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समरस, स्वत्व, साँस्कृतिक और सशक्त राष्ट्र स्वरूप के लिये जीवन समर्पित : सरदार वल्लभ भाई पटेल

15 दिसम्बर 1950 सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और आधुनिक भारत निर्माता सरदार वल्लभभाई पटेल की पुण्यतिथि

वल्लभभाई पटेल उन विरले महानायकों में से हैं जिन्होंने स्वतंत्रता के लिये तो संघर्ष किया ही। साथ ही भारतीय नागरिकों के स्वत्व और स्वाभिमान और नागरिक अधिकार के लिये भी संघर्ष किया। इसका उदाहरण खेड़ा और बारडोली आँदोलन में मिलता है। आज भारत का जो एकीकृत स्वरूप हम सबके सामने है इसके लिये सबसे महत्वपूर्ण भूमिका सरदार वल्लभभाई पटेल की थी।

जिन परिस्थियों में भारत स्वतंत्र हुआ था वह साधारण नहीं थीं। विभाजन की त्रासदी, करोड़ों शरणार्थियों की सहायता और उपद्रवकारी तत्वों पर नियंत्रण एक विकट समस्या थी। देश के गृहमंत्री के रूपमें इन सभी जटिल समस्याओं से निबटने का दायित्व सरदार वल्लभभाई पटेल पर था।

उन्होंने बहुत साहस, युक्ति और कुशलता से इन जटिलताओं के निराकरण का मार्ग बनाया। उन्हें एकसाथ अनेक मोर्चों पर संघर्ष करना पड़ा। वाह्य समस्याओं के समाधान के लिये भी और सरकार के भीतर अंग्रेज परस्त तंत्र के अवरोध से भी। अनेक विषय तो ऐसे आये जब उनका प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से खुलकर मतभेद हुये।

ये पाकिस्तान और चीन के प्रति सतर्कता, भाषा, और विशेषकर स्वतंत्रता के बाद साँस्कृतिक मूल्यों की स्थापना जैसे विषय थे। भारत के भीतर कुछ ऐसी भी रियासतें थीं जिन्होंने भारतीय गणतंत्र में मिलने से इंकार कर दिया था और पाकिस्तान से मिलने की घोषणा कर दी थी। इनमें भोपाल, जूनागढ़, और हैदराबाद जैसी रियासतें थीं। जबकि कश्मीर जिन्ना के बहकावे में आकर अनिश्चय की स्थित में था।

सरदार वल्लभभाई पटेल ने जहाँ जहाँ विना कोई खून खराबा किये रियासतों को भारतीय गणतंत्र का अंग बनाया वहीं जूनागढ़ और हैदराबाद में सैन्यबल भेजकर और भोपाल रियासत को युक्ति से भारतीय गणतंत्र से जोड़ा। उन्होंने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के खुले विरोध के बावजूद सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।

जब 75 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ तब भारत भर में उनका कोई अपना निजी मकान न था। उनका परिवार अहमदाबाद में एक किराये के मकान में रहता था और बैंक खाते में भी केवल 260 रुपये थे। उन्होंने अपने जीवन में अपने परिवार के किसी सदस्य को राजनीति में आगे न बढ़ाया।

उनके निधन के बाद गुजरात काँग्रेस के आग्रह पर उनकी बेटी को लोकसभा चुनाव लड़ाया गया। ऐसे महानायक सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाड में हुआ था। उनके पिता झवेरभाई पटेल एक साधारण किसान थे और माता लाड़बा देवी भारतीय परंपराओं और संस्कृति के लिये समर्पित महिला थीं।

वल्लभभाई भाई के तीन बड़े भाई सोमाभाई, नरसीभाई और विट्टलभाई थे। विट्ठलभाई पटेल भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। वल्लभभाई पटेल का विवाह सोलह वर्ष की आयु में ही गया था और जब वे तैंतीस वर्ष के हुये तब उनकी पत्नि का निधन हो गया था।

वल्लभभाई की आरंभिक शिक्षा नडियाड में ही हुई। वे पढ़ने में बहुत कुशाग्र थे। निर्धारित पाठ्यक्रम के अतिरिक्त उन्होंने योग और आध्यात्म शिक्षा भी ग्रहण की। घर में संतों का आना जाना था। परिवार के इसी वातावरण ने उन्हें बहुआयामी चिंतक और सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति दृढ़ प्रतिज्ञ बनाया।

