत्तीसगढ़ के 6 जिलों में रामनामी संप्रदाय निवास करता हैं। जिनकी संख्या लगभग एक लाख के बराबर है जो पूरे शरीर में राम नाम गोदवाते हैं। जो विश्व में केवल छत्तीसगढ़ में विद्यमान है।

दशहरे के दिन छोटे बच्चे राम, लक्ष्मण और हनुमान का रूप धारण करते हैं और वही रावण का वध भी करते हैं पर अब कुछ समय से देखा जा रहा है कि इस परंपरा का ह्रास हो रहा है। छत्तीसगढ़ और भारत सरकार को इस दिशा में ध्यान देने की आवश्यकता है। रामलीला इतना सशक्त माध्यम है। जहाँ भी रामलीला का ह्रास हो रहा है वहाँ प्रयास करना चाहिए ।आप लोगों ने मुझे यह अवसर प्रदान किया इसके लिए आप सब का धन्यवाद।

कार्यक्रम के संचालक श्री ललित शर्मा ने कहा कि आपका वक्तव्य सुनकर मुझे अपना बचपन का दिन याद आ गया। जब बोरा ले जाकर रामलीला देखने जगह बनाई जाती थी। जहाँ रामलीला का आयोजन होता था। उन्होंने मास्को रूस से जुड़े हुए अतिथि वक्ता मैक्सिम देमचेंको जिन्होंने अपना उपनाम भी रामचंद्र ही रख लिया है। रामनामी संप्रदाय की तरह तिलक भी धारण करते हैं। वे मास्को के स्टेट लिंग्विस्टिक विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं। विचार रखने के लिए आमंत्रित हैं।

अतिथि वक्ता रूस के मास्को शहर में निवास करने वाले मैक्सिम रामचंद्र जी ने अपने संबोधन में कहा कि मैंने भारतीय दर्शन और अध्यात्म पर आठ से 10 पुस्तकें लिखी है। मैं पिछले 10 वर्षों से काम कर रहा हूँ। मेरी हिंदी इतनी अच्छी नहीं है फिर भी मैं यथासंभव प्रयास कर रहा हूँ। जो मैंने 10 वर्षों तक काम किया उस पर चर्चा कर रहा हूँ। भारत में मुख्य रूप से रामलीला का मंचन वाल्मीकि रामायण और तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस पर आधारित पुस्तकों पर किया जाता है। रामानंद आचार्य जी के अनुसार रामचंद्र जी ही सर्वोच्च भगवान हैं। श्री रामानंद आचार्य जी के बदौलत बहुत से लोग मेरे मित्र बन गए हैं। मेरा मुख्य शोध अयोध्या पर है। उन्होंने बताया कि आज कविता अवधी में लिखा जाता है। अयोध्या में गाँव की भाषा अवधी है। डॉ ललित शर्मा जी ने मुझे रूस में रामलीला के बारे में कहने को कहा है इसलिए मैं उसी पर फोकस करता हूँ।

रुसी में वाल्मीकि रामायण का अनुवाद हुआ है । 1949 में राम चरित्र मानस का भी रूसी में अनुवाद किया गया । सोवियत रूस के समय में बहुत काम हुआ आजकल कुछ समस्या आ रही है, पर इसे पुनः स्थापित किया जा रहा है। भारत सरकार को रूस में भी रामलीला और रामायण का प्रचार के लिए काम किया जाना चाहिए। किताब तैयार भी हुआ पर अब तक प्रकाशित नहीं हो पाया है यहाँ इसके लिए सहयोग की आवश्यकता है। मुझे रूस में रामायण की प्रचार प्रसार के लिए सहयोग की आवश्यकता है । इस समय कोरोना महामारी है इसलिए अभी अयोध्या आना जाना नहीं हो पा रहा है। इसके पहले मैं हर साल अयोध्या आता था। अंत में मैक्सिम देम्चेन्को जी ने अपनी स्वरचित कविता के माध्यम से अपना उद्बोधन समाप्त किया। संचालक ललित शर्मा ने अतिथि वक्ता पद्मश्री अनुज शर्मा जी को वेबिनार में उद्बोधन के लिए आमंत्रित किया।

