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स्वदेशी और स्वाधीनता आँदोलन को गति देने वालों में अग्रणी विपिन चंद्र पाल

स्वतंत्रता आँदोलन के अग्रणी नेताओं में “लाल, बाल, पाल” के रूप “त्रिदेव” के नाम आते हैं जिन्होंने सबसे पहले पूर्ण स्वतंत्रता और पूर्ण स्वदेशी का नारा लगाया था। विपिनचंद्र पाल इन “त्रिदेव” में से एक थे और अन्य दो लाला लाजपतराय एवं लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक थे।

इन्हीं त्रिदेव ने काँग्रेस में सबसे पहले पूर्ण स्वाधीनता का नारा लगाया और पूरे देश में स्वदेशी का अभियान चलाया। इसकी शुरुआत 1891 से की थी और दस वर्ष में ये आँदोलन पूरे बंगाल में फैल गया था। तब आज का बंगलादेश, बिहार, उड़ीसा, और असम भी बंगाल का अंग हुआ करते थे। इस आँदोलन को तोड़ने के लिये ही अंग्रेजों ने 1905 में बंगाल के विभाजन का निर्णय लिया जिससे स्वतंत्रता की अग्नि और प्रज्ज्वलित हुई।

ऐसे ओजस्वी, दूरदर्शी और क्राँतिकारी विचारों के धनी सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विपिनचंद्र पाल का जन्म 7 नवम्बर 1858 को बंगाल के  सिलहट जिले के अंतर्गत पोइली गांव में हुआ था। यह क्षेत्र अब बंग्लादेश में है। उनके पिता रामचन्द्र पाल बहुत संपन्न जमींदार थे। वे अंग्रेजी शासन से जुड़े थे तथा फारसी भाषा के विद्वान थे।

परिवार का अंग्रेजी शासन में प्रभाव  चलते बालक विपिन की शिक्षा चर्च मिशन सोसाइटी कॉलेज में हुई। यह संस्था अब सेंट पॉल कैथेड्रल मिशन कॉलेज  के नाम सेशजानी जाती है। बाद में उच्च अध्ययन केवलिये इंग्लैंड भेजे गये। वहाँ उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के अंतर्गत न्यू मैनचेस्टर कॉलेज में प्रवेश लिया किंतु पढ़ाई अधूरी छोड़कर भारत लौट आये। वस्तुतः इग्लैंड में अंग्रेजों द्वारा भारतीयों के साथ किया जाने वाला अपमान जनक व्यवहार ने उन्हें भारत लौटने पर विवश कर दिया और लौटकर उन्होंने धर्मशास्त्रों का अध्ययन किया।इसके साथ ही सार्वजनिक जीवन में सक्रिय हुये और काँग्रेस से भी जुड़ गये।

 उन्होंने सभी दिशाओं में संघर्ष आरंभ किये। एक ओर यदि भारतीय जन मानस में सामाजिक बुराइयों से दूर होकर प्रगति केलिये आधुनिकतम मार्ग तलाशने का आव्हान किया तो समाज स्वाभिमान जागरण का अभियान भी चलाया। उनका मानता था कि सामाजिक भेदभाव से मुक्त होकर विदेशियों द्वारा किये जा रहे भारतीयों के शोषण से मुक्ति का संघर्ष होना चाहिए। इसी सामाजिक और राष्ट्रीय जागरण अभियान में उनका संपर्क लाला लाजपत राय और बाल गंगाधर तिलक जी हुआ। इससे स्वदेशी और स्वाभिमान जागरण का यह अभियान पूरे देश में फैला।

चूंकि तिलक जी का प्रभाव क्षेत्र महाराष्ट्र में और लाजपत राय जी का प्रभाव क्षेत्र पंजाब में था।इस प्रकार आगे चलकर स्वतंत्रता आँदोलन में ये तीनों विभूतियाँ “लाल, बाल पाल” के नाम से प्रसिद्ध हुईं। काँग्रेस पहले नागरिक अधिकार और समानता के अधिकार की बात क, रही थी लेकिन इन त्रिदेव के कारण ही पूर्ण स्वतंत्रता का उद्घोष हुआ।और इसके लिये क्राँतिकारी आँदोलन का अंकुर भी फूटा। बंगाल के क्राँतिकारियो के आदर्श विपिनचंद्र पाल  पंजाब के क्राँतिकारियों के आदर्श लाला लाजपत राय और महाराष्ट्र के क्राँतिकारियों के आदर्श लोकमान्य तिलक बने।