वे कितने संकल्पनिष्ठ और सिद्धांतवादी थे इसका उदाहरण उनके स्कूल जीवन में मिलता है। विद्यालय के एक शिक्षक पढ़ाने के साथ बच्चों पर सामान खरीदने का दबाव बनाते थे। किशोरवय वल्लभभाई ने बच्चों को एकत्र करके विरोध किया। चार दिन पढ़ाई बंद रही अंत में शिक्षक को अपने व्यवसाय केलिये बच्चों पर दबाव बनाना बंद करना पड़ा। लेकिन पारिवारिक कारणों से पढ़ाई में कुछ गतिरोध आया और वे बाईस वर्ष की आयु में मैट्रिक पास कर सके।

मैट्रिक के बाद उनकी शिक्षा पटरी पर दौड़ी। स्थानीय शिक्षा पूरी कर वकालत करने केलिये लन्दन गये। वहाँ उनकी भेंट अन्य भारतीय छात्रों के साथ पंडित जवाहरलाल नेहरू से हुई। यद्यपि नेहरूजी उनसे आयु में लगभग चौदह वर्ष छोटे थे पर आरंभिक पढ़ाई में कुछ वाधाओं के कारण पटेल जी पिछड़ गये थे इसलिये लंदन में वकालत के दौरान वे नेहरूजी के समकालीन थे।

वल्लभभाई पटेल फरवरी 1913 में वकालत करके भारत लौटे और अहमदाबाद में वकालत करने लगे। वकालत के साथ उन्होने 1917 में अहमदाबाद नगर पालिका अध्यक्ष का चुनाव लड़ा। वे पाँच वर्ष तक इस पद पर रहे। सरदार वल्लभभाई पटेल भारत के पहले नगर पालिका अध्यक्ष बने।

वकालत और नगर पालिका में काम करने के दौरान उनके सामने अंग्रेज अधिकारियों द्वारा भारतीयों के शोषण और दमन की घटनाएँ सामने आने लगीं। ऐसा शोषण उन्होंने अपने गाँव में किसानों का और लंदन में अंग्रेजों का अपमान जनक व्यवहार भी देखा था। उनकी स्मृति में यह सब था। इसलिए अब यह शोषण और दमन देखकर वे व्यथित हुये और वकालत के साथ आँदोलन से जुड़ गये।

यह समय देश में महामारी और फसलों के उजड़ जाने का था। फिर भी अंग्रेज अधिकारी जन सामान्य और किसानों से बल पूर्वक बसूली कर रहे थे। इस वसूली में अपमान की पराकाष्ठा होती। वल्लभभाई पटेल ने इसके विरुद्ध संघर्ष आरंभ किया। इतिहास के पन्नों में यह आँदोलन “खेड़ा संघर्ष” के नाम से दर्ज है।

अहिसंक आँदोलन करने की यह प्रेरणा उन्हें गाँधी जी के चंपारण आँदोलन से मिली थी। चंपारण में आँदोलन 1917 में हुआ था। उसी प्रकार वल्लभभाई ने 1918 में यह खेड़ा आँदोलन आरंभ किया। गुजरात का यह खेड़ा डिवीजन भयंकर सूखे की चपेट में था। उस पर हैजा महामारी का प्रकोप। बीमारी और सूखे से गांव उजड़ गये थे। गाँवों में खाने तक के लाले पड़े थे। सूखे से किसानी का उजड़ना और बीमारी से स्थानीय शिल्पकला के निर्माण भी मानों शून्य हो गया था।

इससे व्यापार भी उजड़ने लगा। पर अंग्रेजी सरकार द्वारा वसूली लक्ष्य कम न हुआ। अंग्रेज अफसर वसूली के लिये किसानों और व्यापारियों के साथ अमानुषिक तरीके अपनाने लगे। तब वल्लभभाई पटेल ने पीड़ितों को संगठित किया और आँदोलन आरंभ किया। उन्होंने अंग्रेज सरकार से मानवीय व्यवहार करने तथा वसूली में छूट की मांग की।

सरकार ने उनकी मांग अस्वीकार कर दी। तो वल्लभभाई पटेल ने किसानों, व्यापारियों और स्थानीय लोक शिल्पकारों को संगठित करके आँदोलन तेज किया। गाँव गाँव में धरना प्रदर्शन और कीर्तन आरंभ हुये। पहले बल प्रयोग हुआ फिर गिरफ्तारियाँ हुईं पर आँदोलन कम न हुआ। अंत में सरकार को झुकना पड़ा और वसूली में राहत दी गयी।