श्री अनुज शर्मा जी ने अतिथियों का संबोधन पश्चात् कहा कि मेरा नाम अनुज शर्मा है पर मेरा पूरा नाम रामानुज शर्मा है। अनुज ही प्रसिद्ध हो गया है। पूर्व वक्ताओं ने इस संबंध में अनेक बातें कहीं। मैं भी कुछ बातें कहना चाह रहा हूँ। एक बार मैं फिजी गया था। मैं जैसे ही वहाँ पहुँचा तो एफएम चल रहा था उसमें से एक व्यक्ति ने रामचरित मानस के दोहे को बार-बार जाप कर मनोकामना सिद्धि की बातें कह रहा था। उसी समय एक लड़की का फोन आया उसने शादी के बारे में बात कही। उन्होंने कहा कि तुम भी रामचरितमानस के इस दोहे को नियमानुसार जाप करो, तुम्हारा मनोरथ सफल होगी।

मैं मूलतः भाटापारा का निवासी हूँ। भाटापारा में रामलीला का आयोजन वर्षों से चल रहा हैं। भाटापारा में रामलीला की शुरुआत लहरिया महाराज ने प्रारंभ किया था। वहाँ इस दिशा में लगातार अच्छे काम हो रहा है। रामलीला में भी अलग-अलग पुस्तकों के संवाद को अपनाया जाता है। जिससे दृश्य को प्रभावशाली बनाया जा सके। जैसे कि श्री अशोक तिवारी जी ने बताया कि कवर्धा में 26 वर्षों से अखंड रामजाप संकीर्तन हो रहा है। वैसे ही भाटापारा के आसपास 12 मोहल्ले में दो 2 घंटे के लिए समय बांट कर अखंड राम धुन किया जाता है। आसपास की सौ टोलियाँ, रामनवमी के समय आकर प्रतियोगिता करते हैं। इन लोगो के लिए गाँव में मुफ्त भोजन और निवास की व्यवस्था कराई जाती है तथा रामायण का उपयोग भी संवाद के लिए किया जाता है। जब छोटा था, लगता था, इतनी बड़े-बड़े संवाद कथन पात्र कैसे कर पाते हैं । जब मुझे रामलीला में भागीदार बनने का अवसर मिला तब पता चला कि पर्दे के पीछे से लंबे संवाद को पात्र को बताया जाता है। मुझे भी अपने यहाँ रामलीला में वानर दल में मेरे गोरे रंग के कारण शामिल होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, नहीं तो अगर काला रहता तो दानव दल में मुझ को शामिल किया जाता। भाटापारा के श्री आदर्श रामलीला ने आश्चर्य रूप से प्रगति की है। अहिरावण वध यहाँ सर्वाधिक अद्भुत हुआ करता है। जमीन में से सिर धीरे-धीरे बाहर आता है। वहाँ बड़े बड़े स्टार कलाकार हुए हैं। मैं भाटापारा पर ज्यादा चला गया था। पर छत्तीसगढ़ के परिपेक्ष में एक बात बताना चाहता हूँ किसान जब धान नापने के लिए काठा का प्रयोग करते हैं। उस समय पहले काठे का नाप ही राम के नाम से चालू किया जाता है। मुझे अपनी बात रखने के लिए मंच प्रदान किया गया इसके लिए मैं ललित शर्मा जी और इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण का आभारी हूँ।

श्री ललित शर्मा जी ने भी बताया कि भाटापारा से मैं भी जुड़ा हूँ, आज से 28 वर्ष पूर्व मोर मुकुट बांध कर भाटापारा गया। मेरे बच्चों का ननिहाल भाटापारा में ही है। इसी बीच अनुज शर्मा जी ने पुनः एक बार आकर एक बात और जोड़ी कि राजस्थान में एक बार मैं शूटिंग के लिए चूरू गया हुआ था जिसमें एक रामलीला को देखा, उस रामलीला में किसी प्रकार का संवाद नहीं किया जाता है मौन रामलीला होती है। ललित शर्मा जी ने वेस्ट इंडिज के त्रिनिदाद से जुड़ी इंद्राणी रामप्रसाद जी को उद्बोधन के लिए आमंत्रित किया।