सामाजिक सुधार आँदोलन प्रति उनका कितना गहरा समर्पण था इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि अपनी पहली पत्नि का निधन हो जाने पर उन्होंने विधवा स्त्री से विवाह किया। इससे परिवार में इतने मतभेद हुये कि परिवार से अलग होना पड़ा।

अपने सामाजिक जागरण अभियान में वे इस सत्य को भाँप गये थे कि अंग्रेजों ने अपने व्यापारिक लाभ के लिये शिल्पकारों को बेरोजगार करके भुखमरी के कगार पर पहुँचा दिया था और समाज में अंग्रेजी कारखानों के उत्पाद के प्रति आकर्षण बढ़ने लगा था। तब उन्होंने समाज में स्थानीय उत्पाद के उपयोग का वातावरण बनाने का निश्चय किया। उन्होंने स्थानीय शिल्पकारों को सहायता तथा उनके उत्पाद के प्रति समाज जागरण का अभियान चलाया।

उन्होंने काँग्रेस के 1898 के अधिवेशन में भी ये विषय रखा पर बहुमत न मिल सका पर एक समूह ऐसा जरूर बना जो इन विचारों का समर्थक था और यही समूह आगे चलकर “गरम दल” कहलाया। काँग्रेस के सम्मेलन में वंदेमातरम गीत गायन का प्रस्ताव करने वाले भी विपिन चंद्र पाल ही थे।

बंगाल में अंग्रेजी शासन का खुला विरोध 1905 के बंगाल विभाजन के निर्णय से आरंभ हुआ और 1908 में विपिन चंद्र पाल पहली बार जेल गये। उन्हे छै माह की सजा हुई। समय के साथ स्वतंत्रता संग्राम में गाँधी जी का आगमन हुआ। गाँधी जी अहिसंक तरीके से आँदोलन चलाना चाहते थे और क्रातिकारियों का समर्थन नहीं करना चाहते थे।इस बात पर उनके गाँधी जी मतभेद हुये। जिसे उन्होंने खुलकर व्यक्त भी किये।

स्वतंत्रता के लिये आरंभ हुये अहिसंक आँदोलन में सहभागी भी बने। इस आँदोलन को गति देने के लिये औद्योगिक तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में हड़ताल भी कराई पर स्वाधीनता संघर्ष के लिये क्राँतिकारी आँदोलन भी आवश्यक है, वे अपनी इस बात पर भी अडिग रहे।

वे समाज सुधारक, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और प्रखर वक्ता के साथ एक लेखक और पत्रकार भी थे।उनकी कुछ प्रमुख रचनाओं में इंडियन नेस्नलिज्म, नैस्नल्टी एंड एम्पायर, स्वराज एंड द प्रेजेंट सिचुएशन, द बेसिस ऑफ़ रिफार्म द सोल ऑफ़ इंडिया, दि न्यू स्पिरिट, स्टडीज इन हिन्दुइस्म, क्वीन विक्टोरिया आदि हैं।

इन प्रमुख रचनाओं के साथ उन्होने एक कुशल पत्रकार के रूप में अनेक पत्र पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। उन्होंने  1886 में सिलहट से प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक ‘परिदर्शक’ से पत्रकारिता आरंभ की और बंगाल पब्लिक ओपिनियन ( 1882) लाहौर ट्रिब्यून (1887) द न्यू इंडिया (1892) द इंडिपेंडेंट, इंडिया (1901) बन्देमातरम (1906, 1907) स्वराज (1908 -1911) द हिन्दू रिव्यु (1913) द डैमोक्रैट (1919, 1920) तथा 1924-25 में बंगाली का संपादन किया।

इस प्रकार समाज और राष्ट्रहित के लिए जीवन भर  संघर्ष करने  वाले महान व्यक्तित्व के धनी विपिनचंद्र जी पाल का 20 मई 1932 को निधन हुआ। भारत सरकार ने 1958 में उनकी स्मृति में डाकटिकट जारी किया।

आलेख

श्री रमेश शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार, भोपाल, मध्य प्रदेश

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