इस आँदोलन का नेतृत्व करने और सफलता के बाद स्थानीय जन मानस में वे “सरदार” के नाम से प्रसिद्ध हो गये। उन दिनों नायक को सरदार कहा जाता था। बाद में गाँधी जी के संबोधन ने उन्हें स्थाई रूप से “सरदार” की उपाधि से विभूषित कर दिया। अहिसंक आँदोलन केलिये गाँधीजी के बाद उनकी ख्याति पूरे देश में हुई और उनकी गणना काँग्रेस के अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं में होने लगी।

काँग्रेस के विभिन्न आँदोलनों और सक्रियता के साथ उन्होंने दूसरा बड़ा आँदोलन 1928 में किया। इतिहास में यह आँदोलन बारडोली सत्याग्रह के नाम से प्रसिद्ध है। उनके नेतृत्व में यह भी एक बड़ा किसान आंदोलन था। अंग्रेज सरकार ने लगान में भारी वृद्धि और सख्ती के साथ वसूली आरंभ की थी।

वल्लभभाई पटेल ने किसानों को संगठित किया और इस लगान वृद्धि के विरुद्ध आँदोलन आरंभ कर दिया। सरकार ने पहले आंदोलन दबाना चाहा पर आँदोलन और तीव्र हो गया। जब इसकी प्रतिक्रिया गुजरात के बाहर होने लगी तब सरकार झुकी और लगान वृद्धि वापस हुई। निरंतर संघर्ष और अपनी क्षमता से उनकी गणना काँग्रेस के सर्वाधिक लोकप्रिय नेताओं में होने लगी और 1931 के कराची अधिवेशन में वे काँग्रेस के अध्यक्ष बने।

उनकी सबसे महत्वपूर्ण भूमिका स्वतंत्रता के साथ भारत विभाजन के समय देखी गई। आरंभ में काँग्रेस भारत विभाजन के पक्ष में न थी किन्तु मुस्लिम लीग द्वारा अगस्त 1946 में डायरेक्ट एक्शन काॅल के नाम पर बंगाल, पंजाब, बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों हुई हिंसा से पूरा देश काँप उठा।

3 जून 1947 को काँग्रेस ने विभाजन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। इस बैठक में सरदार वल्लभभाई पटेल ने बहुत स्पष्ट शब्दों में मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में हिन्दुओं की भयभीत स्थिति का वर्णन किया और समय रहते हिन्दुओं को सुरक्षित वातावरण देने की आवश्यकता बताई।

सरदार वल्लभभाई पटेल उन नेताओं में प्रमुख थे जिन्होने जनसंख्या की पूरी तरह अदला बदली का सुझाव दिया था। वे उन क्षेत्र के उन सभी नागरिकों को पाकिस्तान भेजने के पक्षधर थे जिन्होंने जनमत सर्वे में पाकिस्तान के पक्ष में राय व्यक्त की थी।

लेकिन गाँधी जी एक आदर्श समाज निर्माण के पक्षधर थे और नेहरू जी भी संसार में एक सर्वमान्य व्यक्तित्व के रूप में स्वयं को स्थापित करने का प्रयास कर रहे थे इसलिये भले पाकिस्तान वाले हिस्सों भी भारी हिंसा, लूट स्त्रियों के हरण की खबरों के साथ शरणार्थियों की भीड़ भारत आ रही थी पर भारत सरकार ने अपने अंतर्गत रहने वाले मुसलमान परिवारों को समझाइश और सुरक्षा प्रदान की ।

स्वतंत्रता के साथ काँग्रेस की लगभग सभी स्थानीय इकाइयाँ सरदार वल्लभभाई पटेल को प्रधानमंत्री के रूप में प्राथमिकता दे रहीं थीं किंतु गाँधीजी की इच्छा का सम्मान करके सरदार पटेल पीछे हटे और नेहरूजी प्रधानमंत्री बने। सरदार वल्लभभाई पटेल को उपप्रधानमंत्री पद के साथ गृह विभाग का दायित्व मिला।

अंग्रेजों ने भारत को स्वतंत्रता बाद में दी पहले भारत का विभाजन करके पाकिस्तान बनाया। इसके साथ भारत के राजाओं को यह अधिकार भी दे दिया था कि वे अपनी इच्छा से भारत और पाकिस्तान में से किसी एक को चुन सकते हैं। चाहें तो स्वतंत्र भी रह सकते हैं। इससे उत्साहित होकर अनेक राजाओं ने स्वतंत्र रहने का रास्ता बनाने लगे तो भोपाल, जूनागढ़ और हैदराबाद ने पाकिस्तान से मिलने की खुली घोषणा कर दी।