इंद्राणी रामप्रसाद जी ने कहा कि मैं वेस्टइंडीज के त्रिनिदाद से हूँ। मेरा मूल बिहार के पृष्ठभूमि से है यहाँ त्रिनिदाद में रामचरित मानस का गायन और रामलीला का मंचन किया जाता है। जो बहुत पॉपुलर है वहाँ दोहा और चौपाई का गायन होता है। 9 दिन से 28 दिनों तक यहाँ आयोजन चलते रहता है। मैं जहाँ रहती हूँ वह जगह बहुत छोटी है जिसकी घनी आबादी है । जिसमें आधे लोग भारतीय हैं। मैं रामलीला के ऊपर खोज कर रही हूँ इस तरह अपनी बातें रखकर उन्होंने जय श्रीराम कह कर सब को धन्यवाद कहा। ललित शर्मा जी ने प्रो सच्चिदानंद जोशी जी को अध्यक्षीय उद्बोधन के लिए आमंत्रित किया।

प्रो सच्चिदानंद जोशी जी ने कहा कि आज हम दक्षिण कोसल में रामलीला एवं उसका सामाजिक प्रभाव विषय पर परिचर्चा करने में लगे हुए हैं। छत्तीसगढ़ के गाँव-गाँव में रामलीला का आयोजन होता है। बालोद के झलमला में राम मंडलियों में प्रतिस्पर्धा होती है। यहाँ 300 से 400 मंडली प्रतिस्पर्धा के लिए अर्जी लगाते हैं। तुरतुरिया में वाल्मीकि आश्रम है। जहाँ अद्भुत शांति की अनुभूति होती है। वैसे ही शांति शिवरीनारायण में भी अनुभूति होती है। यहाँ मन्नू लाल यादव जी ने राम वन गमन पथ की खोज की।

छत्तीसगढ़ में भगवान राम कण-कण में रचे बसे हुए हैं। बैंकॉक में भगवान राम पर रामलीला होती है, अंकोरवाट मंदिर में भगवान राम का मंदिर अति विस्तृत है। एक बात कहना चाहता हूँ पहले की अपेक्षा रामलीला का ह्रास हो रहा है। लेकिन रामकथा का आकर्षण कम नहीं हुआ है। सबको रामकथा पता होता है पर बार-बार देखने की लालसा बनी होती है। बचपन में टाट पट्टी, बोरी आदि लेकर हम रामलीला देखने जाते थे। जैसे कि शर्मा जी ने बताया कि दोहे के पढ़ने से नौकरी मिल जाएगी, शादी हो जाएगी आदि, यह अद्भुत है। छत्तीसगढ़ में राम की भक्ति और भाव की अलग-अलग धारा है। जैसे छत्तीसगढ़ में भक्ति की धारा बह रही है। जैसे उत्तराखंड को देव भूमि कहा जाता है उसी प्रकार छत्तीसगढ़ को भक्ति की भूमि कहा जाना चाहिए। भारत में भक्ति की भूमि का और दूसरा उदाहरण कहीं नहीं है, यह कह कर मैं अपनी बात समाप्त करना चाहता हूँ।

सेंटर फ़ॉर स्टडी ऑन होलिस्टिक डेवलपमेंट छत्तीसगढ़ के सचिव श्री विवेक सक्सेना ने सभी का आभार व्यक्त किया।अंत में श्री ललित शर्मा ने बताया कि अगले सप्ताह फिर ‘दक्षिण कोसल में रामायण के पुरातात्विक साक्षय’ विषय पर शिवाकांत बाजपेयी जी अपना व्याख्यान देंगे। अंत में राजा रामचंद्र की जय के उद्घोष के साथ वेबीनार का सम्पन्न हुआ। वेबीनार का सीधा प्रसारण दक्षिण कोसल यूट्यूब और दक्षिण कोसल टुडे फेसबुक पर भी किया गया।

वेबीनार रिपोर्ट

हरिसिंह क्षत्री
मार्गदर्शक – जिला पुरातत्व संग्रहालय कोरबा, छत्तीसगढ़ मो. नं.-9407920525, 9827189845

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