उन विषम परिस्थतियों में सरदार वल्लभभाई पटेल ने अपनी टीम सक्रिय की और राष्ट्रहित का वास्ता देकर रियासतों को एकजुट करके भारत को वर्तमान स्वरूप दिया । इसमें जूनागढ़ और हैदराबाद के विरुद्ध सेना का उपयोग किया । जबकि भोपाल के मामले में रणनीति का उपयोग किया तब भारत का वर्तमान स्वरूप उभर सका ।

सरदार वल्लभभाई पटेल स्वतंत्रता के साथ भारत में एक नागरिक आचार संहिता और समता मूलक समाज रचना के पक्षधर थे। वे वर्ग और धर्म के आधार पर अलग अलग प्रावधानों कानून बनाने के पक्षधर नहीं थे। समय समय पर उनके द्वारा दिये गये वक्तव्यों में उनके इस संकल्प का अनुमान सहज ही लगता है।

वे कहते थे कि “हमें ऊंच-नीच, अमीर-गरीब और जाति प्रथा के भेदभावों को समाप्त कर देना चाहिए”। वे शासन के ऐसे समरस स्वरूप के पक्षधर थे जो किसी भी भेदभाव से मुक्त हो तथा प्रजा के पूर्ण विश्वास पर आधारित हो। वे भारत को एक सशस्त्र, सशक्त और निर्भय स्वरूप देने के पक्षधर थे।

वे कहते थे कि भाषा और क्षेत्रीय जीवन की विविधता के वावजूद भारत की संस्कृति का स्वरूप एक है। अपने इसी सांस्कृतिक स्वरूप के आधार पर भारत को भावी विकास करना चाहिए। लेकिन भारत की स्वतंत्रता के साथ समस्याओं का मानों अंबार आ गया। विभाजन और शरणार्थी समस्या चल ही रही थी कि पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला कर दिया।

सरदार पटेल ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक गुरुजी को कश्मीर भेजा और उनकी सहायता से महाराजा कश्मीर को दाल्ली बुलाया और विलय पत्र पर हस्ताक्षर हुये तब शेष कश्मीर की रक्षा की। इसी बीच गाँधीजी की हत्या हो गई। विषम स्थितियों से जूझते हुये वे आगे बढ़ ही रहे थे कि 15 दिसंबर 1950 को उनका निधन हो गया।

अपने निर्णयों को दृढ़ता से पालन करने के संकल्प के कारण उन्हें “लौह पुरुष” और ‘भारत का बिस्मार्क’ भी कहा जाता है। उनका निधन आधुनिक भारत के निर्माण में एक ऐसी क्षति है। जिसकी भरपाई कभी नहीं हो सकती। उनके निधन के 41 वर्ष बाद 1991 में भारत सरकार ने उन्हे सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान भारतरत्न से सम्मानित करने का निर्णय लिया। यह सम्मान उनके पौत्र विपिनभाई पटेल ने ग्रहण किया।

वर्तमान मोदी सरकार ने उनकी स्मृति में एक भव्य प्रतिमा की स्थापना की। इस प्रतिमा का आधार 58 मीटर और सतह की ऊँचाई 180 मीटर है। इस प्रकार इस प्रतिमा की कुल ऊँचाई 240 मीटर है। यह संसार की सबसे ऊँची प्रतिमा है।

इस प्रतिमा के निर्माण का कार्य 31 अक्टूबर 2013 को तब आरंभ हुआ था जब श्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्य मंत्री थे और 31 अक्टूबर 2018 को प्रधानमंत्री के रूप श्री नरेंद्र मोदी ने यह भव्य स्मारक राष्ट्र को समर्पित किया। यह गुजरात के नर्मदा जिले के अंतर्गत सरदार सरोवर बाँध के सम्मुख एक छोटे चट्टानी द्वीप ‘साधू बेट’ पर स्थापित है।

भारत की समस्त रियासतों के एकीकरण का श्रेय सरदार वल्लभभाई पटेल को है। इसलिये उनकी स्मृति में 31 अक्टूबर को प्रतिवर्ष “राष्ट्रीय एकता दिवस” के रूप में मनाया जाता है और उनकी स्मृति में निर्मित इस भव्य स्मारक का नाम भी “एकता की मूर्ति” दिया गया।

आलेख

श्री रमेश शर्मा,
वरिष्ठ पत्रकार, भोपाल, मध्य प्रदेश

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